लूट मची है मनरेगा के कामों में
रोजगार गारंटी का कोई लेखा जोखा ही नहीं पंचायतों के पास
अरबों की लूट मची है मनरेगा में
केंद्र की महात्वाकांक्षी योजना में भ्रष्टाचार की सड़ांध
एमपी में मनरेगा का कोई रिकार्ड नहीं!
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) में भ्रष्टाचार की कलई धीरे धीरे खुलने लगी है। एसा नहीं कि केंद्र को इसकी जानकारी नहीं है कि उसके द्वारा दी जाने वाली अरबों खरबों रूपयों की इमदाद को दिल खोलकर लूटा जा रहा हो। विडम्बना है कि कांग्रेस और केंद्र सरकार जनता के गाढ़े पसीने की कमाई में भ्रष्टाचार का इस्तेमाल महज चुनावी लाभ को मद्देनजर रखकर किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होना तय हैं। इसी के मद्देनजर कांग्रेस में भविष्य के वजीरे आजम ने उत्तर प्रदेश में इस योजना को भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़ने की बातें जोर शोर से उठाई जा रहीं हैं। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से एकत्र धनराशि पर हो रही बंदरबांट को चुनावी मुद्दा ही बनाया जा रहा है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि भाजपा शासित राज्यों विशेषकर मध्य प्रदेश में इसकी हालत बेहद चिंताजनक है। बावजूद इसके मध्य प्रदेश विधानसभा में शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में इसका जिकर करना भी कांग्रेस ने उचित नहीं समझा। माना जा रहा है कि यह जनता से जुड़ा एक मुद्दा है जिसे कांग्रेस चुनावों के आसपास ही भुनाने का जतन करेगी।
सूत्रों ने कहा कि मध्य प्रदेश में अगर जिला स्तर पर इसकी मानिटरिंग करवा दी जाए तो देश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है। गौरतलब है कि राज्य में पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 69 (1) एवं धारा 92 के तहत यह अपराध योग्य मामला बनता है।
सूत्रों ने बताया कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के आला अधिकारियों के संज्ञान में यह लाया गया है कि एमपी में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक प्रशिक्षु अधिकारी अभिजीत अग्रवाल द्वारा कांग्रेस के मण्डला सांसद बसोरी सिंह मसराम के संसदीय क्षेत्र में अपनी तैनाती के दौरान एक तहसील में मनरेगा से संबंधित कामों की मानीटरिंग आरंभ की है। उक्त अधिकारी द्वारा मनरेगा योजना के आरंभ होने से वर्तमान तक पूर्ण, अपूर्ण एवं कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी हो चुकी समस्त कार्यों की नस्ती को बुलाया गया है।
इतना ही नहीं प्रशिक्षु आईएएस अग्रवाल ने जॉब कार्ड रजिस्टर, परिसम्पत्ति रजिस्टर, मस्टरोल रजिस्टर, भुगतान पंजी आदि के अलावा अभिलेख तीन जी.पी. 01 से जी.पी. 14 प्रपत्र में अद्यतन जानकारी मंगाई है। उक्त अधिकारी ने उपयंत्रीवार पंचायतों का विवरण जारी कर बैठक निर्धारित कर दी गई है, जिसमें ग्राम पंचायत सचिव, ग्राम रोजगार सहायक, मेट आदि को आवश्यक प्रपत्र लेकर उपस्थित होना अनिवार्य किया गया है।
इस माह के अंत तक लगातार आहूत बैठकों का क्या निचोड़ निकलकर सामने आता है यह तो वक्त ही बताएगा किन्तु कहा जा रहा है कि अब तक हुई बैठकों में मनरेगा योजना के आरंभ से पिछले साल तक का कोई भी दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं हो सका है जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि संबंधित सब इंजीनियर्स द्वारा अपने राजनैतिक संरक्षण में शासकीय धन की जमकर होली खेली है।
सबसे अधिक आश्चर्यजनक तथ्य तो यह उभरकर सामने आया है कि मध्य प्रदेश में जिला स्तर पर हर साल पंचायतों का आडिट निजी तौर पर करवाया जाता है। अगर इनका आडिट हुआ है और सरकार ने निजी तौर पर किए गए इस आडिट का सरकारी भुगतान किया है तो फिर वे सारे प्रपत्र आखिर गए कहां। इसके आलवा जिला पंचायत और जनपद पंचायतों का आडिट हर साल महालेखा परीक्षक ग्वालियर द्वारा भी किया जाता है। इस तरह की गफलत होने पर आडिट विभाग पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक ही है।
कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम के संसदीय क्षेत्र में अगर केंद्र और कांग्रेस सरकार की महात्वाकांक्षी योजना में अगर भाजपा सरकार के कारिंदों द्वारा इस तरह धन की होली खेली जाती रही और जनता के सच्चे पहरूए खामोशी से सब कुछ देखते रह गए। वैसे मनरेगा की स्थिति कमोबेश संपूर्ण देश में इसी तरह की ही मानी जा रही है।