(लिमटी खरे)
देश के अन्नदाता किसान की देश के ही हृदय प्रदेश में कमर टूटी पड़ी
है। पिछले साल सोयाबीन की फसल का नुकसान हुआ, मुआवजे के लिए किसान अब तक दर-दर
भटक रहा है। इस साल जब फसल पक गई उसी वक्त इंद्रदेव का कोप किसानों पर भारी पड़ा।
पता नहीं किस वजह से इंद्रदेव नाराज हुए और किसानों की खड़ी फसल पर ओला पाला का कहर
टूट पड़ा। दूबरे पर दो अषाढ़ की कहावत चरितार्थ करते हुए किसानों की टूटी कमर को
सहलाने या तामीरदारी के लिए कोई आगे नहीं आया। कांग्र्रेस ने विधानसभा में अवश्य
इस बात को रेखांकित किया। सिवनी जिले के केवलारी विधायक रजनीश हरवंश सिंह ने
किसानों की बात वजनदारी से विधानसभा के पटल पर रखी। किसानों की हितैषी बनने वाली
कांग्रेस ने जिले में अपना मौन नहीं तोड़ा है।
उधर, मंगलवार को सिवनी सहित प्रदेश के
अनेक जिलों में गए सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने गरजकर इस बात को कहा कि अगर
केंद्र ने अध्ययनदल जल्द नहीं भेजा तो प्रदेश की भाजपा सहित वे अपने मंत्रियों के
साथ 6 अप्रैल को अनशन पर बैठ जाएंगे। किसानों के सामने कही इस बात से शिवराज सिंह
चौहान ने जमकर तालियां बटोरीं। ये तालियां उनके एक अच्छे प्रयास पर थीं।
आज चुनावों की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लग गई है। आचार संहिता
में अब किसानों को शायद ही मुआवजा मिलने की बात पर चुनाव आयोग अपनी हरी झंडी दे।
इसके पीछे यह वजह हो सकती है कि कहीं प्रदेशों में सत्तारूढ़ दल, मुआवजे की आड़ में मतदाताओं को लुभाने की कोशिश न की जाए। अगर ऐसा
होता है तो किसानों को मुआवजा 16 मई के बाद ही मिल पाएगा। इस मामले में भी किसानों
की किस्मत शायद दगा दे गई है।
आचार संहिता कब लगने वाली है इस बात के कयास पहले से ही लगाए जा रहे
थे। आचार संहिता में नए कार्याें का भूमिपूजन, शिलान्यास आदि प्रतिबंधित होता है। इसके साथ ही साथ किसानों के
मुआवजे के मामलों को भी ठण्डे बस्ते के हवाले ही कर दिया जा सकता है। भारतीय जनता
पार्टी ने 6 अप्रैल को सिवनी बंद का आव्हान किया है। आज भी सिवनी सहित प्रदेश भर
में माईक लगे रिक्शे, ऑटो से बंद का आव्हान किया जा
रहा है।
क्या इस बात से जनसेवक और नेता अनजान हैं कि आचार संहिता के लगने के
बाद केंद्र सरकार द्वारा किसी राज्य को मुआवजा दिया जा सकता है? जाहिर है इसका उत्तर नकारात्मक ही आने वाला है। केंद्र सरकार चाहकर
भी कोई पैकेज अब नहीं दे सकती है। आने वाले दिनों में लोकसभा चुनाव हैं। चुनावों
के उपरांत जनादेश का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह बात तो भविष्य के गर्भ में है
किन्तु किसानों की बदहाली पर सियासत कतई ठीक नहीं मानी जा सकती है। इन
परिस्थितियों में बंद का औचित्य समझ से परे ही माना जा सकता है।
हमने इसके पहले भी 23 फरवरी को हुई ओलावृष्टि के बाद इस बात को लिखा
था कि समय सीमा में ही फसल का सर्वे करवा दिया जाए और मुआवजे के प्रकरण भी टाईम
फ्रेम में बांधकर तैयार करवा दिए जाएं। बारह दिनों बाद भी मामला जस का तस ही पड़ा
हुआ है। शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को कहा था कि केंद्र के सर्वेक्षण और अध्ययन
दल को प्रदेश आकर फसलों की तबाही देखना चाहिए। अब आचार संहिता लग चुकी है। इन
परिस्थितियों में अध्ययन दल शायद ही आने की जहमत उठाए।
अगर अध्ययन दल नहीं आता है, तो मान लेना चाहिए कि किसानों की
फसलों का निरीक्षण कोई नहीं करने वाला है। इन परिस्थितियों में दबंगों द्वारा
पटवारी जैसे अदने से सरकारी मुलाजिम पर दबाव बनवाकर अपनों को अगर रेवड़ी बटवां दी
गई तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सिवनी आए शिवराज सिंह चौहान ने सूदखोरों
से भी कर्ज वसूली और कर्ज पर ब्याज को स्थगित रखने की मांग कर डाली।
शिवराज सिंह चौहान की यह मांग आश्चर्य को ही जन्म दे रही है, क्योंकि सरकारी सिस्टम में तो सूदखोरों का कोई अस्तित्व ही नहीं है, फिर किस आधार पर प्रदेश के निजाम ने सूदखोरों से अपील कर डाली। वैसे
सूदखोरी का लाईसेंस दिया जाता है। लाईसेंस धारी ब्याज का धंधा करने वालों को बैंक
के ही मानिंद निर्धारित ब्याज पर रकम उधार देने का प्रावधान है। इस लिहाज से
शिवराज सिंह चौहान का कथन सही माना जा सकता है, पर दूसरे अर्थों में देखा जाए तो गैर लाईसेंस धारी ब्याजखोरों द्वारा
लोगों के एटीएम और दस्तखत की हुई चैकबुक भी अपने पास रखी हुई हैं। इन चैक बुक्स और
एटीएम से वे पैसा निकाल लिया करते हैं।
इस आधार पर ग्रामीणों के दिलो दिमाग पर अब सूदखोर मतलब गैर लाईसेंसी
सूदखोर की छवि ही बनी हुई है, जो निर्ममता पूर्वक अपनी रकम
वसूलता है। अनिल कपूर अभिनीत चलचित्र ‘तेजाब‘ में लोटिया पठान का कहना था कि लोटिया पठान जब देेता है तब चेहरा
नहीं देखता और जब वापस लेता है तो मुरव्वत नहीं करता। इसी तर्ज पर गैर लाईसेंसी
सूदखोर जनता को लूट रहे हैं। अब आचार संहित लागने के बाद किसानों के रिसते घावों
पर मरहम शायद ही लग पाए। न तो अब केंद्र अपने अध्ययन दल को भेज पाएगा, और न ही कोई आर्थिक इमदाद ही राज्य को उपलब्ध करा पाएगा। इन
परिस्थितियों में 6 अप्रैल के बंद के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजिमी है।