ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
यह है जनसेवकों का असली चेहरा
एक समय था जब जनसेवक वाकई में जनसेवा को अपना असली धर्म माना करते थे, आज जमाना बदल गया है, जनसेवकों के लिए निहित स्वार्थ ही सबसे आगे आ गया है। अपनी रोजी रोटी और विलासिता को जनसेवकों ने अपना कर्तव्य समझ लिया है, रही बात आवाम की तो उनका मानना है चूल्हे में जाए रियाया। इसी तरह का कुछ वाक्या पिछले दिनों लोकसभा में देखने को मिला। वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान पूर्व रेलमंत्री और स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव का कहना था कि महिला आरक्षण विधेयक अगर परवान चढ गया तो बडी संख्या में पुरूष संसद सदस्यों के सेवानिवृत होने की आशंका है। इसलिए लालू ने मांग की कि सांसदों की तनख्वाह और पेंशन बढाई जानी चाहिए। जनसेवा करने का मानस अपने मन मस्तिष्क में लिए लालू यादव के शब्द तो सुनिए। सांसदों का वेतन बढाकर अस्सी हजार और उनकी पेंशन को बढाकर वेतन से कहीं अधिक एक लाख रूपए प्रतिमाह कर दिया जाए। अब लालू यादव को जमीनी हकीकत कौन समझाए कि देश में आम आदमी को दो जून की रोटी नसीब नहीं है मालिक, जनता के द्वारा दिए जाने वाले कर से तो जनसेवक वेतन पाते हैं, फिर विलासिता से भरपूर जीवन जीने के लिए एक लाख रूपए प्रतिमाह की पेंशन तो शायद निजी क्षेत्र या सरकारी कर्मचारी को भी न मिल पाती हो।
आडवाणी मोदी पर होगा हत्या का मुकदमा दर्ज!
मुस्लिम लॉ बोर्ड के सदस्य और निर्दलीय संसद सदस्य मोहम्मद अदीब के एक पत्र से प्रधानमंत्री कार्यालय की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई है। पीएमओ की हालत ‘‘हुई गति सांप छछूंदर केरी, उगलत निगलत पीर घनेरी‘‘ की सी हो गई है। अदीब के पत्र की इबारत कुछ इस तरह है कि वे गुजरात के दंगों के लिए नरेंद्र मोदी और बाबरी विध्वंस के लिए राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की अनुमति चाहते हैं। अदीब का कहना है कि जब लिब्राहन आयोग मान चुका है बावरी विध्वंस के लिए आडवाणी जिम्मेदार हैं तो फिर उस दरम्यान हुए दंगे और मारे गए लोगों की जवाबदारी भी लाल कृष्ण आडवाणी की ही बनती है। इसी तरह गोधरा कांड में एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को बुलाकर पूछताछ की गई है, चूंकि मामला अदालत में लंबित है, इसलिए वे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं, पर देश के लोकतंत्र की हिफाजत और हुकूमत का इकबाल बुलंद करने के लिए नरेंद्र मोदी और एल.के.आडवाणी के उपर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए। पीएमओ पशोपेश में है कि सांसद मोहम्मद अदीब के पत्र का क्या जवाब दें या क्या कार्यवाही करें। वैसे अदीब ने कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी सहित अनेक जनसेवकों को इस पत्र की प्रति भेजी है। अब देश के मुस्लिम संगठनों और संसद सदस्यों का लगातार अदीब को समर्थन मिलता जा रहा है।
साहब के ठाठ पसंद नहीं आए विजलेंस को
दिल्ली पुलिस के एक अतिरिक्त पुलिस आयुक्त के ठाठ बाट विभाग के ही विजलेंस विभाग को रास नहीं आए। पूर्वी जिला के एसीपी ओ.पी.सागर ने गर्मी से तंग आकर सर्दी का अहसास करवाने के लिए एक पखवाडे पहले अपनी सरकारी गाडी में एसी लगवा लिया। साहब बडे मौज से एसी की हवा में अपने कर्तव्य निभा रहे थे। साहब के चाहने वालों को यह बात रास नहीं आई और हो गई एक गुमनाम शिकायत। पुलिस मुख्यालय ने तत्काल इस पर संज्ञान लिया। विजलंेस विभाग ने मारा छाप और धर लिया एसीपी की गाडी को। एसीपी महोदय अपने कमिश्नर वाई.एस.डडवाल के उस आदेश को भूल गए थे, जिसमें साफ कहा गया था कि जो भी कर्मचारी या अधिकारी एयर कंडीशन का पात्र नहीं होगा वह इसका उपयोग करते पाए जाने पर दंडित किया जाएगा। हाल ही में थानों के निरीक्षण के दौरान एक एसीपी कार्यालय मंे लगे एसी पर भडके डडवाल ने उन्हें झाड पिलाई थी। कहा जा रहा है कि एसीपी सागर जब भी निरीक्षण पर निकलते तो वे एसी वाली गाडी से नीचे पैर नहीं रखते और कोई मातहत अगर सूरज की रोशनी से बचने के लिए छांव में बैठा दिख जाता तो उसकी शामत आ जाती। इन्हीं में से किसी ने कमाल दिखाया और एसीपी हो गए बेहाल।
साठ साल में चार, चार साल में पहली!
महिला आरक्षण के हिमायती होने का दावा करने वाली कांग्रेस जिसने आधी से ज्यादा सदी तक देश पर शासन किया है के बावजू राजस्थान में साठ साल में महज चार महिला जज और सर्वोच्च न्यायालय में चार साल बाद कोई महिला जज मिल सकी है। सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति रूमा पाल के जून 2006 में सेवानिवृत होने के बाद सुको में महिला जज नहीं थी। इसके बाद अब चार साल बाद न्यायमूर्ति सुधा मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के बतौर शपथ दिलवाई गई है। वे सर्वोच्च न्यायालय में चौथी महिला जस्टिस होंगी। उधर राजस्थान का उच्च न्यायलय भी सुप्रीम कोर्ट की तर्ज पर ही चल रहा है, वहां भी साठ साल में महज चार महिला जज ही बन पाई हैं। एक तरफ तो कांग्रेस महिलाओं की हितैषी होने का स्वांग रचती आई है, और दूसरी ओर महिलाओं को आगे बढाने की जब भी बात आती है, कांग्रेस अपना पल्लू झाडकर पीछे हो जाती है।
शोभा की सुपारी बने फुट ओवर ब्रिज
दिल्ली में एक के बाद एक कर फुट ओवर ब्रिज का निर्माण करवाया जा रहा है। कुछ सालों पहले बने मजबूत पुलों को भी तोडकर उनके स्थान पर नए लोहे के पुल बनाए जा रहे हैं। इन पुलों को एसे स्थानों पर बनाया जा रहा है कि जनता इनका उपयोग करने से हिचकने लगी है। अमूमन देखा गया है कि सडक पार करने के लिए बनाए गए फुट ओवर ब्रिज नशेडियों के अड्डे बन गए हैं। इन पुलों पर शाम ढलते ही मयखाने सजने लगते हैं, यहां चरस गांजें की सुगंध से सारा वातावरण सराबोर हो जाता है। भूल से भ अगर अलह सुब्बह आप इस पर से निकल जाएं तो इस पर चले हुए कारतूस (उपयोग किए हुए कंडोम) यत्र तत्र पडे मिल जाते हैं। जनता इन पुलों का उपयोग करने से बचती ही है। सडकों पर जहां कट है वहां से ही जनता अपनी जान जोखम में डालकर सडक पार करने में विश्वास रखती हैं अब दिल्ली सरकार को कौन बताए कि आपकी मर्जी से नहीं वरन अपनी मर्जी से चलना चहती है दिल्ली की जनता।
आईआरसीटीसी बनाम फर्जी वाडा
भारतीय रेल मंत्री ममता बनर्जी लाख दुहाई दें कि आईआरसीटीसी के हाथों में जब से रेल्वे की खान पान व्यवस्था गई है, तबसे रेल यात्रियों की मौजां ही मौजां हैं, पर जमीनी हकीकत इससे बहुत उलट ही है। आलम यह है कि राजधानी एक्सप्रेस में यात्रा करने वाले यात्रियों को ही परेशानियों का सामना करना पड रहा है। विशेषकर बिलासपुर से नई दिल्ली आने वाली राजधानी की पेन्ट्री में तो बहुत ही बुरी स्थिति है। वैसे भी राजधानी में यात्रा करने वाले यात्रियों की आम शिकायत है कि इसके कोच काफी पुराने हैं और उन्हें न तो मोबाईल चार्जर ही मिलता है और न ही धुले बेड रोल। रही बात खाने की तो वह भी पेन्ट्री के मूड पर ही निर्भर करता है। एक भुक्तभोगी यात्री ने बताया कि उसने 2441 राजधानी में जब 26 अप्रेल को तीसरी मर्तबा यात्रा की तब जाकर उसे शिकायत पुस्तिका दी गई वह भी टीसी के हस्ताक्षेप के बाद। उसने शिकायत नंबर 167698 दर्ज करवाई है, जिसका अब तक कोई उत्तर नहीं मिल सका है। उक्त यात्री की शिकायत को मानें तो उसे रात को नागपुर के बाद भोजन ही नहीं दिया गया और रही बात अन्य खाद्य पदार्थों की तो वह भी नदारत ही थे। पेन्ट्री मेनजेर से शिकायत करने पर भी कोई लाभ नहीं हुआ।
फिर अदालत की लताड पडी मीडिया को
अति उत्साह में मीडिया के कुछ कारिंदे एसा कर जाते हैं कि उन्हें बाद में पछताना पडता है। देश की अदालतों ने कई बार मीडिया को चेताया है कि वह अपनी हदें पहचाने और वर्जनाएं न तोडे। हाल ही में अभिनेत्री खुशबू के विवाह पूर्व यौन संबंधों के बयान के बारे में गलत व्याख्या करने पर एक बार फिर मीडिया अदालत के निशाने पर आ गया। इस मामले में अदालत का कहना था कि मीडिया और लोगों ने खुशबू के नजरिए को गलत रूप में समझा है, परिणामस्वरूप अदालत के सामने याचिकाओं की बाढ आ गई है। वैसे यह सच है कि मीडिया का काम गलत और सही को बताना है, अमूमन देखा जा रहा है कि पिछले कुछ सालों से जबसे देश का मीडिया कार्पोरेट घरानों की लौंडी बन गया है, तबसे मीडिया न्यायधीश की भूमिका में आ गया है, जो सरासर गलत है। मीडिया को चाहिए कि वह अपनी सीमाएं पहचाने और गलत या सही क्या है यह बताए न कि किसी मामले में फैसला दे। फैसला देने का काम अदालत का है, और यह अधिकार अदालत के पास ही रहे ता बेहतर होगा।
साईबर सुरक्षा सबसे बडी चुनौति
मई के आते ही बच्चों और युवाओं का मन आल्हादित हो उठा है, क्योंकि साल भर की पढाई के बाद अब वे फुर्सत में छुट्टियां काट रहे हैं। अवकाश के आते ही अभिभावकों के सामने एक बडी चुनौति साईबर सुरक्षा की पैदा हो गई है। इक्कीसवीं सदी में इंटरनेट युवाओं और बच्चों की पहली पसंद बनकर उभरा है। घरों पर इंटरनेट कनेक्शन और साईबर कैफे में आज लाईन लगी हुई है। क्या बच्चे क्या जवान हर कोई आज इंटरनेट के अनंत आकाश में खोने को बेताब है। अवकाश के दिनों में लोग आम दिनों से ज्यादा समय तक इंटरनेट पर बिता रहे हैं। साईबर क्राईम करने वालों के लिए यह सबसे मुफीद मौका है, जबकि वे लोगों को आसानी से लूट सकते हैं। अज्ञानता में अपनी निजी जानकारी और क्रेडिट कार्ड संबंधी सूचनाएं भी लोग साझा कर रहे हैं जो सबसे अधिक चिंता का विषय है। साईबर अपराधी बच्चों या नौजवानों को उलझाकर आसानी से उनको अपने जाल में फंसाकर उनसे जानकारी शेयर कर एकांउंट को खाली कर सकते हैं। सो सावधान हो जाईए कहीं आपका बच्चा तो साईबर अपराधियों के चंगुल में नहीं फंसने जा रहा है।
काहे की मंदी यहां तो बल्ले बल्ले हैं
समूचा विश्व आर्थिक मंदी की मार झेल रहा है, भारत में भी इसका असर है, पर महाराष्ट्र के ओरंगाबाद जिसकी गिनती मराठवाडा इलाके के पिछडे जिलों में होती है में भले ही औद्योगिक विकास की किरण स्पर्श न कर पाई हो, पानी का हाहाकार हो, गरीब गुरबों की तादाद बहुत ज्यादा हो पर यहां के हालात देखकर लगता नहीं है कि यह जिला कहीं से पिछडा है। पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख और वर्तमान निजाम अशोक चाव्हाण की कर्मभूमि औरंगाबाद जहां दौलताबाद नाम का किला है, में पिछले एक सप्ताह में ही लगभग 115 मर्सिडीज गाडी बुक करवाई गईं हैं। है न आश्चर्य की बात। मंहगी विलासिता का प्रतीक मानी जाने वाली मर्सिडीज कार की कीमत 25 से 95 लाख रूपए तक है। लोगों को हैरत है कि इतने पिछडे जिले में एक सप्ताह में ही लगभग सवा सैकडा मंहगी कार की बुकिंग कैसे हो गई, पर यह सच है जनाब। यह हैरत अंगेज कारनामा हुआ है औरंगाबाद में। इस लिहाज से कौन कहेगा कि औरंगाबाद पिछडा हुआ है।
प्रशांत भूषण मामले की सुनवाई 14 को
पूर्व न्यायाधिपतियों और वर्तमान प्रधान न्यायधीश एच.एस.कापडिया के बारे में कथित तौर पर टिप्पणी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ स्वतः संज्ञान के आधार पर अवमानना की कार्यवाही के लिए नोटिस देने के मामले के विचारयोग्य होने या न होने की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है। इस पर फैसला 14 जुलाई को दिया जाएगा। गौरतलब है कि तहलका को दिए एक साक्षात्कार में भूषण ने कहा था कि न्यायमूर्ति कापडिया को वन संबंधी मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ के सदस्य होने के नाते प्रधान न्यायधीश के.जी.बालकृष्णणन के साथ वेदांता स्टर्लाइट ग्रुप से जुडे मुकदमें की सुनवाई नहीं करना चाहिए, क्योंकि कंपनी में उनके अर्थात जस्टिस कापडिया के शेयर हैं। इसके बाद जस्टिस कापडिया ने खुद को इससे अलग कर लिया था। अब जब देश के प्रधान न्यायधीश की आसनी पर जस्टिस कापडिया विराजमान हैं, तब देखना यह है कि जस्टिस अमलतास की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ क्या निर्णय देती है।
शिव पर बिफरे शंक्राचार्य
जगतगुरू शंक्राचार्य स्वामी स्वरूपानंद इन दिनों मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार से खासे नाराज नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश में शिवराज के नेतृत्व मंे भाजपा सरकार काबिज है, और माना जाता है कि भाजपा द्वारा साधु संतों का बहुत आदर किया जाता है। शंक्राचार्य जी का आरोप है कि मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में सांकलघाट में 10 लाख साल पुरानी आदि शंकराचार्य की पूज्यनीय गुफाओं के संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों में वन मण्डल अधिकारी (डीएफओ) जानबूझकर न केवल अडंगा लगा रहे हैं, वरन डीएफओ अभद्र व्यवहार पर भी उतर आएं हैं। उनका कहना है कि इन गुफाओं में मां नर्मदा के जल का रिसाव जारी है, पास ही माता हिंगलाज का सािान है। साधु संतों के सहारे सत्ता का स्वाद चखने वाली भाजपा पर अगर शंकराचार्य की दृष्टि तिरछी हो गई हो तो भाजपा को समय रहते ही समझ लेना चाहिए कि पुरानी कहवात चरितार्थ होने वाली है कि ‘‘जब नास मनुस का छाता है, तब विवेक मर जाता है।‘‘
पुच्छल तारा
भारत गणराज्य में असमानताएं अनंत हैं, इसी पर रेखांकित एक ईमेल नरेंद्र ठाकुर ने भेजा है, जिसमें भारत सरकार के प्रति उनका गुस्सा साफ झलक रहा है। वे लिखते हैं कि ओलंपिक शूटर स्वर्ण पदक जीतकर आता है तो भारत सरकार खुशी से फूली नहीं समाती और उसे तीन करोड रूपए इनाम के बतौर देती है, वहीं दूसरी ओर नक्सलवादियों से लडते हुए 76 जवान शहीद हो जाते हैं और भारत सरकार हर जवान को महज एक लाख रूपए की राशि ही देती है। जय हो गांधी नेहरू आपकी कांग्रेस देश को कहां ले जा रही है, सदबुद्धि दो आज के इन कांग्रेसियों को।