मंगलवार, 20 जुलाई 2010

आखिर क्या मजबूरी है, ममता बहुत जरूरी है

देश की कीमत पर कांग्रेस निभा रही है गठबंधन धर्म!


पश्चिम बंगाल से बाहर निकलिए ममता जी

आप पूरे भारत गणराज्य की रेल मंत्री हैं ममता जी

आखिर ममता को मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाती कांग्रेस

देश को दरकार है पूर्ण कालिक रेल मंत्री की

(लिमटी खरे)

कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का दूसरा कार्यकाल अनेक मामलों में विवादों र्में िघरा हुआ है। भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री को आज तक इतना बेबस नहीं देखा जितना कि इस कार्यकाल में देखने को मिल रहा है। सहयोगी दल जब चाहे तब कांग्रेस की कालर पकडकर हडका रहे हैं और कांग्रेस चुपचाप निरीहावस्था में कराह रही है। पता नहीं कांग्रेस को सत्ता की मलाई में क्या मिल रहा है जो वह अपनी अस्मिता और देश की इज्जत, आंतरिक सुरक्षा, लोगों की सुखसुविधाओं आदि तक को बलाए ताक रखने से नहीं चूक रही है।

इस कार्यकाल में रेल मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील महकमे की जवाबदारी त्रणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो सुश्री ममता बनर्जी को सौंपी गई है। ममता बनर्जी ने जब से भारत गणराज्य के रेल मंत्री का पदभार संभाला है, उसके बाद से ही उनकी प्राथमिकता में भारतीय रेल तंत्र के स्थान पर बंगाल के रायटर्स बिल्डिंग में कब्जा करना पहली पायदान पर आ चुका है। ममता के कदम देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वे हर हाल में पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करना चाह रही हैं।

जैसे ही वे मंत्री बनीं उन्होंने त्रणमूल कांग्रेस के अपने नहले दहलों को तुगलकी फरमान जारी किया जिसमें त्रणमूल कोटे के मंत्रियों को पश्चिम बंगाल में दरबार लगाने की हिदायत दी गई थी। सवा सौ साल पुरानी और देश में आजादी के छः दशकों में पांच दशकों से अधिक राज करने वाली कांग्रेस की राजमाता चुपचाप सब कुछ देख सुन रहीं हैं। ममता ने अपना पदभार भी दिल्ली से हटकर बंगाल में जाकर ग्रहण किया।

ममता मनमानी पर उतारू रहीं और कांग्रेस के ‘कुशल रणनीतिकार प्रबंधक‘ चुपचाप उनकी ज्यादतियों को सहने के लिए कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का मानस तैयार करते रहे। ममता बनर्जी ने कांग्रेस की गर्दन पकडकर हडकाया और कांग्रेस भारत गणराज्य के आम दीन हीन निरीह आदमी की तरह चुपचाप सब कुछ सहती रही। भारतीय रेल पिछले एक साल में नौकरशाहों के भरोसे ही चल रही है। रेल सुविधाओं की दिशा में देखा जाए तो यात्री रेल सुविधाओं में निरंतर कमी आई है। रेल दुर्घटनाओं के बढते ग्राफ ने भी कांग्रेस के आला नेताओं की तंद्रा नहीं तोडी।

यह सब जारी रहेगा, लेकिन कब तक? जाहिर है पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों तक देश की जनता को रेल दुर्घटना में या तो प्राण गंवाने होंगे या घायल होना होगा! इसका कारण यह है कि भारत गणराज्य जैसे शक्तिशाली प्रजातांत्रिक देश के रेल मंत्री का ध्यान बजाए अपने विभाग के अपने गृह सूबे पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों पर ज्यादा है। हालात देखकर कहा जा सकता है कि भारतीय रेल में अफसरशाही के बेलगाम घोडे पूरी रफ्तार से दौड रहे हैं।

बीते वर्षों में रेल सुरक्षा जीवन रक्षा का नारा बुलंद किया गया था, जिसमें यात्रियों की सुविधा का विशेष ख्याल रखने के लिए रेल यात्रा को दुर्घटना मुक्त बनाने के लिए रेल्वे ने कई कदम उठाने की सिफारिश की थी। विडम्बना यही है कि भारत गणराज्य में प्लानिंग तो भारी भरकम हो जाती है, पर जब उसे अमली जामा पहनाने की बारी आती है तब मानो सभी को सांप सूंघ जाता है। इससे बडी विडम्बना तो यह है कि भारी भरकम रेल सुरक्षा कोष आज भी ब्याज की राशि से फल फूल रहा है, किसी को इस कोष को व्यय करने की सुध नहीं है।

भारतीय रेल की सुरक्षा के मामले में पूर्व रेल मंत्री और बिहार के वर्तमान निजाम नितीश कुमार का दावा है कि अगर रेल्वे ने टक्क्र रोधी उपकरण लगा लिए होते तो यह दुर्घटना नहीं घटती। नितीश का दावा सही है, कि कोकण रेल्वे द्वारा इजाद किए गए टक्कर रोधी उपकरणों को उनके कार्यकाल में इसके गहन परीक्षण के उपरांत सभी रेल में लगाने का निर्णय लिया गया था। नितीश कुमार के कार्यकाल में यह योजना परवान नहीं चढ सकी।

इसके बाद सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से अधिक राज करने वाली कांग्रेस ने छः साल देश पर शासन कर लिया है। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार यात्रियों से किराए में तो पूरी राशि वसूल रही है, पर जब बारी आती है यात्रियों की जान की सलामती की तो कांग्रेसनीत संप्रग सरकार द्वारा यात्रियों की जान कीडे मकोडों से कम नहीं समझी जाती है। बडबोले नितीश ने भी अपना मुंह सालों बाद खोला है, नितीश को अपने गिरेबान में झांकने की आवश्यक्ता है, इतने साल चुप रहने का जवाब भी अगर वे दे देते तो भारत की जनता उनका एहसान ही मानती।

भारतीय रेल के इतिहास में सबसे निचले छिछले दर्जे की कोई दुर्घटना को स्थान दिया जा सकता है तो वह है पटरी पर खडी एक रेल गाडी से आकर दूसरी रेल गाडी का टकरा जाना, वह भी तब जब न तो कोहरा हो और न ही विजिबिलटी अर्थात दृश्यता कम न हो। ममता बनर्जी जिस सूबे पर अपनी हुकूमत करने के सपने संजो रही हों, उसी पश्चिम बंगाल के सैंथिया रेल्वे स्टेशन पर यह घटना घटी।

मजे की बात तो यह है कि पश्चिम बंगाल का सैंथ्यिा रेल्वे स्टेशन कम यातायात दबाव के रेल्वे स्टेशन की फेहरिस्त में स्थान पाता है। इस तरह के स्टेशन पर अगर स्टेशन के प्लेटफार्म पर खडी रेल गाडी से पीछे से आती कोई दु्रत गति की रेल गाडी टकरा जाए वह भी रात दो बजे तो इस चूक को क्षम्य की श्रेणी में रखा जाएगा। भारतीय रेल के अधिकारियों के दावे पर हंसी ही आती है कि सौ किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से लगभग डेढ गुना गति से दौडने वाली उत्तर बंगा एक्सप्रेस जो पलक झपकते ही रेल्वे स्टेशन पार कर जाती को रोकने के लिए लाउडस्पीकर से चिल्ला चिल्ला कर रोकने का प्रयास किया गया था। इस तरह के बयान देने वाले रेल अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर देना चाहिए।

सबसे अधिक आश्चर्य तो तब हुआ जब ममत बनर्जी के ही सूबे से सियासी राह पकडने वाले भारत गणराज्य के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी त्रणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और रेल मंत्री ममता बनर्जी के बचाव में उनके प्रवक्ता की हैसियत में दिखे। प्रणव दा का कहना था कि कोई भी इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर सकता है कि दुर्घटना घटेगी या नहीं। सब कुछ जानते बूझते प्रणव मुखर्जी इस बात को सिरे से नकार रहे हैं कि रेल मंत्री ममता बनर्जी की रेल भवन से गैरमौजूदगी इन हादसों की वजह है। भारत गणराज्य को वर्तमान में एक पूर्ण कालिक रेल मंत्री की दरकार के मामले में भी प्रणव मुखर्जी का जवाब गोलमोल ही रहा। कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए ममता बनर्जी एक मजबूरी बन गईं हैं, जिन्हें ‘‘हर हाल‘‘ में ढोना कांग्रेस के लिए आवश्यक हो गया है।

मीडिया में तो भारतीय रेल चिल्ला चिल्ला कर यह बात कहती रही है कि आधुनिकता के इस दौर में उसने अत्याधुनिक उपकरणों से अपने आप को लैस कर लिया है, वस्तुतः जमीनी हकीकत कुछ और कह रही है, जिसे सुनना और जानान भारत की रेल मंत्री ममता बनर्जी को गवारा नहीं हैं। ममता को तो मानो मछली की आंख की तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुर्सी ही दिख रही है।

सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि पिछले दिनों हुई दो बडी रेल दुर्घटनाएं ममता बनर्जी के उसी गृह राज्य में हुई हैं जिसमें वे राज करने के सपने देख रहीं हैं। कांग्रेस भी ममता बनर्जी की बेसाखी बनकर उन्हें इस तरह की मनमानी में सहारा दे रही है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि सत्ताधारी कांग्रेस सहित किसी भी सियासी दल में इतना माद्दा नहीं है कि वह ममता बनर्जी से सार्वजनिक तौर पर यह पूछ सके कि ममता जी आप भारत गणराज्य की रेल मंत्री हैं या फिर पश्चिम बंगाल की।

सिवनी वासी आज भी हैं मुगालते में

नरसिंहपुर छिंदवाडा नागपुर फोरलेन निर्माण प्रक्रिया आरंभ

पुर्नस्थापन और अपग्रेडेशन के लिए टेंडर नोटिस जारी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 20 जुलाई। कम यातायात दवाब के बावजूद भी नरसिंहपुर से बरास्ता छिंदवाडा, नागपुर के फोरलेन मार्ग के निर्माण की कार्यवाही आरंभ कर दी गई है। एनएचएआई के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस हेतु विभाग द्वारा रीहेबिलिटेशन और अपग्रेडेशन के लिए छिंदवाडा शहर में बायपास और शहर को जोडने वाले मार्ग के लिए सुपरवीजन कंसलटेंट के प्रस्ताव 3 अगस्त एवं 29 जुलाई तक आमंत्रित किए गए हैं।

भूतल परिवहन मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के भारी दवाब के चलते मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कम यातायात दबाव वाले नरसिंहपुर, छिंदवाडा, सौंसर होकर नागपुर जाने वाले एकल मार्ग को फोरलेन में तब्दील कर इसे नेशनल हाईवे घोषित करवाने के प्रस्ताव को हरी झंडी देकर केंद्र के पास भिजवा दिया था। सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार ने इस मार्ग को नेशनल हाईवे घोषित कर दिया है।

उधर योजना आयोग के सूत्रों का कहना है कि इस मार्ग में फिजिबिलटी न मिलने के कारण योजना आयोग को संदेह है कि इस मार्ग के निर्माण में व्यय होने वाली राशि को वापस कैसे वसूला जाएगा? इस मार्ग से होकर गुजरने वाला यातायात बहुत ही कम है, और उस यातायात के दवाब से इस मार्ग की लागत निकलना बहुत ही मुश्किल है।

एनएचएआई के सूत्रों का कहना है कि भूतल परिवहन मंत्री के दबाव के चलते मंत्रालय ने इस मार्ग के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ कर दी है। सूत्रों के अनुसार करंट टेंडर रिलेटेड नोटिस 63 की कंडिका 27 में इस मार्ग के टेंडर का उल्लेख किया गया है। इसमंे सुपरवीजन कंसलटेंट को नियुक्त करने हेतु प्रस्ताव मांगे गए हैं।

इस नोटिस में राष्ट्रीय राजमार्ग 69 ए, जो कि मुलताई से सिवनी बरास्ता छिंदवाडा है एवं रारा 26 बी जो नरसिंहपुर से नागपुर बरास्ता अमरवाडा, छिंदवाडा, सौंसर है के लिए कंसलटेंट के प्रस्ताव चाहे गए हैं। इन प्रस्तावों को जमा करने की अंतिम तिथि 29 जुलाई रखी गई है। इसकी कंडिका 34 मंे इन्हीं मार्ग के लिए जिला मुख्यालय छिंदवाडा में रिंग रोड तथा रिंग रोड को छिंदवाडा शहर से जोडने वाली सडकों के निर्माण का उल्लेख किया गया है, इस कार्य के लिए अंतिम तिथि 3 अगस्त रखी गई है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि एक ओर तो सर्वोच्च न्यायलय में सरकार द्वारा अनेक विकल्प बताकर सिवनी से होकर गुजरने वाले उत्तर दक्षिण गलियारे के प्रकरण में सिवनी के प्रति सौतेला व्यवहार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कम यातायात दबाव वाले नरसिंहपुर छिंदवाडा नागपुर मार्ग को नेशलन हाईवे में तब्दील कर भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ द्वारा अटल बिहारी बाजपेयी के काल की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के अभिन्न अंग रहे उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे को सिवनी जिले से छीनकर अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाडा से होकर ले जाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। मजे की बात तो यह है कि बात बात पर टर्राने वाले राजनैतिक दलों के सियासी मेंढक सब कुछ देखने सुनने के बाद भी मौन धारण किए हुए हैं।

शिक्षा माफिया की जद में सिवनी जिला

0 सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (2)

सेंट फ्रांसिस के नए भवन से आटो वालों की चांदी


मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में सीबीएसई के नाम पर शिक्षा माफिया ने अपनी जमीन मजबूत कर रखी है। शासन प्रशासन अपनी आंख बंद कर पालकों और विद्यार्थियों को लुटने पर मजबूर कर रहा है। सीबीएसई के नाम पर सुविधाओं के अभाव में संचालित हो रही शालाओं और गैर मान्यता प्राप्त शालाओं द्वारा सीबीएसई के नाम पर पालकों और विद्यार्थियों को जमकर लूटा जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार का शिक्षा विभाग ध्रतराष्ट्र की भूमिका मंे दोनों आंखों पर पट्टी बांधे सब कुछ देख सुन रहा है। न तो जिला प्रशासन को ही इस बारे में कार्यवाही करने का होश है और न ही जिला शिक्षा अधिकारी ही कोई रूचि ले रहे हैं। सांसद, विधायकों के साथ सारे जनसेवक सुसुप्तावस्था में ही सब कुछ होता देख रहे हैं। सीबीएसई का क्षेत्रीय कार्यालय राजस्थान के अजमेर में है सो वहां तक इसकी आवाज पहुंचना मुश्किल ही प्रतीत होता है। यही कारण है कि सिवनी में राज्य शासन के स्कूल बोर्ड और केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अधीन संचालित शालाओं में जबर्दस्त तरीके से लूट मची हुई है। आलम यह है कि शालाओं के पे रोल में दर्ज शिक्षक शिक्षिकाएं वास्तव में शाला में अध्यापन का कार्य कर ही नहीं रहे हैं। बताते हैं कि छः सौ से लेकर बारह सौ प्रतिमाह के वेतन पर टीसर्च यहां काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर अंधा पीसे कुत्ता खाए की कहावत यहां चरितार्थ होती दिख रही है।

सिवनी।  शहर के ह्दय स्थल में संचालित होने वाले सेंट फ्रांसिस स्कूल के सीबीएसई द्वारा मान्यता के सिलसिले में शहर से लगभग सात किलोमीटर दूर आधे अधूरे शाला भवन में स्थानांतरित होने के कारण एक ओर यहां अध्ययनरत बच्चों के पालकों की जेबें ढीली हो रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर शाला में अध्ययन के समय लगभग दो तीन घंटे तक बच्चों को घर से बाहर रहने पर मजबूर होना पड रहा है.

गौरतलब है कि कचहरी चौक पर पुराने स्टेट बैंक भवन के बाजू में ईसाई मिशनरी द्वारा सेंट फ्रांसिस स्कूल का संचालन किया जाता रहा है. इस शाला का स्तर वैसे तो शहर में संचालित अन्य शालाओं के स्तर से अच्छा माना जाता रहा  है, किन्तु कालांतर में सेंट फ्रांसिस स्कूल के शाला प्रबंधन ने उच्चतर कक्षाओं के लिए मध्य प्रदेश शिक्षा बोर्ड के स्थान पर केंद्रीय शिक्षा बोर्ड अर्थात सीबीएसई से अपने आप को संबंध कराने का उपक्रम किया.

सीबीएसई बोर्ड के अपने नियम कायदे कानून हैं, मान्यता के संबंध में इनके कायदे कानून बहुत ही ज्यादा कठोर हैं, जिसमें कक्षाओं की संख्या के हिसाब से भूखण्ड का रकबा, हर कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या, शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता, भोतिकी, रसायन, प्राणीशास्त्र आदि की प्रयोगशाला, खेल का मैदान, कम्पयूटर लेब, फर्नीचर, शिक्षक कक्ष, टायलेट आदि मानक आधार पर होना आवश्यक होता है. इन शालाओं में बच्चों के लिए हवादार कक्ष के साथ ही साथ बच्चों के लिए आवागमनके साधन और सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है.

ज्ञातव्य है कि इस साल नए शैक्षणिक सत्र के आरंभ होने के साथ ही साथ शाला प्रबंधन द्वारा आधे अधूरे असुरक्षित माने जाने वाले शाला भवन में कक्षाएं लगाना आरंभ कर दिया है. इस शाला भवन की दक्षिणी दिशा में बहने वाले नाले के पास बाउंड्रीवाल के निर्माण के बिना ही शाला को आरंभ कर दिया गया था. बारिश में लबालब होकर बहने वाले इस नाले में दुधमुंहे बच्चों के साथ किसी भी घटना दुर्घटना की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता था. मीडिया द्वारा इस संबंध में ध्यानाकर्षण के उपरांत जिला प्रशासन हरकत में आया और शाला का निरीक्षण कर यहां बाउंड्रीवाल का निर्माण सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए.

गत दिवस शाला के विद्यार्थियों को सुबह छ बजे से शाम पांच बजे तक घर से बाहर रहने पर मजबूर होना पडा था. इसका कारण शाला प्रबंधन की अदूरदर्शिता ही माना जा सकता है. शाला प्रबंधन ने बिना किसी पूर्व योजना के शाला भवन को स्थानांतरित तो कर दिया गया है, किन्तु आवागमन के साधनों की पूर्ण व्यवस्था न किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जाएगा. पहली से लेकर नवमी कक्षा तक के बच्चों को दस घंटे से ज्यादा घर से बाहर रहने पर पालकों में रोष और असंतोष की स्थिति निर्मित हो गई.

आलम यह था कि बुधवार को पालकों द्वारा निजी आटो संचालकों की चिरौरी कर अपने अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रबंध करने पर मजबूर होना पडा. बताया जाता है कि शाला प्रबंधन के तुगलकी फरमान के चलते नया शिक्षण सत्र तो लूघरवाडा के आगे आरंभ हो गया है, किन्तु वहां परिवहन के पर्याप्त साधन न होने के कारण पालकों के साथ ही साथ विद्यार्थिंयों के लिए कष्ट का कारण बनता जा रहा है. भले ही सेंट फ्रांसिस स्कूल का नया शाला भवन सीबीएसई के मापदण्डों पर खरा न उतरता हो, पर शाला प्रबंधन अपनी मुर्गी की डेढ टांग पर पूरी तरह से अडा हुआ है.

बताया जाता है कि भारी मांग को देखते हुए शहर में आटो संचालकों के भाव भी आसमान पर पहुंच गए हैं. कमरतोड मंहगाई में एक एक बच्चे को स्कूल पहुंचाने के एवज में आटो, टेक्सी चालक चार से छरू सौ रूपए तक वसूल कर रहे हैं. पालकों की मुसीबत यह है कि शाला प्रबंधन द्वारा परिवहन की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं किए जाने के चलते उनकी जेब पर सीधा डाका डाला जा रहा है, एक ओर शाला की भारी भरकम फीस और साथ में केपीटेशन फीस भी विद्यार्थियों से वसूली जाना बताया जाता है.

बुधवार को अनेक पालक या तो अपने बच्चों को अपने निजी वाहन से घर से सेंट फ्रांसिस स्कूल छोडने और लेने गए या फिर आटो संचालकों को मनाते नजर आए. अमूमन शाला के बच्चों को लाने ले जाने में प्रयुक्त वाहनों का रंग पीला होता है, पर सिवनी में इस काम में लगे वाहनों में से अनेक वाहनों द्वारा इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है.

अगर एक परिवार के दो बच्चे जूनियर कक्षा में अध्ययनरत हैं तो आटो के पांच सौ और टयूशन फीस के नाम पर दो सौ से एक हजार रूपए तक की वसूल होने की दशा में तीन हजार रूपए महीना तो वह पालक अपने बच्चे के अध्ययन में खर्च करता है. इसके अलावा उसके गणवेश और किताबों, बस्ते का बोझ अलग से उस पर आयत होता है. मंहगाई के इस दौर में सरकारी स्कूलों के गिरते स्तर का फायदा उठाकर व्यवसाईयों ने शाला का संचालन सेठ साहूकारी का धंधा बना लिया है. अपने लाभ के लिए शाला प्रबंधन द्वारा पालकों का सीधा सीधा शोषण किया जा रहा है.यहां गौरतलब होगा कि एक एक आटो में लदे फदे बच्चे शहर की यातायात पुलिस को दिखाई नहीं पडते हैं. इसके साथ ही साथ जिला प्रशासन सहित विधायक, सांसद से अपेक्षा है कि बच्चों के भविष्य और सुविधाओं को देखते हुए कम से कम शिक्षा विभाग के प्रभारी अधिकारी (ओआईसी, डिप्टी कलेक्टर) को निर्देशित करे कि शहर में कुकुर मुत्ते की तरह संचालित होने वाले निजी स्कूलों में जाकर कम से कम यह बात तो सुनिश्चित करे कि विद्यार्थियों के पालकों की जेब पर डाका डालने वाले शाला प्रबंधन द्वारा बच्चों को मूल भूत सुविधाएं मुहैया करवाई जा रहीं हैं या फिर उनका उददेश्य शिक्षा को व्यवसाय बनाने का ही रह गया है.
(क्रमशः जारी)