पितरों के पहले खिली खिली नजर आएगी कांग्रेस
लगातार चौथी बार कांग्रेस की सत्ता को संभालने के लिए सोनिया गांधी बेहद आतुर नजर आ रही हैं। हालात देखकर उनकी ताजपोशी मुकम्मल ही मानी जा रही है। अपनी नई पारी में सोनिया गांधी के तेवर कड़े होने की बात कही जा रही है। खामोशी के साथ लंबे समय से कांग्रेस और सरकार का तांडव देख रहीं सोनिया अपनी चौथी पारी में कांग्रेस के साथ ही साथ सरकार को भी नए क्लेवर में प्रस्तुत कर सकतीं हैं। मजे की बात यह है कि इस काम में वे किसी घाट राजनेता के बजाए अपनी व्यक्तिगत मित्रमण्डली और राहुल गांधी की मदद ले रही हैं, आखिर राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी जो करनी है।
(लिमटी खरे)
अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चेहरा सवा सौ साल पुराना हो चुका है। कांग्रेस ने अपने इस जीवनकाल में अनेक उतार चढ़ाव देखे होंगे पर पिछले दो दशकों में कांग्रेस ने अपना जो चेहरा देखा है, वह भूलना उसके लिए आसान नजर नहीं आ रहा है। वैसे भी जब से श्रीमति सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद संभाला है, उसके बाद से उनका दिन का चैन और रात की नींद हराम ही नजर आ रही है। दस साल से अधिक के अपने अध्यक्षीय सफर के उपरांत अब श्रीमति सोनिया गांधी ने कांग्रेस और कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का चेहरा मोहरा बदलने की ठान ही ली है।
इस साल सितम्बर माह के मध्य में कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर श्रीमति सोनिया गांधी की ताजपोशी में कोई संदेह नहीं दिख रहा है। इसके लिए यह आवश्यक होगा कि 2 सितम्बर तक कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कोई अपनी दावेदारी पेश न करे। अगर एसा होता है तो 02 सितम्बर के उपरांत चुनाव अवश्यंभावी हो जाएंगे। वैसे तो उम्मीद की जा रही है कि 02 सितम्बर तक कोई कांग्रेसी नेता अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत न करे। अगर एसा होता है तो 02 सितम्बर को नामांकन की समय सीमा की समाप्ति के साथ ही श्रीमति सोनिया गांधी की चौथी मर्तबा ताजपोशी की घोषणा कर दी जाएगी।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि यूपीए सरकार पार्ट टू में सरकार की मुश्किलों और परेशानी बढ़ाने वाले नुमाईंदों पर सोनिया गांधी ने बारीक नजर रखी है। अब तक चुप्पी साधे रखने वाली श्रीमति सोनिया गांधी आने वाले दिनों में अनेक खद्दरधारी नेताओं को नागवार गुजरने वाले कड़े कदम और फैसले लेने वाली हैं।
गौरतलब है कि कांग्रेसजन अपनी राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी पर यह दबाव बना रहे है कि 2014 में होने वाले आम चुनावों के पहले युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी मुकम्मल कर दें, इसलिए सरकार और संगठन दोनों ही पर राहुल गांधी का नियंत्रण सार्वजनिक तौर पर सामने आने लगे। वर्तमान में राहुल गांधी की छवि विशुद्ध उत्तर प्रदेश विशेषकर अमेठी और रायबरेली के शुभचिंतक के तौर पर बनती जा रही है।
खबरें तो यहां तक हैं कि सत्ता और संगठन के कामकाज को लेकर मां बेटे अर्थात राहुल गांधी और श्रीमति सोनिया गांधी के बीच चर्चाओं के कई दौर हो चुके हैं। दोनों की ही भाव भंगिमाएं देखकर लगने लगा है कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के आला मंत्रियों और कार्यकर्ता यहां तक कि पदाधिकारी भी नेतृत्व की चिंता किए बिना अनर्गल बयानबाजी जारी रखे हुए हैं।
पार्टी के अंदरूनी मामलातों में वरिष्ठ पदाधिकारियों का ढीला पोला रवैया, कांग्रेस की सूबाई इकाईयों का सुसुप्तावस्था में होना, एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट की सरासर अनदेखी, मंत्रियों, पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं के बीच खाई पाटने के बजाए दूरी बढ़ते जाना, संगठनात्मक चुनावों में अनावश्क विलंब, जिन राज्यों मेें कांग्रेस विपक्ष में बैठी है, वहां बार बार जनता के बीच जाने के मुद्दे मिलने के बाद भी प्रदेश इकाईयों का पूरी तरह निष्क्रीय होना, युवाओं एवं पढ़े लिखों के साथ ही साथ कांग्रेस का परांपरागत आदिवासी वोट बैंक का धरातल खिसकना आदि बातो ंपर सोनिया गांधी बहुत ही चिंतित प्रतीत हो रही हैं।
इंडियन प्रीमियर लीग में कांग्रेस के मंत्रियों की हुई फजीहत, कामन वेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार की जबर्दस्त गूंज, लंबे समय तक मंहगाई का बना रहना, शर्म अल शेख से लेकर पाकिस्तान में इस्लामाद तक हुई फजीहत, काश्मीर के आतंकवादी, पूर्वोत्तर में अलगाववादी, देश भर में नक्सलवादी चुनौतियां, मंत्रियों की आपस में खींचतान और पार्टी लाईन से हटकर अनर्गल बयानबाजी, नौकरशाही में शीर्ष पदों पर काबिज होने के लिए मची होड़ और इसके लिए सरकार को बार बार कटघरे में खड़ा करना, महिला आरक्षण बिल का परवान न चढ़ पाना, खाद्य सुरक्षा विधेयक के मामले में सरकार और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का अलग अलग सुरों में राग अलापना, देश की जनता के फटेहाल रहने के बावजूद भी सांसदों का वेतन बढ़ाने को लेकर हंगामा और फिर वेतन बढ़ाने की सिफारिश के बाद सरकार का सांसदों के सामने घुटने टेकना, शिक्षा के अधिकार कानून का औंधे मुंह गिर जाना, करोड़ों टन अनाज का सड़ जाना, आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक, दलित जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सरकारी नीतियों का कागजों पर ही सिमटे होना जैसे अनेक मामलों को लेकर कांग्रेस का नेतृत्व निश्चित तौर पर अपने आप को असहज ही महसूस कर रहा होगा।
मामला कुछ इस तरह का भी सामने आया है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के उपर भारी दबाव है कि वे राहुल गांधी को जल्द ही फ्रंटफुट पर लाएं वरना आने वाले दिनों में कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचेगा। संभवतः यही कारण है कि पिछले दिनों कुछ समाचार चेनल्स ने सोनिया गांधी की पुत्री श्रीमति प्रियंका वढेरा के हेयर स्टाईल को देखकर ही सारे दिन खबर चलाई और प्रियंका की तुलना उनकी नानी एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी से करना आरंभ कर दिया है। इसके पहले लोकसभा चुनावों के दरम्यान चेनल्स ने प्रियंका द्वारा श्रीमति इंदिरा गांधी की साड़ी पहनने की खबरें दिखाकर उस समय भी प्रियंका की तुलना श्रीमति इंदिरा गांधी से की गई थी। अरे भई, प्रियंका कोई और नहीं स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की नातिन है, सो वह लगेंगी ही इंदिरा जी जैसी इसमें अजूबे वाली क्या बात है? जो इलेक्ट्रानिक मीडिया पिल पड़ा एक साथ।
कहा जा रहा है कि अगर श्रीमति सोनिया गांधी की ताजपोशी चौथी बार अध्यक्ष के तौर पर हो गई तो संसद सत्र के अवसान के उपरांत और 25 सितम्बर से पितरों के मास आरंभ होने के पहले कांग्रेस और सरकार दोनों ही नए क्लेवर में नजर आने वाले हैं। वैसे भी योजना आयोग द्वारा मंत्रियों के कामकाज की एक साल के उपरांत की पहली तिमाही की समीक्षा लगभग पूरी होने को है, इसके उपरांत योजना आयोग अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप देगा।
अमूमन जैसा होता आया है कि इस रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी सर जोड़ कर बैठ जाएंगे, फिर मंत्रियों को साईज में लाने का काम किया जाएगा। इस दौरान अनेक मंत्रियों के विभागों को बदलकर या तो वजनदार विभाग या फिर कम महत्व के विभाग सौंपे जाएंगे। यह काम सिर्फ कांग्रेस के कोटे के मंत्रियों के साथ ही संभव होगा, क्योंकि गठबंधन की बैसाखी को छेड़ना श्रीमति सोनिया गांधी के बूते की बात दिख नहीं रही है, तभी तो शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे मंत्री पूरी तरह से मनमानी पर उतारू हैं, और कांग्रेस अध्यक्ष हैं कि मूकदर्शक बनी बैठी हैं।
सरकार का नया चेहरा बनाने के उपरांत फिर बारी आएगी कांग्रेस के अपने संगठन की, सो इसमें सोनिया गांधी तबियत से कैंची चला सकती हैं। कांग्रेस में पद धारण करने वाले निष्क्रिय होने का तगमा धारित अनेक पदाधिकारियों को संगठन के महत्वपूर्ण पदों से हटाया जा सकता है, साथ ही युवा एवं काम करने वाले लोगों को पारितोषक मिलने की उम्मीद भी जगने लगी है। सोनिया द्वारा अगर अपने पुत्र राहुल गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद से नवाज दिया जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।