रविवार, 11 जुलाई 2010

550वीं पोस्‍ट

आरटीई में फिसड्डी बना मध्य प्रदेश

लाखों बच्चे पढाई से हैं वंचित

स्कूल शिक्षा विभाग के सर्वे से हुआ फर्जीवाडा उजागर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 11 जुलाई। देश के बच्चों को शिक्षित करने की गरज से केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार का कानून (आरटीई) बना दिया है, किन्तु देश का हृदय प्रदेश ही इस कानून का सरेआम माखौल उडा रहा है। मध्य प्रदेश में लाखों, हजारों बच्चे आज भी पढाई से वंचित हैं। केंद्र के कानून को तो छोडिए जब मध्य प्रदेश में खुद का ही जनशिक्षा अधिनियम 2001 लागू है, बावजूद इसके स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।

गौरतलब है कि शिक्षा का मौलिक अधिकार अधिनियम 2009 जब से लागू हुआ है तब से छः से 14 साल तक के बच्चों को शिक्षा की अनिवार्यता लागू की गई है। इस अधिनियम के लागू होने के उपरांत स्कूल न जाने वाले समस्त बच्चों को स्कूल भेजकर दाखिला कराया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। यह जवाबदारी राज्य सरकार पर आहूत होती है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भी बच्चा इससे वंचित न रह जाए।

यहां उल्लेखनीय होगा कि केंद्र के शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के लागू होने के आठ साल पहले ही मध्य प्रदेश सरकार ने जनशिक्षा अधिनियम 2001 लागू कर दिया था, जिसके तहत सूबे में रहने वाले छः से चौदह साल के बच्चों का स्कूलों में दाखिला करवाना अनिवार्य बना दिया गया था। राजा दिग्विजय सिंह, उमा भारती, बाबू लाल गौर के बाद अब शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश सूबे के निजाम हैं, पर किसी ने भी प्रदेश के उन बच्चों की ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा जो स्कूल जाने के बजाए दीगर काम में अपना दिन बिता देते हैं।

मानव संसाधन विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि मध्य प्रदेश में स्कूल शिक्षा की स्थिति वाकई चिंता जनक है। सूत्रों ने कहा कि जो तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं वे बहुत ही भयावह हैं। मध्य प्रदेश सूबें मे लाखों बच्चे एसे हैं जो आज भी स्कूल जाने से वंचित हैं। मानव संसाधन विभाग के एक आला अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि अकेले भोपाल संभाग का ही लें तो वहां दस हजार से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। सीहोर में 424, बेतूल 3088, रायसेन 1331, भोपाल 1350, राजगढ 1136, होशंगाबाद 756, हरदा 657, विदिशा 488 बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। ये आंकडे स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष 2009 में कराए गए आंकडे हैं।

दरअसल शिक्षा का अधिकार अधिनियम तो कंेद्र और राज्य सरकारों ने बना दिया है, किन्तु आर्थिक तंगी के कारण शालाओं में गरीब अपने बच्चों का दाखिला कैसे कराए यह समस्या आज भी बरकरार है। वस्तुतः होना यह चाहिए था कि सरकारी शालाओं में बीपीएल परिवारों के बच्चों को निशुल्क शिक्षा के साथ ही साथ प्रदेश में चल रहे निजी स्कूलों में इस तरह के बच्चों के लिए कुछ फीसदी सीट आरक्षित करा दी जानी चाहिए।