गुरुवार, 9 जून 2011

गेंहू के सुरक्षित भंडारण की मांग की मुख्यमंत्री ने

गेंहू के सुरक्षित भंडारण की मांग की मुख्यमंत्री ने

नई दिल्ली (ब्यूरो)। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने आज यहां केन्द्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली मंत्री प्रो0 के0 व्ही0 थामस, उर्वकर मंत्री जैना एवं भूतल परिवहन मंत्री सी.पीजोशी से भेंट की।
श्री चैहान ने श्री थामस को बताया कि मध्यप्रदेश में इस वर्ष 49 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूं का समर्थन मूल्य पर उपार्जन किया गया है। अगले वर्ष 62 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूं का समर्थन मूल्य पर उपार्जन होने की संभावना है। अभी गेहूं  खुले में रखा हुआ है इसे अन्य राज्यों में भेजने की व्यवस्था की जाए। लगभग 18 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले में रखा है जिसके सुरक्षित भण्डारण की आवश्यकता है । श्री चैहान ने प्रदेश में 30 लाख मीट्रिक टन अनाज के भण्डारण की क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता बतायी। खुले में रखे हुए गेहूं को बरसात होने के पूर्व सुरक्षित भण्डारण की आवश्यकता है अन्यथा बरसात में गेहूं खराब हो सकता है। लगभग 18 लाख मीट्रिक टन गेहूं खुले में रखा हुआ है।
श्री चैहान ने श्री थामस को बताया कि प्रदेश में वेयरहाउसिंग बनाने के लिए जमीन उपलब्ध कराई जायगी । केन्द्र सरकार वेयरहाउसिंग के निर्माण के लिए प्रदेश को आवश्यक धनराशि भी  उपलब्ध कराये।
केन्द्रीय मंत्री श्री थामस ने मुख्यमंत्री श्री चैहान को आश्वस्त किया कि मध्यप्रदेश में उपलब्ध गेहूं को सुरक्षित रूप से अन्य राज्यों को भेजा जायेगा। मध्यप्रदेश में उपलब्ध गेहूं को अन्य देशों को निर्यात करने के लिए भी भेजा जा रहा है। नाबार्ड की मदद से प्रदेश में 30 लाख मीट्रिक टन भण्डारण क्षमता के गोदाम बनाने के प्रयास किये जायंगे। राज्य में ग्रामीण भण्डारण के रूप में भण्डार गृह तैयार किये जाएं। मुख्यमंत्री श्री चैहान की मांग के अनुरूप उन्होंने चार माह का अग्रिम आवंटन बीपीएल परिवारों के लिए अग्रिम रूप से दिये जाने की सहमति जतायी। श्री थामस ने गेहूं के संग्रहण के लिए किसानों को राशि का भुगतान सीधे उनके खाते में किये जाने के लिए बधाई दी। श्री थामस ने सुझाव दिया कि अस्थायी रूप से भण्डारण की व्यवस्था की जाय जिससे गेहूं खराब नहीं हो। मुख्यमंत्री श्री चैहान ने श्री थामस को बताया कि प्रदेश में वन समितियों के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का भी प्रयास किया जा रहा है। प्रदेश के पांच जिलों में राशन कार्डों को यू आई डी से लिंक किया जा रहा है जिससे बीपीएल के परिवारों को सही रूप से राशन उपलब्ध हो सके। श्री चैहान ने श्री थामस से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए एक लाख मीट्रिक टन चावल के बदले में आवश्यकतानुसार गेहूं आवंटित किये जाने का आग्रह किया।
इसके उपरांत मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री श्रीकांत जेना से भेंट की। श्री चैहान ने श्री जेना से अनुरोध किया कि प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रदेश की जरूरत के अनुसार दो लाख 70 हजार मीट्रिक टन डीएपी खाद शीघ्र उपलब्ध करायी जाए। 15 जून से 30 जुलाई का समय सोयाबीन की बुवाई का होता है। उस समय डीएपी खाद की अत्यंत आवश्यकता होती है। श्री चैहान ने बताया कि दो लाख 70 हजार मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत की तुलना में प्रदेश को एक लाख 45 हजार मीट्रिक टन का आवंटन किया गया है। इसमें से अभी केवल 62 हजार मीट्रिक टन डीएपी प्राप्त हुआ है।
केन्द्रीय मंत्री श्री जेना ने श्री चैहान को बताया कि प्रदेश में खाद्यान उत्पादन की स्थिति को देखते हुए प्रदेश को आवश्यकतानुसार डीएपी और अन्य खाद उपलब्ध करायी जाएगी । 82 हजार मीट्रिक टन डीएपी खाद 25 जून तक उपलब्ध करा दी जाएगी। प्रदेश को और जितनी खाद की आवश्यकता होगी केन्द्र सरकार प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराएगा । श्री जेना ने गेहूं के समर्थन मूल्य पर खरीदी पर किसानों को बोनस दिये जाने और भुगतान की राशि सीधे किसानों के खाते में जमा किये जाने के लिए श्री चैहान की सराहना की।
प्रदेश की जर्जर सडकों के मसले में सीएम ने केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री डाॅ. सी.पी.जोशी से भेंट की। श्री चैहान ने श्री जोशी का ध्यान आकर्षित किया कि एनएचएआई के पास 1250 किलोमीटर लम्बाई के सात मार्गों के निर्माण के कार्य की जिम्मेदारी है किन्तु अभी तक इनके कार्य में कोई प्रगति नहीं है। मध्यप्रदेश रोड डेवलेपमेंट कारपोरेशन के पास 700 किलोमीटर लम्बाई की 8 सड़कों के निर्माण की जिम्मेदारी है इनमें से 7 सड़कों के डीपीआर बनाकर भारत सरकार को बनाकर भेज दिये गये हैं। इनमें से एक ग्वालियर-भिण्ड मार्ग की स्वीकृति प्राप्त हुई। श्री चैहान ने डाॅ. जोशी से 7 सड़कों की स्वीकृति शीघ्र दिये जाने और इसके लिए राशि दिये किये जाने का आग्रह किया है।
श्री चैहान ने बताया कि इंटर स्टेट कनेक्टविटी की योजना के अंतर्गत 11 सड़कों का निर्माण किया जाना है जिस पर 140 करोड़ रूपये की लागत आएगी। इसी प्रकार केन्द्रीय सड़क निधि (सीआरएफ) के अंतर्गत वर्ष 2009-10 और 2010-11 के दौरान स्वीकृत कार्यों को पूरा करने के लिए आवंटन उपलब्ध कराने का आग्रह किया।
श्री जोशी ने इंटर स्टेट कनेक्टविटी की योजना के अंतर्गत 140 करोड़ रूपये शीघ्र स्वीकृत किये जाने का आश्वासन दिया। अन्य मदों से भी प्रदेश को राशि उपलब्ध करायी जाएगी।

कब तक कीटनाशक पिलाएगी सरकार!

कब तक कीटनाशक पिलाएगी सरकार!

(लिमटी खरे)


शीतल पेय के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बार बार की जाने वाली टिप्पणियां दर्शाती हैं कि बड़े व्यापारिक घरानों और कंपनियों की गड़बडि़यों के खिलाफ कार्यवाही करने में सरकार का रवैया किस कदर टालमटोल भरा होता है। सात साल पहले एक याचिका के जरिए ठंडे पेयों की बिक्री के लिए गुणवत्ता जांच और नियम तय करने की मांग की गई थी, उसके पूर्व विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) ने अपने एक प्रतिवेदन में इस बात का खुलासा किया था कि इन पेय में किस खतरनाक हद तक कीटनाशकांे को मिलाया जा रहा है। इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने भी ठंडे पेय के एक विशेष ब्रांड के खिलाफ जेहाद छेड़ी थी, पर उनकी यह लड़ाई अब भ्रष्टाचार के शोर में दबकर रह गई है। कई दिनों से बाबा रामदेव ने भी ठंडे पेय के बारे में कोई वक्तव्य नहीं दिया है जो कि आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। गनीमत है कि भारत में बनने वाली दवाओं में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के लिए मानकीकरण का काम पांच सालों बाद आरंभ हो ही गया है।

इक्कीसवीं सदी में स्वयंभू योग गुरू बनकर उभरे राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने कोल्ड ड्रिंक के एक ब्रांड विशेष का नाम लेकर उसे ‘टायलेट क्लीनर‘ की संज्ञा तक दे डाली थी। इस पर देशव्यापी बहस भी छिड़ गई थी। जब देश के अनेक हिस्सों में उक्त ब्रांड के कोल्ड ड्रिंक ने कीटनाशक और वाकई में संडास की सफाई का काम किया तो लोगों की आंखें ख्ुाली और सरकार की तंद्रा भी टूटी थी। लोगों ने मंहगे टायलेट क्लीनर के स्थान पर उक्त शीतल पेय को अजमाया और कारगर पाया। इतना ही नहीं फसलों पर भी इसके छिड़काव के अच्छे प्रतिसाद सामने आए थे।
 
भारत गणराज्य की विडम्बना तो देखिए, बाजार में बिक रहे शीतल पेय में कीटनाशक की मिलावट का मामला सामने आने के सात सालों के बीत जाने के बाद भी सरकार ने इनके मानक तय नहीं किए हैं। जाहिर है शीतल पेय कंपनियों के ‘भारी और उपरी दबाव‘ के चलते देश की सबसे बड़ी पंचायत (संसद) में सत्ता और विपक्ष में बैठने वाले सरपंच (प्रधानमंत्री) और पंच (सांसद) अपनी रियाया के साथ ही साथ अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह उदासीन ही नजर आ रहे हैं।
 
सबसे अधिक आश्चर्य जनक और चैंकाने वाली बात तो यह है कि पश्चिमी सभ्यता को अंगीकार करने वाले हमारे देश के युवा इस बात को भूल जाते हैं कि देश में बिक रहे पेय पदार्थों में कीटनाशक की मात्रा यूरोपीय मानकों से एक दो या दस बीस नहीं वरन् 42 फीसदी अधिक पाई गई है। इसके लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति ने भी सरकार से जल्द से जल्द शीतल पेय संबंधी मानक तय कर उसे लागू करने की पुरजोर सिफारिश की थी। अब लगभग सात साल बीत चुके हैं किन्तु जल्द से जल्द का समय अभी भी नहीं आ सका है।
 
इस समिति ने अपना प्रतिवेदन सात साल पूर्व फरवरी 2004 को संसदीय पटल पर रख दिया था। किसी ज्ञात आज्ञात उपरी दबाव में एक बार फिर यह प्रतिवेदन फाईलों के अंदर चला गया। इसके बाद मार्च 2007 में एन.के.गांगुली की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञों की समिति ने केंद्र सरकार से कहा था कि शीतल पेय विशेषकर कोला के उत्पादों में कीटनाशक की मात्रा के मानक अवश्य ही लागू किए जाएं। उस वक्त केंद्र सरकार ने एक झुनझुना थमाते हुए अप्रेल 2009 तक मानक लागू करने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
 
फरवरी 2003 में पहली बार कोला उत्पादों में कीटनाशक के मिले होने की बात को सामने लाने वाली संस्था ‘सेंटर फाॅर साईंस एण्ड एन्वायरमेंट‘ भी इस बात से खासी खफा है कि बात के सामने आने के बाद भी सरकार का रवैया ढुल मुल ही है। मजे की बात तो यह है कि सरकार अपने पंचों अर्थात सांसदांे की सेहत के प्रति तो फिकर मंद दिखाई पड़ रही है, यही कारण है कि संसद में शीतल पेय की आपूर्ति पर रोक लगा दी है किन्तु देश की रियाया के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हुए इसे बाजार में बिकने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है।
 
यहां उल्लेखनीय होगा कि सीएसई ने पिछले साल देश के अलग अलग हिस्सांे से कोका कोला और पेप्सी के ग्यारह विभिन्न ब्रांड के सत्तावन नमूने लिए थे। इसकी जांच से साफ हो गया था कि इनमें मिले खतरनाक तत्वों की मात्रा भारतीय मानक ब्यूरो के निर्धारित मापदण्ड से पच्चीस गुना अधिक थीं। चिकित्सकों की मानें तो ये तत्व शरीर की प्रतिरोधिक क्षमता को कम करके अनेक तरह की गंभीर बीमारियों का कारक हो सकते हैं।
 
लंबा अरसा बीत चुका है, साल दर साल कलेंडर के पन्ने फड़फड़ाते हुए बदलते गए किन्तु शीतल पेय में मानकों की बात जस की तस ही रही। इन सात से अधिक सालों में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश के सवा करोड़ लोगों के स्वास्थ्य की चिंता करना भी मुनासिब नहीं समझा है। हो सकता है इन शीतल पेय कंपनियों ने हमारे जनादेश प्राप्त जनसेवकों को मंुह बंद रखने के लिए भारी भरकम वजन रखा हो, किन्तु नेताओं को अपनी नैतिकता की वर्जना ता कम से कम याद रखनी चाहिए। हमें यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि भारत गणराज्य की सरकार द्वारा इन शीतल पेय बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगे घुटने टेके जा चुके हैं।
 
स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव के कथन से अनेक लोग प्रभावित हुए। उनहोंने अपने शौचालयों में लेट्रिन की सीट और टाईल्स को कोका कोला वाले शीतल पेय से साफ करके इसका चमत्कारिक असर देखा। फिर क्या था मंहगे टायलेट क्लीनर के स्थान पर लोगों के घरों में कोका कोला की सस्ती दो लीटर वाली बोतल ने अपना स्थान बना लिया। यह अलहदा बात है कि पेप्सी से भी टायलेट साफ हो सकता है किन्तु बाबा रामदेव तो कोका कोला मतलब टायलेट क्लीनर का नारा जो रट रहे थे। देश के अनेक स्थानों में किसानों ने भी काले रंग वाले कोका कोला का छिड़काव कीटनाशक के स्थान पर किया, ओर पाया कि वाकई उनकी फसलें कीट पतंगों से सुरक्षित थीं।
 
यहां एक स्थानीय चेनल द्वारा शराब की बुराई को दर्शाने वाले जनहित में जारी विज्ञापन का जिकर लाजिमी होगा। उस विज्ञापन में शराबी बेटे की लत छुड़ाने की गरज से उसके पिता द्वारा शराब पीने के दौरान शराब के गिलास में एक कीड़ा डाल दिया जाता है। पिता कहता है देखा बेटा शराब पीने से इस तरह मर जाते हैं। बेटा भी इक्कीसवीं सदी का था, सो तपाक से बोला -‘‘पिता जी, शराब इसलिए ही पीता हूं कि पेट के सारे कीड़े मर जाएं।‘‘
 
जब संयुक्त संसदीय समिति ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि देश में बिकने वाले शीतल पेय मंे कीटनाशक की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकांे से कई गुना अधिक है, और संसद तक में इसकी आपूर्ति रूकवा दी गई है, तब क्या कारण है कि देश की सवा करोड़ से अधिक जनता को इस धीमे जहर के जरिए मारा जा रहा है?
 
शीतल पेय कंपनियां भी बड़े मजे से कह रहीं है कि अगर सरकार शीतल पेय के अंतिम उत्पाद तक मानक लागू करती है तो वे इसका स्वागत करेंगी। यह बात सरकार को मुंह चिढ़ाने के लिए पर्याप्त है, किन्तु सरकार में बैठे हमारे मोटी चमड़ी वाले जनसेवकों को इससे लेना देना नहीं है। सरकार के पास असीमित अधिकार हैं। क्या सरकार यह कहकर इनकी बिकावली नहीं रूकवा सकती कि अंतिम उत्पाद तक तो हम बाद में जाएंगे, पहले जिसमें साबित हो चुका है, उसे रोका जाए।
 
सुकून की बात तो यह है कि भारत गणराज्य मंे बनाई जाने वाली जीवन रक्षक औषधियांे में प्रयोग में आने वाले रसायनों पर देश नहीं विदेशों में मचे धमाल के बाद भारत सरकार जागी और पांच साल पहले इनके मानकीकरण का काम आरंभ किया गया। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण महकमे का यह दायित्व है कि वह इस बात को जांचे कि दवा मंे डाले गए तत्वों की मात्रा और स्तर क्या है? इसके अलावा इसका मानव जीवन पर प्रतिकूल असर तो नहीं पड़ रहा है। सरकार ने यह भी तय किया था कि अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने के उपरांत ही दवाओं को विदेश भेजने की अनुमति दी जाएगी।
 
विदेश भेजने का मामला तो समझ में आता है किन्तु फिर यक्ष प्रश्न वही खड़ा हुआ है कि देशी ब्रांड क्या देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं डाल रहे हैं? सूचना के अधिकार में इस बात का खुलासा हुआ कि देश के बाजारों में खुलेआम बिकने वाली दवाओं में अल्कोहल, मरकरी, लेड और आर्सेनिक जैसे तत्वों की भरमार है। मजे की बात तो यह है कि जिन दवाओं को विदेशों ने अपने देश में प्रतिबंधित कर रखा है, उन दवाओं का आयात भारत गणराज्य की सरकार ने करने की खुली छूट प्रदान कर रखी है। औषधि निरीक्षक और ड्रग कंट्रोलर सिर्फ पैसा बनाने में लगे हुए हैं। देश में वे दवाएं खुलेआम बिक रही हैं, जिन्हें चिकित्सक की परामर्श पर्ची के बिना बेचा जाना प्रतिबंधित है। लोग नशे के लिए सस्ते इंजेक्शन बेरोकटोक खरीद रहे हैं।

सरकार द्वारा सरेराह जनता के स्वास्थ्य के साथ होते खिलवाड़ को देखा जा रहा है। सरकार द्वारा अपने सांसद भाईयों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर शीतल पेय की आपूर्ति संसद में रूकवा दी है, किन्तु देश भर मंे खुले आम बिक रही इस धीमी गति की मौत को रोकने की दिशा मंे सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाए हैं। जब देश में विशाल जनादेश लेकर रियाया की भलाई अमन चैन का सपना दिखाकर संसद मंे सत्ता की मलाई चखने वाले तथा विपक्ष में बैठकर पहरेदारी करने वाले जनता की ओर से मुंह मोड़ लें तो इस तरह की विदेशी और देशी कंपनियां अपने फायदे के लिए सरेराह देश की जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न करें तो क्या करें?

भूजल सहेजने में फिसड्डी है मध्य प्रदेश


भूजल सहेजने में फिसड्डी है मध्य प्रदेश

केंद्र ने 1970 में भेजा था राज्यों को माडल कानून

आने वाले समय में पेयजल होगा दूभर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भूजल के गिरते स्तर पर केंद्र सरकार चिंतित नजर आ रही है। उधर मध्य प्रदेश सहित सभी राज्यों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू न होने से आने वाले समय में लोगों को पीने का पानी भी मयस्सर नहीं होने वाला है। केंद्र सरकार ने चार दशक पूर्व 1970 मंे एक माडल कानून बनाकर राज्यों को भेजा था, किन्तु राज्यों ने इसकी सुध तक नहीं ली।

केरल, गोवा, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू सहित सात राज्यों में भूजल प्राधिकरण का गठन अवश्य किया है, उधर महाराष्ट्र और गुजरात में विधानसभा में विधेयक अवश्य पारित करवा दिया गया है किन्तु इसे लागू नहीं किया गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड, कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में भूजल के संरक्षण के लिए कानून बनाने की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं की गई है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा 1970 में एक माडल कानून बनाकर राज्यों को भेजा था कि वे अपनी जरूरत के मुताबिक इसमें संशोधन कर इसे लागू करें। इसके बाद इसी कड़ी में केंद्र सरकार द्वारा 1992, 1996, 2005 और 2006 में कांग्रेस के शासनकाल में विधेयक का माडल पुनः भेजा किन्तु राज्यों की लाल फीताशाही में यह दबकर ही रह गया। केंद्र सरकार द्वारा ‘राजीव गांधी जलग्रहण मिशन‘ भी आरंभ करवाया गया, जिसमें भी पलीता ही लग गया।

जानकरों का मानना है कि अगर समय रहते राज्यों की सरकारों द्वारा रूफ टाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो आने वाले समय में भूमिगत जल की रीचार्जिंग एक बड़ी समस्या बनकर उभर सकती है। वस्तुतः स्थानीय निकायों द्वारा इस योजना को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए, साथ ही नए भवनों की अनुज्ञा इसी शर्त पर प्रदान की जानी चाहिए कि भवन स्वामी द्वारा भवन निर्माण के साथ ही इसे अमली जामा पहनाएगा।

रेल का प्रेम नहीं छूट रहा ममता से

रेल का प्रेम नहीं छूट रहा ममता से

सुरक्षा का जिम्मा राज्य पुलिस के बजाए रेल पुलिस के हवाले

नई दिल्ली (ब्यूरो)। पश्चिम बंगाल की नई निजाम ममता बनर्जी ने भले ही रेल मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया हो पर उनका रेल्वे का प्रेम अभी छूटता नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि ‘जेड‘ श्रेणी की सुरक्षा पाने के बाद भी वे आज भी राज्य के पुलिस बल के बजाए रेल्वे के कमांडो से घिरी हुई हैं।
रेल मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि ममता बनर्जी की सुरक्षा में रेल्वे प्रोटेक्शन फोर्स के सत्तर कमांडो आज भी तैनात है। इसके पहले भी जब रेल मंत्री रहते हुए ममता बनर्जी ने अगस्त 2010 में लालगढ़ में प्रदर्शन किया था तब भी उनकी सुरक्षा के लिए आरपीएफ की एक पूरी टुकड़ी तैनात की गई थी।

पालीथिन उड़ रही हैं त्रिकुटा की पहाड़ी में


अव्यवस्था के साए में वेष्णो देवी यात्रा . . . 2
 
पालीथिन उड़ रही हैं त्रिकुटा की पहाड़ी में
 
दस माईक्रोन से कम की बरसाती मिल रही है 20 रूपए में!
 
भवन के पास उड़ रहा नियम कायदों का मजाक
 
(सी.एस.जोशी)
कटड़ा। त्रिकुटा की पर्वत श्रंखलाओं पर विराजी माता रानी के दरबार और आधार केम्प कटड़ा में पालीथिन का प्रयोग पूरी तरह प्रतिबंधित होने के बाद भी त्रिकुटा पर्वत पर यत्र तत्र पालीथिन की थैलियां उड़ती नियम कायदों का माखौल उड़ा रही हैं। माता वेष्णो देवी श्राईन बोर्ड के ढुलमुल रवैए के चलते हिन्दु धर्मावलंबियों के इस पावन तीर्थ स्थल की शक्ल बिगड़ती जा रही है।
दर्शन को आए श्रृद्धालुओं ने बताया कि बारिश होने पर पानी से बचने के लिए जब लोगों द्वारा माता रानी के भवन के पास की दुकानों पर बरसाती मांगी जाती है तो दुकानदारांे द्वारा उन्हें महज बीस रूपए मूल्य चुकाने पर पतली सी महीन बरसाती सौंप दी जाती है। इस बरसाती में उपयोग किए जाने वाला प्लास्टिक दस माईक्रोन से कम का ही प्रतीत होता है।
बरसाती इतनी पतली होती है कि दर्शन के लिए उपर चढ़ते या उतरते समय ही यह फट जाती है। श्रृद्धालुओं द्वारा इस फटी बरसाती हो त्रिकुटा पर्वत पर ही फंेक दिया जाता है, जो तेज हवा में यत्र तत्र उड़ती दिखाई पड़ जाती है। अव्यवस्था के साए में चलने वाली इस यात्रा में इस तरह की गंभीर लापरवाही से त्रिकुटा पर्वत और आधार केम्प कटड़ा का पर्यावरण बिगड़े बिना नहीं है।

शिवराज ने की देशमुख से भेंट

शिवराज ने की देशमुख से भेंट
नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने आज यहां केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख से भेंट की। इस अवसर पर ग्रामीण विकास राज्य मंत्री सुश्री अगाथा संगमा भी उपस्थिति थीं।  मुख्यमंत्री ने मध्यप्रदेश के 1000 से कम आबादी वाले गांवों को ग्रामीण सड़क से जोड़ने के लिए नीतिगत निर्णय लेने का आग्रह किया। श्री चैहान ने बताया कि आदिवासी अंचलों में 1000 की आबादी से कम वाले गांव हैं इन्हें जोड़ने के लिए मापदंडों को शिथिल किया जाए। प्रदेश के अभी 24000 गांवों को ग्रामीण सड़कों से जोड़ा जाना है। मध्यप्रदेश को विगत डेढ़ साल में एक भी नई सड़कें स्वीकृत नहीं की गयी हैं।
श्री चैहान ने बताया कि प्रदेश में ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए इंजीनियर और शासकीय अमला उपलब्ध है किन्तु अमला सड़क निर्माण के अभाव में कोई काम नहीं कर पा रहे हंै। श्री देशमुख ने मुख्यमंत्री श्री चैहान को आश्वस्त किया कि राज्य के पिछड़ेपन को देखते हुए ग्रामीण सड़क निर्माण के कार्य स्वीकृत किये जायंगे। श्री देशमुख ने आश्वस्त किया कि प्रदेश में लगभग 900 करोड़ रूपये के निर्माण कार्यों के लिए स्वीकृति दी जायंगी। इनमें एडीबी के अंतर्गत ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए 600 करोड़ रूपये और अन्य परियोजनाओं के अंतर्गत लगभग 300 करोड़ रूपये की राशि स्वीकृत की जायेगी। श्री देशमुख ने प्रदेश में प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत लक्ष्य से अधिक सड़क निर्माण के लिए श्री चैहान को बधाई दी। श्री देशमुख ने प्रदेश में अन्य ग्रामीण विकास के कार्यों में गुणवत्ता की भी सराहना की।
मुख्यमंत्री श्री चैहान ने श्री देशमुख का ध्यान आकर्षित किया कि प्रदेश में 37 लाख ग्रामीण आवासहीन परिवार हैं जबकि प्रदेश को केवल 37 हजार इंदिरा आवास स्वीकृत किये गये हैं। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री आवास योजना के अंतर्गत भी ग्रामीण आवासहीन परिवारों को 70 हजार रूपये की सहायता देकर मकान बनाये जा रहे हैं। प्रदेश में ग्रामीण आवासहीन परिवारों के मापदंड में सुधार किया जाए जिससे प्रदेश के गरीब परिवारों को अधिक संख्या में आवास उपलब्ध कराये जा सकें। योजना आयोग ने भी मापदंड में सुधार करने का आश्वासन दिया था। श्री देशमुख ने आवास निर्माण की योजना में अपने स्तर पर अच्छा काम करने के लिए मध्यप्रदेश की सराहना की।
श्री चैहान ने मनरेगा के  अंतर्गत होने वाले निर्माण कार्यों को स्थायी रखने के लिए मजदूरी और सामग्री में 60-40 प्रतिशत के अनुपात के बजाय सामग्री और मजदूरी 50-50 प्रतिशत के अनुपात में राशि व्यय करने का नीतिगत निर्णय लिया जाए इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी सम्पत्तियों का निर्माण हो सकेगा। श्री देशमुख ने इस संबंध में नीतिगत निर्णय लेने का आश्वासन दिया।
श्री चैहान ने बताया कि मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी का भुगतान लेने के लिए श्रमिकों को 25 से 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। मजदूरी के भुगतान के लिए एक हजार की आबादी पर बैंक अथवा पोस्ट आॅफिस खोला जाए जिससे मजदूरों को पारिश्रमिक का आसानी से भुगतान मिल सके। श्री देशमुख ने श्रमिकों को आसानी से भुगतान मिल सके इस संबंध में व्यवस्था कराने का आश्वासन दिया।