वदीZ वाले गुण्डा!
वदीZ पर तमगे नहीं टंगे हैं दाग
(लिमटी खरे)
आजाद हिन्दुस्तान में देश की जनता अमन चैन से गुजर बसर कर सके इसलिए हर साल सैकडों पुलिस के जवान अपने प्राणों की आहूति दिया करते हैं। पुलिसकर्मियों के इस बलिदान के चलते लोगों की नजरों में पुलिस की छवि उजली उजली नजर आती है। पुलिस पर लोगों का भरोसा इसी के चलते कायम हो पाता है। विडम्बना यह है कि इन्हीं के बीच कुछ भेडिए भी खाकी पहन कर लोगों के मन में खाकी के प्रति रोष और असंतोष भर देते हैं।
सालों पहले एक ख्यातिलब्ध लेखक की नावेल ``वदीZ वाला गुण्डा`` पढी थी। उस वक्त पुलिस में इस तरह के खाकी गुण्डों की तादाद इक्का दुक्का हुआ करती थी। आज के समय में पुलिस में वदीZ वाले गुण्डों की खासी तादाद हो गई है, जो रियाया का अमन चैन लूट रहे हैं। इतना सब होने के बाद भी अमन चैन से लोगों को रहने देने का दावा करने वाले हाकिमों के कानों में जूं तक नहीं रेंगती है। देश के शासक जनता को महफूज रखने के बजाए इन बर्बर पुलिसियों के दागदार सीने पर मेडल पर मेडल लटकाए जा रहे हैं।
राष्ट्रपति का उत्कृष्ट सेवा पदक उन पुलिसियों को दिया जाता है जो 15 साल की सेवा बेदाग पूरी कर चुके हों और उनका सालाना गोपनीय प्रतिवेदन (एसीआर) आउट स्टेंडिंग श्रेणी का हो। इसके अलावा उस पर कोई आपराधिक प्रकरण न चल रहा हो, एवं पुलिस प्रमुख की संस्तुति भी इसके साथ होना जरूरी है। इस तरह के प्रकरण को राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय गृह विभाग को भेज दिया जाता है।
जहां चयन समिति द्वारा इन नामों पर विचार कर उन श्रेष्ठ अधिकारियों का चयन करती है जो वाकई इस पदक के हकदार हों। यह समिति अपनी अनुशंसा के बाद इसे दूसरी समिति को नाम के साथ प्रतिवेदन भेजती है, जहां एक बार फिर स्क्रीनिंग के उपरांत नामों को चुन कर उसे गृह सचिव के माध्यम से राष्ट्रपति सचिवालय को भेज दिया जाता है। महामहिम राष्ट्रपति की मंजूरी के उपरांत गणतंत्र या स्वाधीनता दिवस पर इन पदकों की घोषणा की जाती है।
हाल ही में रूचिका के मामले में चर्चा में आए 1965 बेच के हरियाणा काडर के पुलिस अधिकारी शंभू प्रसाद सिंह राठौर को एसा ही पदक मिला था। अब सवाल यह उठता है कि इस तरह के निष्ठुर और अमानवीय सोच रखने वाले अधिकारी को पदक देने के लिए उसके नाम पर विचार के लिए इतनी सीिढयां लांघी गई हों, फिर भी कोई इस दागी अफसर को पहचान न पाया हो यह बात आसानी से गले नहीं उतरती। दरअसल दोष भारतीय व्यवस्था में ही है।
राठौर अकेले नहीं हैं, जिन्होने वदीZ के रौब के चलते मनमानी की हो। देश का पुलिस महकमा राठौरों से अटा पडा है। पुलिस के डंडे के आगे किसी की नहीं चलती। हरियाणा काडर के ही 76 बेच के आईपीएस अधिकारी और सूबे में जेल प्रशासन के महानिदेश रहे रविकांत शर्मा इन दिनों तिहाड जेल में सजा काट रहे हैं, उन पर पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या का ताना बाना बुनने के लिए प्रमुख दोषी करार दिया गया है।
87 बेच के गुजरात काडर के अधिकारी डीजी बंजारा को शेहराबुद्दीन शेख को लश्कर ए तैयबा का आतंकवादी मानकर फर्जी एनकाउंटर करने का आरोप है। फिलहाल ये हिरासत में हैं और इन पर मुकदमा दायर है। महाराष्ट्र काडर के क्राईम बांच के उपयुक्त बीएन साल्वे एसे अधिकारी हैं जो एक माफिया डान की क्रिसमस पार्टी में ठुमके लगाते दिखे थे। इन्हें निलंबित किया गया है।
यहीं के 71 बेच के अधिकारी एस.एस.विर्क को पुलिस महानिदेशक रहते हुए ही गिरफ्तार किया गया था। विर्क की गिरफ्तारी देश में अपनी तरह की पहली मिसाल थी कि मुखिया पद पर रहते किसी को पकडा गया हो। इन पर पद का दुरूपयोग का संगीन आरोप था। इतना ही नहीं देश की रक्षा करने वाले कांधों पर मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप भी लगते रहे हैं। 95 बेच के जम्मू काश्मीर काडर के अधिकारी शाजी मोहन का हाल कुछ यही बयां करता है। मोहन को चंडीगढ में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो में जोनल डारेक्टर बनाया गया था। पिछले साल जनवरी में वे मुंबई में आतंकवाद निरोधक बल के हाथों हेरोईन के साथ पकडे गए थे।
पुलिस के डर से उसकी पकड से आम अपराधी फरारी काटते हैं। पर यहां तो भारतीय पुलिस सेवा के अफसर ही फरारी काट रहे हैं। 97 बेच के राजस्थान काडर के आईपीएस अधिकारी मधुकर टंडन पर आरोप है कि उन्होंने राजस्थान पुलिस महानिदेशक रहते हुए दौसा जिले की एक आदिसावी महिला का अपहरण कर उसके साथ नोएडा में बलात्कार किया। फिलहाल टंडन पिछले 13 सालों से फरार हैं।
झारखण्ड के 75 बेच के अधिकारी पी.एस.नटराजन को पांच साल पहले एक स्टिंग आपरेशन में पकडा गया था। नटराजन पर आरोप है कि उन्होंने भी एक आदिवासी महिला के साथ मुंह काला किया है। फिलहाल नटराजन फरार ही हैं। यूटी काडर के 77 बेच के अधिकारी आर.के.शर्मा की कहनी भी दिलचस्प है। 2002 में उन्हें घर में काम करने वाली एक बाई के साथ बलात्कार करने के आरोप में पकडा गया था, वे फिलहाल अपनी सजा काट रहे हैं।
हरियाणा राज्य दागी अधिकारियों से अटा पडा है। एसपीएस राठौर, रविकांत शर्मा के साथ ही साथ यहां 77 बेच के अधिकारी और राज्य के पुलिस महानिरीक्षक रहे हरीश कुमार को पुलिस ने धोखाधडी के आरोप में पकडा था, वे तिहाड जेल में सजा काट रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक बी.एस.थींड 74 बेच के आईपीएस हैं। इन पर एक व्यवसायी अशोक मित्तल से जबरिया वसूली का आरोप है। गिल भी पीछे नहीं हैं, उन पर एक महिला अधिकारी से छेडछाड का संगीन आरोप है।
दागदार वदीZ के एक नहीं अनेको उदहारण मौजूद हैं देश के हर राज्य में। आश्चर्य तो तब होता है, जब इस तरह के दागी अधिकारी अपने सीने पर वदीZ को गौरवािन्वत करने वाले मेडल पहनने का दुस्साहस कैसे कर पाते हैं। क्या इनकी अंतरात्मा इन्हें कुछ नहीं कहती।
पुलिस के चंद अधिकारियों के इस तरह निरंकुश होने के पीछे सबसे बडी वजह यह है कि इन्हें जनसेवकों का खासा प्रश्रय प्राप्त हो जाता है। राजनीति, पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के घोंटे में अगर मीडिया का तडका भी लग जाए तो राठौर जैसी शिक्सयतों का उदय होता है, जो रूचिका जैसी निरीह बाला को आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं।
मीडिया भले ही सालों बाद रूचिका मामले को उजागर करने के लिए अपनी पीठ थपथपा रही हो पर मीडिया तब कहां था जब यह घटना घटी थी। कहने का तातपर्य महज इतना ही है कि मीडिया को प्रजातंत्र का चौथा खम्बा माना गया है, और मीडिया आज के समय में कार्पोरेट बजार में तब्दील हो गया है। यही कारण है कि वदीZ वाले गुण्डों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं, तथा रूचिकाओं की आत्महत्याओं के प्रकरणों में हो रही है बढोत्तरी।