एमपी महाराष्ट्र
बार्डर खवासा पर लगता जाम!
(लिमटी खरे)
मध्य प्रदेश और
महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है खवासा ग्राम, जहां मध्य प्रदेश सरकार के राजस्व और अफसरों
के निजी खाते में जाने वाले राजस्व की प्राप्ति करोड़ों अरबों खरबों रूपयों में
होती है। खवासा बार्डर सदा से ही चर्चा का केंद्र रही है। खवासा के इस बार्डर का
सबसे दुखदाई पहलू यहां लगने वाला यातायात का जाम है। ट्रकों की लंबी कतारों को
देखकर निजी वाहन वालों के पसीने आ जाते हैं। इस जाम के लगने के पीछे के कारणों पर
अब तक ना तो किसी जिलाधिकारी ने ध्यान ही दिया है और ना ही ध्यान देने की जरूरत ही
समझी है। वर्तमान जिला कलेक्टर भरत यादव ने एक साक्षात्कार में खवासा की सीमा चौकी
पर छापे मारने की बात कही है जो प्रशंसनीय है।
देखा जाए तो खवासा
में मुख्यतः परिवहन विभाग की जांच चौकी है जहां करोड़ों रूपयों के वारे न्यारे होते
हैं। इस जांच चौकी के बारे में कहा जाता है कि यहां दक्षिण भारत सहित मध्य प्रदेश
सहित देश के अनेक हिस्सों की कई ट्रांसपोर्ट कंपनियों द्वारा बाकायदा अपने माल
वाहक वाहनों की सूची दी हुई है जिनसे निर्धारित से कम मात्रा में चौथ वसूली की
जाती है। बाकी माल और यात्री वाहक वाहनों से हर माह चौथ वसूली के साथ ही साथ शासन
द्वारा दिए गए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनका चालान भी काटा जाता है।
इस जांच चौकी के
बारे में बताया जाता है कि यह जांच चौकी रिमोट कंट्रोल से संचालित होती है। अर्थात
यहां तैनात परिवहन विभाग और पुलिस विभाग के प्रतिनियुक्ति पर आए कर्मचारियों के
अलावा निजी गुंडा नुमा लोगों के द्वारा यहां सरकारी काम को अंजाम दिया जाता है।
वैसे तो निजी गुर्गे जिला कलेक्टर की नाक के नीचे पंजीयक लेण्ड रिकार्ड अर्थात
जहां जमीनों की खरीदी बिक्री होती है वहां भी काम करते दिख जाते हैं।
सूत्रों की बातों
पर गर यकीन किया जाए तो इन निजी कर्मचारियों के हाथों में एक रिमोट घंटी का बटन
होता है। सड़क पर लाल या पीली बत्ती देखते ही ये बटन दबा देते हैं और चौकी के अंदर
सभी काम नियमानुसार संचालित होना आरंभ हो जाता है। बताते हैं यहां समिष और निरामिष
भोजन बहत ही लजीज बनता है। यहां एक कैंटीन का संचालन भी होता है जहां शाकाहारी और
मांसाहारी भोजन की माकूल व्यवस्था है। यहां यह सब कुछ निशुल्क ही है। कहा जाता है
कि हर माह की चढ़ोत्री के हिसाब में इसे भी जोड़ दिया जाता है।
अगर, जिला कलेटर भरत यादव
बिना सूचना के अचानक ही इस जांच चौकी में पहुंच जांए तो उन्हें सबसे पहले पिछले
दरवाजे पर एक रजिस्टर रखा मिलेगा जिसमें नेताओं, पत्रकारों और
प्रभावशाली लोगों के नाम और उन्हें दी जाने वाली मासिक चौथ की सूची मिल जाएगी।
मेले ठेले, धरना
प्रदर्शन आदि के लिए दी जाने वाली राशि का ब्योरा भी इसी पंजी में दर्ज होता है।
निश्चित तौर पर यह राशि परिवहन विभाग या यहां पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर आए
कर्मचारी अपनी जेब से तो देते नहीं होंगे। जो भी दिया जाता होगा वह वाहनों के
स्वामी से ही वसूला जाता होगा।
इस तरह के
भ्रष्टाचार के सागर में आकण्ठ डूबी है खवासा की जांच चौकी। खवासा में इसके अलावा
मंडी, विक्रय कर
आदि की जांच चौकियां भी हैं। यहां जाम क्यों लगता है इस बारे में कोई भी कुछ बताने
को तैयार नहीं होता है। ज्यादा पूछताछ करने पर निजी गुण्डानुमा गुर्गों द्वारा
हमला तक बोल दिया जाता है। मजे की बात तो यह है कि यहां पुलिस का एक सहायता केंद्र
भी स्थापित है, पर सब कुछ
हो रहा है ढके मुंदे नहीं उजागर तौर पर। यहां कभी भी पूरी तैनाती नहीं मिल पाती
है। इस तरह की चौकियों में ईमानदारी पूरी पूरी बरती जाती है। एक एक सिपाही या
हवलदार पखवाड़े तक घर पर आराम फरमाते हैं पर उनके हिस्से में कोई समझौता नहीं होता
है। कहते हैं कि यहां से गुजरने वाले वाहनों से चौथ वसूली के उपरांत उन्हें गेट
पास दिया जाता है,
गेट पास के पहले उनकी डायरी में चिड़िया कौआ जैसी आकृति बना दी
जाती है जो हर माह अलग शक्ल की होती है जिससे यह पता चल जाता है कि उस वाहन की
एंट्री उस माह के लिए हो चुकी है।
असली मरण तो आम
आदमी की होती है। सिवनी जिले के विधायक और सांसदों की कर्तव्यों के प्रति अनदेखी
के चलते सिवनी की स्वास्थ्य सुविधाएं जो एक समय में महाकौशल संभाग में
आर्युविज्ञान कालेज जबलपुर के बाद नंबर दो पर आती थी आज खुद आईसीसीयू में पड़ी कराह
रही है, नतीजतन
मरीजों को छोटी मोटी बीमारी होने पर भी सिवनी के प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी जिला
चिकित्सालय से नागपुर रिफर कर दिया जाता है। इसके पीछे चिकित्सकों को नागपुर के
मंहगे अस्पतालों से मिलने वाला कमीशन ही बताया जा रहा है। जब मरीज नागपुर जाते हैं
तो वे इस जाम में फंसकर नारकीय पीड़ा को भोगते हैं। स़क्षम लोग तो बरास्ता छिंदवाड़ा
सौंसर होकर नागपुर पहुंच जाते हैं पर गरीब तो इसी रास्ते से जाने पर निर्भर हैं।
यहां यक्ष प्रश्न
यह खड़ा हुआ है कि आखिर खवासा में एक साथ पचास से लेकर दो सौ ट्रकों की लाईन कैसे
लग जाती है। अगर खवासा से महज दस किलोमीटर दूर महाराष्ट्र बार्डर की मानेगांव टेक
चौकी से आप गुजरें तो वहां महज एकाध ट्रक ही खड़ा मिलता है। आखिर क्या वजह है कि
महाराष्ट्र की जांच चौकी मिस्टर कलीन है और एमपी की जांच चौकी दागदार! मतलब साफ है
कि दाल में कुछ काला है।