शुक्रवार, 1 मई 2009

१ / ५ / 2009

प्रधानमंत्री कहां से आए अगले या पिछले दरवाजे से
0 प्रधानमंत्री कौन चुनेगा, जनता या प्रदेश के विधायक
0 डॉ.मनमोहन सिंह देश के वजीरे आज़म हैं, या असम के!

(लिमटी खरे)

राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी,, अरूण जेतली सहित वाम नेता सीताराम येचुरी, प्रकाश करात की यह चिंता बेमानी नहीं कही जा सकती जिसमें उन्होंने देश के प्रधानमंत्री को लोकसभा सदस्य होने की अनिवार्यता की बात उछाली है। आड़वाणी ने 14वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के आखिरी दिन इस बात को रेखांकित किया था, इसके बाद बहस न रूकने वाली बहस चल पड़ी है।
वस्तुत: देश में संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था के तहत दो सदन बनाए गए हैं। पहला लोकसभा है जहां सांसद सीधे जनता द्वारा चुनकर भेजा जाता है, और दूसरी राज्य सभा जहां सांसद किसी प्रदेश के विधायकों द्वारा चुना जाता है। यह भी सच है कि राज्य सभा जिसे आम बोलचाल की भाषा में पिछला दरवाजा भी बोला जाता है, से चुनकर आने वाला सांसद सीधे जनता के संपर्क में नहीं होता है। उसका चुनावी क्षेत्र भी विधायकों तक ही सीमित होता है।
देश का संविधान कहता है कि कोई भी सांसद प्रधानमंत्री हो सकता है, किन्तु उसके नेतृत्व वाली सरकार सिर्फ लोकसभा के प्रति जवाबदेह होगी। संविधान के निर्माण के समय शायद निर्माणकर्ताओं ने यह सोचा भी न होगा कि कभी इस तरह की परिस्थिति भी पैदा हो सकती है कि देश का पीएम राज्य सभा से चुन लिया जाए।
लोकतंत्र के साथ यह कितना भद्दा मजाक है कि प्रधानमंत्री को उस सदन में अपना मत देने का अधिकार ही नहीं है, जिसके प्रति उसकी सरकार संवैधानिक तौर पर सीधे सीधे जवाबदार है। यही स्थिति अविश्वास प्रस्ताव के तौर पर आती है। जो व्यक्ति अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहा होता है, उसे उस सदन में मत देने का हक ही नहीं होगा! कितने शर्म की बात है कि परमाणु करार मसले पर अविश्वास के दौरान भाजपा सांसद अनंत कुमार की मांग पर लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी से साफ कहा था कि इस सदन में जो भी राज्यसभा सदस्य हो वह उठकर बाहर चला जाए क्योंकि उसे इस सदन में मत देने का अधिकार नहीं है।
वैसे राज्यसभा के सांसद के मंत्री बनने के बाद उसे दोनों सदनों में शिरकत करने का अवसर अवश्य मिलता है, पर मत देने का अधिकार उसे सिर्फ राज्यसभा में ही होता है। राज्य सभा से प्रधानमंत्री चुनने का सीधा सा मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि देश के सबसे शक्तिशाली पद पर आसीन राजनेता या मंत्री का ओहदा पाने वाले नेता के अंदर इतना भी माद्दा नहीं है कि वह जनता के बीच जाकर चुनकर आए?
वैसे आज के परिवेश में राज्यसभा सांसद होने के सीधे मायने यह लगाए जाने लगे हैं कि व्यक्ति विशेष का रसूख कितना है? यही कारण है कि आज उद्योगपति, कथित मीडिया मुगल, सेवानिवृत नौकरशाह सभी पिछले दरवाजे से जाकर उन सभी सुख सुविधाओं और स्टेटस का भरपूर दोहन करते हैं, जो जनता के बीच जाकर तलवार की धार पर चलकर कई पापड़ बेलने के उपरांत एक राजनेता लोकसभा के रास्ते संसदीय सौंध तक पहुंचता है।
हमारा डॉ.मनमोहन सिंह के प्रति कोई दुराग्रह कतई नहीं है किन्तु उनको बतौर प्रधानमंत्री पांच साल तक चलाने के उपरांत पुन: चुनाव न लड़वाकर पीएम प्रोजेक्ट करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस यह भूल जाती है कि उसके ही पूर्व प्रधानमंत्रियों ने पीछे के बजाए अगले दरवाजे का उपयोग कर प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बरकरार रखा था।
डॉ.एम.एम.सिंह असम से राज्य सभा सदस्य हैं। इस नाते उनकी प्रथमिकता असम के वे विधायक अवश्य होंगे जिन्होने उन्हें चुनकर भेजा है। अगर वे किसी लोकसभा सीट से जीतकर आते तो उनके निर्वाचन क्षेत्र के प्रति उनकी जिम्मेवारी बनना स्वाभाविक है, किन्तु जब आप आम मतदाता के बजाए चुने हुए विधायकों के प्रतिनिधि हैं, तो फिर आपकी मतदाताओं के प्रति सीधी जवाबदेही कैसी?
पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 1967 में जब स्व.इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तब वे राज्यसभा सदस्य थीं, इसके तुरंत बाद पहली ही फुर्सत में उन्होंने भी चिकमंगलूर से चुनाव जीता और पीएम पद पर बनीं रहीं। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के उपरांत जब स्व.पी.व्ही.नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने थे, उस वक्त वे कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे, उन्होंने भी आंध्र प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। इतना ही नहीं 30 मई 1996 को जब एच.डी.देवगोड़ा ने कर्नाटक के मुख्यमत्री का प्रभार छोड़कर पीएम की कुर्सी संभाली उसके बाद उन्होंने भी लोकसभा का चुनाव ही लड़ा था।
वस्तुत: तुष्टीकरण और नाराज नेताओं के अहं के पोषण के लिए बनाए गए थे उपरी सदन। केंद्र में चाहे राज्य सभा हो या फिर प्रदेशों में विधानसभा के समतुल्य विधान परिषद। इनका गठन इसी उद्देश्य को मद्ेनजर रखकर किया गया होगा ताकि दलों में असंतोष को कम किया जा सके।
हमारा अपना यह मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली पद प्रधानमंत्री, पर उसी शिख्सयत को काबिज होना चाहिए जो सीधे सीधे जाकर जनता का सामना कर सके और जनता के बीच से चुनकर संसदीय सौंध तक पहुंचने का माद्दा रखता हो, न कि उच्च सदन के रास्ते प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने की मंशा रखता हो।

पर्यावरण के लिए कतई संजीदा नहीं थे सांसद
0 ग्लोबल वार्मिंग को बला ही मानते रहे जनप्रतिनिधि
0 पांच सालों में महज 74 सवाल ही पूछ सके 543 सांसद!
0 अपने मतलब के 81 हजार सवाल पूछे सांसदों ने

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। आज जहां ग्लोबल वार्मिंग को लेकर समूची दुनिया के हर देश की सरकारें बुरी तरह चिंतित नज़र आ रही है, वहीं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इससे कोई लेना देना नहीं रहा। पिछले पांच सालों में सांसदों द्वारा पूछे गए 80 हजार 831 सवालों में से महज 74 सवाल ही पर्यावरण से संबंधित थे।
एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) ने इस बात का खुलासा करते हुए बताया कि सत्ता पाने की गलाकाट स्पर्धा में जुटे भारतीय राजनैतिक दलों को ग्लोबल वार्मिंग या पर्यावरण से संबंधी मुद्दों से कोई लेना देना नहीं रहा है। संस्था के अनुसार दलों द्वारा पर्यावरण की चिंता किए बिना जिस तरह के विकास के लुभावने वादे जनता के समक्ष किए जा रहे हैं, उससे खतरा और बढ़ने की उम्मीद है।
उक्त संस्था ने कहा कि सरकार बनाने का दावा करने वाले दलों द्वारा बिजली उत्पादन बढ़ाने के वादे किए जा रहे हैं। बिजली उत्पादन बढ़ाने का सीधा मतलब है कि कोयले से चलने वाले बिजली के संयंत्र बढ़ाना। इससे एक ओर जलवायु को नुकसान होगा दूसरे अधिक कार्बन पैदा होने से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा।
तापमान और मौसम में होने वाला असमान्य परिवर्तन आम जनता के लिए चिंताजनक हो सकता है, किन्तु जनता के चुने हुए नुमाईंदों के लिए नहीं। यही कारण है कि अधिक कार्बन उत्सर्जित करने वाले उद्योगोें को भी दनादन लाईसेेंस मिलते जा रहे हैं। इंफ्रास्टचर में सड़क, बांध आदि के निर्माण के लिए हरे भरे जंगलों की बली चढ़ा दी जा रही है, किन्तु इनके बदलें में नए पौधे लगाने का काम अभी तक आरंभ नहीं किया गया है।
स्विर्णम चतुभुZज के साथ ही साथ उत्तर दक्षिण और पूरब पश्चिम सड़क गलियारे के निर्माण के लिए भी असंख्य झाड़ काट दिए गए, किन्तु इनके स्थान पर नया वृक्षारोपण आज तक नहीं किया गया है। अगर वृक्षारोपण का काम पांच साल बाद किया जाता है तो इन पांच सालों में पर्यावरण के हुए नुकसान का भोगमान कौन भोगेगा?



नारायणन को गोद में बिठाने आतुर हैं सभी दल
0 पीएम के सिक्यूरिटी एडवाईजर को बनाया जा सकता है एम्बेसडर या लाट साहेब
(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह के सुरक्षा सलाहकार एम.के.नारायणन की इन दिनों चांदी है। हर एक राजनैतिक दल उन्हें उपकृत करना चाह रहा है। अगर कांग्रेस दुबारा सत्ता में नहीं आई तो उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल अथवा किसी देश का राजदूत बनाकर भेजा जा सकता है, ताकि उनकी जिन्दगी शान से कट सके।
बताया जाता है कि नारायणन को इस कदर हाथों हाथ लिए जाने से कांग्रेस के कान खड़े हो गए हैं। गौरतलब होगा कि जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी, तब नारायणन इंटेलीजेंस ब्यूरो के प्रमुख थे। उस दौरान भी इनकी भूमिका पर संदह किया गया था। राजीव गांाधी की हत्या की जवाबदारी जिन पांच अफसरान पर ठहराई गई थी, उसमें नारायणन के नाम का भी शुमार था।
इतना सब होने के बाद भी पांच सालों तक वे कांग्रेेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाकार के बतौर काम करते रहे। चर्चा है कि शायद नारायणन कोई गहरा राज जानते हैं, या वे किसी विशेष आपरेशन का अंग रहे हैं, जिसके चलते कांग्रेस ने इतना सब कुछ उन्हें दिया और अब विपक्ष उन्हें हाथों हाथ लेने पर आमदा दिखाई दे रहा है।

१ मेअय 2009

Where the next prime minister come from the back door or फ्रंट

(Limty Khare)

PM waiting for the NDA K Adwani, Arun Jetli Left leaders including Sitaram Yechury, Prakash Karat said that this concern can not be meaningless, which the Prime Minister of the country being a member of the Lok Sabha Ucali is a matter of necessity. Adwani the 14th Lok Sabha's last session, the last day of the draw did not stop the debate after this debate is worried. In fact, a system of parliamentary democracy in the country of the two houses have been made. Where the first Lok Sabha MP is sent directly by the people choose, and the other a state of the state House, where MPs are elected by the legislators. This is also true that the State House in the language of the colloquy did the back door is going to be selecting from the people directly in contact with MPs is not. His electoral areas is limited to legislators. Country's constitution says that no MP could be prime minister, but only led government will be accountable to the Lok Sabha. Construction of the Constitution at the time of the Nirmankrtaon probably would not ever think this kind of situation that can cause the PM of the country selected to the State House. It's so awkward with democracy is a joke that the prime minister the right to vote in the House is not, as a constitutional government to which it is directly responsible. This situation comes as a no-confidence motion. The person who is facing a no-confidence motion is that the right to vote in the House will not be! What a shame that the nuclear agreement on the issue of distrust of the BJP MP Ananth Kumar on demand Loksbadhyksh clear that Somnath Chatterjee from the House in Rajya Sabha member, he also got up to go out because the right to vote in the House is not. Rajya Sabha MP of the way after becoming a minister in both Houses must get an opportunity to participate, but only the right to vote in the Rajya Sabha is. Rajya Sabha, the Prime Minister to choose the simple means that can be removed also the country's most powerful politician sitting in office or get the post of Minister of the leader within the subject matter is not so much that he go and choose among the people come? As today's environment in this sense, the Rajya Sabha MP of being directly involved the imposition of individual influence how that is? That is why today, industrialists, alleged media mogul, retired bureaucrats and all the back door with all the amenities and the full exploitation of the status is, who among the people walking on the edge of the sword, many a politician papad Belne after the path of the Lok Sabha Sund reaches Parliament. Our Dr. Manmohan Singh to a perversity, but not to run them as prime minister five years after re-election is not going to project Ldwakr PM Fourteen hundred-year-old Congress forgets that it is only after the former prime ministers instead of the next door using the prime minister's dignity was maintained. Singh, Rajya Sabha from Assam Do.am.aml members. As the Assam Prthamikta their legislators, they will surely choose who sent them. If they win a Lok Sabha seat in his constituency if his responsibility to be natural, but when the voters instead of the common representative of the legislators are elected, then your direct accountability to voters, how? Pandit Jawaharlal Nehru in 1967 when after the death of self. He then became Prime Minister Indira Gandhi was a Rajya Sabha member, the first time immediately after the elections, he also won Cikmnglur became and remained on the PM post. In 1991, after Rajiv Gandhi's assassination when Swlpil Whee. Narasimha Rao became prime minister was, at that time was the Congress president, also from Andhra Pradesh, the Lok Sabha election was. Not only that, when the 30 May 1996 by H. D. Devgodha except the charge of Karnataka Mukyamtri PM He then assumed the chair of the Lok Sabha election was fought only. In fact, appeasement and angry leaders of nutrition for the ego of the House were made Upri. Whether at the Center or the State Provincial House of Assembly in Legislative Council equivalent. They set up the same purpose Mdenjr was placed so that the parties to reduce the dissatisfaction. Our own that the world's largest democracy, the most powerful post of prime minister, but that should be the same Shiksyt Kabij to go directly to the public and the public face of the parliamentary select from Sund to the subject matter can be, not the Upper House of the intention of the way the prime minister in office can be reached

Environment for the MPs were not serious at अल

(Limty Khare)

New Delhi। Today the entire world about global warming, where the governments of each country badly worried look, the world's largest democracy is nothing to do with this. In the last five years, MPs were asked 80 questions from 831 thousand to a mere 74 questions were related to the environment. A non-governmental organization (NGOs) to reveal the power that the competition to get involved in Indian political parties Glakat to global warming or environmental issues, nothing to do with that. According to the parties by the company without worrying about the environment for the development of Lubhavne promises are being made public before, and that the risk is expected to grow. Said that the government institution to make the claim by the parties promise to increase power production are being made. To increase electricity production from coal that direct running of the plant to increase power. On the one hand, it will damage climate more than other carbon arising from the threat of global warming will increase manifold. Abnormal weather and temperature changes in the general public may be critical for, but the people have chosen not to Numaindon. That is the reason that more carbon is emitted to the Udyogoen Dnadn Laiseens are going to get. Infrastcr in roads, dams, etc., for the construction of the green forests are being sacrificed, but the new plants to change their work has been started yet. Z h with Sviarnm Ctubhu with East West and North-South road corridor for the construction of numerous trees have been cut, but their new location on the tree has not been until today. Five years later, if tree work is done in these five years, the environmental damage Bhogman Bhogega Who

Every body wants Narayanan favor!

(Limty Khare)

New Delhi. Prime Minister Singh's security adviser MK Narayanan Do.am.aml of silver these days. Each political party is trying to oblige them. If Congress did not come to power again, then the governor of any state or country can be sent as Ambassador to the glory of his life to cut. Narayanan is said to be the value immediately to the Congress's ears are standing. However, when that former Prime Minister Rajiv Gandhi was assassinated, the Intelligence Bureau headed Narayanan. Their role during the Sndh was. Responsibility for the murder of Rajiv Ganadhi on five Afsran was established, it also ranks was the name of Narayanan. After all that five years Kangreesnit the UPA government as the prime minister's security Slakar worked. Narayanan is a deep discussion that perhaps know the secret, or they are part of a special operation, which go by the Congress gave him so much and now they immediately take on the opposition is seen Amda.

education system collapsed
(Limty Khare)
Across the country after the death of a student Suirkyon in the news media, and governments are waking up to that name are not. In Delhi, the capital of the country Bhatia shape, then just a case of the death of Snno not even that cold Sangam Vihar in South Delhi, the eighth of fifteen Vsi Z or a student to commit suicide by parveen Gint new issue has come before. In this case is being said that the student's classmates on the 130 was accused of stealing money. But when searching for money to Gint met him out of the class was to be punished. The next day, when he reached school teacher badly it had abducted from there by DOT. When his mother called to tell if it reached the house Gint Ltkkr Ihleela eliminated from the fan made. By teachers of students with too much news now and then meet to hear live. Anclon like this in remote rural students with the reports of Durwyvhar often used to hide, but in urban areas and public awareness of the news in front of people is served by salt and pepper. Seeing that the entire Wakyat the health of the students before the test was made in the same way now a teacher of teachers to test the health need of August. Governments and the administration in this case from going ahead. Now non-governmental organizations (NGOs) to come forward and have to Discharge of this important responsibility. As it is the responsibility of teachers and students that their school to take care of the interests of full. By teachers to unknowingly being such crimes can not be excusable. In olden times, etc., in Gurukulon acharyas by his disciples were used to punish. It is believed that the conduct of student teachers to improve to some extent, should take a hard line, but it should be a limit. That they need psychological शिक्ष्ज्ञकों way my students to try to get on track, but time and want to control the process Dery, which clearly lack the teachers is reflected. Flaws in our own thoughts is in our system. Recruitment of teachers in schools during their investigations to the psychological or teachers from all over marginal punishment does not seem to diagnose the problem is. If changes in the system was not the time to come in the ruthless beating of students who come to hear the case, then now, the explosive increase in their number could be. After all, how a teacher like this is cruel? Answers to this question without a solution to this problem can not be found. Teachers should be punished to the methods of the twentieth century instead of the psychological methods they now take. In fact, the current education system to meet the heavy course in front of the teachers is the biggest burden, the burden and that slowly transformed into frustration and anger on her and ends. As the law of India to be profitable for the students, but it needs revision can not be ruled out. IPC and section 88 of the 89 teachers, the benefits has been exempted from punishment. It is believed that for the benefit of the children as he will. In the provision of Section 83 under the age of 12 years of age according to their children to be natural for Giltyon can not be punished. However, today the teachers made the forced labor by governments even enough to spoil the mood of teachers can be said. Issue of whether the Census Votr or ID card of the building. In each case by the governments of the teachers crusher Pera is like an ox. Set your AC in the good teacher, how heavy the whole course can get? Today the need of the teachers that they should Srkron the problems of practical approach to take, as well as teachers of students with physical or mental Pratadhna sympathy with them instead of keeping trying to improve the way Kreen psychologist, or teacher the dignity of the office to wear out no one will stop

survey results in not in favor of Congress!
(Limty Khare)
New Delhi. Government as a clandestine intelligence agency conducted a survey report of the Congress high command found under the feet of the ground has started Kiskne. By the way across the country on the poll is declared as a ban, despite its candidate selection by political parties from the election as a confidential survey to have been made. Power and the power of Congress 10 Janpath in the heart of high-quality government sources said intelligence agencies throughout the country in the Lok Sabha elections with the survey done quietly, and to survey the agencies have also sent to your Alnbrdaron. The survey system of government the Congress supremo Sonia Gandhi, Madam has been reached. In this survey, sources said the BJP to the Congress 145 of 165 from 115 to 125 seats have been predicted. The Bahujan Samaj Party (Mayawati) to 25 to 35, the Samajwadi Party (Mulayam Singh) from 20 to 25, Lokskti Janshakti Party (Paswan) and RJD (Lalu Yadav), the expectation of getting 8 to 9 is expressed. In addition, Indian and Makrswadi 35 Kmyunisht party and Jayalalitha to 40, including 40 seats, PMK Waiko and can be found. The survey also said that it could be the Karunanidhi and not a single seat in Kerala BJP to open your account. Awesome in this report are startling facts, which are not easily trust can be done. The credibility of this report to the Congress Banpakr of the United Progressive Alliance Manejron form the basis of the new search has started. For this, Lalu Prasad Yadav, Ram Vilas Paswan, Sharad Pawar, besides Mayawati, Jayalalitha, Nitish Kumar, Naveen Patnaik, etc. The prospects for coordination are being searched. According to sources, this time the Left parties on the principle of minimum dependence on Menejr of Congress are working

Union took over the reins of the campaign
(Limty Khare)
New Delhi. The general elections in two phases of the electorate in view of the Rashtriya Swayam Sewak rudely Union command of the campaign now has decided to handle it yourself. Union's top leaders believe that the NDA PM Lal Krishna Adwani voters waiting between Atal Bihari Bajpai as not able to create a current look. Association sources said high-K posted Adwani the image of the union leadership on the forehead lines Uker have to worry about. Now the union leadership for the next three phases of volunteers in the field have given instructions for Dtne. Earlier, sources said the PM Adwani as a green signal to the Union after the general elections for the BJP strategy was to create a free Hend. Later, when the union leadership from the ground reality, his senses flew Rubru. Sources said Mohan Rao Bhagwat Srsng operator was informed that the BJP workers in Adwani is not about passion. On the other hand, the BJP's second-rung leaders of the elections by N. Gujarat Chief Minister Narendra Modi to denote the next Prime Minister, the Union seems very upset. Is being said that on the instructions of the Union Adwani now as the next Prime Minister of Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chauhan's name is given Fijan swam in, so that the elections in Fector Modi may not have an impact on their image. Worried about the fact the union that if the BJP is out of power in the center, so badly broken the morale of BJP workers and activists will have to ensure the disruption. VHP, Bajrang Dal, etc. Jagrnmnc indigenous organizations of the gun barrel gun is not open yet, the Union finds the signal will start Dagna shells.

३० अप्रैल 2009

अराजकता के घेरे में स्कूलों की शिक्षा प्रणाली
0 एक के बाद एक मौत के बाद भी नहीं जाग रहीं सरकारें
0 शिक्षा से इतर काम के बोझ के तले दबे तो नहीं हैं शिक्षक
0 आचार्यों का मेडीकल परीक्षण आवश्यक

(लिमटी खरे)

देश भर में एक के बाद एक विद्यार्थी की मौत की खबरें मीडिया की सुिर्खयों में हैं, और सरकारें हैं कि जागने का नाम ही नहीं ले रही हैं। देश की राजधानी दिल्ली में ही आकृति भाटिया, फिर शन्नो की मौत का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ कि दक्षिणी दिल्ली के संगम विहार में आठवीं की एक पंद्रह वषीZय छात्रा जीनत परवीन द्वारा खुदकुशी करने का नया मामला सामने आ गया है।
इस मामले में कहा जा रहा है कि उक्त छात्रा पर सहपाठी के 130 रूपए चुराने का आरोप था। तलाशी लेने पर जब रूपए जीनत के पास से मिले तो उसे कक्षा से बाहर होने की सजा दे दी गई। अगले दिन जब वह स्कूल पहुंची तो शिक्षिका ने उसे बुरी तरह डॉट कर वहां से भगा दिया। जब उसकी मां को बुलाकर यह बात बताई गई तो जीनत ने घर पहुंचकर पंखे से लटककर इहलीला ही समाप्त कर ली।
शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों के साथ ज्यादती के समाचार जब तब सुनने को मिलते रहते हैं। सुदूर ग्रामीण अंचलों में इस तरह विद्यार्थियों के साथ होने वाले दुर्वयवहार की खबरें अमूमन छिप जाया करती हैं, किन्तु शहरी और जन जागृति वाले इलाकों में खबरों को लोगों के सामने नमक मिर्च लगाकर परोस दिया जाता है।
समूचे वाक्यात देखकर लगता है कि जिस तरह पहले विद्यार्थियों का स्वास्थ्य परीक्षण करवाया जाता था, उसी तरह अब शिक्षक शिक्षिकाओं का भी स्वास्थ्य परीक्षण करवाने की महती आवश्यक्ता है। सरकारें और प्रशासन इस मामले में आगे आने से रहा। अब गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) को ही आगे आकर इस महत्वपूर्ण जवाबदारी का निर्वहन करना होगा।
वैसे शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे अपने विद्यालय और विद्यार्थियों के हितों का पूरा पूरा ध्यान रखे। शिक्षकों के द्वारा जाने अनजाने में किए जा रहे इस तरह के अपराधों को क्षम्य नहीं माना जा सकता है। आदि अनादिकाल में गुरूकुलों में भी आचार्यों द्वारा अपने शिष्यों को दण्ड दिया जाता था। माना जाता रहा है कि छात्र के आचरण को सुधारने के लिए शिक्षकों को कुछ हद तक कठोर रवैया अपनाना चाहिए, किन्तु इसकी एक सीमा होनी चाहिए। शिक्ष्ज्ञकों को चाहिए कि वे मनोवैज्ञानिक तरीके से अपने विद्यार्थियों को पटरी पर लाने का प्रयास करें, किन्तु यह प्रक्रिया धेर्य संयम और समय चाहती है, जिसका अभाव साफ तौर पर शिक्षकों के पास परिलक्षित होता है।
हमारे अपने विचार में खामी हमारी प्रणाली में ही है। शालाओं में शिक्षकों की भर्ती के दौरान उनकी मनोवैज्ञानिक पड़ताल करने या कुछ शिक्षकों को मामूली सी सजा देने भर से समस्या का निदान होता प्रतीत नहीं होता है। अगर प्रणाली में परिवर्तन नहीं किया गया तो आने वाले समय में विद्यार्थियों की निर्मम पिटाई के जो मामले यदा कदा सुनने में आते हैं, उनकी संख्या में विस्फोटक इजाफा हो सकता है।
आखिर कोई शिक्षक इस तरह निर्मम कैसे हो जाता है? इस प्रश्न के उत्तर के बिना इस समस्या का हल नहीं खोजा जा सकता है। शिक्षकों को चाहिए कि सजा देने के बीसवीं सदी के तरीकों के बजाए वे अब मनोवैज्ञानिक तरीकों को अपनाएं। दरअसल वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में भारी भरकम पाठ्यक्रम को पूरा कराना ही शिक्षकों के सामने सबसे बड़ा बोझ है, और यही बोझ धीरे धीरे उनकी कुंठा में तब्दील होकर आक्रोश पर जाकर समाप्त होता है।
वैसे भारत का कानून विद्यार्थियों के लिए हितकर कहा जा सकता है, किन्तु इसमें संशोधन की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता है। आईपीसी की धारा 88 और 89 में शिक्षकों को लाभ देते हुए सजा से छूट दी गई है। माना जाता है कि बच्चों की भलाई के लिए वह एसा करेगा। धारा 83 में किए गए प्रावधान के तहत 12 साल तक की उम्र के बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से की जाने वाली स्वाभाविक गिल्तयों के लिए दण्डित नहीं किया जा सकता है।
बहरहाल आज शिक्षकों से सरकारों द्वारा कराई जाने वाली बेगार भी शिक्षकों की मनोदशा बिगाड़ने के लिए पर्याप्त कही जा सकती है। मसला चाहे जनगणना का हो या फिर वोटर आईडी कार्ड बनवाने का। हर एक मामले में सरकारों द्वारा शिक्षकों को कोल्हू के बैल की तरह पेरा जाता है। एसी स्थिति में शिक्षक भला अपना निर्धारित भारी भरकम कोर्स पूरा कैसे करवा सकता है?
आज जरूरत इस बात की है कि सरकरों को चाहिए कि वे शिक्षकों की समस्याओं के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाएं, साथ ही साथ शिक्षको को भी विद्यार्थियों को शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना देने के बजाए उनके साथ सहानुभूति रखकर मनोवैज्ञानिक तरीके से सुधारने का प्रयास करेें, अन्यथा शिक्षक पद की गरिमा को तार तार होने से कोई भी नहीं रोक सकेगा।


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सर्वेक्षण ने उड़ाए कांग्रेस के होश!
0 सरकारी खुफिया एजेंसी ने भेजी सरकार को रिपोर्ट
0 कांग्रेस 125 तो भाजपा 165 पर काबिज
0 वामदलों पर न्यूनतम निर्भरता का सिद्धांत अपनाया कांग्रेस ने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सरकार की खुफिया एजेंसी ने गुपचुप तौर पर कराए सर्वे की रिपोर्ट पाकर कांग्रेस आलाकमान के पैरों के नीचे की जमीन खिसकने लगी है। वैसे तो देश भर में जनमत सर्वेक्षण पर घोषित तौर पर प्रतिबंध है, बावजूद इसके राजनैतिक दलों द्वारा प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव तक गोपनीय तौर पर सर्वे करवाया गया है।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के केंद्र 10 जनपथ के आला दर्जे के सूत्रों ने बताया कि सरकारी खुफिया एजेंसियों ने देश भर में लोकसभा चुनाव को लेकर चुपचाप सर्वे किया है, और उस सर्वे को एजेंसियों ने अपने आलंबरदारों को भेज भी दिया है। सरकारी तंत्र से यह सर्वे कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी तक पहुंच गया है।
सूत्रों ने बताया कि इस सर्वेक्षण में भाजपा को 145 से 165 तो कांग्रेस को 115 से 125 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है। इसमें बहुजन समाज पार्टी (मायावती) को 25 से 35, समाजवादी पार्टी (मुलायम सिंह) को 20 से 25, लोकशक्ति जनशक्ति पार्टी (पासवान) एवं राजद (लालू यादव) को 8 से 9 मिलने की उम्मीद जताई है।
इसके अलावा माक्र्सवादी और भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी को 35 से 40 तथा जयललिता, वाईको और पीएमके मिलाकर 40 सीटें मिल सकती हैं। सर्वे में यह भी कहा गया है कि हो सकता है करूणानिधि को एक भी सीट न मिले और केरल में भाजपा अपना खाता खोल ले। इस रिपोर्ट में जबर्दस्त चौंकाने वाले तथ्य हैं, जिन पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता है।
इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता को भांपकर अब कांग्रेस के मैनेजरों ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के नए स्वरूप के आधार तलाशने आरंभ कर दिए है। इसके लिए लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, शरद पवार के अलावा मायावती, जयललिता, नितीश कुमार, नवीन पटनायक आदि से तालमेल की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। सूत्रों के अनुसार इस बार वाम दलों पर न्यूनतम निर्भरता के सिद्धांत पर कांग्रेस के मेनेजर काम कर रहे हैं।

संघ ने संभाली प्रचार की कमान
0 आड़वाणी की छवि से चिंतित है संघ
0 भाजपा को सत्ता पर काबिज करने कसी कमर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। आम चुनावों के दो चरणों में मतदाताओं की बेरूखी को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अब प्रचार की कमान खुद ही संभालने का निर्णय लिया है। संघ के आला नेताओं का मानना है कि राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी मतदाताओं के बीच अटल बिहारी बाजपेयी जैसा करंट पैदा करने में सक्षम नहीं दिख रहे हैं।
संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि एल.के.आड़वाणी की छवि ने संघ नेतृत्व की पेशानी पर चिंता की लकीरें उकेर दी हैं। संघ नेतृत्व ने अब अगले तीन चरणों के लिए अपने स्वयं सेवकों को मैदान में डटने के निर्देश दे दिए हैं।
सूत्रों ने बताया कि इससे पूर्व आड़वाणी को पीएम के रूप में हरी झंडी देने के बाद संघ ने भाजपा को आम चुनाव हेतु रणनीति बनाने फ्री हेण्ड दे दिया था। बाद में जब संघ नेतृत्व जमीनी हकीकत से रूबरू हुआ तो उसके होश उड़ गए। सूत्रों ने बताया कि सरसंघ संचालक मोहन राव भागवत को बताया गया कि भाजपा कार्यकर्ताओं तक में आड़वाणी को लेकर जोश नहीं है।
दूसरी ओर भाजपा की दूसरी पंक्ति के नेताओं द्वारा एन चुनावों के चलते गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अगला प्रधानमंत्री निरूपित करने पर संघ काफी खफा नजर आ रहा है। कहा जा रहा है कि संघ के निर्देश पर ही आड़वाणी ने अब अगले प्रधानमंत्री के रूप में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम फिजां में तैरा दिया हैै, ताकि चुनाव के चलते मोदी फेक्टर में उनकी छवि पर असर न पड़े।
दरअसल संघ चिंतित इस बात को लेकर है कि अगर इस बार भी भाजपा केंद्र में सत्ता से दूर रहती है, तो भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह टूट जाएगा और कार्यकर्ताओं में बिखराव सुनिश्चित ही है। विहिप, बजरंग दल, स्वदेशी जागरणमंच आदि संगठनों की तोप की नाल अभी तक खुली नहीं है, जो संघ का इशारा मिलते ही गोले दागना आरंभ कर देगी।