राबर्ट वाड्रा की
ग्रेट रॉबरी (पार्ट-2)
(प्रेम शुक्ला)
मुंबई (साई)।
रॉबर्ट वाड्रा की जब तक प्रियंका गांधी से शादी नहीं हुई थी तब तक उनका परिवार
मध्यमवर्गीय जीवन बिता रहा था। शादी के बाद १९९७ में रॉबर्ट ने ‘आरटेक्स’ नामक कंपनी का गठन
किया जो हैंडिक्राफ्ट और फैशन के सामानों का व्यापार करती थी। कुछ वर्षों के भीतर
रॉबर्ट वड्रा ने कई कंपनियां गठित कर लीं। प्रियंका गांधी ने ‘ब्लू ब्रीज
ट्रेडिंग’ के अलावा
सारी कंपनियों से दूरी बनाए रखी।
‘ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग’ कंपनी उड्डयन
कारोबार का दावा करती आई है। २००८ में प्रियंका ने ‘ब्लू ब्रीज
ट्रेडिंग’ कंपनी से
भी खुद को अलग कर लिया। रॉबर्ट की कंपनियों के कारोबार में आसमानी उछाल २००७-०८ से
२०१०-११ के बीच आया। इसी अवधि में उसने २९ महंगी परिसंपत्तियों का अधिग्रहण कर
लिया। इन संपत्तियों को खरीदने की पूंजी पूरी तरह से ‘अनसिक्योर्ड लोन’ के बूते आई है। ८०
करोड़ रुपए की अग्रिम राशि रॉबर्ट की कंपनियों को अकेले डीएलएफ से मिली है। बेदरवाल्स
इंफ्रा प्रोजेक्ट्स,
निखिल इंटरनेशनल और वीआरएस इंफ्रास्ट्रक्चर्स से भी रॉबर्ट की
कंपनियों को कर्ज मिले हैं। कर्ज के बूते रॉबर्ट की कंपनियों ने जो संपत्तियां
खरीदी हैं वह चौंकानेवाली हैं। ३१.७ करोड़ रुपयों के भुगतान से रॉबर्ट ने साकेत
कोर्टयार्ड हॉस्पिटैलिटी के ५० फीसदी शेयर खरीद लिए। साकेत हॉस्पिटैलिटी नई दिल्ली
में ११४ कमरों वाले हिल्टन गार्डेन होटल की मालिक है। इसी कर्ज की पूंजी से डीएलएफ
अरालियास का बी११५ नंबर का १० हजार वर्गफुट का पेंटहाउस खरीदा गया। ५.२ करोड़
रुपयों का भुगतान कर रॉबर्ट ने डीएलएफ मैग्नोलिया में ७ अपार्टमेंट्स खरीदे।
डीएलएफ ग्रीन्स में रॉबर्ट ने ५.०६ करोड़ रुपयों का भुगतान कर अपार्टमेंट्स लिए।
दिल्ली का ग्रेटर कैलाश फेज-२ हाईक्लास कॉलोनी मानी जाती है। वहां रॉबर्ट ने १.२१
करोड़ रुपयों में एक भूखंड खरीदा।
आयकर विभाग के
जानकार इस सौदे को भी संदेह की निगाह से देखते हैं। बैलेंस शीट में उक्त भूखंड का
आकार नहीं दर्शाया गया है, फिर भी जिस ग्रेटर कैलाश में करोड़ों रुपए में एक फ्लैट मिलता
हो वहां सिर्पहृ १.२ करोड़ रुपयों में तेजी की बाजार में भूखंड मिलना आश्चर्यजनक
है। वर्ष २०१० के अंत में रॉबर्ट की कंपनियों ने ग्रामीण इलाकों में कृषि योग्य
भूमि की खरीददारी शुरू कर दी। अमिताभ बच्चन के परिवार ने बीच के दिनों में पुणे के
मावल जिले में खेती योग्य भूखंड की खरीददारी की थी तो किसान खाता पेश करने पर
कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार ने बच्चन परिवार की जांच शुरू कर दी थी। सनद रहे कि
हिंदुस्थान में सिर्पहृ किसान या किसान परिवार के लोग ही कृषि योग्य भूमि खरीद
सकते हैं। रॉबर्ट और मौरीन वड्रा जिन
कंपनियों की निदेशक हैं उन्हें कृषि योग्य भूमि खरीदने की अनुमति कैसे मिली? रॉबर्ट के पिता का
परिवार बीती कई पीढ़ियों से कारोबार में है। बीते शतक भर से उनका परिवार कृषि कार्य
नहीं कर रहा है। उनकी मां मौरीन वड्रा स्कॉटिश हैं सो उनका भी किसानी का कोई
इतिहास नहीं। फिर भी वड्रा की कंपनी राजस्थान के बीकानेर में १६०.६२ एकड़ कृषि
योग्य भूमि खरीदती है। यह सौदा भी संदिग्ध है क्योंकि इतनी बड़ी जमीन की कीमत केवल
१.०२ करोड़ रुपए दर्शाई गई है। २.४३ करोड़ रुपयों के भुगतान से ५ अन्य स्थानों पर
जमीन खरीदी गई है। कंपनियों की बैलेंस शीट में इन जमीनों का आकार नहीं बताया गया
है। पलवल में ४२ लाख रुपयों की, हयातपुर (गुड़गांव) में ४ करोड़ रुपयों की, हसनपुर में ७६.०७ लाख रुपयों, मेवात में ९५.४२
लाख रुपयों तथा ६९.०९ लाख रुपए एवं ९ लाख रुपयों का भुगतान कर अज्ञात स्थान पर
रॉबर्ट की कंपनियों ने जमीनों की खरीददारी की है। २००८ में रॉबर्ट की कंपनियों के
पास कुल ५० लाख रुपयों का पेडअप शेयर कैपिटल था। यदि उनके कॉरपोरेशन बैंक के
तथाकथित ओवरड्रॉफ्ट दावे को स्वीकार भी लिया जाए तो उनके पास ७.९५ करोड़ रुपयों की
कर्ज की पूंजी है। वित्त वर्ष २००९ में
रॉबर्ट की कंपनियां १७.१८ करोड़ रुपयों का निवेश दर्शाती हैं।
वर्ष २०१० में उनके
निवेश में ३५० फीसदी का इजाफा हो जाता है और ये कंपनियां ६०.५३ करोड़ रुपयों का भू
अधिग्रहण में निवेश कर देती हैं। सिर्फ ५० लाख रुपयों की पूंजी वाली कंपनियों को
इन जमीनों की खरीददारी के अलावा किसी अन्य कारोबार से आवक दिखाई नहीं देती फिर भी
ये कंपनियां २५५.४६ लाख रुपए ब्याज के तौर पर कमाने का दावा करती हैं। वित्त वर्ष
२०१० के अंत में वड्रा की कंपनियों का इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो संपत्तियों के
मूल्य में बेतहाशा वृद्धि के बावजूद सिर्फ ७१ करोड़ रुपयों का नजर आता है। इन
कंपनियों की बैलेंसशीट में ३ करोड़ रुपयों का घाटा दर्शाया गया है। सारी कंपनियां
स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी, स्काईलाइट रियलिटी, ब्लू ब्रीज ट्रेडिंग, आरटेक्स, रियल अर्थ इस्टे्स
और नॉर्थ इंडिया आईटी पार्क्स का पता रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) के रिकॉर्ड में
२६८, सुखदेव
विहार, नई दिल्ली
दिखाया गया है। मौरीन और रॉबर्ट भले ही सारी कंपनियों के निदेशक हों, पर उसमें से अपनी
सेवाओं के लिए भुगतान यह परिवार केवल एक कंपनी स्काईलाइट रियलिटी से लेता है वह भी
अकेले रॉबर्ट। स्काईलाइट रियलिटी से रॉबर्ट ६० लाख रुपए सालाना की निदेशक फीस ली।
कंपनी के ऑडिटर कहते हैं कि कंपनी अधिनियम, १९५६ के कर्मचारी नियम, १९७५ के अनुसार
रॉबर्ट की यह फीस सीमा से ज्यादा है। कंपनी के बैंलेसशीट में रॉबर्ट की मौरीन समेत
किसी अन्य कर्मचारी या अधिकारी को किसी प्रकार के वेतन या भुगतान का जिक्र नहीं
है। क्या रॉबर्ट की कंपनियां बिना किसी कर्मचारी या अधिकारी के संचालित हो रही हैं? रॉबर्ट के पास ऐसा
कौन सा अलादीन का चिराग है या बोतल बंद जिन्न है जो उन्हें कर्ज की पूंजी पर
करोड़ों-अरबों रुपए की कमाई करा रहा है?
यह सवाल रॉबर्ट
वड्रा की कंपनियों के ऑडिटर खुराना एंड खुराना ने क्यों नहीं उठाए? रॉबर्ट की कंपनी
स्काईलाइट मानेसर का भूखंड १५.३८ करोड़ में खरीद उसे ५८ करोड़ रुपयों में डीएलएफ को
बेचती है फिर भी स्काईलाइट की बैलेंसशीट में डीएलएफ के ५० करोड़ रुपयों का ‘एडवांस पेमेंट’ ‘लायबिलिटी’ बताया गया है। रियल
अर्थ इस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड की बैलेंसशीट ऑडिट करने के बाद खुराना एंड खुराना
घोषित करते हैं ‘कंपनी
द्वारा दी गई सूचना एवं सफाई के आधार और बैलेंसशीट के निरीक्षण के बाद हम पाते हैं
कि कंपनी ने कम अवधि के लिए पंहृड एकत्र कर किसी लंबी अवधि का निवेश नहीं किया है।’ जिस वर्ष के लिए
खुराना एंड खुराना यह प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं उसी वर्ष (२०१०) की रियल अर्थ की
बैलेंसशीट में २.८९ करोड़ की अग्रिम भुगतान की राशि नजर आ रही है। सारी कंपनियों की
चालू वर्ष की लायबिलिटी ७२ करोड़ की है और हर कंपनी ने भूमि में निवेश किया है जिसे
दीर्घकालिक निवेश वर्गीकृत किया जाता है। इसलिए ये ऑडिट रिपोर्ट कंपनी अधिनियम, १९५६ की धारा ३१ के
तहत माना जाना चाहिए और इनकी जांच होनी चाहिए। अकेले स्काईलाइट रियलिटी का लाभ
वित्त वर्ष २००७-०८ तक शून्य था, जो २००८-०९ में २०.९४ लाख रुपए तथा २००९-१०
में २५५.४६ लाख रुपए दर्शा दिया गया। ये मुनाफा किसी व्यावसायिक उपक्रम की बजाय २३
सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) पर प्राप्त ब्याज से है।
इन कंपनियों ने
लगभग ५ करोड़ रुपयों के कुल २३ एफडी किए हैं। रॉबर्ट की स्काईलाइट रियलिटी कर्ज
लेकर एफडी करती है और ब्याज को मुनाफा करार देती है जबकि उसकी शेष पांचों कंपनियों
को कुल ३ करोड़ रुपयों का घाटा दर्शाया जाता है। रॉबर्ट की कंपनियों के सौदे कई
कोणों से संदिग्ध हैं, इसकी पड़ताल हम आगे भी करेंगे। (जारी)
(लेखक मुंबई से प्रकाशित सामना के कार्यकारी
संपादक हैं)
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