बुधवार, 7 जुलाई 2010

कांग्रेस का पवार या पावर प्रेम

देशहित से ज्यादा विश्वहित के प्रति चिंतित हैं पवार

थुरूर के रास्ते पर नहीं चलना चाहते पवार

विरासत अपनी पुत्री को सौंपने आतुर दिख रहे हैं पवार

क्या यही है कांग्रेस की नैतिकता!

सत्ता प्राप्ति के लिए दुश्मन से भी हाथ मिलाने से गुरेज नहीं

(लिमटी खरे)

कांग्रेस में सबसे ताकतवर कौन था, है और रहेगा? अगर यह प्रश्न किसी बच्चे से पूछा जाए तो उसका उत्तर होगा, सिर्फ और सिर्फ नेहरू गांधी परिवार की पीढियों के सदस्य। जी हां, यह सच है कि कांग्रेस में आजादी के बाद से नेहरू गांधी परिवार का ही वर्चस्व रहा है। नेहरू गांधी परिवार की इच्छा के खिलाफ जाने का साहस कांग्रेस के कारिंदे कर भी नहीं सकते है। इटली मूल की निवासी किन्तु कांग्रेस की नजर में देश के सबसे उंचे स्थान पर माने जाने वाले नेहरू गांधी परिवार की बहू बनीं सोनिया मानिया को विदेशी मूल का बताकर कांग्रेस से अपने आप को प्रथक करने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पंवार से सत्ता की मलाई चखने के लिए हाथ मिलाने में कांग्रेस के प्रबंधकों को जरा भी हिचकिचाहट महसूस नहीं हुई। जिस विदेशी मूल के मुद्दे के कारण कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की चहुंओर थू थू हुई थी, उसके जनक के तलवे चाटने में कांग्रेस का जमीर कैसे गवारा कर गया यह बात समझ से ही परे है। मामला चाहे महाराष्ट्र में सरकार बनाने का हो या फिर केंद्र में, दोनों ही जगहों पर कांग्रेस ने राकापा से हाथ मिलाया है, तब कांग्रेस की नैतिकता कहां गई कि जो शख्स कल तक कांग्रेस का ही अभिन्न अंग रहा हो, और सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने की गरज से उसे विदेशी कह रहा हो, और आज उसी से गलबहियां। यह दोहरा चरित्र केवल और केवल कांग्रेस ही जी सकती है।

कांग्रेस ने राकापां से न केवल हाथ मिलाया है, वरन केंद्र में सोनिया गांधी को पानी पी पी कर कोसने वाले शरद पवार को मंत्री भी बनाया है। कंेद्र में आम आदमी से जुडे कृषि मंत्रालय का भार शरद पवार के कांधों पर है। देश में खेती किसानी का क्या आलम है कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के कार्यकाल में यह बात किसी से छिपी नहीं है। शरद पवार के गृह प्रदेश महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याओं के आंकडों के बाद भी कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का दिल नहीं पसीजा, जबकि वे भी एक मां हैं और मां ही किसी मां के दुखदर्द को बेहतर समझ सकती है। शरद पवार के अडियल रवैए के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें गले से लगाकर रखा जो वाकई में अपने आप में एक आश्चर्य से कम नहीं है।

हाल ही में शरद पवार अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (आईसीसी) के अध्यक्ष बन गए हैं। चूंकि आईसीसी और बीसीसीआई का अध्यक्ष करोडों अरबों में खेलता है, इसलिए पवार नहीं चाहते हैं कि उनके राजनैतिक जीवन के अंतिम दिनों में उन पर कोई कीचड उछले। यही कारण है कि अब वे चाहते हैं कि उन पर से राजनैतिक भार को कम किया जाए। देश के कृषि, खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री शरद पवार ने 5 जुलाई को भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री से भेंटकर उन पर से बोझ घटाने का आग्रह किया है। सत्तर वर्षीय शरद पवार का कहना है कि वे 44 साल से संसदीय जीवन जी रहे हैं और 25 साल तो वे सरकार में ही रह चुके हैं। अब वे बाकी जीवन को अपनी पार्टी और क्रिकेट के प्रति समर्पित करना चाह रहे हैं। पवार का क्रिकेट प्रेम कोई बहुत पुराना नहीं है। पिछले ही कुछ सालों में अचानक पवार के मन में क्रिकेट को लेकर जबर्दस्त प्रेम का सैलाब उमडा है। यह बात उतनी ही सच है जितने के दिन और रात कि कभी हाकी फिर फुटबाल और आज क्रिकेट का जादू सर चढकर बोल रहा है। क्रिकेटरों की कमाई से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि आयोजकों की जेबें कितनी भारी रहती होंगी। मल्टी नेशनल कंपनियां क्रिकेट के मैच को प्रायोजित करने कतारबद्ध खडी दिखाई पडती हैं।

पवार ने स्वीकार किया है कि उन्होंने 44 साल संसदीय जीवन में बिताए हैं, और 44 साल का समय मायने रखता है। पवार को चाहिए कि वे भारत गणराज्य की जनता को यह अवश्य बताएं कि इन 44 सालों में उन्होंने अपने खुद के लिए अपने परिवार के लिए और भारत जिसे वे अपना परिवार मानते हैं के लिए क्या किया है। अपनी सीट जिसे उन्होंने सालों साल सींचा उसे अपनी बेटी सुप्रीया के लिए सुरक्षित छोडने का मन बना चुके हैं पवार। क्या आज भी सामंती व्यवस्थाएं लागू हैं कि राजा का बेटा राजा ही बनेगा। क्या कारण है कि राजनेताओं के बच्चों को आसान राह मुहैया कराकर शार्ट कट से ही संसद या विधानसभा, अथवा विधानपरिषद में पहुचा दिया जाता है। क्या कभी किसी जनसेवक ने इस बात को उठाया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी का निधन होता है तो उसके परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति के लिए सालों साल कार्यालयों की चौखट रगडनी होती है, पर जब कोई नेता का अवसान होता है तो खट से उसके बच्चे, पत्नि को उसके स्थान पर सांसद या विधायक की टिकिट दिलवा दी जाती है ताकि संवेदना वाले सिम्पेथी वोट बटोरे जा सकें।

तीन महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले शरद पवार भी कुछ इसी तरह का मन बनाते दिख रहे हैं। आईसीसी के अध्यक्ष जैसे मलाईदार पद पर विराजमान होने के बाद तो पवार की मानो लाटरी निकल गई है। इससे पहले आईपीएल विवादों के चलते केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर को मंत्रीमण्डल से विदाई लेनी पडी थी, इसके उपरांत शरद पवार और उनका परिवार भी आईपीएल के विवाद की आग में झुलस रहा था। केंद्र में कांग्रेस की स्थिति सांप छछूंदर की सी होकर रह गई है। कांग्रेस के सहयोगी गठबंधन दल कांग्रेस की कालर पकडकर जब तब हडकाते मिल जाते हैं, यहां तक कि कांग्रेस के कोटे के ही मंत्री प्रधानमंत्री की हुकुम उदूली में व्यस्त हैं।

शरद पवार एक जनसेवक की भूमिका में हैं। सांसद या विधायक का काम जनता की सेवा के लिए समर्पित रहना है। सालों साल जिस जनता ने शरद पवार को सर आंखों पर बिठाकर रखा अब उसी जनता को शरद पवार नकारना चाह रहे हैं, वह भी आईसीसी के अध्यक्ष जैसे मलाईदार पद मिलने के उपरांत। आईसीसी अध्यक्ष का पद मिलना निस्संदेह अपने आप में गौरव की बात है। आई सीसी अध्यक्ष बनकर शरद पवार ने भारत का नाम रोशन किया है, इस बात में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए, किन्तु देश में मंहगाई का ग्राफ आसमान का सीना चीरकर न जाने कहां जा पहुंचा है, देश की अर्थव्यवस्था की रीढ समझा जाने वाला किसान कर्ज से लदा फदा होने के कारण अत्महत्या पर मजबूर है, लाखों करोडों टन अनाज रखरखाव के अभाव में सड गल रहा है। मूलतः देश के खाद्य और कृषि मंत्री होने के नाते ये सारी जवाबदारियां आप पर सबसे पहले आयत होती हैं। भारत गणराज्य के जिम्मेदार मंत्री जब आपने पद और गोपनीयता की शपथ ली थी, जब आपके मानस पटल पर भारत का भूखा नंगा किसान ही होना चाहिए था, अगर वह किसान आपकी पहली प्राथमिकता होता तो आज देश में अनाज की कालाबाजारी और नंगी भूखी जनता आपकी ओर नहीं निहारती। दुख का विषय तो यह है कि आपकी प्राथमिकता करोडों, अरबों, खरबों का क्रिकेट खेल है, न कि भारत गणराज्य की रियाया। इससे अधिक दुख तो इस बात पर होता है कि सारी स्थिति परिस्थिति देखने परखने के बाद भी सत्ता से चिपके रहने की चाहत में कांग्रेस भी शरद पवार जैसे नेताओं को ढो रही है, जिनके लिए देश हित से ज्यादा महत्वपूर्ण विश्वहित है। हमारे घर में आग लगती है लगती रहे, पर पडोस में अमन चैन कायम रहना चाहिए। धन्य हैं शरद पवार और धन्य हैं कांग्रेस और उसकी राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी।  आजादी के वक्त कांग्रेस ने जो ख्वाब देखा और दिखाया था एवं वर्तमान में जो परिस्थितियां बन रहीं हैं उनके आधार पर यही कहा जा सकता है कि 

‘‘कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए!
कहां एक चराग भी मयस्सर नहीं शहर के लिए!!

सोनिया से नाराज दिख रहे हैं