रविवार, 6 दिसंबर 2009

मनमोहन की परवाह नहीं मंत्रियों को!

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
मनमोहन की परवाह नहीं मंत्रियों को!


वजीरेआला डॉ.एम.एम.सिंह के निर्देशों की उनके मातहत मंत्री ही परवाह नहीं कर रहे हैं। अपने दूसरे कार्यकाल को और अधिक पारदशीZ बनाने की गरज से मनमोहन ने अपने मंत्रीमण्डल सहयोगियों से अपनी ``परफारमेंस रिपोर्ट`` जमा कराने को कहा था वह भी 30 नवंबर तक। आज डेड लाईन के एक सप्ताह बाद भी मनमोहन के मंत्रीमण्डल के सदस्यों के कानों में जूं नहीं रेंगी है। प्रधानमंत्री के कैबनेट सचिव के.एम.चंद्रशेखर ने सभी मंत्रियों को बाकायदा पत्र लिखकर सदस्यों के परफारमेंस की रिपोर्ट जमा कराने को कहा था। भाजपा की इस पर प्रतिक्रिया आई कि मनमोहनी दरबार की कारगुजारियां तो जनता के सामने हैं, फिर पीएम को प्रतिवेदन की क्या आवश्यक्ता हो गई। 20 हजार करोड के स्पेक्ट्रम घोटाले और भारी उद्योग मंत्रालय मे लेब बनाने के घोटाले किसी से छिपे नहीं हैं। मनमोहन के इस कदम से मंत्रीमण्डल में रोष और असंतोष की स्थिति बनती जा रही है। गैर पारंपरिक उर्जा मंत्री फारूख अब्दुल्ला इससे खासे खफा नजर आए। उन्होने कहा कि मंत्रियों के काम को तो जनता देखती है, फिर भला पीएम को कौन सी जरूरत आन पडी। अब देखना यह है कि ममता बनर्जी पर निशाना साधने वाली कांग्रेस के प्रधानमंत्री के इस कदम पर वे कौन सा तुरूप का इक्का चलतीं हैं। माना जा रहा है कि मंत्रियों के कामकाज की रिपोर्ट मंत्रियों से ही मांगकर मनमोहन सिंह ने शांत पानी में कंकड मार दिया है। आने वाले दिनों में मनमोहन सिंह के खिलाफ अगर मंत्री मोर्चा खोल दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

घर में ही फिसड्डी युवराज

कांग्रेस के ताकतवर महासचिव और कांग्रेसियों की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी का करिश्मा इस बार उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों में नहीं चल पाया। राज्य में राज्य की 11 विधानसभा सीटों में से महज एक ही सीट हथिया पाई कांग्रेस। राहुल के कृपा पाकर केंद्र में राज्य मंत्री तक पहुचने वाले झांसी के प्रदीप जैन और पडरोना के आपीएन सिंह अपनी अपनी खाली की गईं विधानसभा सीट भी नहीं बचा पाए। इन दोनों ही नेताओं के करीबी अब सफाई देते घूम रहे हैं कि हमारे नेताओं ने तो पुरजोर मेहनत की थी, जब हमारे आका राहुल गांधी का ही जादू नहीं चला तो ये बेचारे क्या कर लेते। उत्तर प्रदेश में वे अपने ही संसदीय क्षेत्र की इसौली सीट को नहीं बचा पाए तो बाकी सूबे में वे क्या खाक जादू चलाते। कहने को तो सभी राहुल गांधी के देश भर में चल रहे जादू का जिकर करने से नहीं चूक रहे हैं, पर जब कांग्रेस की नजर में देश के युवराज अपने ही घर में फिसड्डी हैं तो फिर उनके नाम को कांग्रेसी कहां भुना सकते हैं, इस बारे में शोध जारी है।

पिता की विरासत ही सहारा

एक समय मध्य प्रदेश की राजनीति में सूरज बनकर उभरे कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले कुंवर अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह अब पिता के नाम का सहारा लेकर राजनैतिक तौर पर बलशाली होने का प्रयास कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों के दौरान मध्य प्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष का पद हथिया चुके अजय सिंह का ग्राफ राजनैतिक तौर पर काफी नीचे जाता जा रहा था। अजय सिंह ने पिछले दिनों कुंवर साहेब के गढ विन्ध्य प्रदेश में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए एक अनोखा प्रयोग किया। उन्होंने अपने पिता के चार दशक के राजनैतिक जीवन में उनके साथ कदम ताल मिलाकर चलने वाले कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया। विन्ध्य के चुरहट में उन्होंने इस कार्यक्रम को अंजाम दिया। देश के पहले प्रधानमंत्री स्व.जवाहर लाल नेहरू के द्वारा जिस दिन कुंवर अर्जुन सिंह ने कांग्रेस की सदस्यता ली थी उसी दिन को चुना था अजय सिंह ने। मध्य प्रदेश में केबनेट मंत्री रह चुके अजय सिंह यह भूल गए कि कुंवर अर्जुन सिंह ने उन्हीं जवाहर लाल नेहरू के आदशोZं पर चलने वाली कांग्रेस को तिलांजली देकर नारायण दत्त तिवारी के साथ मिलकर कांग्रेस छोडी और तिवारी कांग्रेस का गठन किया था।

. . . और अधूरी रह गई साध्वी की इच्छा

भारतीय जनशक्ति पार्टी की तेज तर्रार अध्यक्ष और साध्वी उमाश्री भारती जब बोलतीं हैं तो धारा प्रवाह में ही बोलती जाती हैं। कई बार उन्हें अपने इस बडबोलेपन के चलते शर्मसार होना पडा है। हाल ही में उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता एल.के.आडवाणी के साथ सर जोडकर बैठने के उपरांत कहा कि वे एनडीए (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन) में शामिल होना चाहतीं हैं। राजद के संयोजक शरद यादव ने बिहार में विधानसभा चुनावों में पार्टी को होने वाले नुकसान के मद्देनजर इसे सिरे से खारिज कर दिया। वैसे भी यादव और उमाश्री के बीच सामंजस्य कम ही रहा है। बताते हैं कि बाद में भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले उमाश्री विरोधी अरूण जेतली द्वारा उमाश्री को यह कहलवाया गया कि दरअसल एनडीए अलग अलग पार्टियों के संसदीय दलों का गठबंधन है, जिसमें पार्टी का कम से कम एक संसद सदस्य तो होना चाहिए। चूंकि उनकी पार्टी का एक भी संसद सदस्य नहीं है, अत: वे इसका हिस्सा नहीं बन सकतीं। इस जवाब से उमाश्री तिलमिलाकर रह गईं। अब देखना यह है कि वे आगे क्या रणनीति बनातीं हैं।

नितिश की राह पर ममता!

पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रीमण्डल की बैठक (कैबनेट) में उर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे और रेल मंत्री ममता बनर्जी के बीच हुए हास परिहास के गूढ मायने खोजने में कांग्रेस के आला नेता व्यस्त हैं। दरअसल कैबनेट में शिंदे ने ममता को मौजूद पाकर आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछ लिया कि वे वहां कैसे, जबकि कैबनेट में रेल्वे का कोई एजेंडा भी नहीं है। इस पर ममता ने बडी ही सहजता के साथ जवाब दिया कि वे मंत्री हैं एवं बैठक मंत्रीमण्डल की ही है, यह बात इतर है कि वे तीन दिन दिल्ली में तो तीन दिन कोलकता में रहतीं हैं। इस निर्विकार सवाल जवाब से अनायास ही अन्य मंत्रियों के चेहरों पर मुस्कान दौड गई। एक मंत्री ने चुटकी लेते हुए कह ही दिया कि पहले रेल मंत्री रहे नितिश कुमार भी यही किया करते थे, और आज बिहार के निजाम हैं, आने वाले समय में बस आपकी ही बारी है।

अनुपस्थित मंत्री को फटकार लगाई विस अध्यक्ष ने

मध्य प्रदेश के आदिम जाति और अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री विजय शाह को एक दिन विधानसभा से गायब रहने पर विधानसभाध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी की खासी फटकार सुननी पडी। दरअसल हाल ही में समाप्त हुए विधानसभा सत्र में जब शाह के विभाग से संबंधित गैर सरकारी संकल्प पेश किया गया तब उसका जवाब देने विजय शाह सदन में मोजूद नहीं थे। विजय शाह के इस रवैए को घोर आपत्तिजनक मानते हुए रोहाणी ने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। रोहाणी की नाराजगी का आलम यह था कि उन्होंने संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा को साफ तौर पर कहा कि मंत्री ने अपने अनुपस्थित रहने के बारे में आसंदी को भी कोई जानकारी नहीं दी। भविष्य में इस तरह नहीं होना चाहिए। वैसे भी विधायक या मंत्रियों का सदन से गायब रहना आम बात है, किन्तु जब संबंधित मंत्री को जवाब हो और वह सदन में अनुपस्थित रहे तो फिर आसंदी की नाराजगी जाहिर ही है।

चिदम्बरम के खिलाफ दिग्गी राजा का नया तीर

कांग्रेस की राजनीति के अब तक के चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह के सक्रिय राजनीति से किनारा करने के बाद चाणक्य की भूमिका में आए सबसे शक्तिशाली महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर ली है। देश में माओवादियों के खिलाफ चिदंबरम ने काफी तेज गति से आक्रमक अभियान छेड रखा है। इसी बीच कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की बाई लाईन से एक दैनिक अखबार में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने माओवादियों पर कार्यवाही के लिए राजनीतिक संवाद के साथ ही साथ समाज और आर्थिक विकास की जमकर वकालत की है। केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार में एक ओर गृह मंत्री पूरे जोर शोर से अभियान को छेडे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर कंाग्रेस के सबसे शक्तिशाली महासचिव की मंशा उसी मामले में इससे उलट ही नजर आ रही है। अफसरान के सामने बडा असमंजस पैदा हो गया है कि वे सरकार की लाईन के साथ चलें या कांग्रेस की पार्टी लाईन को फालो करें।

इंतजार है शिव की आत्मकथा का

जब भी कोई राजनेता आत्मकथा लिखने का प्रयास करता है तब सियासी हल्कों में अनेक नेताओं की सांसे थम सी जाती हैं। इसका कारण यह है कि आत्मकथा लिखने वाला नेता अनेक अनछुए पहलुओं को भी उसमें शामिल कर सामने वाले के कपडे बडे ही करीने से उतार देता है। पिछले साल देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में हुए देश के सबसे बडे आतंकी हमले के कारण देश के गृह मंत्री की कुर्सी गंवाने वाले शिवराज पाटिल अब आत्मकथा लिख रहे हैं। हाथों से लिखी गई यह किताब लगभग एक हजार पेज की है। यद्यपि शिवराज पाटिल का कहना है कि इसमें मसालेदार कोई वाक्या नहीं होगा, न ही यह उनके बचाव का दस्तावेजी ही होगा। 74 वषीZय पाटिल के इस कथन से कम ही नेता इत्तेफाक रख रहे हैं कि इसमे किसी के कपडे नहीं उतारे जाएंगे। सियासी हल्कों में चर्चा है कि शिवराज को गृहमंत्री पद से पदच्युत करने वालों को इस किताब के प्रकाशन से सबसे ज्यादा तकलीफ हो रही है।

गडकरी के नाम से बासी कढी में आ गया उबाल

भाजपा में नए निजाम के चुनने की कवायद के दरम्यान महाराष्ट्र सूबे से नितिन गडकरी का नाम आने से अनेक नेताओं के फ्यूज उड गए हैं। संघ की ओर से भले ही यह स्पष्टीकरण दिया गया हो कि भाजपा में संघ कोई हस्ताक्षेप नहीं करेगा, किन्तु नया अध्यक्ष संघ की सहमति के बाद ही चुना जा सकेगा। संघ के दबाव ने नेताओं के मुंह पर टेप चिपका दिया है, किन्तु इशारों ही इशारों में चर्चाएं तो चल ही रहीं हैं। लोगों का कहना है कि महाराष्ट्र में पार्टी का बंटाधार करने का श्रेय जाता है तो नितिन गडकरी को ही, और राज्य में पार्टी को शर्मनाक स्तर तक पहुंचाने के बाद अगर उन्हें पारितोषक के तौर पर नेशनल हेड बनाया जाता है तो फिर भाजपा कहां जाकर गिरेगी यह नहीं कहा जा सकता है। भाजपा के अंदरखाते में उबल रही इस खिचडी की भनक संघ नेतृत्व को भी है। संघ के नेता परेशान हैं कि आखिर किसको भाजपा का नया मुखिया बनाकर पेश किया जाए। अब दौड में रह गए हैं शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र मोदी। इसमें से शिवराज सिंह चौहान का पडला काफी हद तक भारी ही दिख रहा है।

माया दरबार : मिश्रा आउट, दास इन

उत्तर प्रदेश की राजनीति में गुल खिलाने वाली मुख्यमंत्री मायावती ने एक बार फिर अपने इर्दगिर्द ही सोशल इंजीनियरिंग कर ली है। कल तक बसपा के सबसे ताकतवर महासचिव समझे जाने वाले सतीश मिश्रा के दिन लद चुके हैं, उनके स्थान पर कांग्रेस से आए धनकुबेर अखिलेश दास को ज्यादा तवज्जो मिलने लगी है। सतीश मिश्रा के साथ मिलकर मायावती ने उत्तर प्रदेश में एक बार फिर सत्ता हासिल की। कुछ शिकायतों के चलते मायावती ने सतीश मिश्रा को दूर करना आरंभ कर दिया था। अब तो लगता है कि मायावती का ब्राम्हण प्रेम पूरी तरह समाप्त हो गया है। कल तक मिश्रा समर्थक आईएएस और आईपीएस लाबी अब हाशिए की ओर जाती जा रही है, उसका स्थान ले रहे हैं अखिलेश दास समर्थक अधिकारी। सत्ता का यही खेल है, नेता के आंख फेरते ही औकात दो कोडी की हो जाती है।

एसे तो हो गया आधुनिकी करण
इक्कीसवीं सदी के स्वप्न दृष्टा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को आदर्श मानने वाली कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की समाप्ति के संध्या काल में भी अपने आप को अत्याधुनिक बनाने का प्रयास नहीं किया है। केंद्र सरकार के अनेक विभागों की वेब साईट्स आज भी आधुनिकीकरण को मोहताज हैं। सूत्रों के अनुसार बार बार शिकायतें मिलने पर कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह के इशारे पर कैबनेट सचिव के.एम.चंद्रशेखर ने सभी विभागों के सचिवों को ताकीद किया है कि वे अपने अपने विभाग की वेव साईट्स में आवश्यक सुधार कार्य करवाएं। चंद्रशेखर ने साफ तौर पर कहा है कि आधुनिक तकनीक और इंटरनेट पर लोगों की बढती निर्भरता के चलते अब यह आवश्यक हो गया है कि विभागों की वेव साईट आधुनिक हों। कैबनेट सचिव ने विशेष तौर पर यह भी कहा है कि विभाग अपनी वेब साईट को अपडेट अवश्य करके रखें। एक ओर प्रधानमंत्री आधुनिकीकरण पर जोर दे रहे हैं, वहीं उनकी नाक के नीचे के महकमों में आज भी वेब साईट में बाबा आदम के जमाने की तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।

पटियाला नहीं अब कोबरा पैग लीजिए

जाम छलकाने वालों के मुंह से आपने हमेशा पटियाला अर्थात बडा पैग के बारे में तो सुना होगा, अब पटियाला पैग छोडिए जनाब अब तो लीजिए कोबरा पैग। साईबर सिटी के नाम से पहचाना जाने वाला बैंगलुरू में पुलिस और वन विभाग के संयुक्त छापे में एक मशहूर पब से विषधर कोबरा के जहर से बनी शराब जप्त की गई। इस शराब के निर्माण के बारे मे बताते हैं कि इसको बनाने के लिए कोबरा को अल्कोहल से बने मर्तबान में कई दिनों तक रखा जाता है। इसके एक पैग की कीमत 1500 रूपए और पूरी बोतल 21 हजार रूपए की है। सांपों के जहर के शौकीनों के बीच यह काफी मशहूर है। इसके एक घूंट से ही आदमी दूसरी दुनिया की सैर करने लगता है। इस कोबरा शराब का देश के अन्य महानगरों में भी चलन होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।

निजी संस्था का प्रमोशन करती मध्य प्रदेश सरकार

मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इन दिनों विमानन के क्षेत्र की एक निजी संस्था के प्रमोशन में लगी हुई है। इसके लिए सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा विमानन विभाग के हवाले से एक विज्ञापन भी जारी किया है। आरक्षित वर्ग के लिए एयर होस्टेज और फ्लाईट स्टीवर्ड के प्रशिक्षण के लिए भोपाल, जबलपुर अथवा इंदौर में फ्रेंकफिन इंस्टीट्यूट ऑफ एयर होस्टेज नामक संस्था के नाम से जारी है यह सरकारी विज्ञापन जिसमें आवेदन पत्र बाकायदा उक्त संस्था के संचालक के नाम से ही प्रकाशित किया गया है। इसमें प्रति उम्मीदवार को राज्य शासन द्वारा एक लाख रूपए प्रशिक्षण शुल्क के तौर पर स्वीकृत किया गया है, जो राज्य सरकार सीधे उक्त संस्था को जमा कर रही है। प्रदेश सरकार चाहती तो संचालक विमानन के पास आवेदन बुलाकर इस संस्था का नाम गुप्त रखती और बाद में फिर इस संस्था के पास प्रशिक्षण के लिए भेज देती। विज्ञापन देखकर यही प्रतीत होता है कि मानो सरकार द्वारा उक्त संस्था का धंधा जमाने के लिए इस तरह के जतन कर रही हो।

पुच्छल तारा
इस बार हमें भोपाल से नन्द किशोर जाधव द्वारा एक मेल मिला है जिसमें उन्होंने कहा है कि एक मर्तबा एक आदमी हवाई यात्रा पर जा रहा था। जैसे ही उसने हवाई जहाज पर चढना आरंभ हुआ आकाशवाणी हुई -``यह प्लेन दुघZटनाग्रस्त हो जाएगा और कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।`` सचमुच वैसा ही हुआ। अगली बार वह रेल से यात्रा करने जैसे ही रेल पर चढने लगा आवाज आई इस रेल का एक्सीडेंट हो जाएगा। सचमुच वैसा ही हुआ। तीसरी बार वह बस से यात्रा करने जा रहा था फिर आवाज आई इस बस का एक्सीडेंट हो जाएगा। इस बार उस आदमी से नहीं रहा गया उसने पूछ ही लिया -``आप कौन हो भगवन।`` उधर से आवाज आई -``भगवान।`` आदमी छूटते ही बोला -``अरे आप उस वक्त कहां थे, जब मैं घोडी चढ रहा था!!!``