तारीख पर तारीख ही मिल रही है एमएनपी में
कब स्वतंत्र होगा मोबाईल उपभोक्ता अपने आपरेटर को बदलने
ट्राई और सरकार के बीच रस्साकशी का आनंद ले रहे हैं आपरेटर
एमएनपी के मामले में अभी दिल्ली दूर है
(लिमटी खरे)
खराब सेवा प्रदाता मोबाईल कंपनियों के नंबर दूसरे अच्छे सेवा प्रदाता कंपनियों के साथ अदला बदली के मामले में केंद्र सरकार और दूरसंचार नियामक आयोग (ट्राई) के बीच चल रही तनातनी का नतीजा है कि अब तक मोबाईल नंबर पोर्टेबिलिटी को हरी झंडी नहीं दिखाई जा सकी है। बार बार तारीख पर तारीख देने के उपरांत भी एमएनपी में विलंब को कांग्रेस नीत केंद्र में बैठी भारत सरकार की सबसे बड़ी विफलता ही माना सकता है। वैसे तो अनेक एसे मोर्चे हैं जिन पर भारत सरकार ने विफलता के नए आयामों को छुआ है किन्तु मंहगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, शिक्षा, स्वास्थ्य के बाद एमएनपी एक एसा मसला है जो आज देश के कमोबेश हर आदमी से जुड़ा हुआ माना जा सकता है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा एमएनपी के मसले को अनेकों बार टाला जा चुका है। यह क्यों हो रहा है? किसके दबाव में हो रहा है? इसके पीछे किसको प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ पहुंचाने की जनसेवकों की मंशा है, यह तो केंद्र सरकार ही जाने पर 31 दिसंबर 2009 के पहले दो मर्तबा एमएनपी की तारीख देकर उसे टाला गया था। अंत में 31 दिसंबर 2009 को डेड लाईन बना दिया गया था।
इसके उपरांत केंद्र सरकार ने मोबाईल पोर्टेबिलिटी को लागू करने की तारीख बढ़ाकर इस साल मई के पहले सप्ताह तक कर दी गई थी। यह तिथि गुजरने के बाद एक बार फिर 30 जून तक के लिए समयावधि बढ़ा दी गई थी। इस साल अप्रेल के पहले सप्ताह में ट्राई द्वारा कहा गया था कि वह एमएनपी में हो रहे अनावश्यक विलंब को लेकर चिंतित है, और जल्द ही दूरसंचार विभाग को इस संबंध में पत्र लिखने जा रहा है।
ट्राई द्वारा एमएनपी सेवाओं में बार बार हो रहे विलंब के कारणों का पता लगाने के लिए दूरसंचार विभाग को पत्र लिखकर पता करने की बात कही गई थी कि आखिर क्या वजह है कि इस सुविधा को लागू नहीं किया जा पा रहा है। इससे पहले अप्रेल में ही दूरसंचार विभाग द्वारा कहा गया था कि वह इस मसले को निजी सेवा प्रदाता कंपनियों के साथ होने वाली बैठक में भी उठाने जा रहा है।
शुरूआती दौर में सरकारी कंपनियां बीएसएनएल और एमटीएनएल द्वारा ही इस संबंध में आवश्यक तकनीकी तैयारियां विशेषकर एमएनपी गेटवे की स्थापना ही नहीं किया जा सका था। पिछले माह में जब तीसरी पीढ़ी के मोबाईल यानी 3 जी की सेवाएं आरंभ कराने की बात सामने आई थी, तब सरकार द्वारा दूरसंचार कंपनियों के सामने यह शर्त रख दी थी कि दूरसंचार कंपनियों को किसी भी तरह की नई सेवा आरंभ करने के पहले मोबाईल नंबर पोर्टेबिलिटी को आरंभ करना आवश्यक होगा। सरकार की इस कड़ी शर्त के आगे निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनियां झुकती नजर आ रही थीं।
सरकार ने इसके साथ ही निजी सेवा प्रदाता कंपनियों से कहा था कि वे एमएनपी को अक्टूबर माह में आरंभ करवा दें। विडम्बना यह है कि बीएसएनएल और एमटीएनएल ने तो 3 जी सेवाओं को आम उपभोक्ताओं के लिए लागू कर दिया है, पर उसे अपनी एमएनपी की शर्त के बारे में शायद याद नहीं रहा। अगर सरकार को अपनी कड़ी शर्त के बारे में याद होता तो निश्चित तौर पर 3 जी सुविधाएं लांच करने के पहले सरकारी कंपनियों द्वारा एमएनपी को अमली जामा अवश्य ही पहनाया होता।
सरकारी और निजी क्षेत्र की मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को संभवतः यह भय सता रहा है कि अगर एमएनपी को लागू कर दिया गया तो खराब नेटवर्क, काल ड्राप, मनमाना बिल, छिपी हुई शर्तों आदि से आजिज आ चुके उपभोक्ता किसी अन्य सेवा प्रदाता की शरण में न चले जाएं। अगर एसा होगा तो उनके राजस्व में जबर्दस्त कमी दर्ज की जा सकती है। अभी वर्तमान नियम कायदों को देखकर यह कहा जा सकता है कि मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी चाहे सरकारी क्षेत्र की हो या निजी क्षेत्र की हर किसी का एकाधिकार मोबाईल सेक्टर पर दिख रहा है। एमएनपी के लागू होने के बाद कंपनियों का एकाधिकार पूरी तरह से समाप्त होने की उम्मीद है। इसके उपरांत बाजार में वही कंपनी टिक पाएगी जिसकी शर्तें साफ हों, और नेटवर्क तथा सुविधाएं जनता को पसंद आएंगी।
दरअसल एमएनपी की कल्पना एमएनपी गेटवे तकनीक के बिना किया जाना संभव ही नहीं है। कुछ कंपनियां जहां इस तकनीक के लिए वांछित उपकरणों के लिए आपूर्ति का इंतजार कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ कंपनियां इसकी खरीददारी के लिए आदेश देने की गरज से सुरक्षा इजाजत की बाट जोह रही हैं। कंपनियां इस सेवा को आरंभ करने की स्थिति में कतई नहीं दिख रही हैं। सरकार का यह मानना है कि जो कंपनियां इस सेवा को आरंभ करने में विलंब का दोषी पाई जाएंगी, उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही होगी।
कुल मिलाकर मोबाईल नंबर स्थाई रखकर अपने सेवा प्रदाता की सेवाएं बदलने वाली योजना एमएनपी में बार बार तारीख पर तारीख मिलने से साफ होने लगा है कि निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनियां इसके लिए क्लीन हेण्ड से आगे आने को तैयार कतई नहीं है। साथ ही साथ सरकार भी यह नहीं चाह रही है कि इन सेवा प्रदाता कंपनियों की इस मामले में मश्कें कसी जाएं। सरकार पर किस बात का दबाव है, यह बात तो सरकार ही बेहतर जान समझ सकती है, किन्तु एमएनपी में तारीख पर तारीख से मरण अंतत्तोगत्वा उपभोक्ता की ही हो रही है।