गुरुवार, 19 जुलाई 2012

मेडम माया से पींगे बढ़ा रहे खुर्शीद!


मेडम माया से पींगे बढ़ा रहे खुर्शीद!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा कांग्रेस की नजरों में भविष्य के वज़ीरे आज़म राहुल गांधी के खिलाफ दिए कथित बयान के निहितार्थ अब भी खोजे जा रहे हैं। लोग सलमान खुर्शीद की इस दिलेरी के जलते लट्टू के पीछे कौन सी बैटरी का करंट है, इस बात को खोजने में लगे हुए हैं। सियासी हल्कों में कहा जाने लगा है कि खुर्शीद का दिल अब कांग्रेस से भर गया है और वे अब बसपा से पींगे बढ़ाने की जुगत में हैं।
उत्तर प्रदेश की सियासी फिजां पर अगर नज़र डाली जाए तो साफ हो जाता है कि यूपी के कांग्रेसी क्षत्रपों को अब सूबे से सांसद सोनिया गांधी और राहुल गांधी से चमत्कार की उम्मीद नहीं बची है। उत्तर प्रदेश में लगातार हो रही कांग्रेस की दुर्गति के चलते कांग्रेस के आला नेताओं की नजरें सूबे की अन्य सियासी पार्टियों पर टिकना स्वाभाविक ही है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के नेशनल हेडक्वार्टर, 24, अकबर रोड़ में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो अल्प संख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद इन दिनों बसपा सुप्रीमो मायावती के संपर्क में हैं और वे अगले आम चुनावों के पहले ही कांग्रेस के अपने पंजे से टाटा कहकर हाथी की सवारी गांठ सकते हैं।
हाल ही में कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राहुल गांधी पर सलमान खुर्शीद के कथित हमले को इसी परिपेक्ष्य में भी देखा जा रहा है। बताया जाता है कि सलमान खुर्शीद के ताल्लुकात मायावती से काफी अच्छे हैं। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि खुर्शीद अगर बसपा में जाते हैं तो वे कांग्रेस से कंफर्टेबल पोजीशन में होंगे।
उधर, मायावती भी इन दिनों एक अदद प्रभावशाली मुस्लिम चेहरे की तलाश में बताई जा रही हैं। वैसे भी खुर्शीद दो मर्तबा उत्तर प्रदेश के कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। यह बात मायावती भली भांति जानती हैं। माया को संभवतः यह अनुमान भी है कि अगर खुर्शीद बसपा ज्वाईन करते हैं तो सूबे में खुर्शीद के अनेक समर्थक भी बसपा की राह पकड़ लेंगे और मायावती एक ही तीर से कांग्रेस के साथ ही साथ मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लगा लेंगी।
ज्ञातव्य है कि इस साल मार्च माह के बाद से ही केंद्रीय कानून और अल्प संख्यक कल्याण मंत्री सलमान खुर्शीद पर राहू की कुदृष्टि पड़ती दिख रही थी। खुर्शीद का विरोध अब मुखर होता जा रहा है। खबरें यहां तक हैं कि कांग्रेस अब खुर्शीद के स्थान पर नए मुस्लिम चेहरे की तलाश में जुट गई है।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को आवंटित सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों अल्प संख्यक समुदाय के प्रतिनिधि मण्डलों और नेताओं ने सोनिया गांधी से भेंट कर सलमान खुर्शीद के खिलाफ जमकर कान भरे। सभी नेताओं और प्रतिनिधियों ने सोनिया को दो टूक कह दिया कि अगर सलमान खुर्शीद की अल्प संख्यक कल्याण मंत्रालय से छुट्टी नहीं की गई तो वे कांग्रेस से किनारा करने में देर नहीं लगाएंगे।
सूत्रों की मानें तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सकेरेटरी मौलाना रहमानी पहले ही सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सलमान से अपनी नाराजगी का इजहार कर चुके हैं। इस पत्र में रहमानी ने मुसलमीनों को राहत देने वाली योजनाओं की नाकामयाबी को रेखांकित करते हुए सलमान खुर्शीद को हटाने की मांग की है।
उधर, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के साथ उर्दू भाषाई संपादकों की बैठक में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिमों के लिए कांग्रेस नीत केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के परवान ना चढ़ पाने का मामला जोरदारी से उछला। उस बैठक में उपस्थित राहुल के करीबी सूत्र का कहना है कि संपादकों से चर्चा के दौरान ही राहुल ने कागज पर कुछ लिखकर जेब में रख लिया था, जो संभवतः सलमान खुर्शीद की बिदाई का फरमान साबित हो सकता है।
सलमान खुर्शीद के किचिन कैबनेट से छन छन का बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद से भेंट करने उनके आवास पर पहुंचे मौलवियों पर सलमान के पालतू कुत्ते टूट पड़े। कुत्तों ने मौलवियों को जमकर खदेड़ा। नाराज मौलवी यह शिकायत करते फिर रहे हैं कि उन पर कुत्ते छोड़ दिए गए। अब कुत्ते भी सलमान खुर्शीद के गले की फांस बनकर रह गए हैं।
एआईसीसी के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि खुर्शीद के पर कतरने की खबरें भी अंदर ही अंदर आग की तरह फैल गईं। फिर क्या था, कांग्रेस के नेताओं ने खुर्शीद को भाव देना भी बंद कर दिया। पिछले दिनों भोपाल यात्रा पर गए सलमान खुर्शीद से मिलने कोई नेता नहीं पहुंचा तो वहीं दूसरी ओर उन्होंने भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय जाने की जहमत नहीं उठाए। वहीं दूसरी ओर भाजपा सरकार के सत्कार से प्रफुल्लित खुर्शीद ने गुफरान आजम की तारीफ में कशीदे गढ़कर सभी को चौका दिया था। माना जा रहा है कि खुर्शीद भी इन सारी स्थितियों परिस्थितियों के आगे अपने आप को कांग्रेस में असहज ही महसूस कर रहे हैं।

अब आलू लगा सकता है थाली में आग!


अब आलू लगा सकता है थाली में आग!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। आलू बड़ा ही मिलनसार माना जाता है। इसका कारण यह है कि आलू को किसी से बैर नहीं है, यह हर सब्जी में अपने आप को सहज महसूस करता है। आलू की पैदावार भी काफी अधिक होती है। सब्जियों में यह मंहगा भी नहीं होता है, पर इस साल आलू की दों में तेज उछाल दर्ज किए जाने की संभावनाएं तेजड़ियों द्वारा व्यक्त की जा रही है। इसका कारण पिछले साल हजारों टन आलू का बर्बाद होना और इस साल आलू की पैदावार में कमी को बताया जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि पिछले साल आलू की अधिक पैदावार होने और किसानों को पैदावार की लागत ना निकल पाने के चलते हजारों टन आलू सड़कों पर फेंक दिया था। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के आलू उत्पादक किसान आलू की लागत ना मिल पाने से खासे परेशान थे और दिसंबर माह में उन्होंने आलू को सड़कों पर ही फेंक दिया था।
देश की राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के अनेक आलू विक्रेता संघों के साथ ही साथ तेजड़ियों ने आलू की कीमतों में आग लगने की संभावनाएं जताई हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को मिली जानकारी के अनुसार इस साल लोगों को मंहगा आलू खरीदने और खाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
आलू की दरों में वृद्धि का सीधा असर लोगों की थाली के साथ ही साथ बच्चों पर भी पड़ने वाला है। बच्चों पर इसलिए क्योंकि बच्चों के लुभावने पैकेट में बंद चिप्स भी आलू से ही निर्मित होते हैं। अगर आलू की कीमतों ने उछाल मारी तो चिप्स की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी से इंकार नहीं किया जा सकता है।
इन संघों ने आशंका जतलाई है कि अगर दक्षिण भारत में पर्याप्त बारिश नहीं हुई तो इसका सीधा प्रभाव दक्षिण भारत के दो आलू उत्पादक राज्यों कर्नाटक और आंध्र प्रदेश पर पड़ सकता है। माना जा रहा है कि देश में कोल्ड स्टोरेज के अभाव के चलते आलू सड़ता रहा और लगभग बीस फीसदी आलू की बर्बादी ने भाव तेज करने की ओर इशारा करना आरंभ कर दिया है। वैसे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के अलावा आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा जैसे सूबे महती भूमिका निभाते हैं।
एक अनुमान के अनुसार देश भर में 220 लाख टन आलू का भण्डारण कोल्ड स्टोरेज में किया जाता है। इनमें सर्वाधिक 89 लाख टन उत्तर प्रदेश में, 50 लाख टन पश्चिम बंगाल में, 16 लाख टन पंजाब तो 10 लाख टन बिहार में किया जाता है।
उधर, सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब तक मॉनसून की कम वर्षा को देखते हुए अनाज के भण्डार की स्थिति की समीक्षा करना आरंभ कर दिया है। खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद पत्रकारों को बताया कि उन्होंने अनाज की स्थिति, कम वर्षा, निर्यात, खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को आध्ुानिक बनाने जैसे मुद्दों पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि इन सभी मुद्दों की १५ दिन बाद फिर समीक्षा की जाएगी। भारत में मॉनसून की वर्षा अब तक २१ प्रतिशत कम रही है। खासतौर पर कर्नाटक और मध्य महाराष्ट्र में स्थिति चिंताजनक है। कम वर्षा के कारण खरीफ फसलों, मुख्य रूप से धान, दलहन, तिलहन और मोटे अनाजों की बुआई पर असर पड़ा है।

ईवनिंगर न्यूजपेपर नहीं भा रहे शिवराज को


ईवनिंगर न्यूजपेपर नहीं भा रहे शिवराज को

शाम पांच बजे तक नहीं होती जनसंपर्क की वेब साईट अपडेट

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। या तो दोपहर या सांयकालीन समाचार पत्र मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान को नहीं भा रहे हैं, या फिर सरकार की छवि निर्माण का काम करने वाला भारी भरकम अफसरों की फौज वाला मध्य प्रदेश जनसंपर्क महकमा जनहितकारी सामाचार पत्रों की ओर ध्यान नहीं दे रहा है।
संभवतः ये ही दो कारण हो सकते हैं जबकि संचार क्रांति के इस युग में जबकि समाचार पत्र, इलेक्ट्रानिक मीडिया, वेब मीडिया आदि जो मध्य प्रदेश जनसंपर्क की वेब साईट से समाचार लेते हैं, को शाम पांच बजे तक साईट पर एक दिन पुरानी खबरों से ही दो चार होना पड़ता है।
अमूमन देखा जा रहा है कि मध्य प्रदेश जनसंपर्क की वेब साईट पिछले एक डेढ़ माह से सुबह से शाम तक एक दिन बासे समाचार ही दिखाता रहता है। शाम के समाचार पत्रों को अगर शिवराज सरकार की उपलब्धियां आदि को अपने प्रचार माध्यम में स्थान देना हो तो वे इसके लिए तरस ही जाते हैं।
ज्ञातव्य है कि पूर्व में जनसंपर्क संचालनालय द्वारा प्रेस नोट बांटे जाते थे। ये प्रेस नोट दिन में दो बार बांटे जाते थे। इनमें दोपहर एवं शाम के समाचार पत्रों के लिए दो बजे तक और सुबह के अखबारों के लिए रात आठ बजे तक बांट दिए जाते थे। अन्य के लिए डाक से प्रेस नोट भिजवाने की व्यवस्था प्रथक से की जाती रही है।
संचार क्रांति के युग में व्यवस्थाएं बदल गईं। अब ईमेल के माध्यम से प्रेस नोट भेजे जाने की व्यवस्था लागू हो चुकी है। इससे कागज की बचत हो रही है। भोपाल के समाचार पत्रों को संभवतः ईमेल के माध्यम से प्रेसनोट भेज दिए जाते हैं, किन्तु देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य प्रदेशों के समाचार पत्र अब भी जनसंपर्क की आधिकारिक वेब साईट से ही समाचार लेने पर विवश हैं।
इन प्रचार माध्यमों के हाथ उस वक्त मायूसी लगती है जब ये दिन में कई कई बार भगवा रंग में रंगी जनसंपर्क की आधिकारिक वेब साईट को खोलते हैं। इसमें एक दिन पुरानी खबरों का ही शुमार हुआ करता है। मजबूरी में मध्य प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों, प्रदेश सरकार की खबरों आदि को इन प्रचार माध्यमों में स्थान नहीं मिल पाता है।

पता नहीं कैसे पहुंचा थापर के प्लांट में चिंकारा का शव: डीएफओ सिंह


पता नहीं कैसे पहुंचा थापर के प्लांट में चिंकारा का शव: डीएफओ सिंह

(नरेंद्र ठाकुर)

सिवनी (साई)। ‘‘पता नहीं झाबुआ पावर प्लांट के चारों ओर से घिरे परिसर में चिंकारा यानी काले हिरण का शव कैसे पहुंचा? जब किसी की जान पर बन आती है तो वह कहीं से भी कहीं पहुंच सकता है। हिरण के शव का पोस्टमार्टम करवा दिया गया है, जिसमें उसकी मौत कुत्तों के काटने से होने की पुष्टि हुई है। उसे गोली नहीं मारी गई है।‘‘ उक्ताशय की बात सिवनी के वनमण्डलाधिकारी ने आज दूरभाष पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कही।
ज्ञातव्य है कि देश के मशहूर उद्योगपति गौथम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड के बरेला संरक्षित वन में लगने वाले कोल आधारित पावर प्लांट में एक हिरण के शिकार की खबर से हड़कम्प मच गया था।
गौरतलब है कि सिवनी जिले के घंसौर विकास खण्ड में ग्राम बरेला में अवंथा समूह के मालिक एवं मशहूर उद्योगपति गौतम थापर द्वारा 1260 मेगावाट के दो पावर प्लांट की संस्थापना का काम युद्ध स्तर पर जारी है। इस पावर प्लांट में अनेक अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। बावजूद इसके केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार एवं जिला प्रशासन के कानों में जूं भी नहीं रेंगी है।
हाल ही में मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के इस पावर प्लांट के परिसर में एक तीन वर्षीय हिरण के शव के मिलने से हड़कम्प मच गया है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार हिरण जिस स्थान पर पाया गया उसका वहां तक पहुंचना बेहद मुश्किल ही था, क्योंकि पावर प्लांट के संयत्र के निर्माणाधीन स्थल को उंची चारदीवारी से चारों ओर से घेरा गया है। इसमें जितने भी दरवाजे आवागमन के लिए बनाए गए हैं, उनमें चोबीसों घंटे बंदूकधारी सुरक्षा कर्मी पहरा देते रहते हैं।
इतना ही नहीं घंसौर में आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात की शिकायतों के चलते आदिवासियों में पनप रहे असंतोष के चलते संयंत्र की सुरक्षा इस कदर मजबूत रखी गई है कि वहां किसी चौपाया जानवर का घुसना लगभग असंभव ही है। यहां आने जाने वाले आगंतुकों का प्रवेश भी पूरी तरह से कड़ी निगरानी में ही होता है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के सिवनी ब्यूरो ने बताया कि घंसौर में निर्माणाधीन संयंत्र के अंदर अनैतिक गतिविधियों की खबरें यदा कदा फिजां में तैरती रही हैं। अपुष्ट जानकारी के अनुसार कुछ स्थानीय नेता नुमा ठेकेदारों द्वारा इस बरेला संरक्षित वन में बन रहे पावर प्लांट में जानवरों का शिकार इनके स्वादिष्ट मांस के लिए किया जाता रहा है।
इस बख्तरबंद नुमा परिसर में हिरण एवं कुत्तों का एक दल कैसे घुस आया इस पर भी प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं। बताया जाता है कि हरण की मौत का कारण कुत्तों के के काटे जाने से दर्शाया जा रहा है, किन्तु हिरण के शरीर पर लगभग आठ इंच गहरा घाव इसकी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट पर सवालिया निशान लगाने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है। आरोप प्रत्यारोप के दौर के बीच हिरण का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
पहले से ही छले गए ग्रामीणों का आक्रोश उफान पर है। ग्रामीणों ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। आशंका जताई जा रही है कि देश के सियासी गलियारे में खासा रसूख रखने वाले अवंथा समूह के कर्णधार गौतम थापर के गुर्गों द्वारा इस मासूम हिरण को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया फिर खबर लीक होने पर आनन फानन सरकारी औपचारिकताओं को पूरा करवाकर उसका अंतिम संस्कार भी करवा दिया।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि गौतम थापर का यह पावर प्लांट बरेला संरक्षित वन में बन रहा है, जिसके बारे में खुद संयंत्र प्रबंधन द्वारा मंत्रालय में जमा कराए गए कार्यकारी सारांश में इसका उल्लेख किया गया है। सूत्रों ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि बावजूद इसके वन्य जीवों एवं अन्य वन्य संपदा को होने वाले नुकसान को नजर अंदाज कर आखिर कैसे इस पावर प्लांट की संस्थापना को उस जगह अनुमति प्रदान कर दी गई?
सूत्रों ने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश में भाजपा का शासन है। भाजपा के खनिज और उर्जा मंत्री ने पिछले दिनों क्षेत्रीय भाजपा विधायक श्रीमति शशि ठाकुर और जिला भाजपा को विश्वास में लिए बिना ही चुपचाप जाकर लगभग एक हजार फुट उंची चिमनी की आधार शिला रख दी जो खुद ही अपने आप संदेहों को जन्म दे रही है।
बहरहाल, इस संबंध में आज जब समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा सिवनी के मुख्य वन संरक्षक लल्लन चौधरी से चर्चा की गई तो उन्होंने मामले को वन मण्डल अधिकारी वाय.पी.सिंह की ओर खसका दिया और श्री सिंह से ही सारी जानकारी लेने की बात कह दी। साई न्यूज ने जब इस संबंध में डीएफओ वाय.पी.सिंह से चर्चा की तो उनके तथ्यों से संयंत्र प्रबंधन के बचाव की बू आ रही थी।
श्री सिंह ने छूटते ही कहा कि कुत्तों ने उसका शिकार किया था, उसे गोली नहीं मारी गई थी। उन्होंने कहा कि उस चिंकारा का शव परीक्षण कर लिया गया है। उसे कुत्तों द्वारा मारा जाना ही प्रमाणित हो रहा है। जब श्री सिंह से इस ममाले में वन संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 39 एवं 9 के तहत कार्यवाही की बात पूछी गई तो उन्होंने कहा कि यह अवैध शिकार का मामला नहीं है, इसलिए इन धाराओं के प्रयोग का सवाल ही नहीं उठता है।
श्री सिंह ने कहा कि उन्हें भी हिरण को गोली मारे जाने की खबर मिली थी, किन्तु शव परीक्षण प्रतिवेदन में इस तरह की बात का उल्लेख ना होना साफ दर्शाता है कि उस हिरण का शिकार कुत्तों द्वारा ही किया गया है। जब श्री सिंह से यह पूछा गया कि चारों ओर से बंद इस संयंत्र के परिसर में हिरण और कुत्ते कहां से चले गए तो उन्होंने कहा -‘‘जनाब जब जान पर बन आती है तो फिर रास्ते खोजने मुश्किल नहीं होते हैं।‘‘
इस मामले को दिशा भ्रमित करते हुए श्री सिंह ने कहा कि जब देश भर में तेंदुए, भालू लोगों के घरों में घुस रहे हैं तो फिर एक चिंकारा अगर संयंत्र के बंद निर्माणाधीन स्थल पर घुस गया तो कौन सी आफत आ गई। उन्होंने कहा कि उन्हें तो यह भी सूचना मिली थी कि किसी ने गाड़ी में ले जाकर उसे संयंत्र के अंदर फेंक दिया था।
डीएफओ वाय.पी.सिंह ने आगे कहा कि उसका शव परीक्षण और अंतिम संस्कार वहां तैनात उप वन क्षेत्रपाल की उपस्थिति में संपन्न हुआ, जबकि विभागीय सूत्रों का कहना है कि इसका शव परीक्षण और अंतिम संस्कार कम से कम वन क्षेत्रपाल स्तर के अधिकारी की उपस्थिति में किया जाना चाहिए था।
क्षेत्र में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार बरेला, संरक्षित वन में बन रहे देश के मशहूर उद्योगपित गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के संयंत्र निर्माण स्थल के आसपास जंगली जानवरों का अवैध शिकार जमकर किया जा रहा है। इस क्षेत्र में अधिकतर आबादी भोले भाले आदिवासियों की है, जिन्हें इन आताताईयों द्वारा डरा धमका कर शांत करा दिया जाता है।
चर्चा तो यहां तक है कि बरेला स्थित निर्माणाधीन संयंत्र स्थल पर महाप्रबंधक के कार्यालय के साथ लगी मैस की रसाई में भी इस तरह के जंगली जानवरों को मारकर पकाया जाता है। इन बातों में कितना दम है यह तो शिकारी जानें, वन विभाग के कारिंदे या फिर संयंत्र प्रबंधन, किन्तु संयंत्र की चाक चौबंद सुरक्षा के बाद इस परिसर में एक चिंकारा ओर कुत्तों की फौज का घुसना वाकई में आठवंे अजूबे से कम नहीं है।
बहरहाल, अब जबकि एक वन्य जीव का शव संदिग्ध हालत में गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के पावर प्लांट के संयंत्र स्थल पर मिला है, तब देखना यह है कि केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर इस बारे में क्या कदम उठाते हैं?