हम स्वतंत्र या परातंत्र!
(लिमटी खरे)
कहने को तो भारत 15 अगस्त को आजाद हुआ, कहने को तो भारत में लोकतंत्र का राज है। प्रजातंत्र का अर्थ है जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन। आज आजादी के साढ़े छः दशकों के बाद भी हम सीना ठोककर यह नहीं कह सकते कि भारत में आजादी की सुबह हो चुकी है। देश में नपुंसक, निर्लज्ज, निर्मम, निर्मोही, नाकारे हाकिमों का राज जिसे जंगलराज की संज्ञा दी जा सकती है के साए में देश की जनता सांसे लेने पर मजबूर है। आजादी के मायने क्या हैं, देशप्रेम क्या होता है, देश के प्रति जवाबदेही किस चिडिया का नाम है, इस तरह के प्रश्नों का उत्तर आज की युवा पीढी के पास नहीं है। देश की शिक्षा प्रणाली पर लगातार हमले होते रहे हैं। आज के युवा को देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों, कहानीकारों कवियों आदि के बारे में ही जानकारी नहीं है तो बाकी की कौन कहे। भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि हर पग पर पैसे की दरकार है। जनता के सेवक होने का दावा करने वाले सांसद, विधायक जनता के धन की लूट मचा रहे हैं। जनता अधनंगी भूखी कराह रही है। इस तरह के लोकतंत्र में जीकर क्या आप कह सकते हैं कि हम स्वाधीन हैं?
भारत का इतिहास खंगालने पर आपको पता चलेगा कि इस देश पर बाबर पहला मुगल था जिसने हमला किया था। बाबर के उपरांत भारत देश में मुगल शासकों का शासन लंबे समय तक रहा। मुगल शासकों के साथ देश के शासक भी राज करते रहे। मुगलों के शासन के दौरान कुछ अच्छी तो कुछ कड़वी यादें भी जुड़ी हैं भारत के इतिहास में। मुगलों के उपरांत 1600 ईस्वी में गोरे ब्रितानियों ने व्यापार के लिए भारत को चुना।
हमने छटवीं से लेकर आठवीं कक्षा तक सामाजिक अध्ययन के तहत किताबों में मुगलों और अंग्रेजों के बारे में पढ़ा है। आज की पीढ़ी को यह सब पढ़ने की फुर्सत ही नहीं है। उस वक्त कोर्स की किताबों में भारत का इतिहास दर्ज था। अस्सी के दशक तक देश प्रेम देश भक्ति से ओत प्रोत गानों को सारे साल सुना जा सकता था। फिल्मों में भी एक सार्थकता होती थी। हर फिल्म का एक उद्देश्य होता था। कहानी से एक शिक्षा मिलती थी। पर आज की फिल्मों में ना कहानी है ना गीत संगीत बस कुछ है तो वह है निर्ल्लज्जता।
आज की पीढ़ी यह अवश्य ही जानती है कि भारत गणराज्य को 14 एवं 15 अगस्त 1947 की दरम्यानी रात में आजादी मिली। किन्तु यह आजादी कितने जतन के उपरांत मिली इस बारे में आज की पीढ़ी को ज्यादा जानकारी नहीं है। देश में आंतरिक रूप से अराजकता व्याप्त है। रेत में सर गड़ाकर हाकिमों को लगता है कि उन्हें कोई देख नहीं रहा और उन्हें कुछ दिख नहीं रहा है। किन्तु वास्तविकता के धरातल पर कुछ और ही नजर आता है।
देश में शिक्षा प्रणाली के समान ना होने का खामियाजा अंततः देश की जनता को ही भुगतना पड़ता है। जब भी कोई भी नेता मानव संसाधन विकास मंत्रालय का जिम्मा संभालता है उसकी पहली प्राथमिकता अपनी मनमानी को देश के नौनिहालों पर थोपना ही होती है। याद पड़ता है कि कांग्रेस के शासनकाल में एक नेता ने जब एचआरडी मिनिस्ट्री की कमान संभाली वैसे ही पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि शिक्षा में व्याप्त हिंसा को दूर करना उनकी पहल प्राथमिकता होगी।
भाजपा के शासनकाल में आरोप लगते हैं कि शिक्षा का भगवाकरण किया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर शिक्षा में हिंसा कैसी है? कैसा भगवाकरण है शिक्षा में व्याप्त? कहा जाता है कि संस्कार की जननी शिक्षा ही है। अगर शिक्षा को समृद्ध रखा जाएगा तो आने वाली पीढ़ी संस्कारों वाली ही होगी, संस्कारों के साथ वह देश को सही दिशा में भी ले जाएगी। कांग्रेस और भाजपा की शिक्षा प्रणाली पर सबसे बड़ा कटाक्ष लगे रहो मुन्नाभाई में गांधी जयंती अर्थात 2 अक्टूबर को ड्राई डे होना बताया गया।
इससे साबित हो जाता है कि इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में देशवासियों के लिए महात्मा गांधी का जन्म दिन याद रखने की किसी को भी फुर्सत नहीं है। नशे की आदी हो चुकी युवा पीढ़ी को यह अवश्य पता है कि किस दिन शराब की दुकानों पर ताला बंद रहेगा। शिक्षा में व्याप्त विसंगतियों को दूर नहीं किया जा सकता है। आज हर प्रांत की अपनी शिक्षा प्रणाली है। ना जाने कितने गरीब गुरबों को आज महंगी शिक्षा के कारण शिक्षा ही नसीब नहीं है।
शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो जाने के बाद भी गरीबों को शिक्षा मुहैया नहीं है। देश में अनेक विद्यालय एसे भी हैं जहां मातृभाषा हिन्दी बोलने पर आर्थिक और शारीरिक दण्ड का प्रावधान है। अब बताईए जिस देश में राष्ट्रभाषा को ही इस तरह से तिरस्कृत किया जाएगा वहां की युवा पीढ़ी भला देश की अधिकृत भाषा का सम्मान कैसे करेगी? देश की कमोबेश हर बड़ी परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी है। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी का ही बोलबाला है।
आज देश में वाहनों के नंबर अंग्रेजी भाषा में लिखे जाते हैं। रेल गाडियों पर उनके नंबर और नाम या तो स्थानीय भाषा या फिर अंग्रेजी में होते हैं। हर जगह स्थानीय भाषा के उपरांत वैकल्पिक भाषा के रूप में अंग्रेजी को ही चुना जाता है। दिल्ली जहां से देश को हांका जाता है, वह दिल्ली भी सिर्फ अंग्रेजी भाषा को ही समझती है। इसका असर देखना है तो फेसबुक ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर जाईए।
इन वेब साईट्स पर सुप्रभात, शुभ प्रभात का स्थान गुड मार्निंग ने ले लिया है। वेलंटाईन डे, फादर्स डे, मदर्स डे, न्यू इयर और ना जाने कितने पश्मिी सभ्यता वाले दिन हैं जिन्हें भारतवासी गर्व के साथ मनाते हैं। कांग्रेस के लोग इंदिरा गांधी और राजीव गांाी के फोटो डालकर अपने अपको धन्य समझते हैं। कभी आपको महात्मा गांधी, शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभद्रा कुमारी चौहान, रामधारी सिंह दिनकर, कवि प्रदीप आदि की जयंती या फोटो आदि को याद करने का समय किसी के पास नहीं है।
अपने स्वार्थ के लिए सियासी हाकिमों ने देश की जनता को धर्म, प्रांत, भाषा आदि में बांट दिया है। हालात देखकर यही कहा जा सकता है कि:-
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे में!
बांट दिया भगवानों को!!
धरती बांटी अंबर बांटे!!!
मत बांटो इंसानों को!!!!
(साई फीचर्स)