गुरुवार, 5 नवंबर 2009

राष्ट्रभक्ति पर विवाद!
 
(लिमटी खरे)

देश से बढकर कोई चीज नहीं है, मां से बढकर कोई नहीं है, सच्चाई और ईमान की राह पर चलना चाहिए, इस तरह की बातें बचपन से सुनते सुनते कान पक गए हैं। केद्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम, केंद्रीय संचार मंत्री सचिन पायलट, चर्चित योग गुरू बाबा रामदेव, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर, स्वामी अग्निवेश, शियाओं के धर्मगुरू डॉ.काल्बे सादिक आदि की उपस्थिति में देवबंद में जमीअत ए उलेमा ए हिन्द की 30वीं महासभा में देशप्रेम का जज्बा जगाने वाले गीत बंदेमातरम पर विवाद खडा किया जाना शर्मनाक ही कहा जाएगा।


आनंदमठ पुस्तक के बंकिमचंद चटोपाध्याय द्वारा 1876 में रचित ``वन्दे मातरम`` को 1896 में पहली बार कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था। यह गीत आरंभ से ही विवादित रहा है। इस गीत के पहले दो अंतरों को छोडकर शेष में धरती माता की तुलना मां दुगाZ से की गई है। संभवत: यही कारण है कि वंदेमातरम के बजाए ``जन गण मन`` को राष्ट्रगान बनाया गया था।


इस महासभा में इतनी बडी बडी हस्तियों के सामने वंदे मातरम के खिलाफ फतवा जारी किया जाना आश्चर्यजनक है। उससे भी आश्चर्यजनक इन तथाकथित बडी हस्तियों की चुप्पी है। देश के गृहमंत्री जैसे जिम्मेदार और महत्वपूर्ण पद पर आसीन पी.चिदम्बरम का यह कहना भी हास्यास्पद है कि उनके सम्मेलन में रहते इस तरह का कोई फतवा जारी नहीं किया गया है। सवाल तो यह है कि जब संचार माध्यमों से उन्हें इस बात की जानकारी मिल ही चुकी है, तब उनकी इस बारे में क्या प्रतिक्रिया है।


जमीयत उलेमा ए हिन्द के मौलाना मुइजुद््दीन का कहना है कि इस गीत की कुछ लाईने इस्लाम के खिलाफ हैं। इस्लाम मां के सामने नतमस्तक होने की इजाजत नहीं देता। मुसलमान संगठनों, नेताओं और मौलाना मौलवियों ने देवबंद के इस फतवे को सही ठहराया है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि इस गीत की रचना के 133 एवं आजादी के बासठ सालों के बाद यह गीत गैर इस्लामी करार कैसे दिया जा सकता है।


इससे पूर्व जिन भी इस्लाम के अनुयायियों ने इसे गाया होगा क्या उन्हें काफिर करार दिया जाएगा। मध्य प्रदेश में तो भाजपा सरकार द्वारा इसे अनिवार्य कर दिया गया है। हर माह सरकारी कार्यालयों में वंदे मातरम गाया जाता है। देवबंद के इस फतवे के बाद इस प्रदेश में क्या हालात बनेंगे कहा नहीं जा सकता है।


केंद्रीय गृह मंत्री की मौजूदगी में हुए इस विवाद को भाजपा ने लपकने में देर नहीं की। भाजपा के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने तत्काल इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि चिदंबरम की मौजूदगी का मतलब यह है कि कांग्रेस ने यह फतवा स्वीकार कर लिया है। राजनैतिक तौर पर तो नकवी ने बयान दे दिया किन्तु फतवे के बारे में उन्होंने चुप्पी साध ली।


इस महासभा में अनेक हस्तियां मौजूद थीं किन्तु किसी ने भी इस फतवे के बारे में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा है। चर्चित स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने तो बाजी ही मार ली है। इस महासभा के कवरेज में बाबा रामदेव छाए हुए हैं। इलेक्ट्रनिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया में पहले पेज पर बडी बडी तस्वीरें छपीं हैं बाबा रामदेव की। लगता है बाबा रामदेव का मीडिया मेनेजमेंट बडा ही गजब का है।


देश की दुर्दशा, काले धन, बिगडी व्यवस्था पर जब तब बयानबाजी करके चर्चाओं में रहने वाले बाबा रामदेव जिन्होंने हाल ही मेें राजनीति में कूदने के संकेत दिए थे, ने भी इस मामले में चुप्पी साध रखी है। हर कोई जानता है कि मुसलमान इस देश में बहुत ही तगडा वोट बैंक है, इसलिए मुसलमानों से जुडे मामले में बोलने से राजनेता परहेज ही किया करते हैं।


देवबंद के कुछ फतवों को छोडकर शेष फतवे काफी अच्छे हैं। कुछ माह पूर्व कहा गया था कि गाय काटना इस्लाम के खिलाफ है, बावजूद इसके देश में गोकशी के अनगिनत प्रकरण सामने आ रहे हैं। शरियत को चाहिए कि पहले वह अपने फतवों का पालन सुनिश्चित करवाए, साथ ही साथ देशहित के खिलाफ बयानबाजी से बचना चाहिए।


भारत देश में हर किसी को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता है। हर कोई अपने तौर तरीके से रहने के लिए स्वतंत्र है, किन्तु इस सबके उपर भारत गणराज्य का संविधान है। संविधान की व्यवस्थाओं को मानना हम सबकी बाध्यता है। वंदेमातरम गीत किसी आम भारतीय फूहड चलचित्र का अश्लील गीत नहीं वरन देश प्रेम का जज्वा जगाने वाला शहादत का प्रतीक है।


भारत सरकार को चाहिए कि इस तरह के संवेदनशील मामले में तत्काल अपना रूख स्पष्ट करते हुए इस विवाद पर विराम लगाए वरना यह मामला एक चिंगारी के रूप में भडका है, राजनैतिक नफा नुकसान के चलते इसे शोला और आग का दरिया बनने में समय नहीं लगेगा, तब आग के दानावल में समूचा देश झुलस जाएगा और उसे बुझाना टेडी खीर ही साबित होगा।