(लिमटी खरे)
राहुल के नाम के साथ गांधी शब्द जुड़ा हुआ है, यह गांधी शब्द उनकी सोच को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के और करीब ले जा रहा है। पहले लगता था, कि राहुल गांधी देश की नब्ज को समझ नहीं सके हैं, किन्तु अब लगने लगा है कि उनके अघोषित राजनैतिक गुरू दििग्वजय सिंह के राजनीति के ककहरे ने उन्हें सब सिखा दिया है।देखा जाए तो यूपीए सरकार का यह बजट सरकार के उदारवादी आर्थिक एजेंडे की नहीं वरन राहुल गांधी की सोच का परिचायक अधिक है। परोक्ष रूप से राहुल गांधी ने महात्मा गांधी की सोच को अंगीकार किया है। गांव में बसने वाले देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ को असल भारत मानते थे बापू, और उसकी सोच और उसके हितों को साधने की बात सदैव बापू किया करते थे।राहुल गांधी ने भी गांव गांव नापा है। विपक्ष ने इसे पालीटिकल ड्रामा करार दिया, किन्तु राहुल विचलित हुए बिना ध्येय की ओर बढ़ रहे हैं। हालिया बजट में राहुल की छाप साफ दिखाई पड़ती है कि सरकार को दलाल स्ट्रीट और शेयर बाजार से कहीं अधिक गांव के आम आदमी आम भारतीय की ज्यादा चिंता करनी चाहिए।वैसे भी पार्टी के अंदरखाने में चल रही चर्चाओं के अनुसार राहुल गांधी का मानना है कि भाजपा ने सदा ही शेयर बाजार की सबसे ज्यादा चिंता की है। इससे उलट राहुल गांधी ने आम हिन्दुस्तानी को सक्षम बनाने की ठानी है। यही कारण है कि भाजपा के शाईनिंग इंडिया के स्थान पर कांग्रेस ने बुंलंद भारत का खालिस हिन्दी नारा अपनाया है। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के मुखिया भले ही नेहरू गांधी परिवार से इतर डॉ.एम.एम.सिंह हों पर कदमताल देखकर लगने लगा है कि आने वाले दो ढ़ाई सालों में ही कांग्रेस के युवराज राज्याभिषेक के लिए तैयार हो जाएंगे।प्रणव मुखर्जी ने अंतरिम बजट पेश किया है। कांग्रेस अपने ही हाथों अपनी पीठ थपथपा रही है, कांग्रेस भूल रही है कि गांव की ओर के नारे के साथ उसने गांव के आम आदमी को राहत देने की असफल कोशिश ही की है। आम आदमी की दाल रोटी आज भी उसकी पहुंच से कोसों दूर ही नजर आ रही है।वैसे गांवों और शहरों की आधारभूत संरचना के लिए इतना अधिक निवेश पहली बार किया गया है, यह सुखद बात कही जा सकती है। प्रणव मुखर्जी के साथ ही साथ पीएम और सोनिया एवं राहुल भी जानते हैं कि सरकारी अंटी (खजाने) से निकलने वाले धन का कितना और कहां कैसे उपयोग होता है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि सरकारी खजाने से निकलने वाले एक एक रूपए का सदुपयोग हो।आजादी के बाद यह पहला बजट होगा जबकि प्रस्तावित व्यय का आंकड़ा दस हजार करोड़ रूपए को पार कर गया है, आजाद भारत का पहला बजट मात्र 193 करोड़ रूपयों का पेश किया गया था। इसमें से सत्तर फीसदी से अधिक का हिस्सा गैर योजनागत मद में व्यय किया जाएगा, जो कि निश्चित तौर पर चिंताजनक पहलू ही कहा जाएगा। वैसे भी योजनागत मद के आवंटन का साठ से अस्सी फीसदी हिस्सा कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़ जाया करता है।घुसपैठ रोकने के लिए पहचान पत्र की अनिवार्यता प्रशंसनीय है किन्तु सरकार को चाहिए कि वह अपने गेंहूं चावल के वादे को अमली जामा पहनाने के लिए उचित प्रबंध सुनिश्चित करे। सरकार ने 3 रूपए की दर से 25 किलो गेंहूं या चावल देने का वादा किया था। घुन लगी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के चलते सरकार की मंशा पूरी हो इसमें संदेह ही लग रहा है।वहीं दूसरी ओर सरकार ने किसानों को छ: फीसदी की दर से कर्ज मुहैया कराने की मंशा व्यक्त की है। इसके पहले कर्जमाफी के हाल किसी से छिपे नहीं हैं। मध्य प्रदेश में ही कर्ज माफी में भारतीय जनता पार्टी के नुमाईंदों ने अपनी मोटर सायकल, जीप आदि के कर्ज माफ करवाकर लगभग सत्तर अस्सी करोड़ की चपत लगा दी है।संप्रग सहयोगी लालू प्रसाद यादव की चिंता बेमानी नहीं कही जा सकती है कि सरकार ने कोसी के कहर की बिल्कुल परवाह नहीं की है। हर साल आतंक बरपाने वाली कोसी नदी से प्रभावितों के लिए बजट मे किसी तरह का जिकर न किया जाना प्रणव दा की असंवेदनशीलता दर्शाता है।कुल मिलाकर कांग्रेस के मैनेजरों ने बंगाल के सुपरस्टार कहे जाने वाले प्रणव मुखर्जी (दादा) और सुश्री ममता बेनर्जी (दीदी) को साधकर कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के 7 रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री के सरकारी आवास) पहुंचने के सारे मार्ग प्रशस्त करने आरंभ कर दिए हैं।
कमल नाथ ने दिखाए फिर तीखे तेवर
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम में गति लाने को कहा
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने विभागीय अधिकारियों की मुश्कें कसना आरंभ कर दिया है। कमल नाथ के तीखे तेवरों को देखकर विभागीय अधिकारी सकते में हैं। पिछली बार टी.बालू के कार्यकाल में मदमस्त हाथी की चाल चलने वाले अधिकारी अब बगलें झांकते नजर आ रहे हैं।गौरतलब होगा कि कार्यभार संभालने के ठीक बाद कमल नाथ ने अधिकारियों को ताकीद कर दिया था कि उन्हें सड़कें कागज पर नहीं वरन् जमीन पर दिखनी चाहिए। उस समय अधिकारियों को लगा था, कि कमल नाथ द्वारा शुरूआत में इस तरह का रवैया अपनाया जा रहा है जो समय के साथ ही शिथिल पड़ जाएगा।वर्तमान में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के उसी तरह के कड़े रूख को देखते हुए अधिकारियों की बोलती बंद हो गई है। हाल ही में उन्होंने दिल्ली में द्वारका स्थित प्राधिकरण के मुख्यालय का दौरा किया और मुख्यालय पर कार्यरत अधिकारियों और परियोजना कार्यान्वयन इकाईयों के परियोजना निदेशकों को संबोधित किया।अपने संबोधन में श्री नाथ ने कहा कि सड़क भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास की इ±जन है। देश में अच्छे बंदरगाह और हवाई अड्डे हो सकते हैं लेकिन अच्छी सड़कों के बिना इनका पूरा उपयोग नहÈ हो सकता। केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री श्री कमलनाथ ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों से राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम में गति लाने के लिए कार्य संस्—ति में बदलाव लाने को कहा है।वैसे कभी वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे कमल नाथ के मार्ग की सबसे बाधा के रूप में वर्तमान वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश आ सकते हैं, क्योंकि एक साक्षात्कार में रमेश ने कहा था कि पर्यावरण को बचाने के लिए न कहना सीखना होगा एवं सड़क मार्ग के गलियारों के चक्कर में वनों का नुकसान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।कायस लगाया जा रहा है कि उत्तर दक्षिण गलियारे में कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के सीमावर्ती जिले सिवनी के पेंच रिजर्व फारेस्ट में से फोर लेन को ले जाने की अनुमति वन एवं पर्यावरण मंत्रालय शायद ही दे। माना जा रहा है कि रिजर्व फारेस्ट में आने वाले 12 किलोमीटर हिस्से को (जो वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात का हिस्सा है) जैसा है, वैसा ही रहने देकर शेष भाग को फोरलेन में तब्दील कर दिया जाएगा।