लाट साहेब के मसले में खामोश है कांग्रेस
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के महामहिम राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर एक साल से अधिक समय से अघोषित एक्सटेंशन पर चल रहे हैं किन्तु घोटालों घपलों में उलझी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार इस मामले में मौन ही साधे हुए है। उधर राज्यपाल की बारंबार दिल्ली यात्राओं से साफ होने लगा है कि वे अपनी नियुक्ति को एक बार फिर पांच साल के लिए मुहर लगवाने की जुगत में हैं।
भारत गणराज्य में राज्यपाल (ंअंग्रेजों के जमाने के लाट साहेब) की नियुक्ति अमूमन पांच सालो के लिए की जाती है। मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की पहली पारी में 17 नवंबर 2004 को मूलतः उड़ीसा का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। उन्हे 29 जनवरी 2006 से 21 अगस्त 2007 तक आंध्रप्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था। वे 21 अगस्त 2007 से कर्नाटक के राज्यपाल रहे हैं। इनकी नियुक्ति मध्य प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर 30 जून 2009 को की गई थी। रामेश्वर ठाकुर ने 10 से 23 जुलाई 2009 तक राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला था।
अगर देखा जाए तो श्री ठाकुर का कार्यकाल 17 नवंबर 2009 को ही समाप्त हो गया था। मध्य प्रदेश के महाधिवक्ता रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा का कहना है कि वैसे तो पांच साल की नियुक्ति का मतलब पांच साल ही होता है किन्तु भारत के संविधान के आर्टिकल 155 में साफ उल्लेख है कि राज्यपाल को कभी भी हटाया जा सकता है। साथ ही राज्यपाल के सक्सेसर की नियुक्ति और उसके राजभवन में प्रवेश के बाद ही कोई भी राज्यपाल पदच्युत होता है।
कांग्रेस के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि पिछले छः माह में मध्य प्रदेश के राज्यपाल की नई दिल्ली की एक दर्जन से अधिक यात्राएं हो चुकी हैं जो बताती हैं कि लाट साहेब कांग्रेस के आला नेताओं के सतत संपर्क में हैं। उधर कांग्रेस इस मामले में मौन साधे हुए है। कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी भी इस मामले मंे किसी भी तरह की टिप्पणी करने से बच ही रहे हैं। घोटालों और घपलों से घिरी कांग्रेस मध्य प्रदेश के राज्यपाल के बारे में कोई निर्णय नहीं ले पा रही है। कांग्रेस के मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद ने दो टूक शब्दों में कहा कि इस बारे में निर्णय होने पर मीडिया के माध्यम से इत्तला दे दी जाएगी। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की करीबी और मंदसोर की संसद सदस्य और सांसद मीनाक्षी नटराजन का कहना है कि इस तरह के मामले में निर्णय वरिष्ठ नेता लिया करते हैं, वे अभी काफी हद तक कनिष्ठ ही हैं।