मंगलवार, 12 नवंबर 2013

शलाका पुरूष हरवंश सिंह को ही भूले कांग्रेसी!

शलाका पुरूष हरवंश सिंह को ही भूले कांग्रेसी!

(लिमटी खरे)

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जिला इकाई को लगभग ढाई दशकों तक राह दिखाने वाले महाकौशल के कांग्रेसी क्षत्रप ठाकुर हरवंश सिंह को जिले के कृतघ्न कांग्रेसी भूल ही गए हैं। आज हरवंश सिंह की का जन्म दिन है, यह उनका पहला जन्म दिन है जब वे लोगों के बीच नहीं है। जब तक हरवंश सिंह जिंदा थे, तब तक उनके जन्म दिवस पर मीडिया विज्ञापन से पटे रहते थे। आज पहली बार ऐसा हुआ है जब हरवंश सिंह के जन्म दिवस पर मीडिया पूरी तरह सूना ही नजर आया।
न तो जिला कांग्रेस कमेटी के किसी प्रवक्ता द्वारा 10 नवंबर को हरवंश सिंह की जयंति की पूर्वसंध्या पर ही इस तरह की कोई विज्ञप्ति जारी नहीं की गई कि 11 नवंबर को हरवंश सिंह के जन्म दिवस पर जिला कांग्रेस कमेटी कार्यालय में कोई कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा, न ही 11 नवंबर को भी हरवंश सिंह के जन्म दिवस पर जिला कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में किसी तरह का कोई श्रृद्धांजली कार्यक्रम भी नहीं रखा गया।
11 नवंबर को जिला कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता द्वारा जारी तीन विज्ञप्तियों में सिवनी के कांग्रेस के प्रत्याशी राज कुमार खुराना के 12 नवंबर का भ्रमण कार्यक्रम जारी किया गया है। दूसरी विज्ञप्ति में भाजपा प्रत्याशी नरेश दिवाकर के जनसंपर्क में हुई मारपीट का उल्लेख है। तीसरी विज्ञप्ति में शिवराज सिंह के बारे में उल्लेख किया गया है।
हरवंश सिंह का निधन 14 मई को जिला चिकित्सालय सिवनी में हो गया था। आश्चर्य तो इस बात का है कि शलाका पुरूष हरवंश सिंह को कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता महज छः माह में ही भूल गए (उनके निधन के छः माह 14 नवंबर को पूरे होंगे)। आज जिला कांग्रेस कमेटी में भी किसी तरह के श्रृद्धांजली कार्यक्रम का आयोजन न होने से लगने लगा है मानो अब संगठन की कमान उन हाथों में आ गई है जो हरवंश सिंह की मुखालफत में विश्वास रखते थे।
ठाकुर हरवंश सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं। हरवंश सिंह के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालना सूरज को रोशनी दिखाने जैसा ही होगा। हरवंश सिंह ठाकुर ने गरीब परिवार में जन्म लेकर हर मायने में जिन ऊंचाईंयों को छुआ है वह हर किसी के बस की बात नहीं है। इस मार्ग में उन्हें न जाने कितने शूल निकालने पड़े, ना जाने कितने नश्तर चुभे होंगे, न जाने कितनी प्रतिकूल धाराओं का सामना करना पड़ा होगा यह तो वे ही जानें पर हरवंश सिंह कभी डिगे नहीं, रूके नहीं।
सिवनी में कांग्रेस का एक बड़ा तबका हर गलती को ठाकुर साहेब के मत्थे मढ़कर अपने दायित्वों और कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता आया है। सिवनी में विमला वर्मा के उपरांत हरवंश सिंह ही थे जो कांग्रेस को जिंदा रखते थे। दलगत सामंजस्य भी वे बेहतर तरीके से ही बनाने में सक्षम थे। 14 मई को उनके निधन के उपरांत उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ी भीड़ ने साबित कर दिया कि हरवंश सिंह वाकई शलाका पुरूष थे।
संगठन में उनकी पकड़ का कोई सानी नहीं था। एक वाक्या याद पड़ता है। एक बार एक काम के सिलसिले में प्रदेश के तत्कालीन वित्त मंत्री कर्नल अजय नारायण मुशरान के पास जाना हुआ। वहां प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठनात्मक ढांचे के बारे में उनसे एक अन्य मंत्री चर्चा कर रहे थे। हमारे अभिवादन को कर्नल साहेब ने मुस्कुराकर जवाब दिया और कुर्सी पर बैठने का संकेत किया। इसके उपरांत उन्होंने कहा कि राजा साहेब (तत्कालीन मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह)।के पास इतना समय नहीं है कि वे संगठन को देख सकें। ऐसी परिस्थितियों में हरवंश सिंह ही दूसरे सक्षम व्यक्तित्व हैं जो संगठन में जान डाल सकते हैं। बकौल कर्नल साहेब, दिग्विजय सिंह और हरवंश सिंह ही दो ऐसे राजनेता हैं जो हर कार्यकर्ता को नाम से पहचानते हैं।
हरवंश सिंह की संगठन क्षमता और कार्यकर्ताओं पर पकड़ के साथ ही साथ सभी को साथ लेकर चलने की सभी मुक्त कंठ से तारीफ किया करते थे। एक समय था जब वे कुंवर अर्जुन सिंह के करीब थे। इसके बाद वे कमल नाथ के करीब आए फिर राजा दिग्विजय सिंह के नौरत्नों में शामिल हो गए। एक साथ तीन तीन क्षत्रपों को साधे रखना कोई हंसी खेल नहीं था। जब तिवारी कांग्रेस बनी तब कांग्रेस और तिवारी कांग्रेस के बीच तालमेल भी हरवंश सिंह जैसी शख्सियत के बलबूते की ही बात थी।
हरवंश सिंह ने चुनौतियों को सदा ही स्वीकारा है। उन्होंने कभी भी कठिन समय में धैर्य नहीं खोया। एक बार उन्हें जब मंत्री पद से महरूम रखा गया था तब भी उन्होंने इसे बहुत ही धैर्य के साथ स्वीकार करते हुए इसे समय का चक्र ही माना। इतने बड़े बड़े पदों पर रहने के बाद भी अहंकार मानो उन्हें छू भी नहीं सका था। ऐसा नहंी कि हरवंश सिंह के विरोधी नहीं थे। हरवंश सिंह के विरोधियों की तादाद बहुत अधिक थी।

बहरहाल, हरवंश सिंह के निधन के उपरांत उनकी पहली जयंति पर जिले भर में उन्हें याद न किया जाना वाकई आश्चर्यजनक ही कहा जाएगा। यह चुनावी बेला है, हरवंश सिंह के न रहने पर उन्हें याद करने का काम कांग्रेस का है, इस मामले में पालीटिकल माईलेज लेना, लाभ हानि का गणित लगाना कांग्रेस या विरोधियों का काम है, पर सिवनी के एक प्रभावशाली नेता, केवलारी के चार बार के विधायक, प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री, सिवनी जिले के प्रभारी मंत्री, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष और मध्य प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन उपाध्यक्ष होने के कारण सभी का दायित्व था कि हरवंश सिंह ठाकुर को श्रृद्धा सुमन अर्पित करते। इस मामले में कांग्रेस को आगे आना था, पर दुर्भाग्य से कृतघ्न कांग्रेसियों ने इस काम को अंजाम नहीं दिया। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया और दैनिक हिन्द गजट की ओर से हरवंश सिंह ठाकुर को आदर सहित श्रृद्धा सुमन . . .

नवजात शिशु का शव और संवेदनाएं

नवजात शिशु का शव और संवेदनाएं

(शरद खरे)

जिले में नवजात शिशुओं के शव मिलने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी होना चिंताजनक ही माना जा सकता है। किसी का जीवन समाप्त करने का हक भारत गणराज्य के कानून में किसी को भी नहीं दिया गया है। अपराधियों के लिए मौत की या फांसी की सजा इसमें अपवाद मानी जा सकती है। नवजात शिशुओं को जन्म कहीं न कहीं तो दिया ही गया होगा! जिले की सीमा में अगर नवजात के शव मिल रहे हैं तो संभावना यह भी बलवती होती है कि उसे इसी जिले में इस धरती पर लाया गया होगा। इसके लिए नर्सिंग होम्स या चिकित्सकों को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है।
कहने को तो नर्सिंग होम्स में गर्भपात को अवैध बताने वाले बोर्ड चस्पा होते हैं। बावजूद इसके इन नर्सिंग होम्स में धडल्ले से गर्भपात की खबरें आम हुआ करती हैं। जिला मुख्यालय में ही अनेक जगहों पर अवैध गर्भपात की खबरें मिल जाती हैं। दो तीन दशकों पहले गर्भपात के लिए एक संस्था का ही नाम जिले में सामने आता था। बाकी मामलों में पड़ोसी प्रदेश महाराष्ट्र के चुनिंदा शहरों में ही इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जाता था। यद्यपि इस बात के प्रमाण कहीं नहीं है फिर भी आज प्रौढ़ हो रही पीढ़ी इस बात को बेहतर समझ सकती है कि उस समय किन किन शहरों के नाम इसके लिए सामने आया करते थे।
आज विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर क्या वजह है कि नवजात शिशुओं के शव मिलने का सिलसिला थम ही नहीं पा रहा है। कुछ माह पहले जिला मुख्यालय की एकता कालोनी में चिकित्सा क्षेत्र में ही कार्यरत एक सरकारी नुमाईंदे के घर के प्रांगण में ही एक शिशु का शव मिला था। हाल ही में लखनादौन में एक शिशु का शव और उसके उपरांत एक बार फिर लखनादौन शहर में ही पालीथिन में एक बच्चे का शव मिला है।
यह निश्चित तौर पर अच्छी परंपरा का आगाज कतई नहीं माना जा सकता है। जिले में इस तरह की घटनाओं के बारे में विचार करने की जरूरत है। विशेषकर पालकों को इस मामले में विचार करना ही होगा। दरअसल, अधकचरी पाश्चात्य संस्कृति के चलते युवा नग्नता की अंधी सुरंग में घुसता ही चला जा रहा है। वह इसके दूसरे मुहाने के दलदल से अनजान ही है, किन्तु वर्तमान में उसके लिए यह एक खिलवाड़ की तरह ही है।
आज के इस परिवेश के लिए काफी हद तक टीवी और मोबाईल को ही जिम्मेदार माना जा सकता है। आधुनिक दिखने की जुगत में युवा तेजी से नग्नता को अंगीकार करते जा रहे हैं हो वाकई मेें चिंताजनक बात ही मानी जा सकती है। टीवी पर दिखाए जाने वाले सीरियल्स और अश्लील विज्ञापनों का बुरा प्रभाव आज की युवा पीढ़ी पर पड़े बिना नहीं है। अश्लील विज्ञापनों में कभी पिघली चाकलेट खाते नर नारी को एक दूसरे की ओर आकर्षित होते दिखाया जाता है तो कभी किसी बडी स्प्रे से बाला को आकर्षित होते दिखाया जाता है। क्या यह सब भारतीय समाज और संस्कृति के लिए उचित है? जाहिर है यह सब कुछ पूर्व के बजाए पाश्चयत्य संस्कृति के अनुरूप माना जा सकता है। फिर क्या वजह है कि भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा इस तरह के प्रसारण को अवैध करार देकर कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है?
सिवनी जिले में भी अश्लीलता का चलन जोरों पर है। युवाओं की जिद पर उनके पालकों द्वारा उन्हें मोबाईल तो दिला दिए जाते हैं पर क्या कभी किसी पालक ने अपने यौवन की दहलीज पर कदम रखने वाले बच्चे के मोबाईल के अंदर झांककर देखा है? इसका उत्तर नकारात्मक ही ज्यादा आएगा। युवाओं के मोबाईल में अश्लील सामग्रियों की भरमार हुआ करती है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
सिवनी जिले में अवैध रूप से मोबाईल में डाले जाने वाले गाने आदि का कारोबार जोर शोर से चल रहा है। स्टार कापीराईट प्रोटेक्शनद्वारा कुछ समय पूर्व एक दो बार पुलिस की मदद से छापे भी मारे गए थे मोबाईल डाउनलोडिंग करने वाले कारोबारियों के प्रतिष्ठानों में। स्टार कापीराईट प्रोटेक्शन की कार्यप्रणाली देखकर यही लग रहा है मानो वे वैध अवैध, या अश्लील क्लििपिंग के बदले इन प्रतिष्ठानों से आठ से दस हजार रूपए की सालाना राशि की मांग ही कर रहे हों। जिन प्रतिष्ठान संचालकों द्वारा यह राशि अदा कर दी गई उन प्रतिष्ठानों को मानो अश्लीलता परोसने की खुली छूट मिल गई है। पुलिस ने भी कभी अपने स्तर पर इन प्रतिष्ठानों या व्यवसाईयों के कंप्यूटर्स का निरीक्षण करने की जहमत नहीं उठाई है।
इसके साथ ही साथ अगर जिला मुख्यालय को ही लिया जाए तो जिला मुख्यालय में निर्जन स्थानों पर युवक युवतियों को अश्लील हरकतें करते देख उमर दराज लोग भी शरमा जाते हैं। इन युवाओं के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि अगर इन्हें कोई रोकता है तो ये उस पर टूट पड़ते हैं। पुलिस के बेकर (पुराने चीता मोबाईल) भी रस्म अदायगी के लिए इन युगलों को पकड़ने की जहमत नहीं उठाती है। बीते दिनों मसीही समाज के कब्रिस्तान में दो जोड़ी प्रेमी युगलों को पुलिस ने आपत्तिजनक हालत में पकड़ा था। इनके साथ क्या कार्यवाही की गई, यह बात किसी को नहीं पता।

युवा कच्ची मिट्टी के मानिंद होता है। उस जिस रूप में ढाल दिया जाए वह आसानी से ढल जाता है। पालकों की अनदेखी और समाज में फैली गंदगी की परिणिती के रूप में इस तरह के नवजात शिशु ही सामने आते हैं। सामाज से छिपकर अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को पाप समझकर उससे छुटकारा पाने के चक्कर में युवतियां इस तरह की घटनाओं को अंजाम देती हैं, और इस पाप में वे चिकित्सक या पैरामेडीकल स्टाफ बराबरी का भागीदार है जो यह करवाता है।