शनिवार, 3 दिसंबर 2011

अपने लक्ष्य से कोसों दूर है मनरेगा


लूट मची है मनरेगा के कामों में . . . 5

अपने लक्ष्य से कोसों दूर है मनरेगा

पांच सालों में भी नहीं हो पाया सौ दिन के रोजगार का लक्ष्य


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना (मनरेगा) आधा दशक बीतने के बाद भी अपने लक्ष्य से कोसों दूर ही खड़ी नजर आ रही है। पिछले वित्तीय वर्ष में योजना के तहत ग्रामीण परिवारों को औसतन महज 54 दिन का ही काम मिला, जो योजना के शुरूआती साल 2006 - 2007 के औसत 45 के मुकाबले महज बीस फीसदी ही ज्यादा है।

इतना ही नहीं केंद्र सरकार की इस अतिमहत्वाकांक्षी योजना में कम से कम रोजगार के दिनों का औसत भी 15 तक जा पहुंचा है। इसमें मजदूरी के लिहाज से भी खास बढोत्तरी दर्ज नहीं की गई है। पिछले साल देश भर में रोजगार की औसत मजदूरी सौ रूपए प्रतिदिन से कम ही रही जो मंहगाई के लिहाज से उंट के मुंह में जीरा ही साबित हो रही है। इस योजना के आरंभ होने से लग रहा था कि इससे मजदूरों का पलायन रूक जाएगा किन्तु जमीनी हकीकत यह है कि आज भी रोजगार की तलाश में मजदूर दूर दूर तक जा रहे हैं।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि वर्ष 2010 - 2011 के दौरान मनरेगा के तहत देश भर के सभी 625 जिलों में फरवरी तक पांच करोड़ परिवारों को रोजगार मुहैया करवाया गया। इसमें प्रति परिवार 54 दिन का औसत काम मिला। देखा जाए तो रोजगार गारंटी योजना के तहत प्रत्येक परिवार को कम से कम 100 दिन का रोजगा मुहैया करवाने का लक्ष्य रखा गया था।

यहां उल्लेखनीय होगा कि वर्ष 2009 - 2010 में भी प्रति परिवार औसत 54 दिन का ही निकला था। जिससे साफ जाहिर है कि एक साल में औसत काम के दिनों में एक इंच भी उन्नति नहीं हो पाई है। इसके आरंभ के वर्ष 2006 - 2007 में जहां प्रति परिवार औसत 45 था, वहीं अब इसमें महज बीस फीसदी की ही बढोत्तरी होना संतोषजनक नहीं माना जा सकता है। केंद्र सरकार की इस अभिनव योजना की मानीटरिंग जिला स्तर पर नहीं किए जाने से जनता के गाढ़े पसीने से संचित धन का दुरूपयोग तबियत से किया जा रहा है।

अंबिका सोनी को ही पार्श्व में ढकेल रहे मंत्री


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 43

अंबिका सोनी को ही पार्श्व में ढकेल रहे मंत्री

कैबनेट की जानकारियां तत्काल ही पहुंचती है मीडिया के पास


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। चला चली की बेला में आ चुके वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह का खौफ न तो आरंभ में ही उनके मंत्रियों को था और न ही आज दिखाई पड़ रहा है। मंत्रीमण्डल की बैठक की समाप्ति के तत्काल बाद ही छपास के रोगी मंत्री अपने अपने मोबाईल से अपने मीडिया के कथित मित्रों के साथ बैठक की अंदरूनी जानकारी शेयर करते हैं। इस बात से कांग्रेस आलाकमान की नजरें तिरछी होती जा रहीं है।

प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे इस बात से खासे परेशान हैं कि उनके ही मंत्री उनकी परवाह नहीं कर रहे हैं। इससे सबसे ज्यादा परेशान तो सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी हैं। जब वे कैबनेट या मंत्री समूह की बैठक की जानकारी की प्रेस कांफ्रेंस करना चाहती हैं उसके पहले ही ये खबरें समाचार चेनल्स की सुर्खियां बनकर हट चुकी होती हैं। इन पत्रकार वार्ताओं में भी इलेक्ट्रानिक मीडिया के कम ही लोग उपस्थित होते हैं। आधिकारिक तौर पर यह जवाबदेही अंबिका सोनी की ही आहूत होती है।

सूत्रों ने कहा कि डॉ.सिंह इस बात पर एक अरसे से ध्यान दे रहे हैं कि कैबनेट की हर बैठक के उपरांत उनके सहयोगी मंत्री मोबाईल पर अपने टीवी चेनल वाले मित्रों को सूचनाएं देने में व्यस्त हो जाते हैं। प्रधानमंत्री कई बार मंत्रियों को इस मामले में चेता चुके हैं। सूत्रों ने कहा कि एक बार फिर डॉ.मनमोहन सिंह ने समस्त मंत्रियों को सूचनाएं लीक न करने और अपने मोबाईल के बजाए बैठक पर ज्यादा ध्यान देने का निर्देश दिया है।


(क्रमशः जारी)

ब्लड बैंक फैला रहे एड्स!


ब्लड बैंक फैला रहे एड्स!

स्थानीय स्तर पर नियमित जांच के अभाव में फल फूल रहे ब्लड बैंक


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश भर में वैध और अवैध ब्लड बैंक के माध्यम से तेजी से एड्स जैसी जानलेवा बीमारी फैल रही है। स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य एवं जिला प्रशासन की अनदेखी का लाभ उठाकर खून का धंधा देश भर में तेजी से पनप रहा है। ब्लड बैंक्स की लापरवाही से एचआईवी एड्स के संक्रमण की संभावनाएं तेजी से बढ़ गई हैं। खून लेने देने के इस घोषित अघोषित व्यवसाय में एड्स के मरीजों की तादाद बढ़ ही रही है।

राज्यों ने अपने अपने स्तर पर इसकी रोकथाम के लिए कानून बनाए हैं। मध्य प्रदेश के ड्रग एण्ड कास्मेटिक एक्ट के नियम 122 के तहत खून निकालने और किसी को खून लगाने के पूर्व उस रक्त में एचआईवी एड्स की जांच किया जाना अनिवार्य किया गया है। विडम्बना ही कही जाएगी कि ब्लड बैंक इस मामले में पूरी तरह से उदासीन ही नजर आ रहे हैं। देखा जाए तो यह गंभीर स्तर पर लापरवाही है जिससे आम आदमी की जान को जबर्दस्त खतरा हो सकता है।

देश भर के सरकारी चिकित्सालयों में भी खून का धंधा जोरों पर ही है। रक्त दाता को बुलाने, रक्त निकालने से लेकर रक्त देने तक के काम में जमकर लेन देन किया जाता है। अनेक चिकित्सालयों में तो ब्लड बैंक की स्थापना कर दी गई है पर रक्त को सुरक्षित रखने के पर्याप्त साधन न हो पाने से निजी तौर पर संचालित ब्लड बैंक की पौ बारह हो रही है।

नियमानुसार सूबों के स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन को इन ब्लड बैंक्स की नियमित जांच किया जाना अनिवार्य है। निहित स्वार्थों और कथित तौर पर अनदेखी के चलते न तो जिला प्रशासन और न ही स्वास्थ्य या औषधि प्रशासन द्वारा इन ब्लड बैंक्स की जांच की जाती है, जिससे इन ब्लड बैंक्स के संचालक मनमानी पर उतारू हैं।

दो दो रूपए में बिक रहे आधार फार्म


दो दो रूपए में बिक रहे आधार फार्म

आवेदन पत्र की कालाबजारी चरम पर


(अखिलेश दुबे)

सिवनी। यूनिक आईडेंटी फिकेशन नबर वाले आधार कार्ड बनवाने के लिए सिवनी शहर में रहवासियों को यत्र तत्र भटकने पर मजबूर होना पड़ रहा है। आधार के लिए निर्धारित स्थानों पर आवेदकों के साथ बुरा सलूक किया जा रहा है। आधार बनवाने के लिए निर्धारित एजेंसियों के पेटी कांटेक्टर्स द्वारा आधार आवेदन उपलब्ध न करवाए जाने से लोगों को यह आवेदन दो दो रूपए में खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा आधार कार्ड बनाए जाने के लिए निर्धारित एजेंसी को बड़ी मात्रा में राशि भी प्रदाय की जा रही है।

बताया जाता है कि बारापत्थर में कचहरी चौक के समीप आधार कार्ड बनवाने की एक एजेंसी है। इस एजेंसी के कार्यालय में आधार कार्ड बनवाने के लिए लोगों की जबर्दस्त भीड़ लगी रहती है। इस कार्यालय के बाहर सकरे गलियारे में आवेदकों को घंटों लंबी लाईन लगाकर इंतजार करना पड़ रहा है। वहां तैनात कर्मचारी भी आवेदकों के साथ अच्छा सलूक नहीं कर रहे हैं। बताया जाता है कि कर्मचारियों द्वारा आवेदकों के साथ जब तब नोकझोंक की जाती है।

सबसे अधिक आश्चर्यजनक पहलू तो यह उभरकर सामने आया है कि आधार कार्ड बनवाने के लिए निर्धारित फार्म का होटल नटराज के बाजू में प्रथम तल पर स्थित आधार कार्ड बनवाने की इस एजेंसी में उपलब्ध ही नहीं हैं। कुछ प्रभावशाली लोगों को यहां तैनात कर्मचारियों द्वारा महज एक ही फार्म दिया जाकर कहा जाता है कि वे इसकी फोटोकापी करवा लें। गौरतलब है कि सिवनी शहर में फोटोकापी की दर दो रूपए प्रति कापी है।

चर्चाएं तो यहां तक भी हैं कि बारापत्थर के कुछ कतिपय फोटो कापी वालों को लाभ पहुंचाने की गरज से आधार कार्ड बनवाने की निर्धारित एजेंसी के पेटी कांटेक्टर द्वारा फार्म उपलब्ध नहीं करवाए जा रहे हैं। मजबूरी में आधार बनवाने वाले आवेदकों को फोटो कापी करवाने पर विवश होना पड़ता है। कुछ स्थानों पर आधार के निशुल्क उपलब्ध होने वाले फार्म दो दो रूपए में बिकने की खबरें भी हैं। इन खबरों में कितनी सच्चाई है यह तो संचालक ही जाने पर यह सच है कि कार्यालय में आधार के फार्म ही उपलब्ध नहीं हैं।

इस बारे में जब इस कार्यालय के वरिष्ठ लोगों से शिकायत की जाती है तो वे भी टका सा जवाब दे देते हैं कि आधार के फार्म ही उपलब्ध नहीं हैं। एक तरफ तो सरकार द्वारा अधार कार्ड निशुल्क बनवाने का दावा किया जाता है वहीं दूसरी ओर आधार के फार्म की आवेदकों को खुद ही फोटो कापी करवाने की बात गले नहीं उतर रही है। कहा जा रहा है कि आधार कार्ड बनवाने के लिए निर्धारित एजेंसी द्वारा पेटी कांटेक्ट पर सिवनी में कुछ स्थानों पर आधार कार्ड बनवाना आरंभ कर दिया है।

केंद्र सरकार की इस महात्वाकांक्षी योजना में इस तरह की गफलत होने के बाद भी सरकारी नुमाईंदे मौन ही साधे बैठे हैं। अनेक भुक्त भोगियों ने बताया कि तीन माह बीत जाने के बाद भी उनका आधार  कार्ड अब तक बनकर नहीं आया है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि अनेक आवेदकों के फार्म ही उपर नहीं भेजे गए हैं जिससे उनका आधार कार्ड अब तक बनकर नहीं आ सका है। आधार कार्ड बनवाने के आवेदन की कालाबजारी आश्चर्य का ही विषय मानी जा रही है। एक तरफ तो इसका ठेका लेने वाली कंपनी द्वारा सरकार से पूरा पूरा पैसा वसूला जा रहा है वहीं दूसरी ओर आवेदन पत्र की आवेदक से ही फोटो कापी करवाकर प्रति परिवार दस से बीस रूपए की चपत भी लगाई जा रही है।