मंगलवार, 7 जून 2011

दिग्भ्रमित लग रहे बाबा रामदेव

दिग्भ्रमित लग रहे बाबा रामदेव

(लिमटी खरे)

इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव अब कन्फयूज नजर आ रहे हैं। कभी वे दिल्ली जाने की बात से तौबा करते हैं तो कभी एक करोड़ समर्थकों के साथ दिल्ली कूच करने की बात करते हैं। कभी सरकार को कोसते हैं तो कभी माफ कर देते हैं। हालात देखकर लगने लगा है कि भोले भाले बाबा रामदेव को रिमोट की तरह चलाने वाला कथित दिमाग अब बाबा के पीछे से हट गया है, यही कारण है कि बाबा रामदेव अब एक कदम आगे चार कदम पीछे कदम ताल कर रहे हैं, बाबा को यह अवश्य ही लग रहा होगा कि वे आगे बढ़ रहे हैं, किन्तु सच्चाई यह है कि बाबा रामदेव अब पिछड़ते जा रहे हैं। भाजपा बाबा रामदेव का साथ सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस नीत केंद्र सरकार के दमन के विरोध में दे रही है, किन्तु बाबा मान रहे हैं कि वे भाजपा के कांधों पर बैठ गए हैं।

समय चक्र किस तेजी से करवट लेता है। 01 जून को केंद्र सरकार के चार वरिष्ठ मंत्री बाबा रामदेव की अगवानी के लिए दिल्ली के एयरपोर्ट पर डेढ़ घंटे इंतजार करते रहे। फिर वहां से वार्ताओं का दौर जारी हुआ जो 04 जून की मध्य रात्रि कर अनवरत चलता रहा। आखिर चार दिन क्या बातें होती रहीं? बाबा रामदेव बस इतना ही चाह रहे थे न कि विदेशों में जमा काला धन वापस भारत ले आया जाए! सरकार हामी भर देती और कथित तौर पर बाद में भरी भी। आखिर सरकार को इस बात की इतनी चिंता क्यों है कि अगर काला धन वापस आता है तो क्या पहाड़ टूटेगा? जाहिर है पहाड़ उन पर टूटने वाला है जिनका काला धन विदेशों में जमा है। सरकार अगर इस पर हिचक रही है तो मतलब साफ है कि सरकारी नुमाईंदों का काला धन विदेशों में जमा है। विपक्ष ने इस मामले में संसद में आवाज नहीं उठाई। मामला अगर सांसदों की वेतन वृद्धि का होता तो मसखरे लालू यादव सहित सारे सांसद जमीन आसमान एक कर देते, किन्तु इस मामले में सभी खामोश हैं। खामोश इसलिए क्योंकि अगर काला धन वापस आया तो यह जीत उनकी नहीं बाबा रामदेव के खाते में जाएगी। बाबा पालीटिकल माईलेज ले जाएगा।
 
देखा जाए तो 6 दिसंबर 1992 और 5 जून 2011 में काफी कुछ समानता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव और विश्व हिन्दू परिषद तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बीच 4 दिसंबर तक बातचीत का दौर चला। दोनों ही पक्षों द्वारा एक दूसरे को बेवकूफ बनाया जाता रहा। संघ और विहिप जानते थे कि अगर कार सेवकों को खाली हाथ वापस भेज दिया गया तो फिर दोबारा उनमें उत्साह और जोश का संचार करना कठिन होगा, साथ ही चतुर सुजान नरसिंहराव का सोचना था कि अगर कार सेवक वापस गए तो आंदोलन की रीढ़ टूट जाएगी। कमोबेश कुछ इसी तरह का माजरा रामदेव बाबा के प्रकरण में सामने आया है। सरकार इस आंदोलन को तोड़ने के जतन कर रही थी तो बाबा रामदेव के सामने अस्तित्व का संकट था। पिछले साल नवंबर से अब तक बाबा ने देश के कोने कोने की खाक छानी है, अलख जगाई है, अगर बाबा कदम वापस खींचते तो उनकी साख पर बट्टा लगना तय था।
 
बाबा के काले धन के मामले को सिविल सोसायटी ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में हाईजेक कर लिया। बाबा का कद अन्ना के सामने बौना नजर आने लगा था। बाबा के अनशन पर बैठने की बात को भी लोग बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे थे। अचानक ही जब चार और पांच जून की दर्मयानी रात को रामलीला मैदान पर ‘रावणलीला‘ हुई तब जाकर लोगों का बाबा रामदेव पर पुनः भरोसा जमा। बाबा रामदेव का कद अब पूर्व की तरह अन्ना हजारे से कई गुना अधिक बढ़ गया है।
 
बाबा रामदेव पर यह हमला कैसे हुआ? इस मामले की तह में जाने पर अनेक आश्चर्यजनक तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) में ही इस रावणलीला की स्क्रिप्ट लिखी गई थी। बाद में गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम को इसे अमली जामा पहनाने के निर्देश दिए गए। कहते हैं कि चिदम्बरम इससे घबरा गए, और उन्होंने इसकी सूचना वजीरे आजम डाॅक्टर मनमोहन सिंह को दी। एम.एम.सिंह ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए चिदम्बरम से कार्यवाही न करते हुए बातचीत जारी रखने का मशविरा दिया। बात पुनः सोनिया के दरबार पहुंची। हुकुम उदूली से तमतमाई सोनिया ने चिदम्बरम को फटकारा और कहा कि मनमोहन की बात सुनने की आवश्यक्ता नहीं, तत्काल हुकुम की तामील हो। फिर क्या था देश के गृह मंत्री के आदेश पर देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने मामले की कमान संभाली और बाबा रामदेव और मध्य रात्रि में विश्राम करते उनके समर्थकों पर तबियत से लाठियां भांजी।
 
पूरे घटना क्रम को टीवी चेनल्स और समाचार पत्रों ने प्रमुखता के साथ कव्हर किया। बाबा रामदेव रातों रात फिर हीरो बन गए। बाबा के अंदर प्रचार पाने का कीड़ा एक बार फिर कुलबुलाया। जब टीवी चेनल्स नहीं आए थे तब इस तरह की लोकप्रियता हासिल करने की कवायद को ‘छपास‘ का रोग कहा जाता था। बाबा रामदेव सन्यासी होने का दावा अवश्य ही करते हैं किन्तु सन्यासी जैसे गुण उनमें कम ही देखने को मिल रहे हैं। अमूमन सन्यासियों द्वारा स्वाध्याय और आत्म चिंतन पर जोर दिया जाता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि महात्मा गांधी भी सत्याग्रह के आंदोलनों के मध्य गुजरात के साबरमती और महाराष्ट्र के सेवाग्राम आश्रम में जाकर आत्म चिंतन अवश्य ही किया करते थे। बाबा रामदेव ने एक दिन का भी आत्मचिंतन किया हो एसा प्रतीत नहीं होता है। खुद को महिमा मण्डित करने के लिए बाबा रामदेव ने देश भर में योग शिविर लगाए। योग शिविरों में प्रवेश की कम से कम फीस पांच सौ रूपए हुआ करती थी। इस तरह बाबा रामदेव अमीरों को ही योगा सिखाने का काम करने लगे। बाबा इस बात का जवाब देने में खुद को असफल ही पाते हैं कि कल तक जिस व्यक्ति के पास साईकल का पंचर जुड़वाने के पैसे नहीं थे, वह आज 1100 करोड़ की अकूत दौलत का मालिक कैसे बन बैठा है। बाबा के पतांजली योग पीठ में आम आदमी को प्रवेश नहीं मिल सकता, जबकि गांधी के अवसान के छः दशकों बाद भी उनके साबरमती आश्रम और संत बिनोवा भावे के सेवाग्राम में आम आदमी बेरोकटोग आवाजाही कर सकता है।
 
बाबा रामदेव का दिल्ली में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है। बाबा रामदेव ने उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती से संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया और बयान जारी किया कि वे नोएडा में अनशन करेंगे। नोएडा दिल्ली का उपनगरीय इलाका ही माना जाता है जो उत्तर प्रदेश में होने के साथ ही साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में आता है। नोएडा में कांग्रेस की हुकूमत फिलहाल नहीं है। चतुर सुजान बाबा रामदेव इस बात को भी बेहतर समझ चुके हैं कि नोएडा में ही अधिकांश चेनल्स के कार्यालय हैं, सो उन्हें बैठे बिठाए पब्लिसिटी मिल जाएगी। रही बात हरिद्वार की तो एक दो दिन में ही बाबा का यह मामला ठंडा पड़ जाएगा और फिर कोई भी चेनल का रिपोर्टर बाबा के पास नहीं फटकेगा।
 
बाबा रामदेव को चलाने वाला दिमाग या तो बाबा के कदमों से नाराज है या फिर किसी ने उसे हाईजेक कर लिया है, यही कारण है कि 1 जून के बाद बाबा रामदेव के हर कदम उल्टे ही पड़ रहे हैं। सत्याग्रह के नाम पर जान देने की हुंकार लगाने वाले बाबा रामदेव आखिर चार और पांच जून की दर्मयानी रात औरतों का लिबास पहनकर अनशन स्थल से जान बचाकर भागे क्यों? बाबा और सरकार के बीच जो वार्ता चल रही थी, उस वार्ता के बारे में बाबा ने मीडिया को समय समय पर खुलकर क्यों नहीं बताया? क्यों बाबा बार बार बातचीत के बाद वार्ता सकारात्मक रही का उल्लेख करते आए हैं?
 
बाबा काफी हद तक कन्फयूज्ड लग रहे हैं। बाबा को अब सूझ नहीं रहा है कि अगला कदम क्या उठाया जाना चाहिए। अनशन स्थल पर शाम से ही बाबा की बदहवासी देखते बन रही थी। मध्य रात्रि तक तो बाबा को किसी बात की सुध नहीं थी। अब जब बाबा से उनके विश्वस्त सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के बारे में पूछा गया तो वे कहते हैं कि उन्हें एक खास मिशन पर लगाया गया है। उनके पासपोर्ट और नागरिकता के सवालों को भी बाबा सिरे से खारिज कर रहे हैं। पर उत्तराखण्ड में तो सरकार द्वारा यह साबित कर दिया गया है कि बाल किशन की नागरिकता ही संदिग्ध है।
 
इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव के योग से निरोग अभियान से भले ही किसी को लाभ हुआ हो या नहीं, किन्तु यह तय है कि इसके माध्यम से बाबा की लोकप्रियता में विस्फोटक इजाफा हुआ है। बाबा से जुड़ने और योग में आस्था रखने वालों की तादाद करोड़ों अरबों में है। बाबा रामदेव के मिशन में वे लोग बाबा का साथ अवश्य देंगे। इसलिए बाबा रामदेव को चाहिए कि वे देश हित में विदेश में जमा काले धन को वापस भारत लाने के मिशन पर ही अड़े रहें, राजनीति से तौबा करें, अपने शिष्य या सहयोगी विधायकों सांसदों और अपने चाहने वालों के माध्यम से हस्ताक्षर अभियान, मानव श्रंखला आदि बनवाकर विरोध प्रदर्शन करें। इस तरह से सत्याग्रह करने और फिर रणछोड़दास बनकर भागने से काला धन वापस नहीं आने वाला। बाबा रामदेव को कोई हक नहीं बनता कि वे योग में आस्था रखने वाले देश के अरबों लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करें।

गायब हैं आचार्य बालकृष्ण

बाबा करेंगे शाम तक धमाका
 
बालकृष्ण का पासपोर्ट असली
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कालेधन को विदेश से वापस भारत लाने का अभियान छेड़ने वाले रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव और सरकार के बीच नफरत की खाई बढ़ती ही जा रही है। रामलीला मैदान पर हुई कार्यवाही के उपरांत एक तरफ जहां कांग्रेसनीत कंेद्र सरकार अब बैकफुट पर आती नजर आ रही है, वहीं दूसरी और सरकार के प्रति बाबा रामदेव की धार में पैनापन शनैः शनैः बढ़ता ही जा रहा है। बाबा रामदेव ने कहा है कि वे अपनी अगली रणनीति का खुलासा आज शाम की पत्रकार वार्ता में करेंगे। उधर बाबा के विश्वस्त सहयोगी और कथित तौर पर नेपाल मूल के नागरिक आचार्य बालकृष्ण 4 जून की रात्रि से ही लापता बताए जा रहे हैं।
 
बाबा रामदेव ने केंद्र सरकार पर भ्रष्ट होने का अरोप लगाते हुए कहा कि चार और पांच जून की मध्य रात्रि की वारदात के लिए उन्होंने केंद्र सरकार को माफ कर दिया है, पर उनका यह अभियान जारी रहेगा। हठ योग पर आमदा बाबा रामदेव अपनी अगली रणनीति का खुलासा आज देर शाम करेंगे। अपने विश्वस्त सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के बारे में उन्होनें साफ करते हुए कहा कि उन्हें किसी खास मिशन पर लगाया गया है, अतः वे अभी भूमिगत हैं। जैसे ही मिशन पूरा हो जाएगा वे जनता के सामने आ जाएंगे। बालकृष्ण के पासपोर्ट और पतांजली योगपीठ की जमीन के बारे उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि सब कुछ सही और नियमानुसार ही है।
 
रामदेव ने कहा है कि वे एक करोड़ लोगों के साथ अब दिल्ली पर हमला बोलेगे। उनके योग के शिष्यों में से एक करोड़ लोग उनकी एक हुंकार पर दिल्ली आ जाएंगे। प्रधानमंत्री के खिलाफ पहली बार बयानबाजी करते हुए रामदेव ने कहा कि वजीरे आजम डाॅक्टर मनमोहन सिंह ने राष्ट्रधर्म नहीं निभाया है। उधर कांग्रेस द्वारा अनशन स्थल से बाबा रामदेव के सलावार कुर्ता पहनकर भागने पर उन्हें ‘रणछोड़दास‘ की उपाधि से भी नवाजा गया है।

रामलीला मैदान के प्रकरण पर अब कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पूरी तरह घिरती नजर आ रही है। सुप्रीम कोर्ट के बाद मानवाधिकार आयोग ने भी केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। इसके साथ ही साथ महिला आयोग मंे भी इसकी शिकायत दर्ज करा दी गई है। माना जा रहा है कि महिला आयोग भी इस मामले की जांच करने के आदेश जारी कर सकता है।

बुधवार को अन्ना का अनशन

रामलीला मैदान में पुलिसिया बर्बरता के विरोध में सिविल सोसायटी की ओर से अन्ना हजारे एक दिन के अनशन पर बुधवार को बैठने वाले हैं। सरकार ने अन्ना के अनशन से उपजने वाली परिस्थितियांे का अनुमान लगाकर उससे निपटने की रणनीति बनाना आरंभ कर दिया है।

बाबा उलझ सकते हैं कोर्ट कचहरी के चक्करों में

जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के साथ दो दो हाथ करने वाले बाबा रामदेव के खिलाफ कांग्रेस ने सबूत जुटाने आरंभ कर दिए हैं। कांग्रेस के घाघ नेताओं के कदम ताल देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही के द्वारा बाबा के 1100 करोड़ रूपए के साम्राज्य पर अधिकार जमाकर बाबा रामदेव का बाकी समय कोर्ट कचहरी में प्रकरणों को सुलटाने में व्यतीत करवाया जा सकता है। कहा जा रहा है कि इस मामले को भुनाने के बाद भाजपा द्वारा बाबा रामदेव से पल्ला झाड़ लिया जाएगा, जिसके बाद बाबा रामदेव राजनैतिक बियावान में खो जाएंगे।

डा० निशंक के सामने कांग्रेसी की तैयारियां व रणनीति शून्य

 डा० निशंक के सामने कांग्रेसी की तैयारियां व रणनीति शून्य

(चन्द्रशेखर जोशी)

देहरादून। भाजपा हाईकमान ने उत्तराखण्ड के मामले में स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व आधार पर लडे जाएंगे, इसके बाद ही नेता की भूमिका तय होगी। परन्तु कांग्रेस में चुनाव लडने के बारे में कोई रणनीति तैयार नहीं की गयी है। अब कांग्रेस का हर प्रादेशिक क्षत्रप स्वयं को मुख्यमंत्री मानकर चल रहा है। जिससे उत्तराखण्ड में हर आम कांग्रेसी यह मानने में कतई नहीं हिचक रहा है कि कांग्रेस द्वारा चुनावी रणनीति की कोई तैयारी नहीं की जा रही है, सब कुछ हवा में हैं तथा मात्र निशंक को कोसने तक सीमित है।
वहीं जनता का यह मानना है कि कांग्रेस के जिस नेता को देखो वह डा० निशंक को कोसने मात्र तक सीमित है। उनकी अपनी उपलब्धि शून्य है। हरीश रावत की मुख्य चिंता यह है कि अपने पुत्र को युवा कांग्रेस में अध्यक्ष पद दिलवाने के बाद अब पुत्री को कैसे विधायक बनाया जाए, इसके बाद फिर स्वयं कैसे मुख्यमंत्री बना जाए। इस तरह हर कांग्रेसी नेता व्यक्तिगत गुणा भाग में उलझा है, उसको सूबे की नहीं स्वयं की चिंता ज्यादा सता रही है कि वह कैसे मुख्यमंत्री बन सके।  देहरादून में २८ मई को एक कार्यक्रम में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस के विकास खोज मार्च में कांग्रेस नेता हरीश रावत की पुत्री ने राज्य सरकार को कोसा।

  कई कांग्रेसी नेताओं ने स्वीकार किया है किं उत्तराखण्ड में कांग्रेस अंदरखाने डरी हुई है। उत्तराखण्ड में जमीन से जुडे कई नेताओं का यह मानना है कि डा० निशंक की जिस तरह से तैयारी व रणनीति तैयार की जा रही है, कोई शक नहीं कि वह विधानसभा चुनाव में भाजपा को रिपीट करवा दें और शह आंकडा एकाध कांग्रेसी नेता या किसी शहर विशेष के कांग्रेसियों का नहीं है, अपितु हमारी टीम ने अनेक शहरों में जमीन से जुडे अनेक कांग्रेसी नेताओं से राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भूमिका के बारे में बात की, जिस पर यह तथ्य निकल कर आया कि डा० निशंक के सामने कांग्रेसी की तैयारियां व रणनीति शून्य है। यही हाल रहा तो डा० निशंक के नेतृत्व में भाजपा रिपीट कर सकती है।
जनता का यह मानना है कि उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री डा० निशंक का करिश्माई नेतृत्व उभर कर सामने आया है, सूबे में अनेक मोर्चो पर डा० निशंक को घेरने की रणनीति बनाने के बावजूद वह अपने कार्यो से डिगे नहीं है। देखा जाए तो एक सफल राजनीतिक के जो गुण मुख्यमंत्री में होने चाहिए वह इस समय सूबे के किसी भी दल के राजनीतिज्ञ में नहीं हैं। आज डा० निशंक हर आम व खास से जिस तरह मिल रहे हैं, उनको तवज्जो दे रहे हैं, क्या यह गुण अन्य किसी में हैं, अपनी कई तरह की दुर्बलता ही उनको उत्तराखण्ड की जनता से दूर कर देती है। वहीं डा० निशंक में क्या कमी है, आज तक ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया है।
इसके अलावा गांधी की तरह सत्याग्रह यात्रा करना उत्तराखण्ड में कांग्रेस को भीड़ ना जुटा पाने के कारण फायदे का सौदा होता नही दिख रहा। गुटो में बटे कांग्रेसी प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्या की मुहिम को झटका लगाने की  साजिश में लगे हुए है और यही कारण है कि गढ़वाल के बड़े नेताओ का कुमाउ में चल रही सत्याग्रह यात्रा में दूर दूर तक अता पता नही था। अकेले प्रदेश अध्यक्ष ही यात्रा को सफल बनाने में लगे हुए थे जबकि गढ़वाल के ऐसे नेता जो लगातार प्रदेश अध्यक्ष के इर्द गिर्द डेरा लगाए रहते थे वह कुमाउ में सत्याग्रह यात्रा के दौरान कही भी नजर नही आए जिससे कांग्रेस की कलह खुलकर पूरी तरह जनता के बीच आ गई है।
यात्राओ में कुछ स्थानो पर इतनी कम भीड़ एकत्र हुई जिसने कांग्रेस को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सत्याग्रह यात्राएं जनता के बीच अपनी कोई खास पकड़ नही बनाती हुई नजर आ रही। कांग्रेस सत्याग्रह यात्रा के माध्यम से उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार के खिलाफ जनआन्दोलन इक्ठ्ठा करना चाहती थी लेकिन प्रदेश की जनता ने कांग्रेस का साथ नही दिया। तीन चरणो की सत्याग्रह यात्रा को निपटा चुके कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अपने ऐसे नेताओ से बेहद दुखी हैं जो कुमाउ में सत्याग्रह यात्रा के दौरान कही भी नजर नही आए। भले ही प्रदेश अध्यक्ष इस बात को सार्वजनिक मंच पर उजागर ना करना चाहते हो लेकिन वह इससे बेहद नाराज है कि जिन्होने सत्याग्रह यात्रा को शुरू करने का ढोल तो जोर शोर से पीटा और बाद में कदम पीछे खींच लिए। कुमाउ में सत्याग्रह यात्रा के दौरान विजय बहुगुणा व सतपाल महाराज भले ही नजर आए हो लेकिन सांसद हरीश रावत किसी भी सत्याग्रह यात्रा में अभी तक नजर नही आए हैं। जिससे माना जा रहा है कि अभी भी कांगेस में याशपाल आर्या व हरीश रावत के बीच छत्तीस का आंकड़ा जारी है।
इससे पूर्व नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत व प्रदेश अध्यक्ष के बीच भी छत्तीस का आंकड़ा रहा है और हरीश रावत यशपाल आर्या के किसी भी कार्यक्रम में खुलकर नजर नही आए हैं। इसके अलावा हरक सिंह रावत भी यशपाल आर्या से दूरी बनाकर चल रहे हैं और इससे पूर्व भी प्रदेश अध्यक्ष के अलावा वह अपने कई ऐसे कार्यक्रम कर चुके हैं जिससे दोनो में गुटबाजी होने को बल मिलता ळै। कांग्रेस में चल रही अन्र्तकलह पूरी तरह खुलकर नजर आ रही है और इसी का कारण है कि हरिद्वार में जिला पंचायत के चुनाव में बाजी बसपा के हाथो चली गई क्योकि हरिद्वार में हरीश रावत अपने किले को बचाना चाहते थे लेकिन प्रदेश अध्यक्ष ने इस सीट पर कोई तवज्जो ना देते हुए कोई ध्यान नही दिया जिसका नतीजा जिला पंचायत के चुनाव में कांग्रेस को हार के रूप में देखने को सामने आया।
लोकसभा की पांचो सीटे जीतने के बाद कांग्रेस के बड़े नेता अपनी अपनी गुटबाजी में उलझकर रह गए हैं और एनडी तिवारी के शासन काल में जहां कांग्रेस में हरीश रावत व एनडी तिवारी गुट हुआ करते थे वहीं वर्तमान में सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, हरीश रावत, यशपाल आर्या गुट हो गए हैं। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी चैधरी वीरेन्द्र सिंह भले ही गुटबाजी को कम करने के लिए अनुशासन का डंडा उठाए दौड़ रहे हो लेकिन उत्तराखण्ड में कांग्रेस में उपजी गुटबाजी को खत्म नही किया जा सकता। गुटबाजी का दंश कांग्रेस की सत्याग्रह यात्रा मे तो खुलकर सामने आ गया है और यशपाल आर्या की मुहिम को उनके विरोधी धक्का लगाने में जुट गए हैं जिससे कांग्रेस कमजोर ििस्थ्त में आ गई है । भले ही कांग्रेसी नेता सत्याग्रह यात्रा को सफल बता रहे हो लेकिन दबी जुबान से कांग्रेस के ऐसे नेता जो जमीनी पकड़ रखते हैं इसे फ्लाॅप साबित कर रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस की सत्याग्रह यात्रा गुटबाजी की भेंट चढ़ गई है। अब देखना यह होगा कि चैथे चरण की शरू होने वाली 31 मई की यात्रा अब गढ़वाल में अपना क्या रंग दिखाती है।