मंगलवार, 29 नवंबर 2011

चेकिंग स्कवॉड अब नहीं दिखेगा स्लीपर कोच में!


चेकिंग स्कवॉड अब नहीं दिखेगा स्लीपर कोच में!

आधा दर्जन रेल में ग्रीन टायलेट अगले साल

सुस्त है रेल का अधुनिकीकरण



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कंधे पर बैग टांगे सिविल यूनिफार्म में भारतीय रेल के शयनायन श्रेणी में जनरल टिकिट पर यात्रा करने वालों से जुर्माना वसूलने वाला चलित चेकिंग स्कवॉड आने वाले दिनों मे नहीं दिखाई पड़ेगा। इनके जिम्मे जनरल बोगी में ही बिना टिकिट यात्रा करने वालों की टिकिट चेकिंग की जवाबदारी डाली जा रही है। शयनायन श्रेणी में टिकिट चेकिंग का जिम्मा उसमें तैनात चल टिकिट परीक्षक (टीटीई) के जिम्मे ही होगा। इसके साथ ही साथ मंथर गति से होने वाले रेल्वे के आधुनिकरण के चलते महज छः रेल गाडियों में अगले साल ग्रीन टायलेट लगाने की कार्ययोजना को अंजाम दिया जाएगा।

रेल्वे बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि लंबी या कम दूरी की रेलगाडियों में टीटीई के पास टिकिट की जांच के उपरांत इतना समय होता है कि वे आराम से अपनी तैनाती वाले कोच में बिना आरक्षण के यात्रा करने वाले यात्रियों की टिकिट की जांच कर उनसे जुर्माना वसूल करें। अमूमन ये टीटीई या तो कर्तव्य से अनुपस्थित ही रहते हैं और अगर रहते भी हैं तो ये सामान्य शयनायन श्रेणी में टिकिट चेक कर एसी कूपों में जाकर आराम फरमाते हैं।

सूत्रों ने कहा है कि बोर्ड ने अब नया फरमान जारी किया है जिसमें चेकिंग स्कवॉड का काम आरक्षित बोगी में वहां तैनात टीटीई के कांधों पर डाल दिया गया है। अब चेकिंग स्कवॉड न तो आरक्षित बोगी में टिकिट की जांच कर पाएगा और न ही अवैध वसूली। इन बोगियों में परीक्षण की जवाबदेही टीटीई के जिम्मे कर दी गई है। इस आशय के आदेश भी भारतीय रेल द्वारा जारी कर दिए गए हैं।

सामान्य बोगी में बिना टिकिट यात्रा करने वालों की टिकिट जांच का काम चेकिंग स्कवॉड करेगा। माना जा रहा है कि इससे इस स्कवॉड में शामिल कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है। गौरतलब है कि स्कवॉड को हर साल जुर्माने से वसूली जाने वाली रकम का एक टारगेट दिया जाता है। साल भर सोने वाले इस स्कवॉड के सदस्य दिसंबर से मार्च तक पूरी सक्रियता दिखाकर जुर्माना वसूलकर अपना लक्ष्य पूरा करते हैं। इस स्क्वॉड के हाथ से अगर स्लीपर बोगी ले ली जाएगी तब इन्हें अपना लक्ष्य पूरा करने में काफी कठिनाई महसूस होगी।

उधर दूसरी ओर स्वयंभू प्रबंधन गुरू और तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने कार्यकाल में एक सदी पुराने डायरेक्ट डिस्चार्ज टॉयलेट सिस्टम को बदलने की मंशा व्यक्त की थी। इससे जल मल निकासी सीधे प्लेटफार्म पर होने से गंदगी फैला करती है। रेल्वे ने सात सालों में भी इस व्यवस्था को बदला नहीं जा सका। भारतीय रेल में अभी भी चुनिंदा बोगियों में ही ग्रीन टायलेट की सुविधा उपलब्ध है।

सूत्रों ने बताया कि भारतीय रेल ने आईआईटी कानपुर से जीरो डिस्चार्ज का डिजाईन तैयार करवाया है। वर्तमान में ग्रीन टायलेट के लगभग दो सौ सेट के डीआरडीओ ने सफल परीक्षण किए हैं। रेल्वे की योजना है कि आने वाले दो सालों में आठ हजार से ज्यादा कोच में ग्रीन टायलेट लगाया जाए। रेल्वे के रिसर्च डेवलपमेंट एण्ड स्टेंडर्ड आर्गनाईजेशन ने अगले साल महज छः रेल गाडियों मं ग्रीन टायलेट लगाने की योजना बनाई है।

कोई टिप्पणी नहीं: