पेंशनर्स खून के आंसू रो रहे हैं ‘शिव‘ के ‘राज‘ में
(अखिलेश
दुबे/ अय्यूब कुरैशी)
सिवनी (साई)। पेंशन पाने वाला अपना सारा जीवन अर्थात जिस आयु
में वह भाग दौड़ कर सकता है, सरकार को समर्पित कर देता है। पेंशन पाने
वाले को आंग्ल भाषा में पेंशनर्स ही कहा जाता है। पेंशन पाने की आयु तक पहुंचते
पहुंचते साठ की आयु को पा जाता है सरकारी कर्मचारी। इस आयु में वृद्धावस्था का आना
स्वाभाविक ही है। वृद्धावस्था में रोग प्रतिशोधक क्षमता कम होना स्वाभाविक ही माना
जाता है इस आयु में शरीर निरोगी रहे यह संभव नहीं है। इस आयु में सबसे ज्यादा
जरूरत दवाओं और देखभाल की ही होती है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में स्वास्थ्य
विभाग के तुगलकी रवैए के कारण यहां के पेंशनर्स खून के आंसू रोने पर मजबूर हैं।
पेंशनर्स को सरकारी स्तर पर दवाएं नहीं मिल पा रही हैं, जो उनका मौलिक
अधिकार है। चिकित्सालय में पदस्थ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संचालनालय स्वास्थ्य
सेवाएं एवं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देशों को भी रद्दी की
टोकरी में डाला जा रहा है।
अपर संचालक (औषधी प्रशासन) कार्यालय स्वास्थ्य संचालनालय
भोपाल के पत्र क्रमांक औप्र/2013/683 दिनांक 26 दिसंबर 2012 के द्वारा प्रदेश
के समस्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, समस्त सिविल सर्जन
सह मुख्य अस्पताल अधीक्षकों को यह आदेशित किया गया था कि दीनदयाल योजना के
हितग्राहियों, पेंशनर्स, शासकीय कर्मचारियों
को दवाएं उपलब्ध कराने के संबंध में दिशा निर्देश जारी किए गए थे। इस पत्र में कहा
गया है कि राज्य सरकार ने 2012 में 17 नवंबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल निशुल्क
औधधि वितरण योजना आरंभ की गई है। सरकारी चिकित्सालय में आने वाले हर रोगी को
निरंतर दवाएं उपलब्ध कराने की जवाबदेही सीएमओ और सिविल सर्जन की निर्धारित की गई
है। इसके साथ ही साथ पत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि संचालनालय को लगातार इस
बात की शिकायतें मिल रही हैं कि जरूरत मंदों को दवाएं नहीं मिल पा रही हैं, इसलिए इस हेतु
स्पष्ट गाईड लाईन जारी की गई हैं।
21 माह पूर्व
जारी हुए दिशा निर्देश
26 दिसंबर को
जारी इस पत्र की कंडिका क्रमांक एक में कहा गया है कि सामान्यतः नब्बे से पंचानवे
फीसदी रोगियों का उपचार ईडीएल में उपलब्ध जेनेरिक दवाओं से किया जा सकता है। शेष
रोगियों को इस प्रक्रियाम में छूट दिए जाने के मापदण्ड जारी किए गए हैं। इसमें कहा
गया है कि ऐसी बीमारियों जिनमें रोगी लंबे समय से उपचार में कोई विशेष ब्रांडेड
दवा ले रहा है उन्हें प्रिस्क्राईब की जा सकती है। ऐसी पेटेन्ट दवाएं जिनका
जेनेरिक विकल्प बिल्कुल उपलब्ध न हो, उन्हें लिखा जा सकता है। इसके साथ ही साथ
टरशरी केयर में उपचाररत अथवा फॉलोअप के रोगियों के लिए यदि विशेषज्ञ की राय है कि
जेनेरिक विकल्प रोगियों के लिए उपयुक्त नहीं होंगे, ऐसी स्थिति में भी
पेटेन्ट दवा प्रिस्क्राईब की जा सकती है। प्रथम कंडिका के अंत में यह निर्देश साफ
तौर पर दिया गया है कि मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में मरीजों को ब्रांडेड
काम्बीनेशन्स लिखे जा सकते हैं। उक्त दवाएं मरीज को हर हाल में निशुल्क ही उपलब्ध
कराई जाएं।
10 प्रतिशत
रोगियों को मिलें ब्रांडेड दवाएं!
इस आदेश की कंडिका नंबर दो में साफ तौर पर इस बात का उल्लेख
किया गया है कि रोगी का उपचार करने वाले चिकित्सक/विशेषज्ञ (सिर्फ विशेषज्ञ
चिकित्सक नहीं) को चिकित्सा संस्था प्रमुख से अनुमोदन (प्रतिहस्ताक्षरित) प्राप्त
करने पर ही उपरोक्तानुसार दवा लिखने की छूट दस प्रतिशत से अधिक रोगियों के लिए
नहीं दी जा सकेगी। इसके रिकार्ड के लिए एक रजिस्टर संधारित भी किया जाए।
किन्हें मिलेगी यह सुविधा!
इसकी कंडिका नंबर तीन में साफ तौर पर इस बात का उल्लेख है कि
किन रोगियों को इसकी पात्रता है। इसमें गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले
रोगियों को दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना के अंतर्गत उपरोक्त परिस्थिति में लाभ
दिया जा सकेगा। इसके अलावा पेंशनर्स को उपरोक्तानुसार दवाईयां शासकीय व्यय पर
उपलब्ध कराई जाएंगी। अपर संचालक ने साफ तौर पर न केवल इन आदेशों का पालन सुनिश्चित
करने को कहा है वरन् समय समय पर इसकी समीक्षा के निर्देश भी दिए हैं।
कचरे में डाल दिए गए निर्देश
सिवनी के स्वास्थ्य विभाग विशेषकर जिला चिकित्सालय में अपर
संचालक के निर्देशों को कूड़े में डाल दिया गया। पिछले दो सालों से सिवनी जिले के पेंशनर्स
दवाओं के लिए लगातार भटक रहे हैं। जब भी सिविल सर्जन से इस बारे में पेंशनर्स बात
करने का प्रयास करते हैं, उनके द्वारा बजट न होने का बहाना बनाकर बात को टाल दिया जाता
है।
छः माह बाद जारी किए निर्देश
वहीं दूसरी ओर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय
द्वारा इस साल 12 जून को
पत्र क्रमांक अप्रशा/2013/6259 में कहा गया है कि जिला पेंशन फोरम की 17 अप्रेल को आहूत
बैठक के पालन प्रतिवेदन के रूप में यह पत्र जारी किया जा रहा है। इस पत्र में भी
संचालनालय के 26 दिसंबर के
पत्र का हवाला दिया गया है, एवं इबारत वही है जो संचालनालय के पत्र की
है।
नौ माह बाद जागे डॉ.सोनी
लगभग तीन दशकों से सिवनी में पदस्थ निश्चेतक डॉ.सत्यनारायण
सोनी जिनके बारे में कहा जाता है कि वे बिना पैसा लिए शल्य क्रिया के पूर्व किसी
को बेहोश करने हाथ नहीं लगाते हैं, इस समय सिविल सर्जन के पद पर पदस्थ हैं।
डॉ.सत्यनारायण सोनी ने संभवतः निश्चेतना वाली दवा सूंघ ली और उसका असर बहुत लंबा
रहा प्रतीत हो रहा है। इस 26 दिसंबर के आदेश के नौ माहों के उपरांत
डॉ.सत्यनारायण सोनी वापस होश में आए और 23 सितंबर को उन्होंने समस्त चिकित्सा
विशेषज्ञ अधिकारी के नाम से एक पत्र जारी कर कहा कि जिला चिकित्सालय में आने वाले
पेंशनर्स को पात्रतानुसार औषधियां लिखी जाएं।
पांच चिकित्सकों को दिए अधिकार
जिला पेंशनर्स एसोसिएशन के सदस्य ने बताया कि सिविल सर्जन
डॉ.सत्यनारायण सोनी ने इस पत्र पर ही हाथ से डॉ.ए.के.तिवारी, डॉ.एस.के.नेमा, डॉ.टीकाराम बांद्रे, डॉ.दीपक
अग्निहोत्री (जिनका नाम काटकर बाद में उनके स्थान पर डॉ.किरण कटरे का नाम लिखा गया
है) एवं डॉ.वी.के.नावकर के नाम लिखकर यह बताया कि ये चिकित्सक ही पेंशनर्स को
दवाएं लिखने के लिए अधिकृत किए गए हैं। गौरतलब है कि संचालनालय के पत्र में
विशेषज्ञ के साथ ही साथ रोगी का उपचार करने वाले चिकित्सक के बारे में लिखा गया
है।
विशेषज्ञ कक्ष रहता है सूना
जिला चिकित्सालय में विशेषज्ञ कक्ष में जाकर शायद ही कभी
डॉ.सत्यनारायण सोनी ने झांककर देखा होगा कि वहां कोई चिकित्सक बैठा है अथवा नहीं।
इन परिस्थितियों में पेंशनर्स कहां और किससे दवा लिखवाएं यह यक्ष प्रश्न आज भी
अनुत्तरित है।
भाजपा के खिलाफ जहर बो रहे डॉ.सोनी
जिला चिकित्सालय में पदस्थ सिविल सर्जन डॉ.सत्यनारायण सोनी की
कार्यप्रणाली से पेंशनर्स के दिलो दिमाग में प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज
सिंह चौहान के प्रति रोष और असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। पेंशनर्स यह मानते जा रहे
हैं कि सरकार द्वारा सिवनी में जानबूझकर ऐसे अधिकारी की पदस्थापना की गई है जो कि
पेंशनर्स को जानबूझकर परेशान कर रहा है। एक पेंशनर ने नाम उजागर न करने की शर्त पर
कहा कि अगर डॉ.सत्यनारायण सोनी की तैनाती बरकरार रखी जाती है तो यह भी हो सकता है
कि पेंशनर्स और उनके परिवार के लोग भाजपा से विमुख हो जाएं।