सुनवाई के पहले ही दे दिया फैसला!
(लिमटी खरे)
कब तक वैश्विक संबंधों की दुहाई देकर भारत सरकार द्वारा भारत गणराज्य की संप्रभुता को गिरवी रखा जाएगा। दो इतालवी सैनिकों को भारत बुलाने और देश में उन पर मुकदमा चलाने के मामले में अभी न्यायालयीन प्रक्रिया जब शैशवकाल में ही है तब भारत सरकार ने अपना फैसला दे दिया है कि इतालवी सैनिकों को ना तो जेल में रखा जाएगा ना ही मौत की सजा सुनाई जाएगी। अगर उन्हें कारावास की सजा भी सुनाई जाती है तो वे अपनी सजा इटली की जेल में काट सकते हैं। भारत गणराज्य का यह कैसा कानून है? क्या कूटनीतिक तरीके से इन दो सैनिकों की भारत वापसी हुई है? अगर एसा है तो दाउद के मामले में भारत सरकार की कूटनीति ढेर क्यों हो जाती है?
भारत गणराज्य के वजीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे हैं कि तय सीमा में वे दो इतालवी सैनिकों की भारत वापसी के मार्ग प्रशस्त कर सके हैं। सैनिकों की वापसी के लिए भारत सरकार ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी इटली मूल की हैं के पीहर के साथ क्या समझौते किए हैं इस बारे में सरकार स्थिति स्पष्ट करने के बजाए गोल मोल बातों में ही जनता को उलझा रही है।
केरल तट के पास दो भारतीय मछुआरों की हत्या के अभियुक्त इटली के दो नौसैनिक भारत लौट आए हैं। मैसिमिलियानो लातोर और सैलवातोर गिरोन कल शाम नई दिल्ली पहुंचे। उनकी वापसी के लिए उच्चतम न्यायालय की समय सीमा का कल अन्तिम दिन था। उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने मतदान के लिए उन्हें स्वदेश जाने की अनुमति दी थी लेकिन इटली ने उन्हें वापस भेजने से इंकार कर दिया था। इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक गतिरोध पैदा हो गया था।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इटली के इस फैसले का स्वागत करते हुए अपनी खुद की पीठ थपथपाते हुए कहा कि इटली ने भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की वैधता और गरिमा बनाए रखी है। नौसैनिकों को भारत भेजने की घोषणा के कुछ घंटे बाद संसद के दोनों सदनों में बयान में विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि इटली ने मौत की सजा और अन्य मुद्दों के बारे में स्पष्टीकरण मांगे थे।
भारत गणराज्य के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद भले ही कहें कि इन दोनों नौसैनिकों की वापसी को लेकर इटली सरकार से किसी तरह का समझौता नहीं हुआ है। इस पर विपक्षी नेताओं ने खासा एतराज जताया। बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा, अगर सब कुछ वह कूटनीति से ही हासिल कर रहे हैं तो दाऊद इब्राहीम अब तक बाहर क्यों है? उसे भी मंगवा लें कूटनीति से। विपक्षी दलों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैये ने इस मामले को हल करने में काफी मदद की।
गौरतलब है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने चेतावनी दी थी कि यदि 22 मार्च तक दो भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोपी नौसैनिकों को कोर्ट में पेश नहीं किया गया तो कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी। कोर्ट के इस रवैये से शुरू में इटली बहुत नाराज हुआ था। यहां तक कि यूरोपीयन यूनियन ने भारत को एक तरह से धमकी तक दे डाली थी। लेकिन भारत में भी मांग उठी थी कि इटली को लेकर सख्त कदम उठाए जाएं। पर अब इटली ने स्थिति की गंभीरता को समझ लिया और अपनी जिद छोड़ दी। शायद उसे इस बात का अहसास हो गया है कि इस नई विश्व-व्यवस्था में हर देश अपने सामाजिक-आथिर्क विकास के लिए एक-दूसरे पर निर्भर है और अगर एक-दूसरे के सिस्टम का सम्मान नहीं किया गया तो मिलकर चलना संभव नहीं हो सकेगा।
दिल्ली की सियासी फिजां में चर्चा है कि भारत सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के पीहर इटली को इस बात का भरोसा दिलाया है कि इन दोनों सैनिकों को मौत की सजा नहीं सुनाई जाएगी। अगर न्यायालय ने उन्हें दोषी मानकर कारावास की सजा भी दी तो वे अपनी सजा इटली के कारावास में काट सकते हैं। इतना ही नहीं सुनवाई के दौरान दोनों इतालवी सैनिक भारत गणराज्य की जेल के स्थान पर इतालवी दूतावास में रहेंगे।
वहीं इटली के सहायक विदेश मंत्री मिस्तुरा ने कहा, कि उन्हें भारत सरकार से इस बात की आधिकारिक तौर पर लिखित गारंटी मिली कि इन दोनों को मौत की सजा नहीं दी जाएगी और साथ ही उनके भारत छोड़ने के दौरान की स्थिति को ही उनके भारत पहुंचने पर भी बरकरार रखा जाएगा। यह आईने की तरह साफ है कि इन नौसैनिकों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। इन्हें इटली के राजदूत की निगरानी में रखा जाएगा।
भारत गणराज्य का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां के विदेश मंत्री लोकसभा में बयान देते हैं कि भारत गणराज्य ने इटली को लिखित में यह भरोसा दिलाया है कि अगर ये दोनों नौसेनिक सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा तय समय में भारत लौट आते हैं तो उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। साथ ही उन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 18 जनवरी को दिया गया आदेश लागू होगा। लगता है कानून बनाने वाली पंचायत के सदस्यों ने कानून का अनुपालन कराने वाली अदालतो से अपने आप को उपर समझ लिया है।
संसद का काम कानून बनाने का है। कानून का पालन किस तरह सुनिश्चित होगा, उस पर परिस्थितिजन्य स्थितियों को देखकर कितनी सजा कैसी दी जानी है यह काम माननीय न्यायालय का है। अभी जबकि यह मामला शैशवकाल में ही है तब भारत गणराज्य के विदेश मंत्री सलाम खुर्शीद कौन होते हैं जो इस बात का भरोसा लिखित में इतालवी सरकार को देते हैं कि उनके सैनिकों को पकड़ा नहीं जाएगा?
भारत गणराज्य के कानून को अंधा कानून कहा जाता है अर्थात यह अमीर गरीब या ताकतवर, कमजोर, स्वदेशी विदेशी को नहीं पहचानता, यह काम करता है तो बस सबूतों के आधार पर और सबूतों के हिसाब से सभी बराबर हैं। क्या भारत का कानून दो तरह की नजरें रखता है। एक तरफ संजय दत्त को एक मामले में जेल की सजा सुनाई जाती है वह भी वहीं दूसरी ओर मछुआरों के हत्यारों को देश आने की कीमत पर तश्तरी में परोसकर सारी चीजें रख दी जाती हैं।
क्या यह सब कुछ महज इसलिए कि सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के पीहर से जुड़ा है यह मामला! अगर नहीं तो फिर एसा क्यों? इटली के एक मंत्री ने वहां के मीडिया से चर्चा के दौरान इस बात को स्वीकारा है कि अगर विवाद को नहीं बढ़ाया जाता तो इतालवी सरकार भारत से बात करने और अपनी शर्तें मनवाने की स्थिति में नहीं होता! क्या यही है भारत गणराज्य के प्रजातंत्र के असली मायने!
सलमान खुर्शीद खुद ही न्यायधीश बन बैठे हैं। उन्होंने कहा है कि जहां तक मौत की सजा का सवाल है, इस मामले की प्रकृति ऐसी नहीं है कि मौत की सजा दी जाए क्योंकि मौत की सजा दुर्लभतम मामलों में दी जाती है। मौत की सजा दी जाएगी या नहीं यह बात तो भविष्य के गर्भ में है। यह माननीय न्यायधीश के विवेक पर निर्भर करता है कि मौत की सजा दी जाए अथवा नहीं पर सलमान खुर्शीद कैसे इतालवी सरकार को एसा भरोसा दे सकते हैं।
प्रेस की संहिता के अनुसार किसी मामले में खबरों का प्रकाशन बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे प्रकरण पर असर पड़ सकता है। क्या सलमान खुर्शीद का बयान इस केस पर असर नहीं डालेगा? मौत की सजा नहीं होगी के आश्वासन के उपरांत माननीय न्यायालय का रूख क्या होगा? क्या सलमान खुर्शीद ने इसका उल्लंघन नहीं किया है।
सलमान खुर्शीद कैसे किसी को यह लिखकर दे सकते हैं कि उसे जेल नहीं भेजा जाएगा, उसे पकड़ा नहीं जाएगा, उसे दूतावास में ही रहने की छूट दी जाएगी? वह अपनी सजा विदेश यानी इटली की जेल में काट सकता है? उसे फांसी की सजा नहीं दी जाएगी। मतलब साफ है कि इटली के सामने भारत सरकार घुटनों पर ही दिखाई पड़ रही है।
विपक्ष भी महज रस्म अदायगी के लिए इस बात के लिए सरकार की आलोचना करते हुए कह रहा है कि सरकार ने ट्रायल पूरा होने से पहले ही कैसै इटली को इस बात का आश्वसन दे दिया कि इन दोनों हत्या के आरोपियों को मौत की सजा नहीं दी जाएगी।
अब लगने लगा है कि मानो देश की सबसे बड़ी पंचायत के नीति निर्धारकों ने आपस में मिलकर नूरा कुश्ती खेलते हुए देश की जनता को गुमराह करने के काम में तेजी ला दी है। अब तो लगने लगा है कि मानो सोनिया गांधी के डर से ना केवल कांग्रेस के नेता वरन विपक्ष में बैठे लोग भी उन्हीं की जुबान ही बोल रहे हैं। क्या किया जा सकता है जब कुंए ही में भांग घुली हो, लगने लगा है मानो देश के नीति निर्धारकों ने भारत गणराज्य को ही गिरवी रखने का मुकम्मल इंतजाम कर लिया है। (साई फीचर्स)