मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

बन्द होना चाहिए पचौरी का महिमा मण्डन

बन्द होना चाहिए पचौरी का महिमा मण्डन

ग्लोबल वार्मिंग पर अनर्गल बयानबाजी से लोगों को भ्रमित कर रहे हैं पचौरी

(लिमटी खरे)

``ग्लोबल वार्मिंग`` इस शब्द से हिन्दुस्तान के लोग कुछ साल पहले तक भली भान्ति परिचित नहीं थे, पर मीडिया ने इसे जैसे ही हौआ बनाया लोगों की नीन्दें उडने लगीं। दुनिया आग के गोले में तब्दील हो जाएगी। सब कुछ जलकर खाक हो जाएगा। समाचार चेनल्स ने भी अपनी टीआरपी (टेलीवीजन रेटिंग प्वाईंट) को दुरूस्त रखने की गरज से खूब प्रोग्राम चलाए इस संबन्द्ध में। इससे उलट इस साल समूची दुनिया में हुई भीषण बर्फबारी ने सभी अनुमानों को उलटकर रख दिया। यह बात समझ से परे है कि अगर दुनिया गर्म हो रही है तो इस कदर कहर बरपाने वाली और हाड गलाने वाली सदीZ कैसे और कहां से आई।

जाहिर है, पर्यावरण के नाम पर दुकाने चलाने वाले लोग अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए अनर्गल बयानबाजी का सहारा ले अपनी अपनी टीआरपी में जबर्दस्त इजाफा कर रहे हैं। भारत में जलवायू विशेषज्ञ आर.के.पचौरी को मीडिया ने सर पर बिठा रखा है। पचौरी ने जो कहा वह पत्थर की लकीर हो गया। एक वाक्ये का जिकर यहां लाजिमी होगा। एक अखबार में नौकरी के दौरान आंग्ल भाषा के इंटरनेशनल शब्द के हिन्दी में अनुवाद के दौरान अतरराष्ट्रीय लिखा जाए या अतर्राष्ट्रीय, इस पर बसह चली। हमारे पत्रकार मित्र का कथन था कि संपादक महोदय ने कहा है कि अतरराष्ट्रीय लिखा जाए जबकि हमारा मत था कि अतर्राष्ट्रीय लिखा जाए। अन्त में पत्रकार मित्र नहीं माने हमने उन्हें डिक्शनरी में देखने को कहा, डिक्शनरी में अतर्राष्ट्रीय ही मिला। कहने का तातपर्य यह है कि संपादक भी आदमी ही है कोई मानक नहीं। इसी तरह पचौरी का महिमामण्डन किया जाना हमारी नज़र में अनुचित है।

पचौरी का कहना था कि वातावरण में ब्लैक कार्बन की मौजूदगी चिन्ता का विषय है, पर इससे ग्लेशियर के पिघलने की बात जोडना उचित नहीं है। जलवायू परिवर्तन पर अन्तरसरकारी पेनल (आईपीसीसी) के अध्यक्ष आर.के.पचौरी के अनुसार ब्लैक कार्बन के जलवायू परिवर्तन और ग्लेशियरों पर प्रभाव के सम्बंध में पांचवा आंकलन प्रतिवेदन 2013 में पेश किया जाएगा। कोपनहेगन में भी पचौरी ने सरकार को कटघरे में खडा कर खासी वाहवाही बटोरी थी।

गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन का आकलन करने वाली आईपीसीसी दुनिया की प्रमुख संस्था है। 2007 में अपने चौथे प्रतिवेदन में आईपीसीसी ने कहा चेतावनी दी थी कि देशों को कार्बन के उत्सर्जन को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने ही होंगे, इस प्रतिवेदन में हिमालय के ग्लेशियरों के घटने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराया गया था।

अब आईए देखें कि आईपीसीसी के चेयरमेन एवं जाने माने पर्यावरण और जलवायू विद श्रीमान आर.के.पचौरी असल जिन्दगी में क्या करते हैं। एक ब्रितानी समाचार पत्र के अनुसार वे देश की राजधानी दिल्ली में अपने घर से महज सोलह सौ मीटर दूर अपने कार्यालय जाने के लिए टोयोटा करोला कार का इस्तेमाल करते हैं। मजे की बात तो यह है कि ग्रीन हाउस गैसों की कटौती के लिए पचौरी द्वारा लोगों को बसों में चलने और इको फ्रेण्डली कार के इस्तेमाल की सीख देते हैं, पर जब उस पर अमल की बारी आती है तो वे इसे ठेंगा दिखाने से नहीं चूकते हैं।

इतना ही नहीं पचौरी द्वारा लोगों को निरामिष भोजन (नानवेज) खाने से मना किया जाता है, पर वे रोजाना अपने कार्यालय से शोफर िड्रवन कार में दिल्ली के एक उम्दा मांसाहारी रेस्टोरेंट में जाकर अपनी क्षुदा शान्त करते हैं। पचौरी पर केन्द्रित आलेख में उक्त अखबार ने अनेक बातों का खुलासा किया हैै। इसके अनुसार पचौरी के एक एक सूट की कीमत 73 हजार रूपए से ज्यादा है।

वैसे भी हिमालय के ग्लेशियर के 2035 तक पिघलने का दावा कर पचौरी ने अपनी टीआरपी जबर्दस्त तरीके से बढा ली है, पर पिछले कुछ दिनों से विवादों में उलझे पचौरी की पेशानी पर पसीने की बून्दे साफ छलकती दिख रहीं हैं। इसका कारण य है कि कार्बन ट्रेडिंग से जुडी संस्थाओं का प्रकाश में आना। बताते हैं कि इन संस्थाओं के साथ आर.के.पचौरी के व्यवसायिक हित जुडे हुए हैं। क्लीन एनर्जी के उद्देश्य से इन संस्थाओं में अनेक कंपनियां अरबों डालर का निवेश करने जा रहीं हैं। बताते हैं कि पचौरी के स्वामित्व वाली एनजीओ द एनर्जी एण्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट को लगभग उन्नीस करोड रूपए की रकम हाल ही में उस वक्त मिली जब उन्होंने हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने की भविष्यवाणी की थी।

एक अन्य अखबार के अनुसार पचौरी की ग्लेशियर पिघलने की भविष्यवाणी में दम नहीं है। अखबार खुलासा करता है कि ग्लोबल वार्मिंग पर एक विद्यार्थी के शोध को ही आधार बनाकर जाने माने जलवायू और पर्यावरण विद आर.के.पचौरी ने आईपीसीसी के हवाले से भविष्यवाणी कर सभी को चौंका दिया। बताते हैं कि उक्त छात्र द्वारा भारत को छोडकर कुछ देशों के पर्वतारोहियों के संस्मरण और उनके द्वारा प्रदत्त जानकारी को ही आधार बनाकर यह थीसिस बनाई थी। इतना ही नहीं आईपीसीसी पर बर्न विश्वविद्यालय के एक छात्र के डिजर्टेशन को चुराने का भी आरोप है।

पचौरी द्वारा ग्लेशियर के पिघलने का जैसे ही दावा किया गया मीडिया को मानों नए पंख मिल गए। दिन रात चीख चीख कर मीडिया द्वारा बिना परीक्षण के ही पचौरी की बात को हवा दी जाने लगी। टीवी चालू करते ही, डूब जाएगी धरती, डूब जाएगी मुम्बई, डूब जाएगा कोलकता, जैसे सिंहनाद सुनाई पडने लगे। लोग घबराए सरकार घबराई, भेडिया आया भेडिया आया की तर्ज पर सभी की सांसे थमने लगीं।

हमारे मतानुसार देश की सरकार के पास संसाधनों की कमी कतई नहीं है। होना यह चाहिए था कि सरकार को पचौरी के वक्तव्यों की बारीकी से जांच करवाई जानी चाहिए थी और कार्बन ट्रेडिंग से जुडी संस्थाअों से उनके व्यवसायिक हितों को भी जांचना परखना चाहिए था। कहीं एसा न हो कि मीडिया पचौरी का महिमा मण्डन करता रहे एवं सरकार भी उसकी तरफ ध्यान न दे, और जब मामला खुले तो इन दावों के कारण समूची दुनिया भारत पर उपहास करती नज़र आए।