बुधवार, 28 सितंबर 2011

भारत माता के देश में लाचार है जननी


भारत माता के देश में लाचार है जननी

(लिमटी खरे)

दुनिया के चौधरी अमेरिका की मशहूर पत्रिका न्यूजवीक ने एक सर्वे कराया है जिसमें भारत गणराज्य में महिलाओं की दयनीय स्थिति का वर्णन मिलता है। भारत को सौ में से महज 41.9 अंक ही मिल पाए हैं। जिस देश का पहला नागरिक महिला हो, जिस देश में लोकसभाध्यक्ष महिला हो, जिस देश के तमिलनाडू, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश जैसे सूबों की निजाम महिला हो, जिस देश की सरकार का रिमोट कंट्रोल भी कथित तौर पर महिला के पास हो, उस देश में महिलाओं की बदतर स्थिति कैसे हो सकती है। इन परिस्थितियों में तो यही माना जाएगा कि न्यूजवीक का सर्वेक्षण कोरी बकवास से ज्यादा कुछ नहीं है। वस्तुतः यह कोरी बकवास नहीं है। यह जमीनी हकीकत है भारत गणराज्य की। लिंगानुपात भी भारत में चिंताजनक स्तर पर है। वैध अवैध सोनोग्राफी सेंटर्स में जन्म के पहले ही कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में चीन नंबर वन तो भारत दूसरी पायदान पर है।

2004 में जैसे ही कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार केंद्र पर काबिज हुई, और सरकार के अघोषित सबसे शक्तिशाली पद पर कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी बैठीं तभी लगने लगा था कि आने वाले समय में सरकार द्वारा महिलाओं के हितों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। सात साल बीत गए पर महिलाओं की स्थिति में एक इंच भी सुधार नहीं हुआ है। महिलाओं के फायदे वाले सारे विधेयक आज भी सरकार की अलमारियों में पड़े हुए धूल खा रहे हैं। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई (33 फीसदी) भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी विधेयक अंततः लोकसभा में पारित ही नहीं हो सका। राजनैतिक लाभ हानि के चक्कर में संप्रग सरकार ने इस विधेयक को हाथ लगाने से परहेज ही रखा।

आजाद हिन्दुस्तान में देश की सबसे शक्तिशाली महिला होकर उभरने के बावजूद भी सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी चौदहवीं लोकसभा में महिला आरक्षण जैसे महात्वपूर्ण बिल को पास नहीं करवा सकीं। अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने अवश्य कहा है कि सरकार में आने पर महिलाओं की तीस फीसदी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। पिछली मर्तबा संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही मौन साध रखा था। अगर कांग्रेस के मनमोहनी घोषणापत्र को अमली जामा पहनाया गया तो निश्चित रूप से आने वाले आम चुनावों के बाद आजादी के छः दशकों के उपरांत देश में महिलाओं की दशा में सुधार परिलक्षित हो सकता है, वस्तुतः एसा नहीं होगा नहीं, क्योंकि घोषणा पत्र को मतदाताओं को लुभाने के लिए ही किया जाता रहा है।

महिलाओं की हालत क्या है यह बताता है उत्तर प्रदेश में किया गया एक सर्वेक्षण। सर्वे के अनुसार 1952 से 2002 के बीच हुए 14 विधानसभा चुनावों में प्रदेश में कुल 235 महिला विधायक ही चुनी गईं थीं। इनमें से सुचिता कृपलानी और मायावती ही एसी भाग्यशाली रहीं जिनके हाथों मंे सूबे की बागड़ोर रही। चुनाव की रणभेरी बजते ही राजनैतिक दलों को महिलाओं की याद सतानी आरंभ हो जाती है। चुनावी लाभ के लिए वालीवुड के सितारों पर भी डोरे डालने से बाज नहीं आते हैं, देश के राजनेता। भीड़ जुटाने और भीड़ को वोट मंे तब्दील करवाने की जुगत में बड़े बड़े राजनेता भी रूपहले पर्दे की नायिकाओं की चिरोरी करते नज़र आते हैं।

देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओ की दुर्दशा देखते ही बनती है। कहने को तो सरकारों द्वारा बालिकाओं की पढ़ाई के लिए हर संभव प्रयास किए हैं। किन्तु ज़मीनी हकीकत इससे उलट है। गांव का आलम यह है कि स्कूलों में शौचालयों के अभाव के चलते देश की बेटियां पढ़ाई से वंचित हैं। प्राचीन काल से माना जाता रहा है कि पुरातनपंथी और लिंगभेदी मानसिकता के चलते देश के अनेक हिस्सों मंे लड़कियों को स्कूल पढ़ने नहीं भेजा जाता। एक गैर सरकारी संगठन द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार उत्तर भारत के अनेक गांवों में बेटियों को शाला इसलिए नहीं भेजा जाता, क्योंकि वे अपनी बेटी को शिक्षित नहीं करना चाहते। इसकी प्रमुख वजह गांवों मंे शौचालय का न होना है।

शौचालयों के लिए केंद्र सरकार द्वारा समग्र स्वच्छता अभियान चलाया है। इसके लिए अरबों रूपयों की राशि राज्यों के माध्यम  से शुष्क शोचालय बनाने में खर्च की जा रही है। सरकारी महकमों के भ्रष्ट तंत्र के चलते इसमें से अस्सी फीसदी राशि गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से सरकारी मुलाजिमों ने डकार ली होगी। सदियों से यही माना जाता रहा है कि नारी घर की शोभा है। घर का कामकाज, पति, सास ससुर की सेवा, बच्चों की देखभाल उसके प्रमुख दायित्वों में शुमार माना जाता रहा है। अस्सी के दशक तक देश में महिलाओं की स्थिति कमोबेश यही रही है। 1982 में एशियाड के उपरांत टीवी की दस्तक से मानो सब कुछ बदल गया।

नब्बे के दशक के आरंभ में महानगरों में महिलाओं के प्रति समाज की सोच में खासा बदलाव देखा गया। इसके बाद तो मानो महिलाओं को प्रगति के पंख लग गए हों। आज देश में जिला मुख्यालयों में भी महिलाओं की सोच में बदलाव साफ देखा जा सकता है। कल तक चूल्हा चौका संभालने वाली महिला के हाथ आज कंप्यूटर पर जिस तेजी से थिरकते हैं, उसे देखकर प्रोढ़ हो रही पीढी आश्चर्य व्यक्त करती है। कहने को तो आज महिलाएं हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं, पर सिर्फ बड़े, मझौले शहरों की। गांवों की स्थिति आज भी दयनीय बनी हुई है। देश की अर्थव्यवस्था गावों से ही संचालित होती है। देश को अन्न देने वाले अधिकांश किसानों की बेटियां आज भी अशिक्षित ही हैं।

आधुनिकीकरण की दौड़ में बड़े शहरों में महिलाओ ने पुरूषों के साथ बराबरी अवश्य कर ली हो पर परिवर्तन के इस युग का खामियाजा भी जवान होती पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है। मेट्रो में सरेआम शराब गटकती और धुंए के छल्ले उड़ाती युवतियों को देखकर लगने लगता है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति कितने घिनौने स्वरूप को ओढ़ने जा रही है। पिछले सालों के रिकार्ड पर अगर नज़र डाली जाए तो शराब पीकर वाहन चलाने, पुलिस से दुर्व्यवहार करने के मामले में दिल्ली की महिलाओं ने बाजी मारी है। टीवी पर गंदे अश्लील गाने, सरेआम काकटेल पार्टियां किसी को अकर्षित करतीं हो न करती हों पर महानगरों की महिलाएं धीरे धीरे इनसे आकर्षित होकर इसमें रच बस गईं हैं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि महानगरों और गांव की संस्कृति के बीच खाई बहुत लंबी हो चुकी है, जिसे पाटना जरूरी है। अन्यथा एक ही देश में संस्कृति के दो चेहरे दिखाई देंगे।

बहरहाल सरकारों को चाहिए कि महिलाओं के हितों में बनाए गई योजनाओं को कानून में तब्दील करें, और इनके पालन में कड़ाई बरतें। वरना सरकारों की अच्छी सोच के बावजूद भी छोटे शहरों और गांव, मजरों टोलों की महिलाएं पिछड़ेपन को अंगीकार करने पर विवश होंगी।

पेंच और कान्हा के नाम पर भी ब्राडगेज के लिए नहीं हुए प्रयास


0 सिवनी से चलेगी पेंच व्हेली ट्रेन . . . 4

पेंच और कान्हा के नाम पर भी ब्राडगेज के लिए नहीं हुए प्रयास

उदासीन जनप्रतिनिधियों के हवाले रही है जिले की जनता

जबलपुर नैनपुर से कान्हा तो छिंदवाड़ा नागपुर से जुड़ सकता है पेंच

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है कान्हा नेशनल पार्क। नब्बे के दशक में सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की सीमा में पड़ने वाले पेंच नेशनल पार्क ने अपनी जगह बनाना आरंभ किया। प्रसिद्ध धुमंतु रूडयार्ड किपलिंग की द जंगल बुक के हीरो मोगली के भी इसी पेंच नेशनल पार्क में होने की बात से पेंच के प्रति देश विदेश के लोगों का आकर्षण बढ़ गया है। दो नेशनल पार्क होने के बाद भी सिवनी और मण्डला जिले को ब्राडगेज से जोड़ने का काम नहीं किया गया।

गौरतलब है कि देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाले डेढ़ सौ साल पुरानी कांग्रेस ने आदिवासी बाहुल्य मण्डला और सिवनी जिले के साथ सदा से अन्याय ही किया है। कांग्रेस ने बालाघाट और छिंदवाड़ा को तो ब्राडगेज से जोड़ दिया किन्तु जब मण्डला और सिवनी की बारी आई तो हाथ खड़े कर दिए। कहने को इन जिलों के कांग्रेसी नेता अपने जनप्रतिनिधि के कमजोर होने की बात कहकर अपनी खाल अवश्य ही बचा लेते हैं किन्तु वे भूल जाते हैं कि नब्बे के दशक तक सिवनी और मण्डला जिले पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है।

नब्बे के दशक के उपरांत महाकौशल जो कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था में आदिवासी वर्ग की उपेक्षा के चलते अन्य दलों ने सेंध लगा दी। इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही कांग्रेस के हाथ से महाकौशल में जमीन रेत की तरह फिसलती गई। आज महाकौशल से गिनती के विधायक और सांसद ही बचे हैं कांग्रेस के। कांग्रेस ने सिवनी और मण्डला जिले के साथ घोर उपेक्षा का रवैया अपनाया। दोनों ही जिलों को बड़ी रेल लाईन से दूर रखा जिससे दोनों ही जिलों में औद्योगिक निवेशों की संभावनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं।

वर्तमान में संस्कारधानी जबलपुर से बालाघाट बरास्ता नैनपुर तथा छिंदवाड़ा से नागपुर तक ब्राडगेज प्रस्तावित है। सूत्रों की मानें तो छिंदवाड़ा से नैनपुर बरास्ता सिवनी के रेल खण्ड निर्माण में पेंच नेशनल पार्क का हिस्सा नहीं आ रहा है। इस दृष्टि से जल्द ही इस मार्ग का निर्माण प्रस्तावित है। सूत्रों का कहना है कि अगर महाकौशल के नेताओं ने अपने स्वार्थ का फच्चर इसमें नहीं फंसाया तो मार्ग निर्माण 2014 तक पूरा होने की उम्मीद की जा सकती है।

वैसे बालाघाट से जबलपुर रेलखण्ड में नैनपुर जंक्शन से कान्हा नेशनल पार्क और छिंदवाड़ा से नागपुर रेलखण्ड में रामाकोना या बिछुआ कि आसपास से पेंच नेशनल पार्क में प्रवेश का प्वाईंट बनाया जा सकता है। सिवनी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने वाले नेताओं की कुदृष्टि वैसे भी सिवनी पर केंद्रित ब्राडगेज रेल खण्ड पर पड़ रही है, जिससे बचने के प्रयास आम जनता को ही करना होगा।

(क्रमशः जारी)

हाईकोर्ट में मामला एनएचएआई अंजान


हाईकोर्ट में मामला एनएचएआई अंजान

हम वेतन नहीं लेते इसलिए जानकारी हेतु बाध्य नहीं: सिंघई

नई दिल्ली (ब्यूरो)। उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में सिवनी जिले की क्या स्थिति है, उच्च न्यायालय में अज्ञात लोगों के खिलाफ लूट का मामला एनएचएआई ने दाखिल कराया है या किसी अन्य ने इस बारे में एनएचएआई के परियोजना निदेशक और पूर्व में सिंचाई विभाग में पदस्थ रहे एस.के.सिंघई को कुछ भी जानकारी नहीं है। दिल्ली प्रवास पर आए सिंघई ने दूरभाष पर चर्चा के दौरान कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि इस मार्ग का क्या हो रहा है।

एनएचएआई के सहायक परियोजना अधिकारी दिलीप पुरी ने इस संबंध में जानकारी मांगने पर अपने उच्चाधिकारी एस.के.सिंघई से संपर्क करने की बात कही। वहीं दूरभाष नंबर 9425426644 पर चर्चा के दौरान एस.के.सिंघई ने कहा कि वे सरकारी काम से दिल्ली आए हैं। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में अस्थाई टोल बूथ किसके आदेश पर स्थापित हुआ था, इसका नोटिफिकेशन हुआ या नही, इसे किसने तोड़ा, इस मामले में पुलिस में क्या एफआईआर दर्ज की गई, इस मामले को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में किसने लगाया इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

श्री सिंघई ने कहा कि वे किसी के नौकर नहीं हैं और जनता के गाढ़े पीसने की कमाई से संचित धन से वेतन भी नहीं लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वे अपने विभागीय मंत्री के अलावा किसी अन्य को जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं। गौरतलब है कि एस.के.सिंघई मूलतः मध्य प्रदेश शासन के सिंचाई विभाग के मुलाजिम हैं जो केंद्र सरकार के भूतल परिवन मंत्रालय के अधीन संचालित एनएचएआई में प्रतिनियुक्ति पर हैं। श्री सिंघई पूर्व में सिंचाई विभाग में लंबे समय से वे सिवनी में पदस्थ रहे हैं। उनकी बरघाट विधानसभा में पदस्थापना के दौरान विशेषकर अरी क्षेत्र में की गई अनियमितताओं के चलते वे चर्चाओं का केंद्र रहे हैं।

व्याप्त चर्चाओं के अनुसार सिवनी से विशेष दिलचस्पी रखने वाले परियोजना निदेशक एस.के.सिंघई के असहयोगात्मक रवैए के कारण सिवनी जिले में लखनादौन से खवासा तक के फोरलेन हाईवे में जगह जगह परखच्चे उड़ चुके हैं। एनएचएआई के सूत्रों का ही कहना है कि जब इस मामले को इस साल की शुरूआत में ही देश की सबसे बड़ी अदालत ने वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया है तब लगभग नौ माह बाद भी इस मार्ग के 8.7 किलोमीटर के विवादित हिस्से को छोड़कर शेष पर काम आरंभ न किए जाने के लिए प्रोजेक्ट निदेशक ही पूरी तरह जिम्मेदार माने ला सकते हैं। इसके साथ ही साथ सिवनी शहर में भी नगझर से लूघवाड़ा होकर शीलादेही जाने वाला मार्ग जो जिला मुख्यालय के अंदर से होकर गुजरता है का रखरखाव भी विभाग द्वारा नहीं किया गया है।

भाजपा समर्थित पत्रकारों की बल्ले बल्ले


भाजपा समर्थित पत्रकारों की बल्ले बल्ले

कांग्रेस की कब्र खोदने वाले पत्रकारों को गोद में बिठा रही है कांग्रेस

प्रणव पुत्र को लांच किया भाजपा के कर्णधारों ने!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कभी कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसने वाले पत्रकारों पर कांग्रेस जमकर मेहरबान नजर आ रही है। 2004 में दूरदर्शन से बाहर किए गए एक पत्रकार को सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने पत्रकारों के लिए अधिमान्यता समिति में न केवल स्थान दिया है वरन् उन्हें हाथों हाथ भी लिया जा रहा है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अपनी राजनैतिक विरासत को अपने पुत्र को सौंपने की तैयारी में दिख रहे हैं।

पश्चिम बंगाल से विधायक प्रणव मुखर्जी के पुत्र अभिजीत को हाल ही में मीडिया सर्किल में लांच किया गया। लांचिग के लिए प्रणव दा ने आड़वाणी के एक करीबी पर पूरा एतबार जताया। मीडिया सर्किल तब हैरान रह गया जब प्रणव के कांग्रेसी विधायक पुत्र अभिजीत की लांचिग पार्टी में कांग्रेस के बजाए भाजपा को कव्हर करने वालों पत्रकारों की तादाद बेहद ज्यादा थी।

उधर वर्ष 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के आते ही दूरदर्शन से एक पत्रकार को यह कहकर निकाल दिया गया था कि वह भाजपा मानसिकता का है। आज वही पत्रकार कांग्रेस की नाक का बाल बना हुआ है। अंबिका सोनी ने तो उस पत्रकार को अधिमान्यता समिति में स्थान भी दे दिया है। और तो और एक दिन जब कांग्रेस बीट कव्हर करने वाले पत्रकार जनार्दन द्विवेदी से मिलने घंटों कमरे के बाहर बैठे रहे तब अंदर द्विवेदी और उन्हीं भाजपा मानसिकता वाले पत्रकार के बीच हंसी ठठ्ठों के दौर भी चलते रहे।

नप सकते हैं प्रफुल्ल पटेल



नप सकते हैं प्रफुल्ल पटेल

कैग की रिपोर्ट में लगे पटेल पर गंभीर आरोप

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट पर अगर गौर फरमाया गया और सरकार ने गठबंधन धर्मसे उपर राष्ट्र धर्म को समझा तो पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल का आशियाना आदिमत्थू राजा, सुरेश कलमाड़ी जैसे दिग्गजों के साथ तिहाड़ में बन सकता है। पटेल पर आरोप है कि उन्होने एविएशन मिनिस्टर रहते हुए अपने चाहने वालों को तबियत से फायदा पहुंचाया है।

कहा जा रहा है कि बतौर नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने एयर इंडिया और इंडियन एयर लाईंस का बट्टा बिठाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। पटेल की नीतियों के चलते अंतरदेशीय और समुद्रपारीय दोनों ही सरकारी विमान सेवाओं का वित्तीय प्रबंधन धाराशायी हो गया। इस मामले की अगर निष्पक्ष जांच हो जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। जांच में साफ हो जाएगा कि एवीएशन विभाग द्वारा किस तरह एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस को दरकिनार कर निजी एयर लाईंस को बढ़ावा देने की गरज से मार्गों को खोला था।

अनेक राज्यों में सड़क परिवहन निगम की यात्री बसों के समानांतर निजी यात्री बसों को अवैध तरीके से संचालित करने से निगम बंद हो चुके हैं या तालाबंदी की ओर अग्रसर हैं। मध्य प्रदेश में राज्य परिवहन निगम में तो ताला ही लग गया है। सूबे में अवैध बस संचालन पूरे शबाब पर है। कमोबेश इसी तर्ज पर पटेल ने निजी एयरलाईंस के लिए आकर्षक और लाभ वाले मार्ग पूरी तरह खोल दिए थे। इतना ही नहीं पटेल के कार्यकाल में 111 नए बोईंग विमान खरीदने का आदेश भी विवादों में ही है। चर्चा है कि जिस कंपनी से पटेल ने सौदा किया वह पटेल की ही कंपनी के नाम से जानी जाती है। इसके अलावा पटेल के अन्य सांसद या मंत्री मित्र भी वायूयानों में खासी दिलचस्पी रखते हैं।

नागपुर को संवारा जा रहा है गड़करी के लिए


नागपुर को संवारा जा रहा है गड़करी के लिए

लोकसभा में ओरंजसिटी से अजमाएंगे नितिन किस्मत

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गड़करी ने पिछले दरवाजे के बजाए जनता का सामना कर नेतागिरी करने का साहस जुटा लिया है। वे 2014 में होने वाले आम चुनाव में अपनी सक्रिय हिस्सेदारी करने वाले हैं। वे अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव नागपुर से लड़ने के इच्छुक बातए जा रहे हैं।

भाजपा निजाम नितिन गड़करी के करीबी सूत्रों ने कहा कि जब वे भाजपाध्यक्ष बनाए गए थे तभी उन्हें मशविरा दिया गया था कि वे बरास्ता राज्यसभा संसद में पहुंच जाएं। इसके लिए उन्होंने सैद्धांतिक सहमति भी दे दी थी किन्तु उस वक्त उनके सामने लाल कृष्ण आड़वाणी और सुषमा स्वराज जैसे नेता थे जो लोकसभा से थे। अगर गड़करी राज्य सभा से जाते हैं तो दोनों ही नेता उन पर भारी पड़ने लगेंगे। इसलिए वक्त की मांग थी कि गड़करी या तो लोकसभा से जाएं या फिर चुनाव ही न लड़ें। गड़करी की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वे पहली मर्तबा ही राष्ट्रीय स्तर पर कोई मुकाबले में उतरेंगे।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नितिन गड़करी आज तक कोई चुनाव नहीं जीता है। इससे पहले चुनाव के मामले में उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिली है। 1985 में उन्होंने नागपुर पश्चिम से एकमात्र विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उनकी हार हुई थी। हालांकि वे महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। वे 1994 से 1999 के बीच भाजपा-शिवसेना की सरकार में लोकनिर्माण मंत्री भी थे। वैसे तो गडकरी ने लोकसभा चुनाव के बारे में आधिकारिक घोषणा नहीं की है। लेकिन भाजपा सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि गड़करी के द्वारा अपने प्रस्तावित निर्वाचन क्षेत्र के बारे में जानकारी जुटाने, समय देने से लगने लगा है कि वे लोकसभा महासमर में उतरने की तैयारी में हैं।

नीलकंठ बनने को तैयार नहीं युवराज


नीलकंठ बनने को तैयार नहीं युवराज

मीडिया प्रबंधन में जुटी राहुल जुंडली

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सागर मंथन से अमृत के साथ विष भी निकला। अमृत तो सभी पीना चाह रहे थे पर विषपान को कोई तैयार नही ंथा। भगवान शिव ने विषपान किया और अपनी गर्दन में उसे रख लिया। तभी वे नीलकण्ठ कहलाए। दो दशकों से कांग्रेस भी देश को मथ रही है। सत्ता में आते ही सत्ता का अमृत सभी चखना चाहते हैं पर जमीनी स्तर पर उखड़ते कांग्रेस के पैरों जिसे विष की संज्ञा दी जा रही है का पान करने को राहुल गांधी भी तैयार नहीं दिख रहे हैं।

कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा भविष्य के सभी संभावित रोड़ मेप्स पर गहन अध्यययन किया जा रहा है। देश की वर्तमान हालत को देखकर राहुल ने कोई भी पद लेने से साफ इंकार कर दिया है। सूत्रों के अनुसार न तो राहुल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ही बनना चाह रहे हैं और ना ही वे प्रधानमंत्री बनने को आतुर हैं।

सूत्रों के अनुसार युवराज के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह के मशविरे पर राहुल गांधी द्वारा हर बार पूछने पर रटा रटाया जवाब कि वे देश के कोने कोने में जाकर कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास करना चाह रहे हैं दे देते हैं। सूत्रों का कहना है कि घपलों, घोटालों, भ्रष्टाचार से कांग्रेस की होती दुर्गत देखकर राहुल गांधी खुद भी भयाक्रांत हैं। इन परिस्थितियों में जवाबदारी लेने का साफ मतलब है कि विषपान करना।

इन दिनों राहुल गांधी अपनी छवि चमकाने का जतन कर रहे हैं। युवराज की छवि निखार के लिए एक दर्जन से अधिक पीआर कंपनियों को टटोला गया है। चर्चा है कि राहुल को कहा गया है कि वे हर सप्ताह या पखवाड़े में एसा कुछ अवश्य करें जिससे वे मीडिया की सुर्खियां बटोर सकें।

प्रणव पर तनी राजमाता की भुकटियां


प्रणव पर तनी राजमाता की भुकटियां

चिदम्बरम को साईज में लाने की कवायद से नाराज हैं सोनिया

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कथित तौर पर अपनी सर्जरी कराकर भारत वापस आई सोनिया गांधी इन दिनों दो महत्वपूर्ण मंत्रालयों के निजाम की लड़ाई से खासी परेशान हैं। यद्यपि सर्जरी के बाद वे सार्वजनिक तौर पर बाहर नहीं दिखीं हैं किन्तु उनके हवाले से जारी होने वाले बयानों में उनकी नाराजगी झलक रही है।

भले ही वित्त मंत्रालय के नोट में परोक्ष रूप से गृहमंत्री पी चिदंबरम का सीधा नाम नहीं हो लेकिन कांग्रेस भी मान रही है कि जवाबदेही थोपना तो सियासी चूक है ही। सरकार के दिग्गज प्रणब मुखर्जी से यह चूक हुई है जिसने सरकार को संकट में ला खड़ा किया है।

गौरतलब है कि कुछ दिनों पूर्व वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह और सत्ता तथा शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के बीच खाई बढ़ती ही जा रही थी। कहा जा रहा है कि प्रणव मुखर्जी ने कभी अपने मातहत रहे प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह का नेतृत्व स्वीकार कर लिया तो चिदम्बरम आज भी दस जनपथ के विश्वस्त बने हुए हैं। मुखर्जी की कारस्तानी के जवाब में अब डैमेज कंट्रोल का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, के अलावा नारायण सामी और वीरप्पा मोइली ने भी चिदंबरम के पक्ष में अपने प्रयास जारी रखे हैं। वहीं दूसरी ओर पार्टी की ओर से प्रवक्ता राशिद अल्वी ने भी कहा कि चिदंबरम के इस्तीफे का सवाल ही पैदा नहीं होता।

एक और व्हीआईपी पहुंचा तिहाड़


एक और व्हीआईपी पहुंचा तिहाड़

कुलकर्णी ने दी तिहाड़ में आमद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश भर में आजकल एक चुटकुला जमकर हिट हो रहा है कि तिहाड़ जेल में जाने वाले हाई प्रोफाईल केदिंयों को देखकर लगने लगा है कि कुछ दिनों में संसद भवन दर्शनीय स्थल तो तिहाड़ जेल संसद में तब्दील हो जाएगी। अब भाजपा के लाईन से हटे पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी के पूर्व राजनीतिक सलाहकार रहे सुधींद्र कुलकर्णी का नाम भी जुड़ गया है।

कुलकर्णी को नोट के बदले वोट मामले में एक अक्टूबर तक के लिए तिहाड़ भेजा गया है। तिहाड़ जेल में इस मामले के अन्य आरोपियों के साथ ही राष्ट्रमंडल खेल घोटाले और 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के कई आरोपी पहले से बंद हैं। मंगलवार रात करीब आठ बजे कुलकर्णी को गेट संख्या एक से जेल के अंदर दाखिल कराया गया। सबसे पहले उनकी मेडिकल जांच कराई गई। उसके बाद उन्हें जेल संख्या 3 के वार्ड 5 में भेज दिया गया। उन्होंने रात में जेल का खाना खाया। उसके बाद आराम करने अपने वार्ड में चले गए। उनके सेल में टीवी की सुविधा दी गई है, जबकि सोने के लिए कंबल और चादर की व्यवस्था है। सेल के अंदर पंखा भी लगा है।

गौरतलब है कि जेल संख्या 3 में ही नोट के बदले वोट मामले में अमर सिंह को भी रखा गया था। मामले के अन्य आरोपी पूर्व सांसद फग्गन कुलदस्ते और महावीर भगोरा पहले से ही जेल में बंद हैं। इसके अलावा राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के आरोपी ललित भनोट, वीके वर्मा, संजय चंद्रा, टीएस दरबारी, संजय महेंद्रूजेल में मौजूद हैं। वहीं, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में विनोद गोयनका, गौतम दोषी, सुरेंद्र पिपारा, हरि नायर और संसद हमले में फांसी की सजा पाए अफजल गुरु तथा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोघ भी जेल संख्या 3 में ही मौजूद हैं।

चिदम्बरम पर हाथ नहीं डालेगी सीबीआई


चिदम्बरम पर हाथ नहीं डालेगी सीबीआई
नई दिल्ली (ब्यूरो)। केंद्रीय जांच ब्यूरो ने साफ कर दिया है कि वह गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम पर हाथ नहीं डालेगी। सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने 2जी घोटाले में मौजूदा गृह मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका की जांच करने से साफ शब्दों में इनकार कर दिया। सीबीआई ने कहा कि वह एक स्वायत्त एजेंसी है और उसे कोई यह नहीं कह सकता कि किस बात की जांच करनी है और किस बात की नहीं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के वकील ने कहा कि एजेंसी का मानना है वित्त मंत्रालय के पत्र में कुछ खास नहीं है। सीबीआई के मुताबिक अगर इस मौके पर चिदंबरम की या अन्य किसी की भूमिका की जांच शुरू की गई तो 2जी मामला लटक लंबित हो जाएगा, जिसका प्रभाव इस मामले के दूसरे आरोपियों पर पड़ेगा। इसी आधार पर सीबीआई ने चिदंबरम की भूमिका की जांच करने से साफ इनकार कर दिया।

भारत के लिए तालिबान बना हुआ है खतरा


भारत के लिए तालिबान बना हुआ है खतरा
नई दिल्ली (ब्यूरो)। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज हटने के बाद भारतीय सुरक्षा के लिये सबसे बड़ा खतरा तालिबान से होगा। रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने कहा कि तालिबान फिर से खड़ा हो चुका है। यह भारत के लिए बड़ी सुरक्षा चुनौती बनने वाला है। कोस्ट गार्ड के कमांडर्स के सम्मेलन के बाद एंटनी ने पत्रकारों से कहा कि तालिबान के खतरे से निबटने के लिए भारत तैयार हो रहा है।
रक्षा मंत्री अंटोनी ने जो आंकड़े दिए, वे कम चौंकाने वाले नहीं हैं। 26/11 को हुए देश पर सबसे बड़े आतंकी हमले के बाद भारत ने तटीय सुरक्षा पर खर्च में भारी बढ़ोतरी की है। तीन साल में कोस्ट गार्ड के कर्मियों की संख्या 50 प्रतिशत बढ़ाई गई है। तटीय इलाकों में 22 स्टेशनों में 20 और जोड़े गए हैं। कोस्ट गार्ड के लिए 156 गश्ती नौकाएं बन रही हैं। उसे दो साल में तटीय इलाकों पर निगरानी रखने वाले 12 डार्नियर विमान और दिए जाएंगे।
इस तरह 2018 तक कोस्ट गार्ड इस इलाके में सबसे बड़ा तटीय सुरक्षा बल बन जाएगा। समुद्र तटों पर 46 रेडार लगाए जाएंगे। इनमें छह मिनिकाय, 4 अंडमान और 35 मुख्य भूमि पर लगाए जाएंगे। समुद्र तटीय रेडार लगाने का पहला चरण अगले साल पूरा होगा। एंटनी ने कहा कि अब तक की तैयारी के आधार पर कह सकते हैं कि अपने समुद्र तटों को हम सुरक्षित बना सके हैं।