मंगलवार, 10 सितंबर 2013

प्रदूषण के मानकों को ताक पर रख दिया झाबुआ पावर ने

आदिवासियों को छलने में लगे गौतम थापर . . . 13

प्रदूषण के मानकों को ताक पर रख दिया झाबुआ पावर ने

निर्माण कार्य और कार्यकारी अवस्था में प्रदूषण के मामले में मौन है झाबुआ पावर, प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का मौन संदिग्ध

(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। सफल और मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छठवीं अनूसूची में अधिसूचित आदिवासी तहसील घंसौर में डाले जा रहे 1260 मेगावाट (कागजों में 1200 मेगावाट) के पावर प्लांट में पर्यावरण के नियम कायदों मानकों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इसके बावजूद मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का मौन आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।
गौरतलब है कि 22 अगस्त 2009 को इस संयंत्र के प्रथम चरण के लिए 600 मेगावाट के पावर प्लांट की लोकसुनवाई में मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा जो कार्यकारी सारांश जमा किया गया था उसमें संयंत्र की लागत 2900 करोड़ रूपए एवं जमीन की आवश्यकता 600 हेक्टेयर दर्शाई गई थी। इस समय कार्यकारी सारांश की कंडिका क्रमांक आठ में कंपनी ने साफ किया था कि वह निर्माण कार्य के समय 181 करोड़ पचास लाख रूपए और कार्यकारी अवस्था में 9 करोड़ पांच लाख रूपए की राशि का प्रावधान पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए कर रही है।
इसके उपरांत इसके दूसरे चरण की लोकसुनवाई 22 नवंबर 2011 को संपन्न हुई। इस लोकसुनवाई के दूसरे दिन मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की आधिकारिक वेब साईट पर कंपनी का वही (22 अगस्त 2009 वाला) कार्यकारी सारांश डाल दिया गया। इसमें दूसरे चरण के लिए भी कंपनी को 600 हेक्टेयर जमीन की आवश्यक्ता दर्शाई गई है। इसमें भी कार्यकारी सारांश की कंडिका क्रमांक आठ में कंपनी ने साफ किया था कि वह निर्माण कार्य के समय 181 करोड़ पचास लाख रूपए और कार्यकारी अवस्था में 9 करोड़ पांच लाख रूपए की राशि का प्रावधान पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए कर रही है।

22 नवंबर 2011 को घंसौर के गोरखपुर में हुई लोकसुनवाई में प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय अधिकारी जबलपुर के समक्ष मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के महाप्रबंधक ए.एन.मिश्रा ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया था कि कंपनी अपने निर्माण के आरंभ से 22 नवंबर 2011 तक क्षेत्र में वृक्षारोपण करने में असफल रही। पीसीबी के अधिकारियों के समक्ष मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के प्रबंधन की स्वीकारोक्ति के बाद भी मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के ऊपर शस्ति आरोपित न करना पीसीबी और कंपनी की मिली भगत की ओर साफ इशारा कर रही है।

डेंगू को बहुत ही हल्के में ले रहा है प्रशासन!

डेंगू को बहुत ही हल्के में ले रहा है प्रशासन!

नहीं हो रहा दवा का छिड़काव, न हो रही घरों घर लार्वा की जांच

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनंी (साई)। दो माह पहले सिवनी में मिले खतरनाक डेंगू के लार्वा की तादाद अब तेजी से बढ़ती जा रही है। जिला प्रशासन के कड़े निर्देशके बाद भी स्वास्थ्य विभाग और नगर पालिका प्रशासन कुछ देर को जागा फिर कुंभकर्णीय निंद्रा में जा पहुंचा है। शहीद वार्ड और विवेकानंद वार्ड की सीमा को लांघकर डेंगू के मच्छर अब महावीर और कबीर वार्ड तक कूच कर चुके हैं। हाल ही में पीपरडाही के समीप के एक ग्राम के बीस वर्षीय रामायण राम भरोस की मौत डेंगू से होना बताया जा रहा है।
जानकारों का कहना है कि मच्छर वार्ड की सीमा नहीं पहचानते हैं अतः इन्हें शिक्षित करना होगा कि ये अपने वार्ड को छोड़कर न जाएं। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि स्वास्थ्य विभाग और पालिका प्रशासन ने पूर्व में विवेकानंद वार्ड और शहीद वार्ड में घरों घर जाकर डेंगू के लार्वा खोजकर उन्हें नष्ट करने का काम किया था।

समाचार एजेंसी ने दी थी चेतावनी
उल्लेखनीय होगा कि समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने इसकी पूर्व में चेतावनी दी थी कि डेंगू को हल्के में न लिया जाए। साई न्यूज ने दिल्ली के प्रकरणों के हवाले से सिवनी के जिला प्रशासन को चेताया था। साई न्यूज के हवाले से दैनिक हिन्द गजट ने 31 जुलाई को सिवनी में मिले खतरनाक डेंगू के चार मरीज‘, 01 अगस्त को स्थिति बेकाबू हो सकती है डेंगू, मलेरिया की‘, 03 अगस्त को पालिका हेल्थ के बीच आरोप प्रत्यारोप का सबब बना डेंगू अभियान!‘ 07 अगस्त को थम नहीं रहा डेंगू के लार्वा मिलने का सिलसिला‘‘ समाचार प्रकाशित किए थे।
इसके साथ ही साथ समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक लिमटी खरे की विशेष टिप्पणी ‘‘बुढ़िया के मरने का गम नहीं गत तो इस बात का है मौत ने घर देख लिया. .।‘‘ में भी इस बात का उल्लेख किया गया था कि अभी तक डेंगू के मरीज सिवनी में नहीं मिले थे, अब डेंगू के लक्षण मिलने का साफ तात्पर्य है कि डेंगू के लिए जिम्मेदार मच्छरों ने सिवनी में आमद दे दी है, जो चिंता का विषय है।
जब समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की खबरों का प्रकाशन दैनिक हिन्द गजट में किया गया उस वक्त मीडिया के कुछ लोगों द्वारा यह भी कहा जा रहा था कि दैनिक हिन्द गजट द्वारा अनावश्यक ही डेंगू का डर बताया जा रहा है। जबकि वास्तविकता यह थी कि डेंगू की भयावहता देश की राजधानी दिल्ली में जमकर देखने को सालों से मिल रही है। इसके अलावा पिछले दिनों मण्डला में डेंगू ने जमकर कहर बरपाया था।

नहीं हो रही जांच
सिवनी में न जाने कितने घरों की छत पर पानी की टंकी खुली पड़ी हैं, जिसमें डेंगू या मलेरिया के लिए जिम्मेदार मच्छरों का लार्वा पल रहा होगा। जैसे ही विवेकानन्द वार्ड में डेंगू के मरीज मिले, प्रशासन हरकत में आया और वहां घरों घर जाकर लार्वा की चेकिंग की गई। हजारों घरों से डेंगू का लार्वा मिलना इस बात का खतरनाक संकेत है कि डेंगू ने सिवनी शहर में बुरी तरह आमद दे दी है।

हल्के में लिए जा रहे कलेक्टर के निर्देश
जिले में अराजकता का माहौल दिख रहा है। प्रशासनिक पकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। जिला कलेक्टर बार बार डेंगू मलेरिया को लेकर निर्देश दे रहे हैं, पर स्वास्थ्य विभाग और नगर पालिका प्रशासन उनके निर्देशों को बहुत ही हल्के में ले रहा है। इसी का परिणाम है कि डेंगू के मच्छर अब विवेकानंद और शहीद वार्ड से निकलकर कबीर और महावीर वार्ड तक जा पहुंचे हैं। गत दिवस महावीर वार्ड निवासी अजय गुप्ता और कबीर वार्ड में हॉस्टल निवासी सुबोध सिरोल डेंगू प्रभावित पाए गए।

26 जुलाई को हुई थी पुष्टि
सिवनी में डेंगू जैसी खतरनाक बीमारी के मरीजों की पुष्टि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा की गई थी। वहीं मलेरिया से भी अब तक कुछ मौत होने की खबरें प्रकाश में आई हैं। सत्ता के मद में चूर भाजपा को भी इस दिशा में कोई पहल करने की फुर्सत नहीं है। कबीर वार्ड में समन लोधी के जवान पुत्र की बुखार से गत दिवस मृत्यु हो गई। संभावना व्यक्त की जा रही है कि इसकी मृत्यु भी डेंगू से ही हुई है।

कहां है फागिंग मशीन

एक के बाद एक डेंगू और मलेरिया के मरीज मिलने से विवेकानंद, शहीद, कबीर और महावीर वार्ड के पार्षद कटघरे में खड़े हो गए हैं। इन चारों वार्ड के पार्षद संजय डागा, इब्राहिम कुरैशी, संजय भलावी, श्रीमती तृप्ति नामदेव से शहर की जनता यह पूछना चाह रही है कि क्या उनके वार्ड में नगर पालिका परिषद् या स्वास्थ्य विभाग की फागिंग मशीन चल रही है, और अगर नहीं चल रही है तो उन्होंने अपने वार्ड के नागरिकों को डेंगू मलेरिया से बचाने के लिए क्या जतन किए हैं? अगर नहीं किए हैं तो उन्हें पार्षद की आसनी पर बैठने का हक शायद नहीं रह जाता है। शहर के पॉश इलाका माने जाने वाले बारापत्थर क्षेत्र में गाहे-बगाहे फॉगिंग मशीन का धुंआ अवश्य दिख जाता है।

हरिद्वार से आएगी मुनमुन के लिये भाजपा की टिकिट

हरिद्वार से आएगी मुनमुन के लिये भाजपा की टिकिट

रामदेव बाबा ने प्रत्येक जिले में एक सीट के समझौते पर समर्थन का दिया वचन

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश इकाई में अब यह चर्चा तेज हो गई है कि पार्टी द्वारा दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शों को तिलांजली देते हुए निर्दलीय प्रत्याशी रहे दिनेश राय उर्फ मुनमुन को सिवनी से टिकिट दी जा रही है। कहा जा रहा है कि बाबा रामदेव और भाजपा के बीच हुए समझौते में सिवनी की सीट बाबा के कोटे में डालकर इसे दिनेश राय को देकर भाजपा अपना पल्ला झाड़ने का जतन कर रही है। दिनेश राय उर्फ मुनमुन को भाजपा और रामदेव बाबा के संयुक्त प्रत्याशी बनने की उम्मीदों के बीच भाजपा और रामदेव बाबा के समर्थक उहापोह में ही नजर आ रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी द्वारा भले ही अपने निष्ठावान कार्यकर्ताओं और सीनियर पदाधिकारियों का मन रखने के लिये रायशुमारी जैसी प्रक्रिया अपना कर कार्यकर्ताओं में जोश भरने का एक नौटंकीनुमा कार्यक्रम आयोजित कराया हो किंतु भाजपा का प्रत्येक कार्यकर्ता इस हकीकत से वाकिफ है कि उस रायशुमारी का कोई अर्थ नहीं है। इसके विपरीत पार्टी का नेतृत्व इस रायशुमारी को अपनी मनमानी करने का एक सशक्त माध्यम बना लेता है।
कहा जा रहा है कि जिस व्यक्ति को जहां से मैदान में उतारना हो उसे ही रायशुमारी का आधार बता दिया जाता है। जबकि टिकिट वितरण का कार्य केवल और केवल उच्चस्तरीय सैटिंग के हिसाब से होता है। ऐसा ही इस बार फिर होने वाला है। जिला मुख्यालय वाली भाजपा की सबसे अधिक विश्वसनीय सीट इस बार भी एक समझौते के तहत थाली में रखकर परोसी जा सकती है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सिवनी विधानसभा सीट का निर्धारण लगभग हो चुका है और यह सीट इस बार भी एक धार्मिक-राजनैतिक समझौते के तहत एक व्यावसायिक राजनेता को दी जा रही हैं।
वहीं, राजनैतिक हल्कों में यह बात आम हो चुकी है कि प्रदेश की चार दर्जन विधानसभा सीटों के लिये प्रत्याशी चयन का कार्य भाजपा के प्रदेश कार्यालय दीनदयाल परिसर भोपाल के बजाय भारत स्वाभिमान ट्रस्ट हरिद्वार में होगा, और उन्हीं चार दर्जन में से एक सीट सिवनी जिला मुख्यालय की भाजपा की सबसे अधिक भरोसेमंद सीट भी है।
साई न्यूज के सिवनी ब्यूरो से अय्यूब कुरैशी ने बताया कि जिले में चल रही चर्चाओं के अनुसार नगर पंचायत लखनादौन के पूर्व अध्यक्ष ओैर वर्तमान अध्यक्ष के पुत्र दिनेश राय मुनमुन स्वामी रामदेव के अनन्य भक्त हैं और बाबा के पिछले प्रवास के समय उनके कार्यक्रम का समूचा खर्च उन्हीं ने वहन किया था उसके अतिरिक्त एक लाख रूपए का अतिरिक्त सहयोग भी किया था। उस समय अनेक लोगों द्वारा यह आपत्ति उठाई गई थी कि स्वामी जी मदिरापान और मदिरा व्यवसाय के घोर विरोधी हैं फिर एक मदिरा व्यवसाई का सहयोग कैसे लिया जा रहा है।
किंतु इसे गुरू-चेले की आत्मीयता का ही प्रमाण माना जाएगा कि इतनी प्रामाणिक आपत्ति के बाद भी स्वामी जी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। यह संयोग ही है कि प्रदेश के मुखिया भी स्वामी रामदेव के भक्तों में गिने जाते हैं। जून माह में हरिद्वार में आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के मुखिया और सिवनी के स्वामी जी के सबसे प्रिय चेले का एक साथ कार्यक्रम में मौजूद रहना कोई संयोग नहीं माना जा सकता। राजनीति के जानकार लोग इस बात को जानते होंगे कि हरिद्वार में अपने गुरू की शरण में प्रदेश के मुखिया के साथ कुछ समय बिताने के बाद से ही दिनेश राय ने वापिस आते ही सिवनी विधानसभा क्षेत्र में अपना जनसम्पर्क तेज कर दिया था।
भारतीय जनता पार्टी मुख्यालय दीनदयाल परिसर में यह चर्चा तेज हो गई है कि प्रदेश मेें भाजपा की टिकिटों का वितरण जिस तिकड़ी के माध्यम से किया जाना है उनमें प्रदेश के मुखिया के अतिरिक्त प्रदेशाध्यक्ष और संगठन महामंत्री हैं जिनमें से संगठन महामंत्री तो दिनेश राय के वित्तीय प्रबंधन पर पहले से ही लट्टू हैं और राजनैतिक प्रबंधन के मोहपाश में प्रदेश के मुखिया को फंसा लेने के बाद अब प्रदेश भाजपा को सिवनी की टिकिट हरिद्वार के बरास्ते दिनेश राय को सौंपने के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं बचता है। यदि ऐसा हुआ तो निश्चित ही यह जिला मुख्यालय में बरसों से काम करने वाले निष्ठावान और समर्पित भाजपाईयों के लिये 2008 की भांति एक और क्र्रूरतापूर्ण उपहार माना जाएगा।

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के सिवनी ब्यूरो से अय्यूब कुरैशी का कहना है कि इन खबरों के फिजां में घुलते ही सिवनी में भाजपा और बाबा रामदेव के समर्थकों में सन्नाटा पसर गया है। लोगों को लग रहा है कि अगर ऐसा हो गया तो वे किस मुंह से जनता के बीच जाकर भाजपा या बाबा रामदेव का नाम लेकर वोट मांगेंगे।

मोगली की ख्याति विदेशों में!

मोगली की ख्याति विदेशों में!

(शरद खरे)

भारत गणराज्य के लोगों की स्मृति से अभी विस्मृत नहीं हुआ होगा कि नब्बे के दशक में (दूरदर्शन पर) धूम मचाने वाला हर रविवार को सुबह सवेरे ‘‘जंगल जंगल पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है . . .‘‘ वाले टाईटल सांग का सीरियल ‘‘द जंगल बुक‘‘ का हीरो भेड़िया बालक मोगली देश भर के हर वर्ग, हर आयु के लोगों की पहली पसंद बन गया था। यही मोगली अब भारत से निकलकर हॉलीवुड में जाकर धूम मचा रहा है। गौरतलब है कि ब्रितानी शासनकाल में भारत के हृदय प्रदेश के सिवनी जिले के जंगलों में एक बालक जो जंगली जानवरों विशेषकर भेड़ियों के बीच पला था, के अस्तित्व में होने की किवदंती आज भी फिज़ाओं में हैं। माना जाता है कि एक बालक जो जंगलों की वादियों में पला बढ़ा था, वह भेडियों की सोहबत में रहने के कारण अपनी आदतें भेडियों की तरह ही कर बैठा था, ने लंबा समय जंगलों में बिताया था।
ब्रितानी शासन में इंग्लैंड के मशहूर लेखक और कवि रूडयार्ड किपलिंग ने मोगली के जीवन को कागज पर उतारा था। किपलिंग का जन्म भारत गणराज्य की आर्थिक राजधानी मुंबई में उस वक्त हुआ था जब देश पर ब्रितानी शासक हुकूमत किया करते थे। किपलिंग के माता पिता मुंबई में ही रहा करते थे। कवि रूडयार्ड किपलिंग ने महज 13 साल की आयु से ही कविताएं लिखना आरंभ कर दिया था। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, उसी तर्ज पर किपलिंग की कविताएं तब काफी लोकप्रिय हो गईं थीं। कहा जाता है कि किपलिंग को एक बार भारत की सुरम्य वादियों के बीच देश के जंगलों की अनमोल वादियों में सैर का मौका मिला।
उसी दौरान एक फारेस्ट रेंजर गिसबॉर्न ने रूडयार्ड किपलिंग को एक बालक के शिकार करने की क्षमताओं के बारे में सविस्तार बताया। जंगली जानवारों के बीच लालन पालन होने के कारण उस बालक में यह गुण विकसित हुआ था। यहीं से किपलिंग को जंगली खूंखार जानवरों के बीच रहने वाले उस अद्भुत बालक के बारे में लिखने की प्रेरणा मिली। किपलिंग ने जंगल बुक नामक किताब में इस अनोखे बालक के जीवन को बड़े ही करीने से उकेरा है। बाद में यही बालक सबका प्यारा दुलारा मोगलीबन गया।
किपलिंग की इस किताब में मोगली के सहयोगी मित्रों और बुजुर्गों के तौर पर चमेली, भालू, का यानी सांप, अकडू पकडू, खूंखार शेरखान आदि को भी बखूबी स्थान दिया गया है। विडम्बना यह है कि भारत के जंगलों में पाए जाने वाले इस मोगली के बारे में उसकी खासियतें पहचानी तो एक ब्रितानी लेखक ने। इतना ही नहीं ब्रितानी लेखक के इस नायाब अनुभवों या काल्पनिक काम को सूत्र में पिरोकर फिल्माने का काम किया जापान ने। जापान में सिवनी के इस बालक के कारनामोें के बारे में 1989 में एक 52 एपीसोड वाला सीरियल तैयार किया गया था। ‘‘द जंगल बुक शिओन मोगली‘‘ नाम से बनाए गए इस एनीमेटिड टीवी सीरियल को जब प्रसारित किया गया तो जापान का हर आदमी मोगली का दीवाना बन गया था।
जब भारत को यह पता चला कि उसके देश की इस नायाब कला को जापान में सराहा जा रहा है, तो भारत में इसके प्रसारण का मन बनाया गया। एक साल बाद 1990 में इसी जापानी सीरियल द जंगल बुक ऑफ शिओन मोगली को हिन्दी में डब करवाया गया और फिर इस कार्टून सीरियल द जंगल बुकको दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया। जैसे ही रविवार को इसका प्रसारण आरंभ किया गया, वैसे ही इस सीरियल की लोकप्रियता ने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। इस मोगली सीरियल का टाइटल सांग जंगल जंगल बात चली है, पता चला है, चड्डी पहन कर फूल खिला है . . .को लिखा था मशहूर गीतकार गुलज़ार ने और इसे संगीत दिया था विशाल भारद्वाज ने। आज लगभग बीस साल के उपरांत यह मोगली एक बार फिर अपनी लोकप्रियता के सारे पैमाने ध्वस्त करने की तैयारी में है। यह कार्टून सीरियल एक बार फिर निर्माण हेतु तैयार है। और इसके उपरांत यह दुनिया भर में धूम मचाएगा। मोगली पर फिल्म निर्माण की जवाबदारी अब विज्जुअल इफेक्ट कंपनी डीक्यू एंटरटेनमेंट ने अपने कांधों पर ली है जो इस पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की फिल्म बनाने जा रही है। द जंगल बुक के नाम से आने वाले समय में थ्री डायमेंशनल फिल्म बनाई जाने वाली है, जो दुनिया भर में रिलीज की जाएगी।

लगभग एक सौ बीस करोड़ रूपए लागत से बनने वाली इस फिल्म का प्रोडक्शन आरंभ हो चुका है। भारत के हैदराबाद की एनीमेशन, गेमिंग और इंटरटेनमेंट कंपनी डीक्यू एंटरटेनमंेट द्वारा बनने वाली यह थ्री डी फिल्म 2014 में रिलीज को तैयार हो जाएगी, एैसा माना जा रहा है। मूलतः रूडयार्ड किपलिंग की किताब द जंगल बुक पर आधारित यह चलचित्र इन द रूख‘, ‘टाईगर‘, ‘लेटिंग इन द जंगलआदि कहानियों का निचोड़ होगा जिसमें मोगली के अपने माता पिता से बिछुड़ने, जंगल में खूंखार जानवरों के बीच पलने बढ़ने, उसके साहसिक कारनामों और फिर मानव जाति और सभ्यता में वापसी पर आधारित होगी। विडम्बना ही कही जाएगी कि भारतीय सड़क और रेल के मानचित्र पर सिवनी जिले का नाम नहीं है। कम से कम मोगली के हालीवुड जाने के साथ ही साथ सिवनी जिले को राष्ट्रीय नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान अवश्य ही मिलने की उम्मीद है। इसका लाभ अगर सिवनी के नेता उठा सकें तो सिवनी को गुलजार होने से कोई नहीं रोक सकता है।