जट यमला पगला
दीवाना. . .
जाटों के लिए आरक्षण लाने पर हो रहा विचार
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
आने वाले समय में अनारक्षित वर्ग में महज चंद जातियां ही बच पाएंगी, क्योंकि
कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर जाटों को
भी आरक्षण देने पर विचार कर रही है। जाटों को लुभाने के लिए कांग्रेस इस अभिनव
योजना को 2014 के आम
चुनाव के एन पहले ही परवान चढ़ाने जा रही है।
कांग्रेस के अखिल
भातरीय स्तर के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम पहचान उजागर ना किए जाने की शर्त पर
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
को बताया गया है कि जाटों का मोह कांग्रेस से भंग होता जा रहा है। साथ ही साथ घपले, घोटाले, अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार, अनर्गल बयानबाजी से
कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार के खिलाफ माहौल बनने लगा है।
सोशल नेटवर्किंग
वेब साईट्स पर भी सोनिया, राहुल, मनमोहन, दिग्विजय, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, पलनिअप्पम चिदम्बरम
और कांग्रेस को बुरी तरह कोसा जा रहा है। दिल्ली और आसपास के इलाकों में इंटरनेट
और सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स के उपभोगकर्ताओं की खासी तादाद है। इसके साथ ही साथ
दिल्ली के इर्द गिर्द जाट मतदाताओं की तादाद बेहद ज्यादा है।
कांग्रेस के सत्ता
और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (बतौर सांसद सोनिया गांधी को आवंटित
सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ्स सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को संकेत दिए कि
जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की केंद्रीय सूची में लाने की कवायद पहले से ही
चल रही है, अब सोनिया
दरबार द्वारा ओबीसी आयोग को निर्देशित किया गया है कि आयोग इसका कोई रास्ता
निकाले।
उधर, ओबीसी आयोग के
सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि 1997 में आयोग ने एक महत्वपूर्ण फैसला देकर
जाटों को ओबीसी में शामिल करने से दो टूक इंकार कर दिया था। सोनिया ने आयोग से कहा
है कि 1997 के फैसले
पर पुर्नविचार अवश्य करे। आयोग भला सोनिया का कहा कैसे टाल सकता है।
संभवतः यही कारण है
कि इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साईंस एण्ड रिसर्च (आईसीएसएसआर) को ओबीसी आयोग ने सर्वेक्षण
के लिए पाबंद किया है। पुरानी कहावत ‘कलेक्टर के नौकर, नौकर के चाकर, चाकर के पेशकार‘ की तर्ज पर
आईसीएसएसआर ने सर्वे का काम दूसरों को बांट दिया है।
आईसीएसएसआर के
सूत्रों ने साई को बताया कि यूपी में इस काम को जीआईडीआर, राजस्थान में
आईडीएफ, गुजरात में
सीएसएस को सौंप दिया है। अब नई कंपनियां कितनी ईमानदारी से इस सर्वेक्षण को करती
हैं यह तो भविष्य के गर्भ में है पर कहा जा रहा है कि इस तरह काम बांटने के पीछे
कांग्रेस के एक आला नेता का आर्थिक स्वार्थ सामने आ रहा है।
कांग्रेस आलाकमान
की इस योजना के रास्ते में शूल ही शूल नजर आ रहे हैं। इसका कारण यह है कि जाट
बाहुल्य हरियाणा ने अब तक जाटों को आरक्षण की सूची में शामिल ही नहीं किया है। इसी
तरह गुजरात में भी आरक्षित जातियों में जाट नहीं है। वहीं दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश
और राजस्थान में जब जाटों को आरक्षित वर्ग में शामिल किया तो कहा जा रहा है कि
कांग्रेस के इशारे पर ही जाट विरोधियों ने मामला कोर्ट में जाकर पटक दिया जो आज तक
लंबित है।
इन परिस्थितियों
में जाटों को 2014 के पहले
आरक्षण की केंद्रीय सूची में लाना दुष्कर ही साबित हो रहा है। माना जा रहा है कि
सोनिया के रणनीतिकार जल्द ही उन्हें यह मशविरा दे सकते हैं कि भले ही जाटों को
अरक्षण ना दिया जाए पर महिला आरक्षण की ही तरह जाटों को आरक्षण का लालीपाप तो दिया
ही जा सकता है।