शनिवार, 7 सितंबर 2013

नये राज्य से खुलेंगे विकास के द्वार

नये राज्य से खुलेंगे विकास के द्वार

विदर्भ के निर्माण की मांग के समर्थन में आगे आये महाकौशल का प्रस्तावित संभाग

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। आंध्रप्रदेश में पृथक तेलंगाना की मांग पूरी होने के साथ ही देश भर में नये प्रदेशों के निर्माण की मांग सम्बंधी जो आंधी चली है शायद वह इस अभागे और पिछड़े क्षेत्र के विकास में सहायक साबित हो सकती है। ज्ञातव्य है कि नये राज्यों की मांग के सिलसिले में महाराष्ट्र की उत्तरी सीमा में फैले लगभग एक दर्जन जिलों को मिलाकर नये विदर्भ प्रांत के गठन की मांग भी शामिल है।
यह सर्वविदित है कि प्रस्तावत विदर्भ राज्य की सीमा मध्यप्रदेश के जबलपुर संभाग के उन तीनों जिलों सिवनी, छिंदवाड़ा और बालाघाट को छूती हैं जिन्हें मिलाकर नये संभाग के गठन की घोषणा प्रदेश के मुखिया द्वारा पांच साल पहले की गयी थी किंतु इन पांच सालों में वह घोषणा पांच कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई।
नये प्रदेश के गठन और उसमें तीनों जिलों के शामिल होने की बात न तो कोरी कल्पना है, न असंभव और न ही मजाक। आधी सदी पहले तक सिवनी छिंदवाड़ा और बालाघाट जिले सी पी एण्ड बरार नामक उस ही प्रदेश के अंग थे जिसकी राजधानी नागपुर थी। राज्यों के पुनर्गठन के समय 1957 में उस प्रदेश के दो भाग कर सी पी अर्थात मध्यप्रांत को नवगठित मध्यप्रदेश में और बरार अर्थात विदर्भ को नये महाराष्ट्र राज्य में शामिल कर दिया गया।
मध्यप्रांत के साथ ही मध्यप्रदेश के वर्तमान तीन और तत्कालीन दो जिले बालाघाट एवं छिंदवाड़ा भी नये मध्यप्रदेश का हिस्सा बन गय थे। स्मरणीय है कि उस समय तक सिवनी जिले का अस्तित्व नहीं था बल्कि यह छिंदवाड़ा जिले की एक तहसील मात्र थी। नवगठित प्रदेश की राजधानी भोपाल है जिसकी दूरी बालाघाट से 500 कि.मी. सिवनी से 400 कि.मी. और और छिंदवाड़ा से 325 कि.मी. है।
इसके विपरीत पुराने प्रदेश की राजधानी और प्रस्तावित विदर्भ प्रदेश की राजधानी नागपुर की उपरोक्त तीनों ही जिलों से दूरी सवा सौ कि.मी. से अधिक नहीं है। यह भी सभी लोग भलीभांति जानते हैं कि इन तीनों ही जिलों के लोगों का व्यावसायिक, शैक्षणिक, सामाजिक और विशेषकर चिकित्सकीय सम्बंध अभी भी सबसे अधिक नागपुर से ही है। बालाघाट जिले का अधिकांश भूभाग, सिवनी जिले का दक्षिणी सीमांत क्षेत्र और छिंदवाड़ा जिले का एक तिहाई भाग महाराष्ट्र खासकर विदर्भ की संस्कृति से अत्याधिक प्रभावित है जहां की बोलचाल में भी उस संस्कृति का प्रभाव साफ नजर आता है।

ऐसी स्थिति में यदि केंद्र सरकार नये प्रदेशों के गठन पर नये सिरे से विचार करना प्रारंभ करती है तो प्रस्तावित संभाग के तीनों जिलों के राजनेताओं को इस पिछड़े क्षेत्र के उत्थान के लिये विदर्भ प्रदेश में सम्मिलित होने के लिये सयंुक्त रूप से प्रयास करना चाहिये। यह सर्वविदित है कि राजधानी के निकट होने का लाभ राजनेताओं और आम नागरिकों को मिलता है। हमेशा राजधानी के निकट वाले क्षेत्रों के विकास को पंख लग जाते हैं जबकि दूरस्थ क्षेत्र विकास में हमेशा पिछड़े रहते है। जैसा कि अभी प्रस्तावित संभाग के तीनों जिलों के विकास के साथ हो रहा है।

मिड डे मील में जलेबी पोहा!

मिड डे मील में जलेबी पोहा!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। नेताजी सुभाष स्कूल में शायद मिड डे मील के स्तर में जबर्दस्त सुधार आ चुका है। लंबे समय से कोतवाली के सामने स्थित इस शाला में मिड डे मील में जलेबी पोहा परोसा जा रहा है। जी हां, यह सच है जलेबी पोहा बच्चों के लिए नहीं, वरन शिक्षकों के नाश्ते के लिए परोसा जा रहा है।
नेताजी सुभाष स्कूल के एक शिक्षक ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि नेताजी सुभाष स्कूल में बच्चों को दिया जाने वाला मध्यान्ह भोजन पूरी तरह गुणवत्ता विहीन ही है। इसे प्रदाय करने वाले ठेकेदार ने एक बेहतरीन तरीका इजाद किया है शिक्षकों को साधने का।
उक्त शिक्षक की बात पर यदि यकीन किया जाए तो 15 अगस्त को शाला में परोसे गये मध्यान्ह भोजन में सब्जी बुरी तरह सडांध मार रही थी। उक्त ठेकेदार द्वारा शिक्षकों को रोजाना गरमा गरम जलेबी और पोहा का नाश्ता करवाया जाता है। जिसके एवज में शाला में उपस्थिति से ज्यादा तादाद में ठेकेदार के पास उपस्थिति दर्शाई जाती है।

बच्चों ने भी मध्यान्ह भोजन की शिकायत करते हुए कहा कि भोजन की गुणवत्ता बहुत ही खराब है। बावजूद इसके न तो जिला पंचायत की ओर से ही कोई शाला में जाकर मध्यान्ह भोजन की गुणवत्ता का निरीक्षण कर रहा है और न ही महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से ही संज्ञान लिया जा रहा है।

सफाई देने के चक्कर में कटवा दी हरी भरी मोटी डगाल

सफाई देने के चक्कर में कटवा दी हरी भरी मोटी डगाल

वाहन का कांच कैसे टूटा कोई पूछे इसके लिए गढ़ ली मनगढंत कहानी!

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। बारापत्थर क्षेत्र में रहने वाले भाजपा के एक जनसेवक ने रात के अंधेरे में कुत्तों के शोर से निपटने अपनी ही महिंद्रा कंपनी की चार पहिया वाहन का पिछला कांच जाने अनजाने में तोड़ने के उपरांत अब उन्होनंे एक नया कारनामा कर डाला है। किराए के आवास में निवासरत भाजपा के उक्त जनसेवक ने आवास की परिधि में लगे गुलमोहर के झाड़ की एक मोटी शाखा को कटवा दिया।
ज्ञातव्य है कि गत दिवस बारापत्थर क्षेत्र में निवासरत भारतीय जनता पार्टी के एक जनसेवक की तंद्रा रात को उस वक्त टूटी जब कुत्तों के झुण्ड ने आपस में कर्कश रूदन आरंभ किया। उक्त जनसेवक ने आव देखा न ताव और अपने अनुचर के साथ बाहर निकलकर इन कुत्तों पर अपने आंगन में पड़े पत्थर ताबड़तोड़ बरसाना आरंभ कर दिया।
भाजपा के उक्त जनसेवक संभवतः गहरी निंद्रा में रहे होंगे, और विधानसभा के पूर्व वे टिकिट को पक्की करने का सपना ही देख रहे होंगे, उनकी निंद्रा टूटने पर उनके गुस्से का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होनें कुत्तों पर ताबड़तोड़ पत्थर बरसाने आरंभ कर दिए थे। इसी में से एक पत्थर उन्होंने महिंद्रा कंपनी के अपने ही चौपहिया वाहन पर दे मारा और चूंकि उस पत्थर में उक्त भाजपा के जनसेवक के गुस्से का समावेश था, इसलिए उसकी तीव्रता बेहद तेज रही।
इस पत्थर से उनके महिंद्रा कंपनी के चौपहिया वाहन का पीछे का कांच चकनाचूर हो गया। कुत्ते भाग गए, तमाशा खत्म हुआ, तब उक्त जनसेवक को भान हुआ कि उन्होंने अपने ही वाहन का शीशा तोड़ दिया है। अब उन्हें यह चिंता सताने लगी कि अगर सुबह किसी ने देख लिया तो क्या जवाब दिया जाएगा? इसी उधेड़बुन में जैसे तैसे रात कटी, और सुबह सवेरे आठ बजे ही उन्होंने अपने वाहन का शीशा बदलने उसे रवाना कर दिया।
दैनिक हिन्द गजट ने सोमवार 02 सितम्बर को कुत्तों से परेशान जनसेवक ने नींद में तोड़ा अपने ही वाहन का कांचशीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इस समाचार में यद्यपि किसी का नाम नहीं था फिर भी चोर की दाढ़ी मेें तिनका कहावत को चरितार्थ करते हुए उक्त जनसेवक ने कई स्थान पर समाचार पत्र लेकर, जा जा कर न जाने कितने भाजपाईयों को इसलिए कोसा क्योंकि उन्हें लग रहा था कि उनसे रश्क रखने वाले भाजपाईयों ने ही यह खबर लीक की है।
वहीं, कुछ भाजपाईयों ने मजे लेने की गरज से उक्त जनसेवक से बार बार उनके वाहन के बारे में पूछताछ की गई। बताया जाता है कि पूछताछ से उक्त जनसेवक काफी परेशान हो गए। इसी बीच अपने कुछ कांग्रेसी मित्रों से उन्होंने इस परेशानी की चर्चा की तो, कांग्रेस के कथित थिंक टैंक्स‘, ने उन्हें मशविरा दिया कि वे जहां निवासरत हैं वहां आसपास अगर कोई वृक्ष हो तो उसकी टहनी तोड़ कर नीचे डाल दो और कोई अगर पूछे तो कह देना कि यह टहनी गिरने से उनके वाहन का कांच टूटा है।
बताते हैं कि भाजपा के उक्त जनसेवक को यह बात जंच गई। उक्त जनसेवक जो किराए के मकान में निवासरत हैं ने अपने मकान मालिक और वन विभाग या नगर पालिका की इजाजत के बिना ही उस मकान में लगे गुलमोहर के बहुत पुराने वृक्ष की एक मोटी डगाल को निर्मम तरीके से कटवा डाला। वह डगाल धड़ाम से नीचे आ गई।
इसके बाद भाजपा के उक्त जनसेवक के चेहरे पर मुस्कान तैर गई, कि अब किसी ने पूछा तो कह दिया जाएगा कि यह डगाल टूटी और इसी से उनकी महिंद्रा कंपनी की गाड़ी का पीछे का कांच टूटा है। पर डगाल काटने की स्थिति तक पहुंचते पहुंचते लोग उस घटना को भूल गए और किसी ने भी भाजपा के उक्त जनसेवक से यह नहीं पूछा कि यह डगाल कैसे गिरी?

नए पुलिस अधीक्षक से अपेक्षाएं

नए पुलिस अधीक्षक से अपेक्षाएं

(शरद खरे)

सिवनी जिला शांति का टापू माना जाता रहा है। आज के समय में सिवनी शहर में आपराधिक गतिविधियां चरम पर हैं। जुंआ, सट्टा, वेश्यावृति, मारपीट, राहजनी, डकैती, फिरौती, हत्या, लूट आदि जैसी वारदातों का सिवनी में तेजी से इजाफा हुआ है। यह सब कुछ पिछले डेढ़ दो दशकों में तेजी से बढ़ा है।
इस बार तो हद ही हो गई 11 दिनों के अंतराल में ही दो निर्मम हत्याएं। जिला मुख्यालय दहल गया है। 26 जून को जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के समीप सेना के एक जवान की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई, वह भी दिन दहाड़े। यह घटना जिले में आपराधिक तत्वों के पैर जमाने और पुलिस की ढ़ीली पकड़ को साबित करने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है।
बीते माह शुक्रवार और शनिवार की मध्य रात्रि में ललमटिया क्षेत्र में भारतीय जनता युवा मोर्चा के नगर मंत्री प्रशांत अग्रवाल उर्फ मुन्ना खैरी का शव जिस हालत में मिला वह वास्तव में दर्दनाक, भयावह, डरा देने वाला माना जा सकता है। इससे साबित हो जाता है कि शहर में पुलिस कितनी मुस्तैदी से गश्त कर रही है।
एक समय था जब सिवनी में घटे अपराध इतिहास बन जाते थे। प्रौढ़ हो रही पीढ़ी आज भी सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में हुए धूमा डकैती कांड़ जिसमे अमर सिंह और सज्जाद को फांसी की सजा हुई थी को याद करता है। इसके शहर में पुराने एलआईबी कार्यालय के पास, अमर टाकीज के समीप हुए कत्ल भी सालों साल लोगों की जुबान पर रहे।
सिवनी जिला ऐसा कतई नहीं था जैसा वर्तमान परिवेश में है। सिवनी में लोग हाथ में लट्ठ लेकर भी नहीं चलते दिखे, पर अब तो सरेराह जनसेवक होने का दावा करने वाले कमर में रिवाल्वर टांगकर घूम रहे हैं। यह कौन सी संस्कृति का आगाज हो रहा है, इनका साथ देने वाले भी सिवनी को बिहार बनाने पर आमदा प्रतीत हो रहे हैं।
सिवनी में बंदूक संस्कृति का आगाज शुभ लक्षण कतई नहीं माना जा सकता है। बीते सालों में सिवनी में गोलीबारी की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है, जो निंदनीय है। कालेज गोली काण्ड, के उपरांत नगर पालिका के सामने ही बरात की घोड़ी पर सवार दूल्हे को ही गोली मार दी जाती है, वह भी शहर कोतवाली से चंद कदम दूरी पर!
क्या कहा जाएगा इसे! निश्चित तौर पर इसके लिए दिशाहीन और स्वार्थपरक राजनीति ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। राजनेताओं संरक्षण में असमाजिक तत्व पूरी तरह फल फूल रहे हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। मीडिया जैसे परोपकार और जनसेवा के क्षेत्र में भी आपराधिक तत्वों की आमद एक दुखद संकेत से कम नहीं है।
एक वक्त था, जब गांव में ‘‘जागते रहो‘‘ की आवाज लगाता चौकीदार लालटेन और हाथ में लकड़ी लिए आवाज करता घूमता था। उसकी आवाज में ही इतना दम होता था कि सब चैन से सोया करते थे। आज लोगों का अमन चैन गायब है। शहर की रखवाली के लिए कुछ नेपाली लोग रात भर जागा करते थे। अब उनके दीदार भी मुश्किल ही हैं।
पुलिस के वाहनों से चौकसी की जाती थी। अब तो पुलिस भी साधन संपन्न हो चुकी है। पुलिस के पास कल तक चीता कललाने वाले आज के ब्रेकर मोबाईल हैं। हर क्षेत्र में ये मुस्तैद हैं। बावजूद इसके शहर में अमन चैन कायम नहीं है। लोगों को सुरक्षा देने की जवाबदेही निश्चित तौर पर पुलिस की है।
पुलिस पर नजर रखने का काम कहीं ना कहीं सांसद और विधायकों का है। विडम्बना यह है कि जब सांसद विधायक ही अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने लगें तो आखिर जनता कहां जाएगी? सांसद विधायक ही जनता की सेवा के बजाए निहित स्वार्थों को प्राथमिकता देने लगे तो इस तरह की अराजकता का वातावरण निर्मित होना लाजिमी ही है।
महज ग्यारह दिनों में देश के लिए अपनी जान लगा देने वाले सेना के एक जवान को सरेराह ढलती शाम को चाकुओं से गोद दिया जाता है। उसके उपरांत प्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के अनुषांगिक संगठन के नगर मंत्री को गोलियों से भून दिया जाता है, पर विपक्ष में बैठी कांग्रेस अपना मुंह सिले बैठी है। अगर यही बात दिल्ली या भोपाल में हुई होती तो प्रवक्ताओं का कभी ना थमने वाला विज्ञप्तियों का सिलसिला कबका आरंभ हो चुका होता।
सिवनी में चोरियों की बाढ़ सी आई हुई है। जिले में गौवंश की तस्करी जमकर चल रही है। पुलिस व्यवस्थाएं मुस्तैद होने के दावे किए जाते रहे हैं। विडम्बना है कि पुलिस की व्यवस्थाएं लचर स्तर तक पहुंच चुकी हैं। खवासा में जाम से कराहती रहती है जनता। सभी जानते हैं कि खवासा की जांच चौकियों में जिस तरह से अवैध वसूली होती है वही जाम का प्रमुख कारक है।
कम ही समय में मिथलेश शुक्ला की बिदाई सिवनी से हो गई है। नवागत पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी ने कमान संभाल ली है। वे काफी अनुभवी पुलिस अधिकारी हैं। राजगढ़ और विदिशा दो जिलों की कमान वे संभाल चुके हैं। सिवनी में अनुभवी पुलिस अधिीक्षक की तैनाती सालों बाद हुई है। इसके पहले तो सिवनी को प्रशिक्षण का अड्डा बना दिया गया था। सिवनी को संवेदनशील की श्रेणी में भी रखा जाता रहा है और अधिकारियों को पहले जिले के बतौर यहां पदस्थ कर दिया जाता है।
नवागत पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी से जनापेक्षा है कि सिवनी में लचर पुलिस तंत्र को कसकर ठीक किया जाए यह उनकी पहली प्राथमिकता हो। साथ ही साथ जिले में चोरी पर अंकुश लगना बेहद आवश्यक है। रही बात कानून व्यवस्था की तो सिवनी में अपराध का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है उस पर अंकुश इसलिए भी लगाना आवश्यक है क्योंकि जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, इन परिस्थितियों में जरायमपेशा लोगों का उपयोग सियासी दल करेंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यह पुलिस के लिए एक सरदर्द से कम साबित नहीं होने वाला है।