``राज योग`` की तैयारी में हैं बाबा रामदेव
सोनिया की राह पर चल पडे हैं राम किशन यादव
543 सीट पर उतारेंगे बाबा अपने प्रत्याशी
राहुल से गुपचुप भेंट नहीं चढ सकी परवान
(लिमटी खरे)
ईसा से दो शताब्दी पूर्व पतांजली नामक ऋषि द्वारा सूत्रबद्ध किए गए योग ने अब समूचे विश्व में अपना एक अलग स्थान बना लिया है। आज योग एक अच्छा खासा उद्योग और धन्धा बन गया है। ``स्टेटस सिंबाल`` बने योग के शिविरों में आम आदमी का प्रवेश बहुत आसानी के साथ नहीं हो सकता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। प्राचीन ऋषि पतांजली के योग को नए क्लेवर में प्रस्तुत करने वाले स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने योग के माध्यम से कमाई अकूत दौलत को अब राजनीतिक बियाबान में झोंकने का मन बनाया है। राम किशन यादव से बाबा रामदेव बने आने वाले लोकसभा चुनावों में सभी 543 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर चुके हैं। बाबा रामदेव की राजनीति में आने की उत्कंठ इच्छा पिछले लोकसभा चुनावों में ही नज़र आने लगी थी, जब उन्होंने विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के भाजपा के चुनावी नारे को अपना सुर दिया था, और उसके बाद भाजपा की तरह उन्होंने भी इस मुद्दे से किनारा कर लिया था। अब जबकि राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार पुन: काले धन के मुद्दे को छुआ है, तब फिर बाबा ने इस मामले में हुंकार लगा दी है।
स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह सबसे पहले योग के माध्यम से लोगों को जोडा, फिर न्यूज चेनल्स और दीगर धार्मिक चेनल्स पर अपना अधिकार जमाना आरम्भ किया। सुबह सवेरे आंख खुलते ही स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के दर्शन आम हो गए हैं। कहा जाता है कि बार बार अगर आप किसी को देखें तो उसकी आदत सी पड जाती है। घर में पालतू जानवर ही परिवार का हिस्सा हो जाते हैं तो फिर औरों की कौन कहे।
इसके उपरान्त स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने पतांजलि योग पीठ के साथ ही साथ भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना की। यह संस्था किन उद्देश्यों के लिए बनाई गई थी, यह बात तो सिर्फ और सिर्फ बाबा रामदेव ही जानते हैं। इस संस्था से युवाओं को जोडने का अभियान छेडा गया। इसके बाद पिछले साल के आरम्भ में देश भर के हर पेशे के लोगों को अलग अलग स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने हरिद्वार बुलवा भेजा। इनके साथ बाबा ने अलग अलग गुफ्तगूं की। मामला तब भी किसी को समझ में नहीं आया कि बाबा को आखिर क्या हो गया कि उन्होंने वकील, डॉक्टर यहां तक कि मीडिया को भी पतांजली में न्योत दिया।
धीरे धीरे मामला खुला और फिर स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के मन में उछाल मारते राजनीति के कीडे के बारे में खुलासा हुआ। अब बाबा देश के हर जिले में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सात से दस लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ रहे हैं। बाबा शायद नहीं जानते कि अनेक जिलों में तो सभी बडे राजनीतिक दलों के सदसयों की संख्या ही इतनी नहीं है। बाबा के अन्दर अहंकार कूट कूट कर भर चुका है, इस बात में कोई सन्देह नहीं है। तभी तो बाबा हुंकार भर रहे हैं कि मतदान नहीं करने वाले लोग उनके समर्थन में आएंगे। बकौल बाबा एसे लोग उन्हें ही वोट देने की बाट जोह रहे हैं। बाबा का कहना है कि वे घर से अकेले ही निकले थे, और आत्मबल से आगे बढते गए। आज करोडों लोग बाबा के साथ होने का दावा वे स्वयं कर रहे हैं। बाबा यह भूल जाते हैं कि राष्ट्रपिता की उपाधि पाने वाले मोहनदास करमचन्द गांधी भी मां के पेट से अकेले ही पैदा हुए थे, उन्होंने भी आत्मबल से करोडों लोगों को अपने साथ जोडा। बाबा को समझना चाहिए कि एयर कण्डीशन्ड आश्रम, वाहन और योगस्थलों के बल पर वे भारत और लोगों के दिलों पर राज नहीं कर सकते। लोगों के दिलों में आज भी आधी धोती वाला महात्मा बसा हुआ है, क्योंकि उस महात्मा के अन्दर कोई निहित स्वार्थ नहीं था। सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता की चन्द पंक्तियों का उल्लेख यहां लाजिमी होगा -``जब नाश मनुज का छाता है! पहले विवेक मर जाता है!!``
स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव यह अवश्य कह रहे हैं कि वे राजनीति से गन्दगी साफ करना चाह रहे हैं देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाह रहे हैं। इसके अलावा बाबा का कहना है कि वे विदेश में जमा करीब 258 लाख करोड रूपए और देश ें जमा करीब 60 लाख करोड रूपए के काले धन को देश के विकास में लगाएंगे। बाबा के पास इतने सटीक आंकडे हैं तो वे यह भी जानते होंगे कि किस ``जनसेवक`` का कितना धन कहां जमा है। अगर वाकई बाबा देश का भला करना चाह रहे हैं तो उन्हें अपने अन्दर यह माद्दा भी पैदा करना होगा कि वे सीबीआई, आयकर विभाग, और सम्बंधित विभाग के पास जाकर इस काले धन के प्रमाण दें और उसे वापस लाने के मार्ग प्रशस्त करें और अगर बाबा महज पब्लिसिटी स्टंट के लिए यह कह रहे हैं, तो उनकी निन्दा भी की जानी चाहिए।
आज यक्ष प्रश्न तो यह खडा हुआ है कि आखिर बाबा रामदेव देश भर में 543 प्रत्याशी खोजेंगे कैसे। क्या होगा बाबा के चयन का पैमाना। बाबा रामदेव के सामने सबसे बडी चुनौति तो यह होगी कि प्रत्याशी चयन में वे किसे चुनेंगे, और जिसे चुनेंगे क्या भरोसा है कि वह बाबा के इस कथित अभियान के मापदण्डों पर खरा उतरे। बाबा को यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके पहले जय गुरूदेव का गगनभेदी घोष करने वाले उनके समर्थकों ने टाट फट्टी पहनकर दूरदशीZ पार्टी के बेनर तले चुनाव लडा था, कमोबेश यही कमद महषिZ महेश योगी की पार्टी ने उठाया था। दोनों ही सन्तों की पार्टियों का क्या हुआ यह बात किसी से छिपी नहीं है। इनके राजनीति में उतरने के कदम को लोगों ने आत्मघाती करार दिया था, और समय के साथ वही हकीकत भी सामने आई।
बाबा के मन में क्या है यह बात तो वे ही बेहतर जानते होंगे। बाबा का कहना है कि वे न तो चुनाव लडेंगे और न ही कोई पद ही स्वीकार करेंगे। लगता है बाबा ने देश की राजनैतिक फिजां का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है। इतालवी मूल की सोनिया गांधी कल तक विदेशी महिला थी, पर आज मीडिया ने ही उन्हें त्याग की प्रतिमूर्ति बनाकर खडा कर दिया है। बाबा को यह बात समझ में आ गई है, इसलिए वे चुनाव न लडकर, पद न लेकर सिर्फ रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में ही रखना चाह रहे हैं। संस्कृत की एक उक्ति का प्रयोग यहां प्रासंगिक होगा -``न दिवा स्पनं कुर्यात`` अर्थात दिन में सपने नहीं देखना चाहिए। बाबा की यह अभिलाषा भी दिन में सपने देखने की ही तरह है। सम्भवत: उनके समर्थकों और रणनीतिकारों ने बाबा को यह समझा दिया हो कि योग के माध्यम से आप घरों घर पहुंच चुके हैं, अत: चुनाव में आपकी एक अपील ही आपके प्रत्याशी को जिता देगी। वस्तुत: जमीनी हकीकत इससे बहुत उलट होती है, जिससे बाबा को अंधेरे मेें ही रखा जा रहा है।
उनका कहना है कि उनके प्रत्याशी किस पार्टी के बेनर तले चुनाव लडेंगे इसकी घोषणा तीन साल बाद अर्थात 2013 में की जाएगी। 2014 में अगले लोकसभा चुनाव होने हैं। स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव का यह कथन उनके अन्दर के परिपक्व राजनेता के गुण उजागर करने के लिए काफी कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि बाबा अभी तीन साल तक सभी राजनैतिक दलों के साथ समझौता (बारगेनिंग) के द्वार खुले रखना चाह रहे हैं। इसके अलावा कुछ माह पूर्व बाबा ने कांग्रेस की नज़र में देश के भावी प्रधानमन्त्री राहुल गांधी के साथ भी एक गुप्त बैठक की थी। हो सकता है राहुल गांधी को बाबा की बातें और शर्तें पसन्द न आईं हों और दोनों के बीच मामला आगे न बढ सका हो।
स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने अब अपनी निर्धारित रणनीति के तहत ``जनसेवकों`` पर प्रत्यक्ष और परोक्ष कटाक्ष भी आरम्भ कर दिए हैं। लखनउ में बहुजन समाज पार्टी के 25 साल पूरे होने पर हुए कार्यक्रम में बसपा सुप्रीमो मायावती को हजार रूपए के नोटों की माला पहनाने के मामले में भी उन्होंने टिप्पणी कर डाली। बाबा का कहना है कि देश की दौलत से गरीबों के उत्थान के बजाए गले में नोटों की माला पहनने वालों को उनका यह अभियान रास नहीं आएगा। इसके पहले यूपी की सीएम मायावती ने बाबा पर तीखा प्रहार करते हुए कहा था कि एसे बाबाओं से बचकर रहना चाहिए जो कसरत के बहाने अपनी दुकानदारी चलाते हैं और लोगों को लूटते हैं। मायावती के इस प्रहार से बाबा बुरी तरह तिलमिला गए, बाबा को यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति में आरोप प्रत्यारोप की कोई वर्जना नहीं होती है। आने वाले समय में अगर बाबा ने अपना यही क्रम और तेवर रखे तो उनके कपडे उतारने में राजनेता चूकने वाले नहीं।
वैसे बाबा के कदमतालों को देखकर काफी पहले ही सन्देह होने लगा था कि बाबा की मंशा योग के बजाए राजनीति करने और कराने में ज्यादा है। स्वाईन फ्लू के बारे में बाबा ने कहा कि लंग यानी फेफडे में पावर हो तो यह बीमारी क्या बिगाड लेगी। तब भी बाबा ने मुफ्त में इलाज नहीं किया। बाबा पर पूर्व में औषधियों में मानव अंगों के प्रयोग होने के आरोप लगे। इसके बाद स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने आदि शंक्राचार्य के सिद्धान्त पर ही उंगली उठा दी। बाद में मीडिया पर लानत मलानत भेज उन्होंने सन्त समाज को सन्तुष्ट किया। इसके बाद भी देश भर में बाबा के पुतले जलाए गए। यक्ष प्रश्न तो आज भी यही खडा है कि अगर बाबा ने आदि शंकराचार्य के ``ब्रम्ह सत्य, जगत मिथ्या`` नामक वेदान्त के सिद्धान्त को चुनौती देकर यह नहीं कहा था कि इस सिद्धान्त दर्शन ने कबाडा कर दिया है, इसे लोग भाग्यवादी बन गए हैं, तो फिर अखिल भारतीय अखाडा परिषद और शारदापीठ के शंकराचार्य राजरोश्वरानन्द के समक्ष हरिद्वार में पेश होकर मौखिक और लिखित माफी क्यों मांगी थी। हम तो बाबा रामदेव से बस इतना जानना चाहते हैं कि क्या योग में एसा कोई आसन है, जिससे वाणी पर नियन्त्रण किया जा सके। अगर है तो उसे बाबा रामदेव और विदेश राज्यमन्त्री शशि थुरूर को अवश्य ही करना चाहिए, ताकि वे अपनी जुबान पर लगाम लगाकर रख सकें।
बाबा ने एक बार फिर मीडिया की सुर्खियां बटोरने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जब समलेंगिगता को मान्यता दी गई तो इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बात कही थी। आज इतना समय बीत जाने के बाद भी बाबा का यह कौल कहां गायब हो गया है, इस बारे में बाबा ही बेहतर जानते होंगे। मध्य प्रदेश के ग्वालियर के बाबा शिवराज गिरी ने बाबा रामदेव को चुनौति दी थी कि बाबा यह साबित कर दिखाएं कि योग के माध्यम से कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों का इलाज सम्भव है। पिछले कुंभ के दौरान इलहाबाद में बाबा गिरी ने बाबा को आडे हाथों लेते हुए कहा था कि धर्म और योग के प्रचार का स्वागत किया जाना चाहिए, किन्तु इसका उत्पादों की तरह व्यापार नहीं किया जाना चाहिए। शिवराज गिरी ने बाबा रामदेव पर आरोप लगाते हुए कहा था कि बाबा ने योग को व्यापार बना दिया है, जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।
बहरहाल मन में देश पर राज करने का सपना संजोने वाले बाबा रामदेव ने पाखण्डी बाबाओं को भी आडे हाथों लिया है। बाबा का कहना है कि वे खुद पाखण्डी बाबाओं के खिलाफ रणनीति बनाकर उनका बहिष्कार करने का काम करेंगे। लोग अभी भूले नहीं हैं कि बाबा ने किस तरह जगतगुरू शंक्राचार्य के बारे में पहले अनर्गल टिप्पणी की थी, और फिर गुपचुप तरीके से शंक्राचार्य से माफी भी मांगी थी। स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने कहा कि देश के सभी सन्तो को अपनी तथा अपनी संस्था की समूची धन संपत्ति के ब्योरे को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि किसी तरह का किन्तु और परन्तु न रह जाए। बकौल राम किशन यादव वे खुद इसका पालन कर रहे हैं, उनकी संस्था को मिलने वाले दान व उसके खर्च का पूरा हिसाब सार्वजनिक किया जाता है। बाबा यह बताना अलबत्ता भूल ही गए कि उनकी संस्था को मिलने वाले दान, उनकी औषधियों से होने वाली कमाई, योग शिविरों से होने वाली आवक और इस सबके खर्च को उन्होने कब और कहां सार्वजनिक किया है। आज भी उनके भोले भाले अनुयायी अपने बाबा की संपत्ति के विवरण को जानने के लिए आतुर हैं। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि बाबा की मिल्कियत हजारों करोड रूपयों में है, वे चाहें तो राजनीति में आए बिना और विदेशों से काले धन को वापस लाने के बजाए उनके पास के ही धन को अगर सत्कर्म में खर्च करना आरम्भ कर दें तो भारत देश में गरीबों को तो कम से कम राहत मिल ही जाएगी।