कांटों की सेज
तैयार है युवराज के लिए
(लिमटी खरे)
आदि अनादि काल के
मानिंद ही अब सत्ता का हस्तांतरण हो रहा है। युवराज राजतिलक को तैयार हैं।
राजपुरोहित सही और माकूल महूर्त निकालकर उनका राज्याभिषेक करवाएंगे। राजा दिग्विजय
सिंह, अहमद पटेल, ए.के.अंटोनी सहित
सारे कांग्रेसी मंगल गीत गाएंगे। क्या कांग्रेस के कार्यकर्ताओं या नेताओं में
इतना साहस नहीं कि वे यह आवाज बुलंद कर सकें कि राहुल गांधी जो उत्तर प्रदेश में
ही असफल साबित हुए हैं उन्हें आखिर किस योग्यता को देखकर कांग्रेस का सर्वे सर्वा बनाया
जा रहा है? क्या उनकी
क्वालिफिकेशन ‘नेहरू
गांधी परिवार‘ का होना ही
है? क्या आजादी
के पेंसठ सालों बाद भी कांग्रेस के अंदर उपनिवेशवाद बुरी तरह हावी है? कांग्रेस के नेता
राहुल गांधी को आगे करके अपनी रोटियां तो सेंक लेंगे पर यह राहुल गांधी की
राजनैतिक हत्या के ही मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। बिहार और यूपी में मतदाताओं
द्वारा नकारे जाने से राहुल भयाक्रांत हैं। अन्यथा क्या वजह है कि अपने सिपाहसलार
अहमद पटेल के सूबे गुजरात में जाकर वे मोदी के खिलाफ अपनी सेना के कमांडर बनने से
नजरें चुरा रहे हैं?
कांग्रेस के अंदर
ही अंदर कुछ माहों से एक बहस चल रही थी कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को जल्द
ही बड़ी भूमिका में आना चाहिए। राहुल गांधी को सबसे पहले तो प्रधानमंत्री बनने का
न्योता दे मारा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने। जब प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की
भुकटी तनी तब उन्हें मनमोहन सिंह मंत्रीमण्डल मे मंत्री बनकर काम काज सीखने की
नसीहतें दी जाने लगीं। एक बार मीडिया ने फिर कयास लगाए कि राहुल को कांग्रेस का
कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। अपनी टीआरपी के चक्कर में मीडिया ने ना जाने
क्या क्या कयास लगाए थे।
कांग्रेस नीत
संप्रग सरकार के आठ साल के कार्यकाल में घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार और
अनाचार के सारे रिकार्ड ध्वस्त हुए हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
बावजूद इसके मोटी चमड़ी वाले कांग्रेस के आला नेताओं ने इस बारे में अपना मुंह नहीं
खोला। यहां तक कि भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी
और युवराज राहुल गांधी ने भी अपनी जुबान नहीं खोली। कांग्रेस में अंदर ही अंदर
असंतोष सुलग रहा है।
कांग्रेस के
रणनीतिकारों ने चुनाव के लगभग डेढ़ साल पहले ही इसकी सुध ली और चुनाव की कमान
अपेक्षाकृत युवा राहुल गांधी के हाथों में सौंप दी। जैसे ही युवा तरूणाई के हाथों
में चुनाव की कमान आने की बात सामने आई वैसे ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बांछे
खिल गईं। उन्होंने बम तासे फोड़ना आरंभ कर दिया। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की खुशी
ज्यादा देर तक नहीं चली, क्योंकि जल्द ही हाल में गठित की गई टीम राहुल में चुके हुए
फुस्सी बमों की लड़ी ही सामने आई।
युवा के हाथों कमान
सौंपे जाने की बात भी बेमानी ही साबित हो रही है। राहुल की नई टीम में उमर दराज
अहमद पटेल, दिग्विजय
सिंह, ए.के.अंटोनी, जनार्दन द्विवेदी
आदि नेताओं को युवा कैसे माना जा सकता है। भारत सरकार हो या फिर किसी भी सूबे की
सरकार, हर जगह
सरकारी कर्मचारी की सेवानिवृति की उम्र साठ से बासठ ही है। ये सारे नेता
रिटायरमेंट की आयु को पार कर चुके हैं। फिर भी युवा बने हुए हैं। इनमें से अधिकांश
नेता रीढ़ विहीन ही माने जा सकते हैं।
खुद राहुल और
सोनिया गांधी अपने संसदीय क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश सूबे में कांग्रेस को जिंदा
नहीं कर सके। कांग्रेस की सियासी धुरी बनने वाले अहमद पटेल के गुजरात के हाल किसी
से छिपे नहीं है। गुजरात में कांग्रेस का नामलेवा नहीं बचा है। राजा दिग्विजय सिंह
के मध्य प्रदेश में 2003 से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। संगठन आज आईसीसीयू में पड़ा
कराह रहा है। अब अपने अपने सूबे के कर्णधार अपने अपने घरों में ही कांग्रेस को
रोशन नहीं कर पा रहे हैं, भला इनके भरोसे कांग्रेस की वेतरणी अगले आम चुनावों में कैसे
पार लग पाएगी? जो अपने
घरों को ही दुरूस्त ना कर पाए भला वे राहुल गांधी को किस तरह की सलाह देंगे यह
प्रश्न विचारणीय ही माना जाएगा।
राहुल गांधी युवाओं
को आगे लाने की हिमायत करते हैं। कांग्रेस उन्हें बागडोर सौंपने को आतुर है। वहीं
देश की दो तिहाई आबादी 35 साल से कम की है। राहुल खुद 42 के हैं, पर उनकी टीम में
अधिकतर नेता साठ को पार कर चुके हैं। अब इन परिस्थितियों में क्या युवाओं का
कांग्रेस या राहुल पर एतबार जमेगा कि युवाओं को आगे लाने की बातें राहुल वास्तव
में करते हैं या फिर ये भाषण की ही शोभा होती हैं।
राहुल गांधी के
सामने इस समय चुनौतियों का अंबार ही लगा हुआ है। देश की जनता मंहगाई से बुरी तरह
कराह रही है। गैस की संख्या कम कर दी गई है। जनता राहुल गांधी से यह प्रश्न पूछ
रही है कि देश की जनता पर मंहगाई का बोझ डालने की बजाए घपलेबाज, घोटालेबाज, भ्रष्टाचारियों की
संपत्ति को राजसात कर राजकोष को क्यों भरा नहीं जाता? आखिर क्या वजह है
कि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की,, सदा ही स्ट्रा लगाकर देश की ही गरीब जनता का
खून पीती है? अखिर
विदेशों में जमा काले धन पर सरकारें मौन क्यों हो जाती हैं?
देश में बेरोजगारी, के साथ ही साथ पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी
बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं आम आदमी को। कांग्रेस ने आधी सदी से
ज्यादा इस देश पर राज किया है। बावजूद इसके आधारभूत मामलों में भी देश आत्मनिर्भर
नहीं हो पाया है। यह कांग्रेस की बड़ी असफलता ही मानी जाएगी। राहुल गांधी की नई टीम
में युवाओं को नजर अंदाज किए जाने की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है।
साथ ही साथ पुराने उमर दराज लोगों में भी जनता के नकारे चेहरे ही सामने लाए गए हैं
जो राहुल गांधी के लिए परेशानी का सबब बनने वाले हैं।
वैसे कांग्रेस के
चतुर सुजानों ने राहुल गांधी को अभी ताज इसलिए पहनाने का महुर्त निकाला है क्योंकि
वे इस बात पर संतोष कर रहे हैं कि विपक्षी दल भाजपा के अंदर सब कुछ सामान्य नहीं
है। भाजपा के अध्यक्ष खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं तो चुनावों में
भ्रष्टाचार की धार अपने आप ही बोथरी हो जाएगी। आज कांग्रेस के ही कार्यकर्ताओं में
अंदर ही अंदर इस बात पर बहस हो रही है कि सोनिया गांधी कह रही हैं कि
भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा, फिर क्या वजह है कि सलमान खुर्शीद, वीरभद्र सिंह, राबर्ट वढ़ेरा, चिदम्बरम आदि के
खिलाफ जांच करने से कांग्रेस क्यों कतरा रही है?
राहुल गांधी की
ऋणात्मक बातों में उनका शर्मीला होना सबसे अहम है। जिसके चलते वे आम जनता से घुल
मिल ही नहीं पाते हैं। सियासी जानकारों द्वारा राहुल गांधी को अपरिपक्व की श्रेणी
में ही खड़ा रखा है। इसका कारण यह है कि जोश में आकर वे अपने पिता की तरह ही एसे
वक्तव्य कह जाते हैं जो बाद में पार्टी के लिए परेशानी खड़ी करते हैं। इसके अलावा
आठ सालों के सांसद जीवन में उनके खाते में कोई खास उपलब्धि नहीं है। राहुल ने ना
तो अपने संसदीय क्षेत्र का ही बेहतर ख्याल रखा है और ना ही उन्होंने संसद में
सरकार का पुरजोर और प्रभावशाली तरीके से ही कभी बचाव किया है।
पंजाब, बिहार और उत्तर
प्रदेश चुनावों में राहुल गांधी का जादू फिस्स ही निकला। यूपी राहुल गांधी का गृह
सूबा माना जाता है,
क्योंकि यहां से नेहरू गांधी परिवार सदा ही चुनाव लड़ता आया
है। उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के रोड़ शो में मीडिया पर जमकर मेहरबान हुई थी
कांग्रेस, बावजूद
इसके नतीजे सिफर ही रहे। बिहार और यूपी में मतदाताओं द्वारा नकारे जाने के उपरांत
राहुल गांधी के मन में भय ने प्रवेश कर लिया है। संभवतः यही कारण है कि उन्होंने
गुजरात में नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी सेना के कमांडर बनने से इंकार ही कर दिया।
कांग्रेस के कार्यकर्ता अब इसे इस नजरिए से देख रहे हैं कि आखिर कांग्रेस के
युवराज को अपने सलाहकार अहमद पटेल के सूबे में आकर नरेंद्र मोदी को चुनौती देने
में भला कैसा डर होना चाहिए?
राहुल के डर को अगर
किसी ने सही तरीके से रेखांकित किया है तो वह हैं सलमान खुर्शीद! सलमान खुर्शीद ने
राहुल गांधी की तुलना सचिन तेंदुलकर से कर डाली। राहुल ने गुजरात की ओर मुंह नहीं
किया। साथ ही साथ यह बात भी उतनी ही सच है जितनी कि दिन और रात कि खराब पिच या
बलशाली विरोधी, खतरनाक
बालर्स के सामने जाने से सचिन तेंदुलकर ने कभी इंकार नहीं किया है। कभी सचिन मैदान
छोड़कर नहीं भागे! राहुल ने हिमाचल प्रदेश से भी अपने आप को बरी ही रखा है।
कुल मिलाकर
कांग्रेस के नए सेनापति राहुल गांधी को अगर अगले आम चुनावों में कांग्रेस को विजयी
बनाना है, और बहुमत
लाकर सरकार बना खुद को प्रधानमंत्री बनाना है तो उन्हें एक ही रणनीति पर काम करना
होगा। राहुल गांधी को चाहिए कि केंद्र में बैठे सारे क्षत्रपों को बुलाकर स्पष्ट
तौर पर एक ही बात कहें कि वे क्षत्रप देश के नक्शे में अपने अपने प्रभाव वाले
क्षेत्र की सीमा का निर्धारण करें। इसके बाद उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में टिकिट
वितरण की जवाबदेही भी उन्हीं क्षत्रप की होगी और उन्हें जिताकर लाने की भी। जो
जितना सफल होगा, उसे अगली
बार केंद्र में उतना मलाई वाला विभाग मिलेगा। इस तरह कांग्रेस की सीटें भी बढ़ेंगी
और भीतराघात के वार से भी बच जाएगी कांग्रेस! (साई फीचर्स)