कर्जे में सांसे ले रहा है दुनिया का चैधरी
(लिमटी खरे)
सुपर पावर होने के बाद भी दुनिया के चैधरी अमेरिका पर कर्ज इतना अधिक है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। अमेरिका के हर नागरिक पर 43 हजार डालर से अधिक का कर्ज बकाया है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलेण्ड आदि के नागरिक भी कर्जे से लदे फदे हैं। भारत का कर्ज के मामले में दुनिया भर के देशों में 28 वां स्थान है। भारत के हर नागरिक पर 200 डालर का कर्ज है। सत्ता की मलाई चखने वाले लोग अपनी सुख सुविधा के लिए आम जनता के खून पसीने की कमाई को उड़ाने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं। साथ ही जनता के करों से संग्रहित राजस्व को भी दोनों हाथों से बटोरकर दुनिया के अनेक देशों के बैंक में जमा करवाने वाले ये नेता काले धन की देश वापसी पर मौन ही साध लेते हैं। सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले बाबा रामदेव और अण्णा हजारे पर सरकार का दमनकारी डंडा चलता है, पर कलमाड़ी, आदिमत्थू राजा, मारन जैसे आरोपियों को सरकार गोद में बिठाकर रखती है।
अमेरिका का नाम आते ही लोगों के मानस पटल पर सबसे अधिक विकसित, धनाड्य, साधन संपन्न, आर्थिक और राजनैतिक सुपर पावर होने वाले देश के रूप में इसकी छवि उभरती है। दुनिया के किसी भी देश में जाकर ‘घर में घुसकर‘ दादागिरी करने, शासनाध्यक्षों को नेस्तनाबूत करने में माहिर अमेरिका की मुखालफत करने वाले देशों पर चढ़ाई कर न जाने कितने निर्दोष लोगों की बली चढ़ा चुका है अमेरिका।
हर मोर्च पर मजबूती के साथ अपना पक्ष रखने वाले अमेरिका के सामने इस समय सबसे बड़ा संकट उस पर दिनों दिन बढ़ने वाला कर्ज है। दुनिया के सबसे ज्यादा अमीर और वैश्विक महाशक्ति होने के बावजूद भी अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा कर्जदार देश है। आठ दशमलव नौ फीसदी की बेरोजगारी दल झेल रहे इस देश के पास कर्ज उतारने के लिए मजबूत युवा शक्ति भी नहीं है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया के टाप टेन कर्जदार देशों में आठ पूरी तरह विकसित यूरोपीय देश ही हैं।
इस फेहरिस्त में सबसे पहले महाशक्ति अमेरिका का नाम आता है। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार है। आर्थिक सुपर पावर होने के बाद भी कर्जदारों की सूची में इसका पहला स्थान है। विश्व बैंक के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो अमेरिका के हर नागरिक पर औसतन 43 हजार डालर अर्थात लगभग बाईस लाख रूपए का कर्ज है। इस महाशक्ति पर दुनिया का 14.939 खरब डालर बकाया है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्व बैंक कितना रईस है और उससे कर्ज लेकर सांसे लेने वाला सुपर पावर अमेरिका कितना निरीह।
सालों साल हिन्दुस्तान पर राज करने वाले ब्रिटेन भी कम नहीं है। कहा जाता है कि गोरे ब्रितानियों के राज में कभी सूरज नहीं डूबा करता था। आधी से अधिक दुनिया मंे उपनिवेश चलाने वाले ग्रेट ब्रिटेन का कर्जदारों की सूची में दूसरा स्थान है। वर्तमान में कर्ज के चलते यहां की सरकार को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना पड़ा है। एक अनुमान के अनुसार हर गोरे ब्रितानी पर एक लाख 47 हजार डालर का कर्ज है। ब्रिटेन पर दुनिया भर का नौ खरब डालर बकाया है।
तानाशाहों के सिरमोर रहे हिटलर की तानाशाही झेल चुका जर्मनी आज भी कर्जे में ही बमुश्किल सांसे ले पा रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध में जबर्दस्त तरीके से आर्थिक तौर पर टूट चुके जर्मनी पर कर्ज इतना है कि उसे इस सूची में तीसरा स्थान मिलता है। द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत जब देश आर्थिक तौर पर रसातल में चला गया तब से अब तक यह उससे नहीं उबर सका है। इस देश पर पांच लाख बीस हजार खरब का बकाया है। जर्मनी के हर नागरिक पर 63 हजार डालर का कर्ज है।
फ्रांस का नंबर कर्ज की दृष्टि से चैथा है। यूरोपीय देशों में फ्रांस भी जबर्दस्त कर्ज में डूबा हुआ है। इस देश पर पांच लाख दो हजार डालर का कर्ज आज भी मौजूद है। इस लिहाज से हर एक फ्रांसीसी पर अस्सी हजार डालर का कर्ज बकाया है। यूरोप के ही एक अन्य छोटे से देश नीदरलेण्ड का स्थान कर्ज के मामले में पांचवें नंबर पर है। इस छोटे से देश पर 3.73 खरब डालर का कर्ज बकाया है। नीदर लेण्ड का हर नागरिक इस समय आकण्ठ कर्ज में डूबा है हर नागरिक पर 2 लाख 26 हजार 503 डालर का कर्ज है।
रही बात भारत गणराज्य की तो हिन्दुस्तान पर कर्ज की मार है पर आबादी के आधिक्य से हर नागरिक पर कर्ज काफी कम हो जाता है। कर्जदार देशों की फेहरिस्त में भारत का नंबर 28 वां है। भारत पर इस समय 295 अरब 80 करोड़ डालर का कर्ज है। कमोबेश हर भारतीय के सर पर इस समय 200 डालर के लगभग अर्थात दस हजार रूपए करीब का कर्ज है। चूंकि भारत की आबादी एक अरब 21 करोड़ है अतः कर्ज इसमें विभक्त होकर काफी कम प्रतीत होता है।
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस द्वारा भी इस कर्ज को उतारने का कोई प्रयास नहीं किया है। कहा जा रहा है कि अगर केंद्र सरकार द्वारा स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव और समाज सेवी अण्णा हजारे की बात को मान लिया जाए और लोकपाल बिल पर सहमति बनाकर विदेशों में जमा काला धन भारत वापस लाया जाए तो हर भारतीय कर्ज से मुक्त होकर उन्मुक्त हवा में सांसे ले सकेगा। विडम्बना है कि देश के नीति निर्धारक कर्णधार एसा करना ही नहीं चाह रहे हैं, क्योंकि विदेशों में जमा काले धन में उनकी हिस्सेदारी सबसे अधिक जो है।