गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

संरक्षित वन में बन रहा थापर का पॉवर प्लांट!

संरक्षित वन में बन रहा थापर का पॉवर प्लांट!

आदिवासियों के हितों को कुचला भाजपा ने

संरक्षित वनों से घिरा हुआ है संयंत्र का क्षेत्र

एक दर्जन संरक्षित वन हैं संयंत्र के आस पास

(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान् मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड के द्वारा केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शामिल मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड के ग्राम बरेला में प्रस्तावित 1200 मेगावाट का कोल आधारित पॉवर प्लांट पूरी तरह संरक्षित वनों से न केवल घिरा हुआ है वरन् यह संरक्षित वन क्षेत्र में ही बन रहा है। संयंत्र प्रबंधन ने इसके पहले चरण की लोकसुनवाई में संरक्षित वनों के बारे में चुप्पी ही साधी रखी थी जो अनेक संदेहों को जन्म दे रही है।
आरोपित है कि 22 अगस्त 2009 को मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा आहूत लोकसुनवाई के पूर्व संयंत्र प्रबंधन द्वारा जमा कराए गए कार्यकारी सारांश में इस संयंत्र के प्रथम चरण में आसपास कोई भी नेशनल पार्क नहीं होना दर्शाया गया था। उल्लेखनीय होगा कि संयंत्र स्थल से महज सत्तर किलोमीटर दूर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कान्हा नेशनल पार्क अवस्थित है। इतना ही नहीं संयंत्र प्रबंधन ने संयंत्र के इर्दगिर्द रक्षित वनों के मामले में इस संबंध में मौन साध लिया गया था।
शोर शराबा होने के बाद भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड के प्रथम चरण को हरी झंडी दे दी गई। इसके उपरांत जब दूसरे चरण की लोकसुनवाई संपन्न हुई तब मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड द्वारा एक बार फिर पहले चरण का ही कार्यकारी सारांश मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को सौंप दिया गया। पीसीबी के सूत्रों का कहना है कि जब इसमें लिखित खामियों के बारे में हल्ला मचा तब संयंत्र प्रबंधन ने मण्डल के कारिंदों की मदद से कार्यकारी सारांश ही बदल दिया।
सूत्रों ने कहा कि नए कार्यकारी सारांश के पांचवें पेज में संयंत्र प्रबंधन ने कहा है कि इस संयंत्र के इर्द गिर्द एक दो नहीं एक दर्जन संरक्षित वन हैं। इसमें उत्तर से दक्षिण में तीन किलोमीटर रोटो संरक्षित वन, उत्तर से उत्तर पूर्व में साढ़े सात किलोमीटर पर बरवाक्चार संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में नौ किलोमीटर पर काटोरी संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में तीन किलोमीटर पर धूमा संरक्षित वन है।
इसके अलावा दक्षिण में साढ़े सात किलोमीटर पर घंसौर संरक्षित वन, पश्चिम उत्तर पश्चिम में डेढ़ किलोमीटर पर भाटेखारी संरक्षित वन, पूर्व दक्षिण पूर्व में साढ़े तीन किलोमीटर पर बिछुआ संरक्षित वन, दक्षिण पश्चिम में आठ किलोमीटर पर जेतपुर संरक्षित वन, ग्राम बरेला में लगने वाले संयंत्र खुद ही संरक्षित वन में स्थापित है। पूर्व दक्षिण पूर्व में आठ किलोमीटर में प्रतापगढ़ आरक्षित वन है।
संयंत्र प्रबंधन द्वारा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को सौंपे गए 15 पेज के अपने कार्यकारी संक्षेप के पांचवें पेज पर स्वयं ही इस बात को स्वीकार किया है कि संयंत्र से शून्य किलोमीटर दूरी पर बरेला संरक्षित वन है। शून्य किलोमीटर का सीधा तात्पर्य यही हुआ कि गौतम थापर के स्वामित्व वाला अवंथा समूह का सहयोगी प्रतिष्ठान् मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड द्वारा छटवीं अनुसूची में अधिसूचित सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड के ग्राम बरेला में लगाए जाने वाले कोल आधारित पॉवर प्लांट को संरक्षित वन में ही संस्थापित करने का तानाबाना केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की देखरेख में मध्यप्रदेश शासन के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के द्वारा बुना जा रहा है।
यक्ष प्रश्न तो यह बना हुआ है कि यह सब देखने सुनने के बाद क्या वन विभाग आंखों पर पट्टी बांधे हुए है, अथवा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, अथवा संयंत्र प्रबंधन द्वारा आनन फानन में तैयार कर मण्डल की मिलीभगत से घंसौर के गोरखपुर गांव में 22 नवंबर को संपन्न हुई लोकसुनवाई के एक सप्ताह के बाद जमा करवाए गए कार्यकारी सारांश में जल्दबाजी में यह ऋुटी कर दी गई है?

अगर संयंत्र प्रबंधन का कहना सही है कि उक्त संयंत्र संरक्षित वन में स्थापित किया जा रहा है, तब इसके प्रथम चरण के काम को क्या रोका जाएगा? साथ ही साथ जमीनी हकीकत देखे बिना केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आखिर इसके निर्माण की अनुमति कैसे दे दी गई है? दूसरी तरफ देश में सियासी दलों द्वारा सशक्त लोकपाल लाने का दावा किया जा रहा है।

दिनेश के पर्चे की हुई एमसीएमसी में शिकायत

दिनेश के पर्चे की हुई एमसीएमसी में शिकायत

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। सिवनी विधानसभा के संभावित निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश राय उर्फ मुनमुन के खिलाफ एक शिकायत आज मीडिया सर्टिफिकेशन एण्ड मानिटरिंग कमेटी (एमसीएमसी) में की गई है। इस शिकायत पर एमसीएमसी ने क्या संज्ञान लिया है, अथवा क्या कार्यवाही की है, इस बारे में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सूचना अप्राप्त है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार विधानसभा चुनावों के लिए जिला स्तर पर बनाई गई एमसीएमसी में आज अपरान्ह एक पत्रकार द्वारा लिखित तौर पर दिनेश राय उर्फ मुनमुन के फोटोयुक्त पर्चे की शिकायत दर्ज कराई गई है। बताया जाता है कि इस फोटो युक्त पर्चे में प्रकाशक का नाम नहीं है और इसकी कितनी प्रतियां छापी गई हैं, इस बारे में भी कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
लखनादौन बार एॅसोसिएशन के अध्यक्ष और राय पेट्रोलियम के संचालक (जबकि अधिवक्ता एक्ट के तहत कोई भी अधिवक्ता अन्य व्यवसाय नहीं कर सकता है), लखनादौन मस्जिद के सरपरस्त और शराब कारोबारी (जबकि शराब इस्लाम में हराम है) के साथ ही साथ सिवनी विधानसभा में वर्ष 2008 के निर्दलीय प्रत्याशी रहे दिनेश राय उर्फ मुनमुन के फोटो के साथ एक रंगीन पर्चा बांटा जा रहा है।
समूची सिवनी विधानसभा में बांटे गए इस लुभावने पर्चे में दिनेश राय को निवेदक बताया गया है और विधायक को कोसा गया है। इस पर्चे में यह भी कहा गया है कि अगर पेंच का पानी सिवनी नहीं आ सकता है तो भीमगढ़ बांध का पानी अन्य जिलों को क्यों जाने दिया जाता है। कुछ लोगों का कहना था कि यह लोगों को भड़काने की श्रेणी में आता है, क्योंकि पेंच परियोजना अभी पूर्ण नहीं हुई है, और संजय सरोवर परियोजना सालों से अस्तित्व में है। इसके साथ ही साथ पेंच परियोजना पश्चिम की ओर अवस्थित छिंदवाड़ा जिले से सिवनी में पानी प्रदाय करेगी तो भीमगढ़ का पानी पूर्व की ओर पड़ने वाले बालाघाट आदि जिलों में जाता है, अतः इन दोनों ही की तुलना उचित नहीं है।
इस विवादित पर्चे में दिनेश राय उर्फ मुनमुन द्वारा अपने आप को पिछले विधानसभा चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर उतरने और उनके खिलाफ भ्रामक प्रचार प्रसार के बाद भी तीस हजार वोट मिलने की बात कही गई है। उन्होंने पर्चे में दावा किया है कि जनता की इच्छा से इस बार भी वे निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर ही चुनाव मैदान में रहेंगेे।
इस पर्चे में दिनेश राय द्वारा यह कहा गया है कि चुनाव जीतने के बाद वे किसी भी दल की सदस्यता ग्रहण नहीं करेंगे, पर मुख्यमंत्री का साथ देंगे। इस पर्चे में उन्होंने कहा है कि वे केवल एक वर्ष के लिए विधायक बनेंगे, उसके बाद जनता का अभिमत मांगेंगे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार एमसीएमसी में आज हुई शिकायत में शिकायतकर्ता ने कहा है कि आचार संहिता लागू होने के उपरांत किसी भी पर्चे में प्रकाशक का नाम, मुद्रक का नाम, एवं उसकी संख्या का उल्लेख किया जाना जरूरी है।

पर्चे को लेकर चर्चाएं तेज

इस विवादित पर्चे जिसमें न तो प्रकाशक का नाम है और न ही कितनी संख्या में मुद्रित कराया गया है इसका उल्लेख है, को लेकर तरह तरह की चर्चाएं बाजार में तैर गई हैं। गौरतलब है कि इसके पूर्व लखनादौन में दिनेश राय उर्फ मुनमुन के स्वामित्व वाले राय पेट्रोलियम के सामने एनएचएआई के सरकारी बोर्ड पर राय पेट्रोलियम की पब्लिसिटी करवाई जा रही थी। बताया जाता है कि नियम विरूद्ध होने के चलते एनएचएआई के अधिकारियों द्वारा इस बोर्ड को उतरवा दिया गया था। इतना ही नहीं दिनेश राय के स्वामित्व वाले राय पेट्रोलियम के सामने फोरलेन का डिवाईडर भी संदिग्ध परिस्थितियों में तोड़ दिया गया है।

केवलारी के बारे में हटा नहीं है कुहासा!

केवलारी के बारे में हटा नहीं है कुहासा!

(मणिका सोनल/नन्द किशोर)

नई दिल्ली/भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश के सिवनी जिले की केवलारी विधानसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सालों से कांग्रेस की झोली में रहने वाली इस विधानसभा सीट पर दोनों ही सियासी पार्टियां किसे मैदान में उतारेंगी, यह उहापोह आज भी बरकरार ही है। कांग्रेस की ओर से हरवंश सिंह के पुत्र रजनीश सिंह, कांग्रेस के महामंत्री शक्ति सिंह, बसंत तिवारी तो भाजपा की ओर से पूर्व मंत्री डॉ.ढाल सिंह बिसेन, डॉ.सुनील राय, डॉ.प्रमोद राय, हरिसिंह ठाकुर, नवनीत सिंह आदि के नामों की चर्चाएं चल रही हैं।
आज़ादी के उपरांत केवलारी विधानसभा सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस के कब्जे में रही है। इस सीट पर सुश्री विमला वर्मा और उसके उपरांत भाजपा की मुखर नेत्री (अब कांग्रेस सदस्य) श्रीमति नेहा सिंह के उपरांत, हरवंश सिंह ठाकुर का इस सीट पर कब्जा रहा है। कहा जाता है कि सियासी बाजीगर हरवंश सिंह ने भाजपा की कद्दावर नेत्री श्रीमति नेहा सिंह को अपने जाल में फंसाया और उन्हें कांग्रेस की सदस्यता दिलवाकर उनकी वरिष्ठता को एकदम कम कर दिया। जब तक श्रीमति नेहा सिंह द्वारा हरवंश सिंह की बाजीगरी को समझा जाता तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
कांग्रेस में आने के उपरांत श्रीमति नेहा सिंह लगभग डेढ़ दशक से कांग्रेस की राजनीति में हाशिए पर ही ढकेल दी गई हैं। कांग्रेस के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि जब भी श्रीमति नेहा सिंह का नाम किसी लाभ वाले पद के लिए सामने आया है, या कांग्रेस की टिकिट के लिए उनके नाम को आगे बढ़ाया गया है, उस समय यह कहकर उनका नाम पीछे ढकेला गया है कि वे कांग्रेस में अभी जूनियर हैं।

कमी खलेगी हरवंश सिंह की!
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सियासी दलों में प्रदेश स्तर पर इस बार कांग्रेस के मनराखनलालकी छवि वाले कद्दावर नेता हरवंश सिंह ठाकुर की कमी जमकर खल रही है। प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि हरवंश सिंह का सम्मान कांग्रेस से ज्यादा भाजपा में था। इसका कारण यह था कि वे किसी के संज्ञान में लाए बिना ही सारे समीकरण साध लिया करते थे, चाहे वह भाजपा के पक्ष में हों या कांग्रेस के पक्ष में।
उक्त नेता ने यहां तक कहा कि शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ डंपर कांडको भले ही उस समय भाजपा छोड़कर उमा भारती के साथ गए प्रहलाद सिंह पटेल ने उठाया हो, पर इस मामले के पटाक्षेप में हरवंश सिंह ठाकुर की महती भूमिका रही है। कहा जाता है कि हरवंश सिंह द्वारा ही तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष स्व.जमुना देवी को साधा और डंपर कांड में शिवराज सिंह चौहान को क्लीन चिट मिली थी। भाजपा में चल रही चर्चाओं के अनुसार हरवंश सिंह का यह अहसान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शायद ही कभी भूल पाएं।
इन बातों में सच्चाई कितनी है यह बात तो मुख्यमंत्री ही जानें किन्तु यह सच है कि कांग्रेस के अंदर भी हरवंश सिंह की कमी बुरी तरह खल रही है। कांग्रेस में हरवंश सिंह का कद अपने आप में जबर्दस्त बड़ा था। पीसीसी के एक पूर्व पदाधिकारी ने भी अपनी पहचान उजागर न करने की ही शर्त पर कहा कि हरवंश सिंह के अंदर वो माद्दा था कि वे कांग्रेस के सारे क्षत्रपों को साध लिया करते थे। इतना ही नहीं कांग्रेस के क्षत्रप भी उनसे यह नहीं पूछ पाते थे कि आखिर क्या कारण है कि सिवनी की पांच (परिसीमन के उपरांत चार) विधानसभाओं में सिर्फ उनकी विधानसभा (केवलारी) में ही कांग्रेस का परचम लहराता है?

भाजपा मेें मचा है जमकर घमासान
केवलारी विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी में सबसे ज्यादा घमासान मचा हुआ है। भाजपा की ओर से डॉ.ढाल सिंह बिसेन केवलारी से कमर कसे हुए हैं। वे पिछली बार भी केवलारी (उनका विधान सभा क्षेत्र बरघाट, परिसीमन में आरक्षित हो गया है) से मैदान में उतरे थे, किन्तु हरवंश सिंह के हाथों उन्हें पटखनी दे दी गई थी। इस बार भी डॉ.बिसेन की दावेदारी केवलारी से सबसे प्रबल ही मानी जा रही है। इसके अलावा मुख्यमंत्री के नवरत्नों में से एक दिलीप सूर्यवंशी के खासुलखास डॉ.सुनील राय भी केवलारी से हुंकार भर रहे हैं। उधर, युवा उम्मीदवार के बतौर डॉ.प्रमोद राय, हरिसिंह ठाकुर, नवनीत सिंह भी केवलारी से मैदान में आकर ताल ठोकते नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस में वर्चस्व की जंग
उधर दूसरी ओर कांग्रेस के अंदर वर्चस्व की जंग भी देखने को मिल रही है। कांग्रेस की ओर से केवलारी विधानसभा के लिए हरवंश सिंह के पुत्र रजनीश सिंह (क्षेत्र में चर्चा है कि अगर टिकिट दी जाती है तो कांग्रेस में परिवारवाद के आरोप लगने आरंभ हो जाएंगे) के अलावा एक अन्य महामंत्री कुंवर शक्ति सिंह, सालों से कांग्रेस का झंडा थामने वाले बसंत तिवारी, के साथ ही साथ क्षेत्र से भाजपा की विधायक रहीं श्रीमति नेहा सिंह जो अब कांग्रेस मेें आ चुकी हैं, के नामों पर चर्चा चल रही है।
कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस महिलाओं को आगे लाने की हिमायती होने का दावा करती है तो सिवनी जिले से श्रीमति नेहा सिंह को केवलारी से मैदान में उतारकर वह महिला कोटे की सीट यहां दे सकती है। श्रीमति नेहा सिंह महिला होने के साथ ही साथ केवलारी के मतदाताओं के लिए अपरिचित चेहरा नहीं हैं। सालों से कांग्रेस की सेवा करने वाले बसंत तिवारी का दावा भी कांग्रेस की ओर से कम पुख्ता नहीं माना जा सकता है। कांग्रेस के अंदर टिकिट वितरण में अभी ओहापोह मची ही हुई हैै।
एआईसीसी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने स्तर पर जमीनी सर्वे कराया हुआ है। भले ही कांग्रेस के प्रदेश के क्षत्रप, हरवंश सिंह के पुत्र रजनीश सिंह को टिकिट देने का मन बना चुके हों, पर 12 तुगलक लेन (राहुल गांधी का सरकारी आवास) के सूत्रों का कहना है कि राहुल के सर्वे में केवलारी से रजनीश सिंह के जीतने की संभावनाएं कम ही हैं। वहीं दूसरी ओर, युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया जिनका हरवंश सिंह से सीधा संपर्क कम ही था, भी रजनीश के पक्ष में दिखाई नहीं पड़ रहे हैं।

सध रहे केवलारी के समीकरण
राजधानी भोपाल में कांग्रेस और भाजपा कार्यालयों में चल रही चर्चाओं के अनुसार, केवलारी में कांग्रेस और भाजपा के बीच समीकरण साधे जा रहे हैं। एक ओर केवलारी से अगर रजनीश सिंह को टिकिट दी जाती है तो भाजपा की ओर से कमजोर प्रत्याशी को मैदान में उतारकर रजनीश सिंह को वाकोवर दिए जाने की चर्चाएं हैं, तो दूसरी ओर केवलारी से भाजपा की ओर से डॉ.ढाल सिंह बिसेन का पत्ता काटने में सीएम शिवराज सिंह चौहान के करीबी दिलीप सूर्यवंशी का जबर्दस्त प्रयास बताया जा रहा है।
डॉ.बिसेन को केवलारी से सिवनी भेजने में दिलीप सूर्यवंशी प्रयास कर रहे बताए जा रहे हैं। दिलीप सूर्यवंशी का प्रयास है कि उनके करीबी डॉ.सुनील राय (जो केवलारी के लिए अभी तक अपरिचित चेहरा है) को टिकिट दे दी जाए। गौरतलब है कि सिवनी में फोरलेन के निर्माण कार्य के दौरान सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी के काम को दिलीप सूर्यवंशी के स्वामित्व वाले दिलीप बिल्डकॉम द्वारा पेटी पर लिया गया था। उस वक्त ज्यारत नाके के पास दिलीप बिल्डकॉम ने अपना कार्यालय भी स्थापित किया था।
बताते हैैं कि इस काम को दिलवाने में कांग्रेस के किसी नेता की अहम भूमिका रही है। यद्यपि बाद में छिंदवाड़ा में सद्भाव के काम को पेटी पर लेने पर कांग्रेेस के एक क्षत्रप के भड़क जाने पर, कांग्रेस के उक्त दिलीप सूर्यवंशी के सहयोग करने वाले नेता को अपने हाथ वापस खींचने पड़े थे। इन सारे समीकरणों के हिसाब से देखा जाए तो दिलीप सूर्यवंशी के प्रयास कहीं न कहीं रजनीश सिंह के पक्ष मंे, भाजपा के कमजोर प्रत्याशी को उतारने के ही प्रतीत हो रहे हैं।

निर्दलीय करेंगे जीत हार का निर्णय

अभी विधानसभा चुनाव के लिए गजट नोटिफिकेशन नहीं हुआ है। गजट नोटिफिकेशन के उपरांत प्रदेश में चुनावी प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी। प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों के निर्णय हो जाने के बाद मैदान में नाराज निर्दलियों का डेरा भी होगा। केवलारी में निर्दलीय के बतौर कद्दावर नेताओं की फौज दिखाई दे रही है। कहा जा रहा है कि 2013 का चुनाव करो या मरोकी तर्ज पर हर कोई इसलिए लड़ना चाह रहा है क्योंकि वर्तमान में सिवनी में कांग्रेस और भाजपा को कठपुतली के मानिंद नचाने वाला कोई नेता नहीं है। पांच सालों बाद क्या परिस्थिति बनती है, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है, यही कारण है कि हर कोई अभी ही जोर आजमाईश कर अपना भविष्य गढ़ने की फिराक में दिख रहा है।

काले कांच पर बेबस पुलिस!

काले कांच पर बेबस पुलिस!

(शरद खरे)

आज़ादी के उपरांत चार पहिया वाहन स्टेटस सिंबॉल माना जाता रहा है। सत्तर के दशक तक जिसके घर के सामने चार पहिया वाहन, घर की छत पर एक अदद टेलीफोन के तार, एक पालतू कुत्ता बंधा होता था, उसकी गिनती रईस आदमी में होती थी। कालांतर में भ्रष्टाचार की गंगा बही और हर घर में वाहनों की लाईन लग गई। राजधानी दिल्ली में तो घरों में सदस्यों की संख्या कम है पर चार पहिया विलासिता वाले वाहनों की तादाद उनसे कहीं अधिक है। दिल्ली में लोगों को पार्किंंग की असुविधा से दो चार होना पड़ा। मामला सालों साल खिंचा, अंत में कोर्ट को इस मामले में संज्ञान लेना पड़ा। अब दिल्ली में वाहन के पंजीयन के पहले आरटीओ को वाहन की पार्किंंग सुनिश्चित कर देनी होती है तभी उसका पंजीयन होता है।
वाहनों की सड़कों पर बेतहाशा बढ़ोत्तरी के साथ ही अपराध में भी इनकी संलिप्पतता तेजी से बढ़ी। दिल्ली सहित अन्य महानगरों में वाहनों में अपराधों की तादाद में जमकर इजाफा हुआ है। महानगरों सहित अन्य शहरों में अब काले कांच का फैशन जमकर छाया है। काले कांच वैसे तो धूप से बचने के लिए करवाए जाते हैं। कांच पर रंग बिरंगी विशेषकर स्याह रंग की फिल्म चढ़वाकर उन्हें कम पारदर्शी बना दिया जाता है, ताकि दिन में धूप की किरणों से अंदर बैठा व्यक्ति अपना बचाव कर सके।
काले कांच के वाहनों के अंदर दिन में ही बमुश्किल दिखाई पड़ता है तो रात के स्याह अंधेरे में तो कुछ देख पाना संभव ही नहीं है। इसका फायदा जरायम पेशा लोगों द्वारा जमकर उठाया जाता है। वाहनों के अंदर हथियाार, शराब आदि का अवैध परिवहन तेजी से होता है। इन वाहनों में सामाजिक अपराध भी बढ़े हैं। स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाली जवान होती पीढ़ी यौनाचार के लिए इन वाहनों का उपयोग कर रही है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। महानगरों में न जाने कितने मामले मीडिया की सुर्खियां बने होते हैं जिनमें यौन अपराध, वाहनों के अंदर होने की बात सामने आती है। दिल्ली में हुए निर्भया के रेप मामले में भी एक बस का ही प्रयोग किया गया था।
सिवनी जिले में भी मंहगे और विलासिता वाले वाहनों की कमी नहीं है। सरकारी स्तर पर भी अब वाहन किराए पर लेने की परंपरा का आगाज़ हो चुका है। निजी तौर पर लगाए जाने वाले उन वाहनों जिन्हें सरकार के साथ अनुबध्ंा पर लगाया जाता है में टैक्सी परमिट अनिवार्य होता है। परिवहन विभाग के सर्कुलर के अनुसार टैक्सी परमिट में वाहन की नंबर प्लेट सफेद के स्थान पर पीले रंग से पुती होना अनिवार्य होता है। जिले में सरकार (केंद्र और प्रदेश सरकार) के साथ अनुबंधित वाहनों में न जाने कितने वाहनों में आरटीओ के नियमों को धता बताई जा रही है। पीले रंग की नंबर प्लेट के बजाए सफेद रंग की नंबर प्लेट पर मनमर्जी के साथ लिखे नंबर आखिर क्या दर्शाते हैं?
देश की शीर्ष अदालत द्वारा काले कांच वाले वाहनों से काली फिल्म सख्ती से उतरवाने का फरमान जारी किया गया था। इस आदेश के बाद देश भर में तहलका मच गया था। राज्यों की सरकारों ने इस मामले को संजीदगी से लिया और काली फिल्में उतारने की कवायद आरंभ कर दी थी। आरंभ में तो यह मामला परवान चढ़ा पर जब रसूखदारों के वाहनों से खरोंचकर फिल्म उतारने का उपक्रम किया गया तो पुलिस के हाथ स्वयमेव ही बंध गए। यहां तक कि अनेक प्रदेशों के गृह मंत्रियों के सरकारी वाहनों में ही काली फिल्में लगी पाई र्गइंं, जबकि जेड प्लस सुरक्षा के लिए लगे बुलट प्रूफ वाहनों के शीशे काले नहीं होते हैं।
सिवनी में भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान किया गया। तत्कालीन नगर निरीक्षक (वर्तमान अनुविभागीय अधिकारी पुलिस) हरिओम शर्मा ने अपने वाहन की फिल्म हटाकर नजीर पेश की और अन्य वाहनों की फिल्म उतारने की कार्यवाही आरंभ की। यह मामला भी तीन चार दिन में ही टॉॅय टॉय फिस्स हो गया। इसके बाद काले शीशे वाले वाहनों की भरमार तेजी से बढ़ती ही चली गई जिले में। आज जिले में न जाने कितने वाहनों में काले शीशे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को धता बताते हुए सरेआम सड़कों का सीना रौंद रहे हैं।
काले कांच वाले वाहनों में अवैध गतिविधियां संचालित होती हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। जिले में वीरान सड़कों पर न जाने कितने वाहन निर्जन स्थानों पर घंटों खड़े रहते हैं। इन वाहनों के शीशे अमूमन काले ही हुआ करते हैं। अनेक जगह विशेष अंदाज में ये वाहन हिलते डुलते नजर आते हैं। इन वाहनों में शराबखोरी के साथ ही साथ व्याभिचार होने की बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
बहरहाल, चुनाव का मौसम है, इस मौसम में काले कांच वाले वाहनों में शराब, हथियार और अन्य अपात्तिजनक सामान एक स्थान से दूसरे स्थान आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं वह भी पुलिस की नजरें बचाकर। चुनाव के दौरान पुलिस ने चेकिंग आरंभ की है। यह चेकिंग संभवतः जिला मुख्यालय तक ही सिमटकर रह गई है। इसका कारण यह है कि जिले में अब तक पुलिस की सघन चेकिंग के दौरान कोई अवैध माल मसरूका मिलने की खबर नहीं है।

एक वाहन में मांस (गौमांस या अन्य जंगली जानवार का मांस स्पष्ट नहीं) मिलने की खबर पिछले दिनों मिली। इसके बारे में बताया गया कि लखनवाड़ा पुलिस द्वारा महज दो हजार रूपए की राशि लेकर इस वाहन को छोड़ दिया गया था। अगर यह सच है तो फिर इस तरह बेरीकेटिंग लगाकर वाहनों की चेकिंग करना निरर्थक ही है। सर्वाधिक आश्चर्य तो इस बात पर है कि वाहनों की सघन चेकिंग के दौरान सड़कों पर दौड़ रही अवैध (बिना परमिट वाली, एक दरवाजे वाली) यात्री बस क्या पुलिस के कारिंदों को दिखाई नहीं देती हैं? अगर दिखाई देती हैं तो वो कौन सा चश्मा है जिसे लगाकर पुलिस इन्हें नहीं देख पाती है? अब तो आचार संहिता लग चुकी है। अगली सरकार किसकी बनेगी यह भी स्पष्ट नहीं है, फिर भला राजनैतिक पहुंच संपन्न लोगों की अवैध बस कैसे सड़कों का सीना रौंद रही हैं। संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव एवं पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी से अपेक्षा है कि कम से कम सिवनी में दौड़ रही अवैध यात्री बसों और काले शीशे वाले वाहनों पर कार्यवाही करें। कम से कम चार पहिया वाले वाहनों के काले शीशे अवश्य उतरवाकर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान किया जाए, इससे कम से कम इन वाहनों के अंदर अवैध गतिविधियों के संचालन को रोका जा सकेगा।