रविवार, 25 अक्टूबर 2009

नकली नोट के बदले असली वोट

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)


नकली नोट के बदले असली वोट

केंद्र सरकार इस बात से हैरान परेशान है कि विदेशों से आने वाले नकली नोटों का चलन देश में तेजी से बढ़ने लगा है। हाल ही में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में नकली नोटों के बदले असली वोट की कारस्तानी से आदिवासी समुदाय में रोष और असंतोष की स्थिति निर्मित हो गई है। महाराष्ट्र के ग्रामीण अंचलों में नेताओं द्वारा कथित तौर पर वोट लेने के लिए प्रलोभन के तौर पर पांच सौ और हजार के नोटों की बरसात कर दी थी। दीपावली पर जब आदिवासी समुदाय इन नोटों को लेकर खरीददारी को निकला तो वह भोंचक्क रह गया, क्योंकि ये नोट नकली थे। भारतीय बेंकिग फोरम और समाजवादी पार्टी ने इस मामले की बाकायदा एफआईआर भी दर्ज करवाई हैै। राज्य में पुलिस ने बड़ी तादाद में नकली नोटों की बरामदगी भी की है। वोटर आश्चर्य चकित थे कि इस बार नेताओं द्वारा नोटों की अचानक बारिश कैसे की जा रही है। अब देखना यह है कि नकली नोटों से असली वोट खरीदने वाले नेताओं पर क्या कार्यवाही हो पाती है।


महिला आरक्षण को ही सेंध लगाती कांग्रेस
महाराष्ट्र में भले ही कांग्रेस और राकांपा ने बहुमत हासिल कर तीसरी मर्तबा सरकार बनाने के मार्ग प्रशस्त कर लिए हों किन्तु महिलाओं के नाम पर इन दोनों ही सियासी दलों के साथ ही साथ भाजपा और शिवसेना ने भी बेरूखी दिखाई है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में कांग्रेस, भाजपा, राकांपा और शिवसेना ने 12 सीटों से ज्यादा पर उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं। सूबे मेें कांग्रेस ने 12 तो राकांपा ने छ:, शिवसेना और भाजपा ने महज आठ आठ महिलाओं पर दांव लगाया था। केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार द्वारा वैसे तो महिला आरक्षण को पहली प्राथमिकता बनाया गया है, किन्तु जब भी टिकिट देने की बात आती है, कांग्रेस द्वारा ही अपनी कथनी पर अमल नहीं किया जाता है। भले ही महिला आरक्षण विधेयक परवान न चढ सका हो किन्तु पार्टी चाहे तो चुनावों में तो कम से कम फीसदी महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कर सकती है, इसके लिए उसे सरकार से अनुमति की दरकार कम से कम नहीं ही होगी, वस्तुत: एसा होता नहीं है। यही कारण है कि सत्ता या विपक्ष दोनों ही के द्वारा महिलाओं को खुश करने की गरज से तो मीठी मीठी बातें कर दी जाती हैं, किन्तु जब उनके चरितार्थ करने का समय आता है तो सियासी पार्टियां चुप्पी साध लेती हैं।


चुभने लगा है सादगी अभियान
आसमान छूती मंहगाई और मंदी के इस दौर में केंद्र सरकार द्वारा आरंभ किया गया मितव्ययता अभियान अब नेताओं और अधिकारियों को चुभने लगा है। कुछ मंत्री तो इसकी परवाह भी नहीं कर रहे हैं। एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी इकानामी क्लास में यात्रा कर रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर हाल ही में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा गए तो बाकायदा विशेष विमान की सेवाएं लीं। विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर की तरह हो सकता है कि इस विमान का किराया उन्हीं ने अपनी जेब से ही दिया हो, किन्तु विलासिता तो विलासित ही मानी जाएगी। उधर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के करीबी सूत्रों की मानें तो यह सादगी अभियान की नौटंकी सितम्बर 2010 तक जारी रहने की उम्मीद है। सादगी और मितव्ययता के इस प्रहसन के चलते मंत्री, विधायक, सांसद और व्ही.व्ही.आई.पीज को अब घुटन महसूस होने लगी है, किन्तु कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के कोड़े के डर से सभी ने अपनी जुबान बंद कर रखी है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों की माने तो वित्त मंत्री द्वारा एक साल में सभी मंत्रालयों को 30 हजार करोड़ रूपयों की बचत का लक्ष्य दे दिया है।


वालीवुड बाला अब राजनीति की ओर
वालीवुड की मशहूर अभिनेत्री मनीषा कोईराला आने वाले दिनों मेें नेपाल की राजनीति में दो दो हाथ करने की तैयारी में दिख रहीं हैं। हाल ही में मनीषा अपने दादा और नेपाल के पहले प्रधानमंत्री बी.पी.कोईराला के स्मारक पर अपने पिता प्रकाश और माता सुषमा के साथ गईं थीं। वे केवल वहां गईं ही नहीं वरन उन्होंने वहां दो घंटे भी बिताए। बिग बी यानी अमिताभ बच्चन, चीची यानी गोविंदा आदि का उदहारण देते हुए उन्होंने कहा कि अब उन्हें भी राजनीति का गलियारा भाने लगा है। वे भी आज के युग के ``जनसेवक`` बनकर नेपाल की रियाया की सेवा करना चाहतीं हैं। राजनैतिक बियावान में अब यह बात जोर पकड़ने लगी है कि मनीषा को आखिर आज के युग के ``जनसेवकों`` की कौन सी बात पसंद आई जो वे इस कीचड़ में खुद ही उतरने की तैयारी कर रहीं हैं, क्योंकि रूपया पैसा और शोहरत तो उनके पास पहले से ही है।


राजकुमारी ने की सफाई
बा अदब बा मुलाहजा, होशियार, राजकुमारी पधार रहीं हैं, ये गुजरे जमाने की बात हो गई है। वर्तमान में एक राजकुमारी सड़कों पर है, लोगों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनउ में एक राजकुमारी ने बाकायदा जमीन पर उतरकर झोपड़ पटि्टयों की सफाई आरंभ कर दी है। फ्रांस में जन्मी भारतीय राजकुमारी प्रिंसेस फे एरे उर्फ जहां आरा ने भारत को अब अपना घर बना लिया है। राजकुमारी लखनउ के मशहूर नवाब वाजिद अली शाह के पडपोतों में से एक से शादी की है। देश की एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) रेश फाउंडेशसन से अब जुड गई हैं जहाआरा। यह एनजीओ देश में झोपड पटि्टयों की साफ सफाई का काम बडी ही संजीदगी से किया करती है। जहांआरा इस पावन काम के लिए लखनउ के अलावा मुंबई और कोलकता भी जाएंगी।


अगली लोकसभा में बुजुर्गों की संख्या होगी कम
2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों में देश में अनेक वरिष्ठ नेताओं के चेहरे शायद ही देखने को मिलें। राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी, राकांपा सुप्रीमो शरद पंवार, केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे तो बाकयदा सक्रिय राजनीति को बाय बाय करने की मंशा जता चुके हैं। पीएम डॉ.एम.एम.सिंह भी 77 साल के हो चुके हैं, कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी दिसंबर में 66 की हो जाएंगी। प्रणव दा 74, आड़वाणी 82, सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह 77 तो जार्ज फर्नाडिस 89 के हो चुके हैं। देखा जाए तो 2014 में सुषमा स्वराज, अरूण जेतली, गुलाम नवी आजाद, कमल नाथ, दिग्विजय सिंह, जनार्दन द्विवेदी, लालू प्रसाद यादव जैसे दिग्गज राजनैतिक तौर पर अपनी अंतिम पारी ही खेल सकते हैं।


भाजपा के गांधी की फिर हुई उपेक्षा
भारतीय जनता पार्टी द्वारा लगातार अपने गांधी की उपेक्षा ही की जा रही है। नेहरू गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी के रूप में भाजपा में मेनका तो पांचवीं पीढ़ी के तौर पर वरूण गांधी विराजमान हैं। जब भी इन दोनों के महिमा मण्डन की बात आती है, भाजपा द्वारा हाथ खींच लिए जाते हैं। हाल ही में महाराष्ट्र, हरियाणा और अरूणाचल के विधानसभा चुनावों में वरूण गांधी को पूरी तरह से उपेक्षित रखा गया है। स्टार प्रचारकों में भी वरूण का नाम नहीं था, उधर कांग्रेस में राहुल को हाथों हाथ लिया गया। इस सबसे खफा होकर सोनिया गांधी की देवरानी मेनका ने एक निजी सर्वेक्षण कंपनी से राहुल और वरूण की लोकप्रियता का सर्वे करवाया। सर्वे में पाया गया कि राहुल से ज्यादा लोकप्रिय वरूण हैं। सर्वे मेनेज्ड था या नहीं कहा नहीं जा सकता है। इस सर्वे को लेकर मेनका ने भाजपा सुप्रीमो राजनाथ के द्वार खटखटाए। राजनाथ ने साफ तौर पर कह दिया कि वरूण प्रचार के लिए स्वतंत्र हैं, किन्तु उन्हें स्टार प्रचारकों में शामिल नहीं किया जा सकता, फिर क्या था मेनका अपना सा मुंंह लेकर वापस लौट गईं।


सोनिया के प्रिय केंद्रीय मंत्री जैन की उपेक्षा
केंद्रीय मंत्रियों की आपस में किस कदर गलाकाट लड़ाई मची हुई है इसका साक्षात उदहारण झांसी के युवा केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन की उपेक्षा से साफ जाहिर हो जाता है। वाक्या झांसी से छिंदवाड़ा नई रेलगाडी को हरी झंडी दिखाने का था। केंद्रीय सडक एवं परिवहन मंत्री कमल नाथ ने अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा में शहरी विकास राज्य मंत्री सौगात राय के साथ इस रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर रवाना कर दिया। इसके दूसरे सिरे झांसी में इसका कोई नामलेवा ही नहीं था। चर्चा है कि प्रदीप जैन को उनकी औकात समझाने की गरज से इस पूरे कार्यक्रम से उन्हें दूर रखा गया है। वहीं सियासी गलियारों में यह बात भी जोर पकड़ रही हैं कि सोनिया गांधी के प्रिय पात्रों में शुमार रहने वाले प्रदीप जैन को इससे उपेक्षित रखना कहीं कमल नाथ को भारी न पड जाए। वे चाहते तो सौगात राय के बजाए प्रदीप जैन को भी साथ ले सकते थे। पर एसा हुआ नहीं, हो सकता है कमल नाथ को भय हो कि कहीं इस रेलगाडी के शुभारंभ का श्रेय प्रदीप जैन न ले जाएं।


विन्धय की रेली से कुछ हासिल होगा
मध्य प्रदेश में विन्धय क्षेत्र एक समय काफी ताकतवर माना जाता रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह और सफेद शेर के नाम से मशहूर पूर्व विधानसभाध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के नाम का डंका बजा करता था, समूचे प्रदेश में। अब दोनों ही के किस्से गुजरे जमाने की बात हो गई है। अर्जुन सिंह को मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाने के उपरांत उनकी पुत्री को कांग्रेस ने टिकिट न देकर दर्शा दिया था कि साल दर साल कांग्रेस की सेवा के पारितोषक के तौर पर उन्हें क्या दिया जा रहा है। सुरेश पचौरी के साथ पंगा लेकर पहले ही उनके पुत्र अजय सिंह राहुल ने अपना काफी नुकसान करवा लिया था। विन्धय में श्रीनिवास तिवारी को साधकर सुरेश पचौरी ने ठाकुर लाबी को कमजोर करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। अब अजय सिंह हैं दिग्विजय सिंह की शरण में। राजा दिग्विजय सिंह के पढाए पाठ के चलते विन्धय में राहुल सिंह शक्ति प्रदर्शन के लिए रेली करने वाले हैं। प्रदेश में मरणासन्न पड़ी कांग्रेस को विन्धय की इस रेली से कुछ हासिल हो एसा लगता तो नहीं है, पर अगर तीर राजा दिग्विजय सिंह के तरकश से निकला है तो फिर कुछ भी कहना मुश्किल ही है।


अंधेरे में वजीरे आला
प्रधानमंत्री के एक कार्यक्रम के दौरान बिजली गोल होने से अधिकारियों में दहशत बनी हुई है। यद्यपि बिजली गोल होने की घटना की जांच का प्रतिवेदन प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंच चुका है, पर उसमें पीएमओ की टीका टिप्पणी न होने से अभी भी टपके का डर बाकायदा बना हुआ है। दरअसल राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रधानमत्रंी के कार्यक्रम के दौरान बिजली गोल हो गई थी, जिससे प्रधानमंत्री की भवें तन गईं। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्लूडी) और नई दिल्ली मुनििस्पल कार्पोरेशन (एनडीएमसी) इस मामले में खाल बचाने की जुगत में लगी हुईं है। एनडीएमसी का कहना है कि सीपीडब्लूडी ने आटोमेटिक स्विच नहीं लगाया जिससे लाई ट चली गई। वहीं दूसरी ओर सीपीडब्लूडी का कहना है कि विज्ञान भवन में पीए का प्रोग्राम हाल नंबर 5 में आयोजित किया गया था, जो व्हीआईपी हाल नहीं है। वैसे भी लाईट जाने पर चालीस सेकंड में लाईट ठीक करने का मानक है, और विभाग ने तो बीस सेकंड में ही यह काम कर दिया था। अब देखना यह है कि इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय क्या रूख अपनाता है।


मीडिया से पंगा
दिल्ली के नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार मल्होत्रा अब मीडिया से पंगा लेने के मूड में दिख रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को नसीहत देते हुए कहा है कि अगर वाकई शीला सरकार खर्च में कटोती करना चाह रहीं हैं, तो उन्हें अपने विज्ञापनों में कमी करनी होगी। बकौल मल्होत्रा कांग्रेस का मितव्ययता अभियान महज दिखावा ही है। कांग्रेस के मंत्रियों के फोटो रोजाना ही अखबारों में छप रहे हैं, और करोड़ों रूपयों को फिजूल में ही बहाया जा रहा है। मल्होत्रा जी शायद यह बात बखूबी जानते होंगे कि मीडिया का प्रत्यक्ष राजस्व विज्ञापनों से ही आता है। फिर वर्तमान के मीडिया के स्वरूप में विज्ञापनों के सहारे ही मीडिया मुगल अपनी अपनी ``पलिसी`` तय करने लगे हैं। विशेषकर घराना पत्रकारिता के उदय के उपरांत ``वास्तविक खबरों`` के बजाए ``प्रयोजित खबरों`` पर आकर टिक गया है, मीडिया। इन परिस्थितियों में वी.के.मल्होत्रा का यह बयान उनकी मीडिया से दूरी बनाने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है।


किसको दें मुआवजा
मध्य प्रदेश के बड़़वानी जिले के राजघाट को लेकर असमंजस बरकरार ही है। दरअसल बड़वानी में महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और महादेव भाई देसाई की ``भस्मी`` सुरक्षित रखी हुई है। यहां बाकायदा चबूतरा बनाकर बापू की याद में राजघाट का निर्माण किया गया है। अब यह इलाका सरदार सरोवर परियोजना के चलते डूब में आ रहा है। बाकी लोगों को तो मुआवजा दे दिया गया है, पर बापू की सुध किसी को भी नहीं है। बताते हैं कि 12 फरवरी 1948 को तीनों ही की भस्मी लाकर यहां रखी गईं थीं। कलेक्टर बड़वानी राजपूत कहते हैं कि उनके पास इसको स्थानांतरित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। नर्मदा वेली डेवलपमेंट के अधीक्षण यंत्री का कहना है कि यह स्थल डूब में नहीं है, तो पुनर्वास अधिकारी ने कहा कि 1999 में प्रकरण बनाकर एक लाख तेईस हजार रूपए कलेक्टर के खाते में जमा करवाए जा चुके हैं। अफसरशाही के जाल में बापू के मध्य प्रदेश के इस राजघाट की सुध लेने वाला कोई नहीं है। चूंकि मामला किसी संस्था और बापू से जुडा है अत: किसी को इसमें धेला नहीं मिलने वाला।


तानाशाही के चलते शिवसेना हुई कमजोर
शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे की तानाशाही के चलते शिवसेना का जनाधार तेजी से कम होता रहा है, बची खुची कसर उनके अपने भतीजे राज ने निकाल दी। बालासाहेब ठाकरे के विश्वस्त माने जाने वाले चार नेता या तो कांग्रेस राकांपा की ताकत बन गए या फिर अपनी पार्टी बनाकर शिवसेना के विजय मार्ग पर शूल बनकर उभर गए। पिछले दो दशकों में छगन भुजबल, नारायण राणे, संजय निरूपम और राज ठाकरे ने बालासाहेब की शिवसेना को धूल चटवाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी है। इन सभी ने बाला साहेब के तानाशाही पर्ण रवैए के चलते ही अलग मार्ग पर चलने का मानस बनाया है। इनके इस तरह से जाने से एक ओर शिवसेना की जमीन कमजोर हुई वहीं दूसरी ओर शिवसेना क्षत्रपों की बौखलाहट तेजी से बढ़ी है। देखा जाए तो शिवसेना के ये आधार स्तंभ अपने अपने क्षेत्र में बेहद प्रभाव रखते थे, जिनका फायदा आज कांग्रेस और राकांपा उठा रही है।


पुच्छल तारा
शेरशाह सूरी के जमाने की ग्रांट नेशनल रोड जो बाद में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात बनी के लखनादौन से नागपुर तक के हिस्से को स्विर्णम चतुभुZज के उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा बनाए जाने के विवाद के चलते कांग्रेस को विदर्भ में काफी नुकसान उठाना पड़ा। दरअसल केंद्रीय भूलत परिवहन मंत्री कमल नाथ द्वारा यह प्रयास किया जा रहा था कि इस मार्ग को परिवर्तित कर छिंदवाड़ा से ले जाया जाए। इसमें वे कामयाब नहीं हो सके हैं। महाकोशल के सर्वमान्य नेता कमल नाथ को उसी महाकौशल के केंद्र बिन्दु सिवनी जिले में जितनी लानत मलानत झेलनी पड़ी उतनी शायद ही कहीं झेली हो। यहां तक कि उनकी अर्थी तक निकाल दी गई। इसका प्रभाव महाराष्ट्र के विदर्भ में भी पड़ा विदर्भ मेें कांग्रेस के दिग्गज नेता सतीश चतुर्वेदी और अनीस अहमद तक धूल चाटने पर मजबूर हो गए। कमल नाथ समर्थक आज भी उनका उजला पक्ष रखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।