भ्रष्टों के सरदार मनमोहन
खुद को मजबूर बता चख रहे सत्ता की मलाई
सोनिया का मन नही मोह पा रहे मोहन
पीएमओ 10 जनपथ में बढ़ी दूरियां
(लिमटी खरे)
वर्तमान हालातों में यक्ष प्रश्न तो यही है कि भारत गणराज्य के वजीरे आजम होने के नाते डॉ.मनमोहन सिंह और सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया होने के नाते श्रीमति सोनिया गांधी इन घपले घोटालों और मंहगाई के मसले पर जनता को जवाब देने की जहमत उठाएंगे या फिर बिना जवाबदेही के ही खुद को ‘मजबूर‘ बताकर सत्ता की मलाई चखते रहेंगे
नेहरू गांधी परिवार से इतर पांच सालों से ज्यादा देश के प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य पाने वाले वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह की छवि अब धूल धुसारित हो चुकी है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने दूसरी पारी में सरकार इसलिए बना पाई क्योंकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने लाल कृष्ण आड़वाणी को बतौर प्रधानमंत्री पेश किया था, जिन पर मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि भारी पड़ी थी।
विडम्बना देखिए कि आज मनमोहन सिंह की ईमानदारी पर उनके सहयोगियों के भ्रष्टाचार भारी पड़ते जा रहे हैं। आज मनमोहन सिंह और कांग्रेस चहुंओर घपले घोटालों से पूरी तरह घिर चुकी है। कांग्रेस के सामने अब कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है। सोनिया गांधी खुद पशोपेश में हैं कि आखिर मनमोहन जैसे ईमानदारी का चोला ओढ़ने वाले प्रधानमंत्री के रहते विपक्ष द्वारा भ्रष्टाचार को कैसे मुद्दा बना लिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के बीच खुदी खाई पटने का नाम ही नहीं ले रही है। सोनिया और मनमोहन के बीच मतभेद जाहिर होने लगे हैं। 2जी घोटाले पर विपक्ष की जेपीसी की मांग पर सोनिया गांधी पहले से ही तैयार थीं, किन्तु मनमोहन सिंह ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। पीएम के इस मामले में न झुकने से सरकार की बुरी तरह किरकिरी हो चुकी है।
आलम यह है कि सात रेसकोर्स (प्रधानमंत्री आवास) और 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के बीच अघोषित जंग का आगाज हो चुका है। सियासी बिछात पर नित्य ही नई व्यूह रचनाएं हो रही हैं। मनमोहन से त्यागपत्र मांगने का नैतिक साहस भी सोनिया गांधी नहीं जुटा पा रहीं हैं। वहीं कांग्रेस के आला नेता प्रणव मुखर्जी और राजा दिग्विजय सिंह मनमोहन के ‘सक्सेसर‘ बनकर न केवल उभर रहे हैं, बल्कि इसके मार्ग भी प्रशस्त कर रहे हैं।
दरअसल, मनमोहन के अधीन काम करने में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अपने आप को असहज ही महसूस करते आए हैं, दादा ने भी पीएमओ के खिलाफ सोनिया की तरह ही अघोषित जंग का एलान कर दिया है। इसका कारण यह है कि जब वे वित्त मंत्री थे, तब उनके अधीन काम करने वाले अफसरान में डॉ.मनमोहन सिंह पांचवे क्रम वाले अफसर हुआ करते थे। तब और अब में जमीन आसमान का अंतर है। उस दर्मयान डॉ.मनमोहन सिंह को सीधे प्रणव मुखर्जी से मिलना बेहद मुश्किल होता था, इसमें प्रोटोकाल आड़े आता था।
अब वही अदना सा अफसर (डॉ.मनमोहन सिंह) छः साल से ज्यादा समय से दादा को सीधे निर्देश देने की स्थिति में है। दादा की पीड़ा समझी जा सकती है। पिछले दिनों बैंक चला गांव की ओर कार्यक्रम में प्रणव मुखर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को तो बुलावा भेजा किन्तु देश के वजीरे आजम को न्योता भेजना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा। इसके साथ ही साथ मनमोहन सिंह सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री भी हैं, सो इस लिहाज से वित्त मंत्री को उनसे मशविरा कर ही कोई कदम उठाना चाहिए, वस्तुतः एसा हो नहीं रहा है। प्रणव मुखर्जी बिना पीएम की सलाह के ही सारे निर्णय ले रहे हैं। उधर गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम की निष्ठा प्रधानमंत्री में गहरी होती दिख रही है।
भारत गणराज्य में छः से ज्यादा दशकों से लोकतंत्र कायम रहना ही अपने आप में सबसे बड़ी बात और मिसाल है। स्वतंत्र भारत में अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है संप्रग दो की मनमोहन सिंह सरकार। अब तक इस सरकार के तीन लाख करोड़ रूपए से अधिक के घपले घोटाले सामने आ चुके हैं। जब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जा रहा था, तब उनकी दो योग्यताओं को हाईलाईटेड किया गया था। अव्वल तो वे निहायत ईमानदार हैं, दूसरा वे बड़े अर्थशास्त्री हैं। घपले घोटालों, और रिकार्ड ध्वस्त करती मंहगाई ने मनमोहन सिंह की दोनों ही योग्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश के कथित ईमानदार प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस पर सवा दशक से ज्यादा समय से राज करने वाली श्रीमति सोनिया गांधी ने स्वतंत्र भारत के वर्तमान को दागदार किया है। सोनिया की नाक के नीचे प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री का कार्यालय, मंत्रियों और अन्य सहयोगियों को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। टूजी घोटाले के बाद देश की न्यायपालिका को विधायिका से प्रश्न पर प्रश्न करने पर मजबूर होना पड़ा।
देश के इतिहास में पहली बार हुआ जब शीर्ष अदालत ने प्रधानमंत्री से यह पूछा था कि इतने बड़े घोटाले के बाद भी आदिमत्थू राजा अब तक मंत्री पद पर कैसे बैठे हैं? अदालत ने यह भी कहकर प्रधानमंत्री को शर्मसार कर दिया था कि राजा पर मुकदमा चलाने की मांग पर पीएमओ ने दो साल तक कार्यवाही क्यों नहीं की?
इसके बाद एक अदालत ने फिर देश के कथित ईमानदार प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को शर्मसार होने पर यह कहकर मजबूर कर दिया कि घपलेबाज विलासराव देशमुख को मंत्री बनाना शर्मनाक है! ये सारे मामलों में अखबारों की रोशनाई अभी सूखी भी नहीं थी कि एस बेण्ड घोटाले की आग में पीएमओ झुलस गया। यह मामला अंतरिक्ष विभाग का है, जिसके मुखिया कोई और नहीं डॉ.मनमोहन सिंह ही हैं।
प्रधानमंत्री की पसंद के चलते सीवीसी बने थामस ने प्रधानमंत्री को कम शर्मसार नहीं किया। चोरी और सीना जोरी की कहावत को चरितार्थ करते हुए थामस ने देश की सर्वोच्च अदालत में यह कहकर सभी को चौंका दिया कि संसद में कानून बनाने वाले 153 सांसदों पर आपराधिक और 74 पर तो गंभीर आरोप हैं, फिर उनके सीवीसी बनने पर किसी को क्या आपत्ति होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने थामस को सीवीसी बना दिया है, जिस विभाग में सभी की जन्म कुण्डलियां हैं, जो थामस के हाथ लग चुकी हैं। आज की तारीख में थामस बारगेनिंग की स्थिति में आ गए हैं, और सरकार बेकफुट पर। हालात देखकर कहा जा सकता है कि अब थामस को हिलाने की स्थिति में सरकार कतई दिखाई नहीं पड़ रही है। अव्वल तो सरकार ने आरंभ में थामस का बचाव कर उनके हौसले बुलंद कर दिए जिसके परिणामस्वरूप आज अदना सा नौकरशाह न केवल देश की शीर्ष अदालत को चुनौति दे रहा है, वरन् सरकार और देश की सबसे बड़ी पंचायत के पंच (सांसदों) को ही आंख दिखाने की स्थिति में आ गया है।
वर्तमान हालातों में यक्ष प्रश्न तो यही है कि भारत गणराज्य के वजीरे आजम होने के नाते डॉ.मनमोहन सिंह और सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया होने के नाते श्रीमति सोनिया गांधी इन घपले घोटालों और मंहगाई के मसले पर जनता को जवाब देने की जहमत उठाएंगे या फिर बिना जवाबदेही के ही सत्ता की मलाई चखते रहेंगे? राष्ट्रमण्डल खेल, 2जी स्पेक्ट्रम, आदर्श आवासीय सोसायटी, एस बेण्ड घोटाला आदि के साथ ही साथ सीवीसी की नियुक्ति आदि जैसे ज्वलंत मसलों पर देश की जनता अपनी चुनी हुई सरकार से स्पष्टीकरण मांग रही है, देश के कथित ईमानदार प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के साथ ही साथ कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी भी जनता के द्वारा करों के माध्यम से दिए गए पैसे की इस होली को चुपचाप देखा और सुना जा रहा है। इन सभी की चुप्पी से साफ हो जाता है कि इन घपले घोटालों के जगमगाने वाले लट्टुओं को को करंट, कहीं न कहीं प्रधानमंत्री और नेहरू गांधी परिवार की बेटरी से ही मिल रहा है।