राष्ट्रपति चुनाव
का असली खेल बाकी है मेरे दोस्त
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
रायसीना हिल्स को आशियाना बनाने की जंग बेहद तेज हो चुकी है, इन परिस्थितयों में
सियासी परिदृश्य से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल
गांधी एकदम ही गायब हैं। जादुई संख्या के गणित में दोनों उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी
और पी.ए.संगमा ने अपने अपने सारे घोड़े छोड़ दिए हैं। कांग्रेस चाह रही है कि प्रणव
मुखर्जी राष्ट्रपति बनें पर उनकी राह में शूल ही शूल नजर आ रहे हैं। सियासी हल्कों
में चर्चा है कि महामहिम चुनाव का असली खेल तो अभी बाकी है मेरे दोस्त!
चंद दिनों पहले की
घटना क्रम पर अगर नज़र डाली जाए तो मामला साफ हो जाता है। त्रणमूल सुप्रीमो ममता
बनर्जी जब कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से मिलकर बाहर आईं तब उन्होंने
कहा था कि सोनिया गांधी ने दो नामों पर विचार करने को कहा है जिनमें से एक प्रणव
मुखर्जी का था। दूसरा नाम सियासी गलियारों में खो गया था।
उसके उपरांत ममता
मुलायम का प्रहसन हुआ तो पी.ए.संगमा ने भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए ताल ठोंक दी।
एनडीए इस मामले में बखरा ही नजर आया। अंततः भाजपा ने संगमा को अपना समर्थन दे
दिया। अब सियासी गलियारों में ईसाई और आदिवासी कार्ड की धूम मच चुकी है।
कांग्रेस के सत्ता
और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि इतिहास एक
बार फिर खुद को दोहराने को तैयार दिख रहा है। गोरतलब है कि 1974 में जब समूची
कांग्रेस नीलम संजीव रेड्डी के पीछे आकर खड़ी हो गई थी, उस वक्त कहा जाता
था कि इंदिरा गांधी चाह रही थीं कि रेड्डी के बजाए बी.बी.गिरी को प्रधानमंत्री
बनाया जाए। अंततः चुनाव हुए और कांग्रेस को इंदिरा गांधी के सामने मुंह की खानी
पड़ी थी।
वर्तमान हालात भी
कमोबेश इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रणव मुखर्जी कांग्रेस की पसंद हैं किन्तु
सोनिया गांधी की पसंद नहीं। संभावना यही व्यक्त की जा रही है कि सोनिया गांधी
प्रणव मुखर्जी से अपने पति स्व.राजीव गांधी के अपमान का बदला लेने आमदा हैं।
इंदिरा गांधी के निधन के उपरांत प्रणव मुखर्जी स्वयं ही महामहिम राष्ट्रपति बनना
चाह रहे थे। जब उनकी दाल नहीं गली तो उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर समाजवादी
कांग्रेस का गठन कर लिया था।
दस जनपथ के सूत्रों
ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जब भी प्रणव मुखर्जी की बात चलती है तब तब
प्रणव विरोधियों द्वारा सोनिया गांधी के उन जख्मों को कुरेदकर हरा कर दिया जाता है
जिनमें प्रणव मुखर्जी द्वारा राजीव गांधी का विरोध किया गया था। इसके चलते सोनिया
के वे रिसते घाव एक बार फिर दर्द देने लगते हैं।
वहीं दूसरी ओर
सियासी फिजां में यह बात भी तैर रही है कि संगमा ने भी सोनिया गांधी के विदेशी मूल
के मुद्दे को हवा दी थी। इस लिहाज से सोनिया को संगमा का समर्थन नहीं करना चाहिए।
इसके जवाब में सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी खुद कभी भी प्रधानमंत्री बनने
की इच्छुक नहीं थीं इसलिए वे इसे बड़ी बात नहीं मानती हैं।
सूत्रों का कहना है
कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी में सबसे बड़ा अड़ंगा प्रणव मुखर्जी
ही बनकर सामने आ रहे थे। सबसे ज्यादा सीनियर होने के नाते वे राहुल गांधी के अधीन
मंत्री बनने को तैयार नहीं थे। कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक में भी अनेकों
मर्तबा प्रणव मुखर्जी ने इस बात के संकेत दिए बताए जाते हैं।
सूत्रों की मानें
तो राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए प्रणव मुखर्जी को सक्रिय राजनीति से हटाना
अत्यावश्यक हो गया था। संभवतः यही कारण है कि सोनिया गांधी ने उनका नाम आगे तो
बढ़ाया किन्तु जब ममता के साथ उन्होंने चर्चा की तो संगमा का नाम भी धीरे से उछाल
दिया ताकि प्रणव का विरोध हो सके। सोनिया जानती थीं कि ममता और प्रणव एक ही सूबे
के होने के कारण एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखते हैं।
वहीं कहा जा रहा है
कि सभी दलों के आदिवासी सांसदों का संगमा के पक्ष में लामबंद होना आरंभ हो गया है।
वहीं दूसरी ओर इसाई मिशनरी भी संगमा के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करने में जुट गईं
हैं। चर्चाएं तो यहां तक भी हैं कि संगमा को रायसीना हिल्स भेजने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति भी
अपनाने से गुरेज नहीं किया जा रहा है।
यहां यह बात
उल्लेखनीय है कि संगमा और सोनिया दोनों ही कैथोलिक मसीही समाज के हैं। सोनिया के
करीबी सूत्रों ने यहां तक कहा कि रोम चाह रहा है कि देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद
पर मसीही समाज का अनयाई बैठे। चर्चा तो यहां तक है कि सटोरियों का भी मानना है कि
इसाई मिशनरी संगमा के लिए ‘हर संभव‘ प्रयास करने पर
आमदा है। अगर संगमा देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठते हैं तो यह मसीही समाज
के लिए बहुत गौरव की बात ही होगी।
कहा तो यहां तक जा
रहा है कि संप्रग दो के साथ ही यह तय किया गया था कि संगमा का नाम महामहिम पद के
लिए सोनिया द्वारा सबसे पहले ही आगे बढ़ा दिया जाएगा। सोनिया के परोक्ष समर्थन के
बाद आदिवासी सांसदों के फोरम और इसाई मिशनरियों ने संगमा के पक्ष में माहौल बनाना
आरंभ कर दिया है।
अंदर ही अंदर संगमा
के पक्ष में बयार बहती दिख रही है। सियासी पण्डितों का मानना है कि भाजपा और संघ
ने अंडरकरेंट को पहचानकर ही संगमा के पक्ष में दांव लगाया है। वैसे भी प्रणव के
रवैए के चलते कांग्रेस के सांसद काफी नाराज बताए जाते हैं। प्रणव मुखर्जी फ्लोर
मैनेजमेंट में तो महारथ रखते हैं किन्तु जब बात कांग्रेस के सांसदों की आती है तो
उनका रवैय बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है।