लाजपत ने लूट लिया
जनसंपर्क ------------------ 73
सच्चाई उजागर करने
वालों को प्रताड़ित कर रहा जनसंपर्क
(एस.के.भारद्वाज)
भोपाल (साई)।
म.प्र. विधानसभा में 13 मार्च को चालू बजट सत्र के दौरान जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने अपने से
संबद्ध विभाग संस्कृति ,जनसंपर्क,उच्चशिक्षा,तकनीकी शिक्षा एवं
कौशल विकास,धार्मिक
न्यास,एवं
धर्मस्व ,तकनीकी
शिक्षा एवं प्रशिक्षण विभाग से संबंधित विदेशों से सहायता प्राप्त परियोजनाओं के लिए मांग संख्या 26,32,44,47,51, को अनुदान
मांगों की चर्चा एवं मतदान के लिए सदन में रखा।
जनसंपर्क मंत्री
लक्ष्मीकान्त शर्मा ने जैसे ही मांगों का प्रस्ताव रखा तब पत्रकार दीर्घा
पत्रकारों से खचाखच भरी थी। जो अधिकांशतः दोपहर के बाद पत्रकारों की उपस्थिति के
मामले में सत्तापक्ष के समान बहुत कम रहती है। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा सदस्यों के
नाम पुकारे जाने पर सदस्यों ने अपने विचार
रखे ,विभागों
में खामिया,भ्रष्टाचार
,पनप रही
अराजकता,पारदर्शिता
की कमीं के बारे में मंत्री जो ध्यानाकर्षण कराया।
चर्चा के दौरान
निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा दादा ने कहा कि व्यावसायिक परीक्षा मण्डल द्वारा
पी.ई.टी.की परीक्षा कराने का क्या औचित्य है जब छात्रों का एडमीशन बिना परीक्षा के
कालेजों द्वारा दिये जा रहे है। मठ मंदिरों की हजारों एकड़ भूमि पर अतिक्रमणकारियों
ने कब्जा कर रखा है।
दूसरे अन्य सदस्यों
ने भी कुछ चिन्ताऐं जाहिर की जिनमें व्यापम द्वारा छात्रों से फीस के लिए मोटी रकम
बसूलना,छात्राओं
के शिक्षण बी.एच.सी.जैसे कोर्स के लिए 20 हजार रूपयें की मोटी रकम वसूलना ,पुराने महाविद्यालयों
की दुर्दशा ,अनेकों
महाविद्यालयों में कम्प्यूटरों की तो भरमार है, परन्तु नेट कनेकशन
नही है,छात्र,छात्राऐं बाजार में
जाते है परेशान होते है। आदि से संबंधित अपने विचार रखे। सदन के सदस्यों के भाषण
सुनने के बाद मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने बजट में विभागवार किये गये प्रावधानों
के बारे में बताना जैसे ही प्रारंम्भ किया मीडिया गैलरी में एक सन्नाटे के साथ
सुनने की उत्सुकता बढ़ गयी।
मंत्री
लक्ष्मीकान्त शर्मा ने अपनी मांगों के अनुरूप योजनाओं का पिटारा खोला। मंत्री
लक्ष्मीकान्त शर्मा के बजट भाषण के पूरे समय में कोई उल्लेखनीय घोषणा नहीं गयीं,अधिकांश भाषण के
अंश शुल्क पर आधारित शिक्षा,वर्ष 2020 में तकनीकी योग्य ,प्रशिक्षित युवाओं
की विभिन्न उद्योगों में जरूरत की संभावना पर आधारित रहा।
मंत्री
लक्ष्मीकान्त शर्मा ने जिला गुना के करीला स्थित सीता माता मंदिर पर एक शेड बनवाने
एवं मदिर पर होने वाले मेले को मेला प्राधिकरण में शामिल करने की घोषणा यह कहते
हुए की कि यह मेरा आस्था का स्थान है मैं यहॉ प्रति वर्ष जाता हूॅ। मंदिरों में
सेवारत पुजारियों को मानदेय दो गुना करने की भी घोषणा की परन्तु सदन में यह नही
बता पाये कि पहले कितना मानदेय था और अब कितना किया गया है। कालेजों की बेहताशाफीस
पर मंत्री जी ने कहा हम देखेंगें।
अराजकता, भ्रष्टाचार ,विभागों में
पारदर्शिता वाले मुद्दो पर मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने चुप्पी ही साधे रखी।
मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने अपने मूल विभाग जनसंपर्क के लिए 180 करोड़ से अधिक का
बजट प्रस्ताव रखा जिसमें कोई भी न उपलब्धी बतायी और न कोई आगामी कार्य योजना।
हॉ इस विभाग के
अधीन पत्रकारों के लिए पूर्व से निर्धारित एक लाख रूपये की बीमा योजना को 2 लाख रूपये करने की
घोषणा अवश्य कर दी है। जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने जनसंपर्क विभाग,संचालनालय में फैली
अराजकता,विज्ञापन
के नाम पर अपात्रों,गैरपत्रकारों,एवं भ्रष्टाचार के
तहत होन वाली निरन्तर लूट के मामले में एक टूटा-फूटा शब्द भी नहीं बोला। जैसा कि
आम समाज में चर्चा रहती है लोग कहते है कि पत्रकारों को सरक ार खूब प्रोत्साहित
करती है। खूब सुविधाऐं र्,आिर्थक सहयोग देती है,ये सब म.प्र. में सुनने में बहुत अच्छा लगता
है, सच्चाई
इसके बिल्कुल विपरीत है।
म.प्र. सरकार
द्वारा पत्रकारों को दी जाने वाली सुविधाओं में केवल चुनिन्दा लोगो को अधिमान्यता
प्रदान करती है। उस अधिमान्यता के आधार पर भारतीय रेल किराये की राशि में आधी राशि
की रियायत देती है। गैरअधिमान्यता पत्रकारों को सरकार के नौकरशाह पत्रकार ही
पत्रकारों कों पत्रकार ही नही मानते। आर्थिक मदद के नाम पर दिये जाने वाले
विज्ञापनों को शासन के हर विभाग का
प्रकाशन कराने का काम जनसंपर्क संचालनालय का है।
इन विज्ञापनों की
राशि का आधे से भी अधिक हिस्सा कार्पाेरेट हाउसनुमा स्थापित बड़े-बड़े अखबार,पत्रिकाऐं,न्यूज चौनल्स को
सौंप दिया जाता है। इन कार्पाेरेट हाउसनुमा स्थापित बड़े-बड़े अखबार,पत्रिकाऐं,न्यूज चौनल्स में
सेवारत पत्रकारों का मालिक/संपादक लोग शारीरिकश्रम ,मानसिक शोषण करते
है। लाख प्रयासों के बावजूद यहॉ श्रम कानून लागू नहीं हो पाया है। जस्टिस मजीठिया
की रिपोर्ट तथा भारत के सर्वाेच्च न्यायालय का आदेश भी बौना साबित हो गया है।
अखबार ,चौनल के
कार्यालय में व्यक्ति पत्रकार कर्मचारी नहीं तनख्वाह लेने वाला रोबोटनुमा बंधुआ
आज्ञाकारी है। उसे वही खबर बनानी है,जिससे सरकार का कोई नुमाइन्दा नाराज न हो
जाय। ये अपने बॉस कार्यालय में मायूस नजर आते है , और मंत्रियों
अधिकारियो के सामने एक संस्थान के लाइजनर,लेकिन आम जनता इन्हें महाबली मानती हैं। यह
एक भ्रमजाल है। वह कोई महाबली नहीं,एक आम आदमी जैसा पीड़ित और शोषित प्राणी है।
बजट का लगभग 30 से 35 प्रतिशत हिस्सा
मंत्रीगणों के खास,कुछ
अधिकारियों कर्मचारियों के परिवारों के द्वारा प्रकाशित अनाम प्रकाशनों के नाम
हस्तांतरित कर दिया जाता है। इसके बाद नम्बर आता है, पत्रकारिता से जुड़े
वास्तविक पत्रकारों का। उसमें मुख्यमंत्री निवास और मंत्री जी का,संचालनालय के
अधिकारियों को मौखिक फरमानाम मिलता है,कि किन-किन
पत्रकारों को विज्ञापन देना है किनको नहीं देना। यहॉ अधिकारियों के लिए कार्य और
जिम्मेदारी तय कर दी जाती है,कि पत्रकारों की गुणवत्ता,उसका किस दल,संगठन के किस
व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार है। सरकार के पक्ष में लिखता है कि विरोध में। पेपर
छपता भी है,तो बॉटता
कहां पर है। अगर पत्रकार और उसका अखबार
अधिकारियों के मनमाफिक मापदण्ड में नहीं आ
रहा है तो उसे सीधा-सीधा मना तो नहीं करना है परन्तु कुछ हिदायती बातें,कुछ विज्ञापन हासिल
करने के नुस्खे कुछ टिप्स में देकर परम्परागत तरीके से टाल दिया जाता है।
और लाभ लेने के
इच्छुक पत्रकार की दिन चर्या राम भरोसे इसी तरह चलती रहती है। किसी पत्रकार के साथ
घटना,दुर्घटना
होने की स्थिति में उसे स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ किस प्रकार और कौन पात्र ले
पायेगा। ये बताने की आवश्कता नहीं है। जरूरत मंद सुविधाओं के लिए तड़पते रहते हैं।
तथा अधिकारियों और मंत्री के चापलूसनुमा पत्रकार फर्जी मेडीकल बिलों के द्वारा
मेडीक्लेम हासिल करते रहते है। इस भ्रष्ट गंगा में अनुशंसा करने वाले अधिकारी और
फर्जी बिल निर्माता डाक्टरों की पौबारह बनी रहती है। एक सुविधा है रिपोर्टिग के
लिए पत्रकार वाहन सुविधा। संचालनालय का वर्षों के अनुभव के आधार पर में दावे के
साथ कह सकता हूॅ कि अधिमान्य ,वास्तविक एवं मूल पत्रकारों में से 2 प्रतिशत को भी कभी
वाहन नहीं मिलता है। इसका भरपूर उपयोग विभाग के कर्मचारी अधिकारी,सत्ताधारी नेतागण,उनके रिश्तेदारों
को उनकी जरूरतों ,और कभी कभी
सैर सपाटे एवं अय्यासी के लिए पत्रकारों के नाम पर आंबंटित कर दे दिये जाते है। यह
सब जगजाहिर है। पूरे म.प्र. में पत्रकारों को एक भी सुविधा मुहैया नहीं करायी जाती
हैं। इसके विपरीत जिन पत्रकारों के साथ मनमाफिक समाचार प्रकाशन और कमीशन तय हो
जाता है,उन्हें
उनकी हैसियत से सौगुना अधिक तक का आर्थिक सहयोग लाभ ,करोड़ों का विज्ञापन
लाभ एवं सभी वांछित सुविधाऐं एक साधारण संदेश पर ही प्रदान करा दी जाती है।
प्रदेश में हजारों
श्रमजीवी पत्रकारों की तुलना में सुविधा की दृष्टि से बी.पी.एल.कार्ड धारक कई गुना
सुविधा प्राप्त हर रहा है। उसे 2 लाख रूपये तक का इलाज , बच्चों शिक्षण
शुल्क में छूट,नाम मात्र
की राशि में प्रतिमाह अनाज,केरोसिन,लगभग हर विभाग
द्वारा चलायी जा रहीं कल्याणकारी योजनाओं में उसे प्राथमिकता के हिसाब से पात्रता
है। जबकि कार्पाेरेट हाउसनुमा स्थापित बड़े-बड़े अखबार,पत्रिकाऐं,न्यूज चौनल्स में
सेवारत पत्रकारों को अनुबंधित बेतन और स्वतंत्र पत्रकारों को हर अपनी जरूरत के लिए कदम कदम पर आम लोगो की तरह जेब
ढीली करनी पड़ती। गॉव से लेकर महानगर तक खबरों के लिए ऑकड़ों का संकलन ,आम अवाम की सच्ची
पीड़ा और सरकारी योजनाओं का अपनी आखों से दूर दराज के इलाके में जा-जा कर समाचार
संकलन कर प्रकाशन करने वाले पत्रकारों के लिए सरकार की कोई सहयोग करने की न कोई
नीति है न न सहयोग और न महत्व। हाँ ऐसे पत्रकार जो खबरों के लिए ऑकड़ों का संकलन ,आम अवाम की सच्ची
पीड़ा और सरकारी योजनाओं का अपनी आखों से दूर दराज के इलाके में जा-जा कर समाचार
संकलन कर प्रकाशन करने का काम करते है। जिनसे सरकार को शर्मिन्दगी महसूस होती है
उन्हें रोकने के लिए ग्रह विभाग के माध्यम से अधिकारियों द्वारा पुलिस थाने में
तत्काल रिर्पेाट कराने के लिए आदेशित जरूर कर रखा है। कहना न होगा कि यहॉ पत्रकार
वर्ग वह वर्ग है जिसे सरकार पचा नहीं पा रहीं। जनता विश्वास हटा नही पा रही है।
राजनीति उसका अतिदोहन करने पर आमादा है। रही गैरपत्रकारों और लाइजनरों की तो वह तो
सदा से चापलूस और सुविधा भोगी रहे है। ऐसे लोगो से दिल्ली की सब्जी मण्डी और
लाहोरी गेट जैसा बाजार हर जगह अटा पड़ा है।
हिन्दुत्व विरोधी,आंकड़ो का झूठा
प्रचार
यही है मध्यप्रदेश
सरकार