कांग्रेस में सफाई की दरकार
खानदानी परचून की दुकान बन गई है कांग्रेस
(लिमटी खरे)
सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस संभवत: अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी के बाद सोनिया गांधी ने भी दस साल तक निष्कंटक कांग्रेस पर राज कर लिया है। अब सत्ता के हस्तांतरण की तैयारियां गुपचुप और खुले दोनों ही तौर पर जारी हैं। खानदानी परचून की दुकान की तरह ही अब कांग्रेस की बागडोर राहुल गांधी के हाथ में कभी भी सौंपी जा सकती है।
इटली मूल की भारतीय बहू श्रीमति सोनिया गांधी जिन्हें हिन्दी बोलने में काफी तकलीफ होती थी, आज भी साफ सुथरी हिन्दी नहीं बोल पातीं हैं। वैसे भी सत्ता की उचाईयों पर बैठे लोग हिन्दी भाषा को कम समझते और कम ही इसका प्रयोग करते हैं। कहने को हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा जरूर है पर हिन्दी का उपयोग जमीनी लोग ही ज्यादा किया करते हैं।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष और ताकतवर केंद्र 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) की किचिन केबनेट ही पिछले दस सालों में कांग्रेस की सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के रथ के सारथी रहे हैं। इन नेताओं के निहित स्वार्थों के चलते कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ दिनों दिन नीचे ही आता गया है।
अगर कांग्रेस को बचाना है तो अपने आप को महिमा मण्डित करने में माहिर पदाधिकारियों को अब अंतिम पंक्ति में ढकेलने की महती आवश्यक्ता है। इसके साथ ही साथ मणिशंकर अय्यर, माखनलाल फौतेदार, कुंवर अर्जुन सिंह, गिरिजा व्यास, सत्यवृत चतुर्वेदी आदि के जहर बुझे तीरों को रोकने के लिए मजबूत ढाल की जरूरत है। उधर सोनिया गांधी की राजनैतिक सचिव रह चुकीं सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को सीढी बनाकर उद्योगपति राजनेता कमल नाथ, आस्कर फर्नाडिस जैसे दिग्गज दस जनपथ के मजबूत दरवाजों में सेंध लगाने की जुगत लगा रहे हैं।
पिछले एक साल में देश में विभिन्न प्रदेशों में हुए विधानसभा चुनावों, उपचुनावों पर गौर फरमाना बहुत आवश्यक है। इस आलोच्य अवधि में कांग्रेस ने महज दिल्ली और आंध्र प्रदेश में ही पूर्ण बहुमत प्राप्त किया है। इसमें से आंध्र प्रदेश एक बार फिर तेलंगाना और नारायण दत्त तिवारी के सेक्स स्केंडल में उलझकर रह गया है।
कांग्रेस ने मजबूरी में अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर महाराष्ट्र और जम्मू काश्मीर मे अपनी सरकार बनाई है। राजस्थान, हरियाणा और असम में कांग्रेस ने तलवार की धार पर सरकार का गठन किया है। उडीसा में तीसरी बार कांग्रेस ने मुंह की खाई है। उधर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता से दूर ही रही है। कर्नाटक में कांग्रेस का शर्मनाक प्रदर्शन भी विचारणीय कहा जा सकता है।
हाल ही में संपन्न हुए झारखण्ड के चुनावों में 81 में से महज 14 सीटें अपनी झोली में डालकर कांग्रेस ने अपनी भद्द ही पिटवाई है। कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित होने वाले युवराज राहुल गांधी का करिश्मा उत्तर प्रदेश में भी कोई खास असर नहीं दिखा सका।
कांग्रेस के रणनीतिकारों में अनुभवहीन लोगों की फौज के चलते कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी को कई बार अप्रिय स्थिति का सामना करना पडा है। हाल ही में रणनीतिकारों ने तेलंगाना राज्य की नींव रखने का दुस्साहसिक कदम बिना सोचे समझे ही उठा दिया। परिणाम स्वरूप आंध्र प्रदेश बुरी तरह सुलग उठा है। इतना ही नहीं देश में अब नए 21 राज्यों के गठन की मांग जोर पकडने लगी है।
कांग्रेस आज भी विभिन्न खेमों में बंटी हुई हैं। एक दूसरे की टांग खिचाई के चलते कांग्रेस के नेता अपनी विपक्षी दलों के बजाए अपनों से ही सावधान रहने में अपनी पूरी उर्जा नष्ट कर देते हैं। कांग्रेस के अलग अलग खेमों के सूबेदार चूंकि सरकार में मलाईदार पदों पर रह चुके हैं अत: मीडिया के बीच अपने विपक्षी धडे के बारे में ``छुर्रा`` छोडने में उन्हें मास्टरी हासिल है।
वन एवं पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण महकमे की जवाबदारी संभालने वाले जयराम रमेश ने सरकार को कई दफा मुश्किल में डाला है। जयराम रमेश ने वन एवं पर्यावरण मंत्री के रूप में हाल ही में एक बयान देकर कहा था कि वे मध्य प्रदेश के पेंच और कान्हा के बीच के कारीडोर में से सडक नहीं गुजरने देंगे, जिसका काफी विरोध हुआ था। दरअसल शेरशाह सूरी के जमाने की सडक को जो उत्तर और दक्षिण भारत के बीच ``जीवन रेखा`` मानी जाती है, को अगर बंद कर दिया गया तो उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच सडक संपर्क में कई गुना अधिक किलोमीटर जुड जाएंगे।
इतना ही नहीं जयराम रमेश पर राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवणी से साठगांठ, भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी तथा भाजपा के घोषणा पत्र के बनवाने के आरोपों के साथ ही साथ सबसे बडा आरोप यह लगा था कि उन्होंने कहा था कि विदेशी मूल की श्रीमति सोनिया गांधी के रहते कांग्रेस पचास साल सत्ता में नहीं आ सकती जैसे संगीन आरोप भी लगे थे, बावजूद इसके कांग्रेस द्वारा उन्हें महत्वपूर्ण मंत्री पद दिया हुआ है।
कांग्रेस सुप्रीमो की कोटरी में जहां अहमद पटेल, विसेंट जार्ज, श्रीमति शीला दीक्षित, डॉ.अर्जुन सेनगुप्ता, गुलाम नवी आजाद, आदि हैं वहीं कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह के अलावा उनकी किचिन केबनेट में कनिष्का सिंह, विश्वजीत सिंह, सांसद मीनाक्षी नटराजन, सांसद जितेंद्र सिंह, मंत्री जतिन प्रसाद, सचिन पायलट, डॉ.सी.पी.जोशी, पवन जैन, आर.पी.एन.सिंह का शुमार है। कांग्रेस अध्यक्ष के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल की ब्रांच के तौर पर मुकुल वासनिक, विलासराव देशमुख, पवन बंसल, वीरप्पा माईली, मुरली देवडा, तुषार अहमद अलग ताल ठोक रहे हैं।
कुछ दिनों पूर्व लगा था कि कांग्रेस द्वारा सही कदम उठाया जा रहा है। दरअसल प्रधानमंत्री डॉ.मन मोहन सिंह द्वारा अपनी सरकार के मंत्रियों से उन सभी की परफारर्मेंस रिपोर्ट 30 सितंबर तक मांगी थी। प्रधानमंत्री के इस कदम को उनके ही सहयोगियों ने हवा में उडा दिया। जिस मंत्रीमण्डल में प्रधानमंत्री की बात को ही हवा में उडाया जा रहा हो, उसमें उच्चश्रंखलता की हदों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के लिए अब गहन मंथन का समय आ गया है। कांग्रेस में चापलूसों ने नेतृत्व को इस कदर घेर रखा है कि आलाकमान दूर की जमीनी हरकतें देखने में अपने आप को अक्षम ही पा रहा है। आदि अनादि काल से होता आया है कि रियाया के दुख दर्द को देखने के लिए निजामों ने भेष बदलकर अपने सूबे के जमीनी हालातों का जायजा लिया है।
राहुल गांधी भारत दर्शन पर अवश्य हैं किन्तु उनकी सलाहकार मण्डली ने भी उनकी आंखों पर पट्टी बांध रखी है। भाजपा के नए अध्यक्ष राहुल गांधी के काम की प्रशंसा इसलिए नहीं कर रहे हैं कि वे राहुल गांधी के काम से दिली तौर पर खुश हैं। भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी जानते हैं कि राहुल गांधी के दलित प्रेम के प्रहसन पर जल्द ही पर्दा गिर जाएगा, इसलिए वे राहुल गांधी का हौसला बढाकर इस स्वांग को जारी रखने का प्रयास कर रहे हैं।
अब सोचना सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी को ही है कि इन दस सालों में उनके नेतृत्व में कांग्रेस कहां पहुंची है और कांग्रेस के चाटुकार, रणनीतिकार और मंत्री कहां। वे जब अपना राजपाट अपने पुत्र राहुल गांधी को सौंपेंगी तो उसमें कितने प्रदेशों की रियासतें और कितने आलंबरदार, झंडाबरदार राहुल गांधी के नेतृत्व में सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के झंडे को उठाने को तत्पर होंगे।