शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

बाऊ-बायोलाजी के अनुसार मानव शरीर पर प्रभाव

बाऊ-बायोलाजी के अनुसार भवन एवं पर्यावरण का मानव शरीर पर प्रभाव
    बाऊ-बायोलाजी का विकास लगभग 30 वर्ष पूर्व जर्मन डॉ0 गुस्ताक प्रेहरर वान फोल के अध्ययन के साथ प्रारंभ हुआ । जहॉं उसने एक गॉव में प्रेक्टिस करते समय पाया कि गॉंव में अधिकतर कैंसर मरीजों की संख्या भू चुम्बकीय विकिरण के कारण हैं तथा जिन कैंसर मरीजों की मौत हुई हैं वे विकृत भूगर्भीय चुम्बकीय क्षेत्र पर सोते थें । इस खोज से पृथ्वी के भू-चुम्बकीय प्रभाव तथा भवन निर्माण सामग्री से होने वाले विकिरण के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त हुआ । आज अधिकतर लोग सीमेंट, कांक्रीट एवं कांच के डब्बें में लगभग 90 प्रतिशत से ज्यादा समय व्यतीत करते हैं । उस पर भी मजा यह हैं कि इन सीमेंट के डिब्बों में जिन्हें हम घर या कार्यालय कहते हैं, में उपयोग की जाने वाली सामग्री सिनेटिक या आर्टिफिशियल होती हैं, फलस्वरूप अधिक से अधिक वक्त व्यक्ति रोगी होता चला जा रहा हैं । विभिन्न अप्राकृतिक सामग्री के उपयोग से हमारे वातावरण में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा हैं ।
    बाऊ-बायोलाजी एक जर्मन वाक्य हैं जिसमें बाऊ का अर्थ होता हैं भवन एवं बायो ग्रीक शब्द हैं जिसका अर्थ हैं जीवन अर्थात् जीवन का विज्ञान । इन दोनों शब्दों को जोड़ते हुये जो शब्द बनता हैं उसका अर्थ हैं भवन एवं जीवन के अंर्तसम्बधों का विज्ञान ।
    बाऊ-बायोलाजी के दो कार्य क्षेत्र हैं पहला भवन निर्माण सामग्री का मानवीय स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन एवं दूसरा इस अध्ययन से प्राप्त जानकारी को भवन तथा कार्यालयों के निर्माण एवं सुधार करने हेतु उपयोग करना ।
आन्तरिक वायु प्रदूषण
    बाऊ-बायोलाजी सबसे प्रमुख समस्या आन्तरिक वायु प्रदूषण बताती हैं । घर या कार्यालय की आन्तरिक हवा में पेट्रोकेमिकल द्वारा निर्मित रसायन होते हैं और इनमें भी वे अत्यंत खतरनाक हैं जिनमें क्लोरीन उपयोग होती हैं, साथ ही एस्बेस्टोस,फायबर, सिन्थेटिक, माइक्रो ग्लास एवं कई अन्य प्रकार के टेक्सटाईल सामग्री वायु की गुणवत्ता को खराब कर रही हैं, यही नहीं धूल, धुऑं आदि के कारण भी इस स्थिति को और विकृत कर रहे हैं, कीटनाशक दवाऐं एवं रसायन न केवल आन्तरिक अपितु किसानों द्वारा फसलों पर इनके छिड़काव के कारण बाहर ग्रामीण वायु भी प्रदूषित हो रही हैं ।
विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र
    विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों ए0सी0 करंट हैं । दोनों एक दूसरें के अन्योन्याश्रित हैं, जहॉं तार में विद्युत प्रवाहित होती हैं, वहॉं चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित होता हैं, जहॉं चुम्बकीय धारा प्रवाहित होती हैं, वहॉ विद्युत क्षेत्र निर्मित होता हैं।    सामान्यतः शरीर का वोल्टेज 20 मि0ली0 वोल्ट पाया जाता हैं, परंतु वही व्यक्ति जब ऐसे बिस्तर पर सोता हैं जिसके पास बेड स्वीच आदि लगे हैं, या विद्युत धारा द्वारा बिस्तर को गर्म किया जाता हैं तो उसके शरीर का वोल्टेज 87000 मिली वोल्ट हो जाता हैं । यदि इस प्रकार के अधिक वोल्टेज के साथ लंबे समय तक रहा जायें तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती हैं ।
भवन निर्माण सामग्री द्वारा रेडीयेशन
    यह एक स्थापित तथ्य हैं कि प्रत्येक अणु में ऊर्जा होती हैं एवं प्रत्येक पदार्थ से ऊर्जा का विकिरण होता हैं, यह ऊर्जा विकिरण कहीं धनात्मक होता हैं एवं कहीं ऋणात्मक । हमारे भवन में प्रयुक्त सामग्री के ऊर्जा विकिरण के संयुक्त प्रभाव के फलस्वरूप वहॉं के पर्यावरण में जो ऊर्जा निर्मित होती हैं वह हमारे शरीर पर प्रभाव डालती हैं । इन सभी विकिरण को आज यंत्रों की सहायता से नापा जा सकता हैं और ऋणात्मक प्रभाव डालने वाली ऊर्जा को समाप्त करने के उपाय किये जा सकते हैं ।
बाऊ-बायोलाजी के सिद्धांत
1- भवन निर्माण स्थल चयन की प्रक्रिया में भू बायोलाजी का अध्ययन करें ।
2- आवास, उद्योग केन्द्रों को मुख्य ट्राफिक सड़को से दूर रखें ।
3- भवन के पास हरित क्षेत्र बनायें ।
4- घर की प्लानिंग एवं विकास में परिवार की आवश्यकता एवं मानवीय विषय को ध्यान में रखें ।
5- भवन सामग्री प्राकृतिक मूल की हों ।
6- दिवाल, छत एवं फर्श में उपयोग की जाने वाली सामग्री वायु को प्रवाहित करने में सहायक हों ।
7- भवन के अन्दर की हवा प्रदूषित या आर्द्र नहीं हो ऐसी भवन निर्माण सामग्री का उपयोग करें ।
8- भवन की अन्दर की सतह पर ऐसी सामग्री का उपयोग करें जो हवा के प्रदूषण को सोख लें एवं हवा को फिल्टर कर सकें ।
9- भवन के अन्दर के ताप संग्रहण एवं ताप इन्सुलेशन ने उचित तालमेल बनाये रखें।
10- भवन की सतह एवं वायु के तापमान में संतुलन बनाये रखें ।
11- ताप के लिये सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग करें ।
12- यह सुनिश्चित करें कि भवन में प्राकृतिक एवं सुखद अहसास हो, नशीली या विषैली बदबू को दूर रखें ।
13- भवन में प्रकाश एवं रंग मानव प्रकृति को शांत रखें, ऐसी व्यवस्था होनी चाहियें ।
    हमारा शरीर अति सूक्ष्म यंत्र हैं जो किसी भी स्वास्थ्य विरोधी तत्व, गंदा रंग इत्यादि का लंबे समय तक सानिध्य से उसका प्रतिफल भुगतते हैं ।
                          संकलनकर्ता
                        अनुराग अग्रवाल
                    ज्योतिष, अंकशास्त्र एवं वास्तु विशेषज्ञ
            अग्रवाल हाऊस, सुभाष वार्ड सिवनी म0प्र0, मो0 09425445623

यह है सागर में मनरेगा का हाल सखे

यह है सागर में मनरेगा का हाल सखे

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को सागर जिले में क्रियान्वित हुए ढाई साल पूरे हो गये। योजना का क्रियान्वयन कैसा हो रहा है, यह इस बात पर निर्भ्।र है कि उसमें अधिकारियों की रुचि  कैसी है। मगर दुर्भाग्य है कि सागर जिले में मनरेगा प्रशासनिक दुर्गति का श्ंिाकार है। मनरेगा स्कीम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में निवासरत ग्रामीण परिवारों के वयस्क व्यक्तियों को ,जो अकुशल मानव श्रम करने को तैयार हैं ,एक वित्तीय वर्ष में एक परिवार को कम से कम सौ दिवस का रोजगार उपलब्ध कराकर आजीविका सुनिश्चित करना एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थाई परिसम्पत्तियॉं सृजित करना  है।
 
मनरेगा स्कीम अन्तर्गत एक वित्तीय वर्ष में सौ दिन का रोजगार प्राप्त करने के लिए एक परिवार पात्र है। सौ दिन के रोजगार की उपलब्धता को परिवार में निवासरत समस्त वयस्क व्यक्तियों के बीच विभाजित करने का प्रावधान स्कीम में है। पता ही है कि सागर जिले में स्कीम लागू होने के शुरुआती दौर में ग्राम पंचायत स्तर पर किए जाने वाले कार्यो के सेल्फ ऑफ प्रोजेक्ट बनाये गये। और यहीं से भ्रष्टाचार करने की शुरुआत भी हो गई। मसलन, मनरेगा के अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि गॉवों में ऐसे निर्माण कार्य ही कराये जायें, जिनमें ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने पर 60 प्रतिशत राशि खर्च हो और कार्य में लगने वाली निर्माण सामग्री पर 40 प्रतिशत राशि लगे। मगर उक्त प्रावधान की खुलेआम धज्जियॉ उढ़ाकर लगभग प्रत्येक ग्राम पंचायत में सीमेन्ट-कॉंक्रीट रोड शामिल कर लिए गये। चूॅकि ग्राम पंचायत को 5 लाख रुपये तक के कार्य स्वीकृत करने का अधिकार है, अतः सीमेन्ट- कॉंक्रीट रोड के एस्टीमेट 4लाख 98हजार रुपये के बनाये गये।

यह महज संयोग नहीं कि जिले की लगभग सभी ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत 4.98 लाख रुपये के सीसी रोड मंजूर किये गये। बात साफ है कि 4.98 लाख रुपये का एक एस्टीमेट बनाकर जिले के सभी 11 ब्लाक में उसकी फोटोकापी बॉट दी गई। सीसी रोड में मजदूरी पर कम और सामग्री पर ज्यादा खर्च आता है। सीसी रोड निर्माण में ठेकेदार या सरपंच को कैसी कमाई है, यह जगजाहिर है। आशय यह कि मनरेगा की नेक मंशा में छेद कर भ्रष्टाचार की राह निकालने की शुरुआत सेल्फ ऑफ प्रोजेक्ट में सीसी रोड जैसे कार्यो को शामिल कर हुई। भ्रष्टाचार का यह प्रशासनिक पक्ष है, जो जिला कलेक्टर और जिला पंचायत के  तत्कालीन सीईओ की संलिप्ता के बगैर संभव नहीं था।
 
गौरतलब है कि मनरेगा स्कीम में एक वित्तीय वर्ष में एक परिवार को सौ दिन का रोजगार पाने की पात्रता है। यानि किसी परिवार में दस वयस्क सदस्य हैं और उनमें से जो रोजगार की मॉंग करते हैं, उनमें प्रत्येक व्यक्ति को नहीं, बल्कि सबको जोडकर सौ दिन का रोजगार दिया जायेगा। यहॉ मनरेगा के बेरोजगारी भत्ते ने गॉव वालों की नीयत खराब कर दी। स्कीम आते ही यह बात जोरों से प्रचारित हो गई थी कि मनरेगा में जिन्हें रोजगार नहीं मिल पायेगा, उन्हें बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। इसे समझें कि अगर दस वयस्क व्यक्तियों का एक संयुक्त परिवार है तो उसे सौ दिन का रोजगार मिलेगा और अगर दो लोगों का परिवार है तो उसे भी सौ दिन का रोजगार मिलेगा, नहीं तो बेरोजगारी भत्ता है ही। इस तरह अधिक रोजगार और अधिक बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए दस वयस्क व्यक्तियों के संयुक्त परिवार ने अलग-अलग पॉच परिवार दर्शते हुए पॅाच जॉबकार्ड बनवा लिए। जबकि वे एक ही घर में रह रहे हैं और एक ही चूल्हे पर उनका संयुक्त भेजन बनता है। उधर तीसरी चालाकी अधिकॉश सरपंच और पंचायत सचिवों ने की कि फर्जी जॉबकार्ड बनवाकर अपने कब्जे में कर लिए। ताकि उनके नाम पर मस्टर भरकर रकम हडपी जा सके। 
 
ष्टाचार और नीयत का खोट भरी उक्त चालाकियों से मीडिया में लगातार जो खबरें सामने आई हैं, उनका सार यह है कि निगरानी की चाक-चौबंद व्यवस्थाओं के बावजूद निर्माण कार्यो  की गुणवत्ता ठाक नहीं है। जो लोग गॉव में है ही नहीं, उनके फर्जी जॉबकार्ड पर मस्टर भरकर शासकीय धन का गवन किया गया है। निर्माण कार्यो में सामग्री पर अधिक और रोजगार देने पर कम  राशि खर्च की गई है। जिन लोगों से मजदूरी कराई गई उसका भुगतान नहीं किया गया या फिर  निर्धारित अवधि से काफी विलम्ब से भुगतान हुआ। रोजगार देने के फर्जी मस्टर बनाये गये और सामग्री खरीद के फर्जी बिल। यहॉ एक और बात सामने आई कि सरपंच व पंचायत सचिव ने अपने परिजनो तथा चहेतों के जॉबकार्ड भरकर रकम निकाली अथवा उन्हें अधिक काम दिया। दूसरी बात यह कि लोगों से कार्य कराये बगैर उन्हें कुछ रुपये देकर उनके जॉगकार्ड व मस्टर में रोजगार दर्ज कर रकम हडपी गई।
          
हैरत की बात यह कि उपरोक्त कारगुजारियॉ मनरेगा के कानून में गुणवत्ता, निगरानी और मूल्यॉंकन की चाकचौबन्द व्यवस्था किये जाने के बाद हो रही है। मसलन, योजना अन्तर्गत राज्य एवं जिला स्त्र पर  क्वालिटी मानिटर्स को यह सुनिश्चित करना है कि कार्यो की गुणवत्ता निर्धरित मापदण्डों क अनुरुप हो।
 
योजना की निगरानी हेतु जिला, जनपद और ग्राम पंचायत स्तर पर जिम्मेदारी तय की गई है। ग्राम सभा को यह दायित्व सौंपा गया है कि ग्राम पंचायत द्वारा कराये जाने वाले कार्यो का सतत निरीक्षण करे। कराये गये कार्यो का सामाजिक अंकेक्षण करे। जनपद पंचायत का यह दायित्व है कि वह जनपद स्तरीय कार्यो का सतत निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करे। यही जिम्मेदारी जिला पंचायत को दी गई है। 

उल्लेखनीय है कि मनरेगा स्कीम में कलेक्टर को जिला कार्यक्रम समन्वयक तैनात किया गया गया है। जिन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे योजना के क्रियान्वयन की पाक्षिक समीक्षा करेंगे, अधीनस्थ कर्मचारियों को  समुचित निर्देश देंगे। मगर उपरोक्त स्तर पर कोई भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहा। जिस कारण गजरुरतमंद ग्रामीणों को गॉव में ही रोजगार उपलब्ध कराने की एक महत्वपूर्ण योजना भ्रष्टाचार करने का जरिया बनकर रह गई है।