शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

भाजपा जिलाध्यक्ष एवं नगरपालिका अध्यक्ष का द्वंद चरम सीमा पर


भाजपा जिलाध्यक्ष एवं नगरपालिका अध्यक्ष का द्वंद चरम सीमा पर

पार्टी हाईकमान से हस्तक्षेप की मांग की ओम दुबे ने

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। नगरपालिका परिषद द्वारा आहूत साधारण सम्मेलन जिसमें नगर विकास के लिए अनेकों कार्याें को स्वीकृति दी जानी थी जिसमें भाजपा के 9 पार्षदों द्वारा बैठक का बहिष्कार करना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इन 9 पार्षदों द्वारा बैठक का बहिष्कार करने का नेतृत्व भाजपा के जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर कर रहे थे जो किसी भी दृृष्टि से उचित नहीं है।
उक्त बात वरिष्ठ पत्रकार एवं भाजपा नेता ओम दुबे द्वारा जारी विज्ञप्ति में कही गयी है। उन्होंने आगे कहा कि यदि नगरपालिका अध्यक्ष एवं भाजपा पार्षदों में कोई मतभेद है या सामंजस्य की कमी दिखायी देती है तो भाजपा के जिलाध्यक्ष का कर्त्तव्य था कि वे नगरपालिका अध्यक्ष और पार्षदों को बुलाकर मतभेद दूर कर सामंजस्य बैठालने का काम करते, परंतु उन्होंने ऐसा न करके भाजपा पार्षदों का मनोबल बढ़ाया साथ ही शहर में होने वाले विकास के कार्याें में भी अंड़गा लगाया।
श्री दुबे ने आगे कहा कि सही तो यह होता कि यदि भाजपा के पार्षद, अध्यक्ष एवं नगरपालिका अधिकारियों की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं थे या उनकी बातों को अनदेखा करते थे तो वे नगरपालिका की बैठक में जाकर वहां अपनी बात मनवाने के लिए पुरजोर विरोध, आंदोलन, अनशन करते हुए अपनी बात को जनता के सामने और भी अच्छी तरह से उजागर कर सकते थे।
उन्होंने कहा कि भाजपा पार्षदों की बैठक में अनुपस्थिति के बावजूद कांग्रेस के पार्षदों के सहयोग से शहर विकास के अनेक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास कराए गए। ऐसी स्थिति में भाजपा पार्षदों का विरोध का कोई मायना नहीं रह जाता। बल्कि उन्होंने अपने-अपने वार्डाें में कराए जाने वाले कार्याें की बात बैठक में न रखकर अपने वार्डाें को विकास कार्याें से वंचित भी कर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार ने यह भी कहा कि यदि भाजपा पार्षदों को नगरपालिका में भ्रष्टाचार की बू आ रही थी तो उन्होंने नगरपालिका की बैठक में इस बात को उजागर करना उचित क्यों नहीं समझा। यदि 9 पार्षद मिलकर नगरपालिका की बैठक में किसी भी भ्रष्टाचार के मुद्दें को पुरजोर तरीके से उठाते तो किसी की हिम्मत नहीं थी कि मामला को दबा दिया जाये। वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार के मुद्दों की बातें आमजनता तक भी सरल तरीके से पहंुच सकती थी।
श्री दुबे ने आगे कहा कि बैठक में भ्रष्टाचार की बात न उठाकर बैठक का बहिष्कार करना फिर किसी हॉटल में भाजपा के जिलाध्यक्ष के साथ भोज करना। इसी दौरान फोटो ले रहे एक पत्रकार के साथ अशोभनीय व्यवहार भी किसी दृष्टि से उचित नहीं है। दूसरी ओर नगरपालिका के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी का भी कर्त्तव्य है कि वे शहर विकास के लिए सभी पार्षदों को लेकर चलें तथा उनकी सलाह को अमलीजामा पहनाने का भी काम करें। यदि सभी मिलजुलकर सामंजस्य से काम करेंगे तो आपसी मतभेद तो समाप्त होंगे ही, शहर का विकास भी तीव्र गति से होगा।
ओम दुबे ने कहा कि भाजपा के पार्षद बैठक का बहिष्कार कर जिला भाजपा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर के साथ शहर के एक हॉटल में भोजन कर रहे थे। इस दौरान एक पत्रकार द्वारा फोटो लेने पर हुए विवाद की भी शहर में अच्छी प्रतिक्रिया नहीं हुयी है। पार्षदों के साथ भाजपा के जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर की भोज के दौरान फोटो लेने पर किस बात की आपत्ति थी। भोजन करना कोई चोरी का काम नहीं था, न ही कोई अनैतिक कार्य की फोटो ली जा रही थी। इससे यह कहावत चरितार्थ होती है कि चोर की दाढ़ी में तिनका। सिवनी विधानसभा के चुनाव के बाद नगरपालिका के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी एवं भाजपा के पराजित प्रत्याशी व भाजपा के जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर के बीच जो द्वंद लगातार चल रहा है वह कब समाप्त होगा, समझ के परे है।
श्री दुबे ने जारी विज्ञप्ति में कुछ तल्ख तेवरों के साथ कहा कि श्री दिवाकर का आरोप है कि उनकी पराजय के पीछे नगरपालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी की अहम भूमिका रही है जबकि पराजय के पीछे और भी अनेक कारण थे। जिसमें प्रमुख कारण यह था कि श्री दिवाकर ने भाजपा के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर अपना कब्जा जमाकर बैठे थे। अनेक पदों में उनकी अकेले की नियुक्ति के कारण बाकी और भी वरिष्ठ कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगे थे। पार्टी के अनेक महत्वपूर्ण निर्णय भी श्री दिवाकर अपनी मनमर्जी से करते थे। जिले से अपनी समस्याओं को लेकर आए हुए कार्यकर्ताओं की कोई बात नहीं सुनी जाती थी और वे अपने आप को असहाय समझने लगे थे।
वरिष्ठ पत्रकार एवं भाजपा नेता ओम दुबे ने पार्टी हाईकमान को भेजे अपने पत्र में कहा है कि सिवनी जिले में भारतीय जनता पार्टी को भारी नुकसान पहंुचने के लिए नरेश दिवाकर प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। एक तो उन्होंने सभी पद अपने पास रखे दूसरी ओर सिवनी जिले की अन्य विधानसभा क्षेत्रों में संगठन के मुखिया के नाते उन्होंने न तो कोई दौरा कर पाया न ही कार्यकर्ता में व्याप्त आक्रोश को समाप्त करने में सफल हो पाये।
श्री दुबे ने पत्र में उल्लेख किया है कि यदि कार्यकर्ताओं के बीच बैठक कर उनकी समस्याओं का निराकरण और उनके आक्रोश को शांत किया जाता तो जिले के विधानसभा चुनाव में भाजपा की इतनी खराब स्थिति नहीं होती। अभी जब श्री दिवाकर ने अपने पद से स्तीफा दे दिया है तो उनका कर्त्तव्य था कि वे पार्टी हाईकमान से निवेदन करके जिले में किसी भी अच्छे भाजपा के व्यक्ति को भाजपा जिलाध्यक्ष की बागडोर के लिए दबाव बना सकते थे। जिससे उनकी छवि में भी निखार आता और संगठन का कार्य जिले में सुचारू रूप से प्रारंभ हो जाता।
ओम दुबे ने अपने पत्र के अंत में कहा है कि स्तीफा देने के बावजूद श्री दिवाकर अभी भी अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाले हुए हैं और ऐसे निर्णय ले रहे हैं जिससे जिले में पार्टी को और आने वाले लोकसभा चुनाव में फिर से नुकसान होने की संभावना प्रबल दिखायी दे रही है। अच्छा तो यह होगा कि श्री दिवाकर सभी पदों से मुक्त होकर कुछ दिनों के लिए आत्म चिंतन एवं मनन करें और पार्टी को मजबूत बनाने में सहयोग प्रदान करें। पार्टी हाईकमान को भी चाहिए कि इन दोनों नेताओं के द्वंद को समाप्त करने के लिए कोई उपाय करे वरना लड़ाई का अंत, अंततः खराब ही होता है।

राजेश नरेश के वर्चस्व की जंग में चूरा होता भाजपा का बाड़ा!


राजेश नरेश के वर्चस्व की जंग में चूरा होता भाजपा का बाड़ा!

पार्टी हित के बजाए गणेश परिक्रमा हावी होती दिख रही सिवनी भाजपा में

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। भारतीय जनता पार्टी की जिला इकाई के अध्यक्ष नरेश दिवाकर और नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के बीच वर्चस्व की अघोषित जंग में जिला भाजपा पिसती नजर आ रही है। नरेश दिवाकर दस साल विधायक रहने के साथ ही साथ महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे हैं तो दूसरी ओर राजेश त्रिवेदी संगठनात्मक राजनीति करके 2009 के अंत में नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद हेतु चुनकर आए हैं।
कहा जा रहा है कि इस लिहाज से राजेश त्रिवेदी अभी नरेश दिवाकर से काफी कनिष्ठ हैं। भाजपा के एक पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि सिवनी में जिला भाजपा अब व्यक्तिगत जंग का अखाड़ा बनकर रह गई है। किसी को भी पार्टी के हित से लेना देना नहीं रह गया है। पार्टी में अब उसकी ही पूछ परख है जो नेताओं की गणेश परिक्रमा कर रहा है।

लंबे समय से चल रहा चूहा बिल्ली का खेल!
भाजपा के एक अन्य पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि जिला भाजपा में चूहा बिल्ली का खेल लंबे समय से सतत जारी है। वस्तुतः यह वर्चस्व की जंग का मामला है। पार्टी हितों को दरकिनार कर एक दूसरे पर वार करने का कोई भी मौका पदाधिकारियों द्वारा नहीं चूका जा रहा है। जब भी जिस पदाधिकारी को जिसके भी विरूद्ध कोई मसला मिलता है वह उसे उछालकर दूर से आग तापता नजर आता है।

नीता नरेश हटाओ के पोस्टर्स की रही धूम
भारतीय जनता पार्टी को वैसे तो काडर बेस्ड अनुशासित पार्टी माना जाता है, किन्तु सिवनी में जो हो रहा है उसे देखकर शायद ही कोई कहेगा कि यह उसी काडर बेस्ड भाजपा की जिला इकाई है। विधानसभा चुनावों के पूर्व जब टिकिट हेतु रायशुमारी की जा रही थी, उस समय भी नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओ के गगन भेदी नारों ने आसमान गुंजायमान कर दिया था। चुनाव के चलते भी इसी इबारत के पोस्टर्स भी शहर भर में चस्पा किए गए। वस्तुतः भाजपा में हर बात को पार्टी मंच पर ही रखने का रिवाज रहा है, पर यहां ऐसा नहीं हुआ।

लीज मामले को पार्टी फोरम में था निपटाना!
एक अन्य पदाधिकारी ने दबी जुबान से कहा कि राजेश त्रिवेदी और नरेश दिवाकर के बीच वर्चस्व की जंग लंबे समय से चली आ रही है। संगठन के डंडे के डर से उन्होंने भी नाम उजागर न करने की शर्त पर ही साई न्यूज से चर्चा के दौरान कहा कि इसके पहले गंज की लीज के मामले में भी भाजपा जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर सीधे नगर पालिका की मुखालफत करने जिला कलेक्टर से मिलने चले गए थे। उन्होंने कहा कि यह मामला भाजपा के ही नगर पालिका अध्यक्ष का था अतः नैतिकता के आधार पर इस मामले को पार्टी कार्यालय के अंदर ही सुलटा लिया जाना चाहिए था, किन्तु ऐसा न कर पालिका अध्यक्ष को नीचा दिखाने की गरज से पार्टी मंच से इतर कलेक्टर से मिलकर मामले को तूल दिया गया।

राजेश का हुआ निलंबन
विधानसभा चुनाव के उपरांत जब भाजपा प्रत्याशी नरेश दिवाकर दूसरे स्थान पर रहे तब उसके बाद भाजपा के प्रदेश कार्यालय की ओर से नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी को निलंबित कर दिया गया। उनका निलंबन समाप्त हुआ या नहीं यह बात अभी भी रहस्य ही है। वैसे वे नगर पालिका के चुने हुए अध्यक्ष हैं अतः उनके खिलाफ कार्यवाही का उनके पद पर शायद ही कोई असर हो। राजेश त्रिवेदी को किन शिकायतों के आधार पर निलंबित किया गया है इस बारे में भी भाजपा मौन ही साधे हुए है।

हो रही भाजपा की छवि धूमिल
सिवनी में भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही अंदर चल रही वर्चस्व की गलाकाट स्पर्धा में पार्टी की छवि पर प्रतिकूल असर हुए बिना नहीं है। पार्टी का निचला कार्यकर्ता अब उहापोह की स्थिति में है, कि अगर अनुशासन हीनता की जाती है तो उस पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। इस तरह के आचरण से निचले स्तर के कार्यकर्ता द्वारा आने वाले समय में उसकी बातें न मानी जाने या स्वार्थपूर्ति न होने पर अनुशासनहीनता करने की कोशिश अगर की जाती है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

पार्टी मंच पर निपटना था पार्षदों का विरोध
वहीं कहा जा रहा है कि 15 जनवरी को नगर पालिका परिषद की साधारण सभा में भाजपा के पार्षदों के विरोध को पार्टी मंच पर ही 13 या 14 जनवरी को ही निपटा लिया जाना चाहिए था। गौरतलब होगा कि समााचार एजेंसी ऑफ इंडिया और दैनिक हिन्द गजट द्वारा चार साल बाद विकास हेतु एक राय बन रही पार्षदों कीएवं मिले मौका मारो चौका की तर्ज पर एक हो रहे पालिका के पार्षदशीर्षक से समाचारों के प्रसारण एवं प्रकाशन में पालिका की साधारण सभा के बारे में सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी को प्रकाशित एवं प्रसारित किया गया था। देखा जाए तो 15 जनवरी के पहले ही भाजपा संगठन को इस मामले को पार्टी कार्यालय में ही पार्षदों और नगर पालिका अध्यक्ष को बुलवाकर बैठक कर सहमति बनवा ली जाती तो न तो पालिका में भाजपा को नीचा देखना पड़ता और न ही भाजपा की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ता।

अप्रैल मई में हो सकते हैं लोकसभा चुनाव
नब्बे के दशक के उपरांत सिवनी को भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। आने वाले समय में अप्रैल या मई माह में लोकसभा चुनाव भी हैं। भाजपा के अंदर मची इस अंर्तकलह के छींटे आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के दामन पर अगर पड़ जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आश्चर्य तो इस बात पर है कि इतना सब कुछ होने के उपरांत भी भाजपा के संगठन मंत्रियों द्वारा लगातार चुप्पी ही अख्तियार रखी जा रही है।

पेंच पर बयानबाजी!


पेंच पर बयानबाजी!

(शरद खरे)

देश के अन्नदाता किसानों के लिए फसलों के बेहतर उत्पादन हेतु सबसे महती आवश्यक्ता पानी की ही होती है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सिवनी के किसानों के लिए भीमगढ़ बांध वरदान से कम नहीं है। भीमगढ़ का पानी पलारी, केवलारी क्षेत्र के किसानों के लिए एक बेहतर और उपजाऊ माहौल पैदा कर रहा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। भीमगढ़ के चलते ही पलारी क्षेत्र को सिवनी जिले का पंजाब भी कहा जाने लगा है। सिवनी में शेष इलाकों में पैदावार तो है पर पानी की कमी के चलते पैदावार प्रभावित हो रही है।
सालों से सिवनी के किसान पेंच व्यपवर्तन परियोजना की राह तक रहे हैं। ब्रितानी हुकूमत के दौरान इस परियोजना का सर्वेक्षण करवाए जाने के कुछ प्रमाण मिलते हैं। याद पड़ता है कि जैसे ही दिग्विजय सिंह ने प्रदेश में 1993 में सत्ता संभाली उसके बाद उन्होंने पेंच परियोजना की नींव रखी। सत्तर के दशक में भी इस परियोजना में कुछ काम हुआ है, पर यह काम कागजी घोड़े दौड़ाने तक ही सीमित रहा है।
यह परियोजना ंिछंदवाड़ा जिले के विकासखण्ड चौरई के ग्राम माचागौरा में प्रस्तावित थी। बताते हैं कि इसमें ठेके को लेकर आपसी अहं का टकराव हुआ और इस परियोजना पर मानो ग्रहण लग गया। नेताओं की बाजीगरी में इस परियोजना की नस्ती इस कार्यालय से उस कार्यालय और न्यायालय की सीढ़ी चढ़ती उतरती रही। 2006 में दस फरवरी को तत्कालीन विधायक हरवंश सिंह के नेतृत्व में दिल्ली गए कांग्रेस के प्रतिनिधिमण्डल ने इस परियोजना के साथ ही साथ रेल एवं अन्य मामलों को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, केंद्रीय मंत्री कमल नाथ, जल संसाघन मंत्री सैफुद्दीन सोज, रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के साथ ही साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उनके दिल्ली स्थित निवास पर भेंट की थी।
प्रदेश सरकार के भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक ईमानदार अधिकारी राधेश्याम जुलानिया ने इस परियोजना में खासी रूचि ली और इस परियोजना के लगभग सारे अडं़गों को हटवाने का प्रयास किया। वहीं, कुछ नेताओं की शह पर उनके कारिंदों ने सिवनी की फिजां में यह बात तैरा दी कि आर.एस.जुलानिया इस काम को बंद करना चाह रहे हैं। सर्किट हाउस सिवनी में सिवनी के उत्साही युवाओं और श्री जुलानिया के बीच हुई झड़प संभवतः इन्हीं अफवाहों का नतीजा थी।
राधेश्याम जुलानिया के प्रयास अब आकार लेते दिख रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के सूत्र भोपाल में गहरी पैठ रखते होंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। हो सकता है अपने-अपने सोर्सेज से मिली खबरों के आधार पर कांग्रेस भाजपा द्वारा इसका श्रेय लेने का प्रयास किया जा रहा हो। वहीं विधायक दिनेश राय के पक्ष से भी इस परियोजना का काम आरंभ कराने की बात कही जा रही है। कुल मिलाकर श्रेय लेने की गंदी राजनीति का आगाज हो चुका है। वस्तुतः किसानों का किसमें हित है यह बात प्राथमिकता वाली होना चाहिए। श्रेय बाद में लिया जा सकता है, वरना कहीं श्रेय की राजनीति में पेंच परियोजना पर ग्रहण न लग जाए और इसे पूरा न होने देने की ठानने वाले नेताओं की बलवती अभिलाषाएं फिर हरी हो जाएं।

पेपर लीक होने के बाद भी परीक्षा नहीं हुई निरस्त!


पेपर लीक होने के बाद भी परीक्षा नहीं हुई निरस्त!

(सोनाली खरे)

नई दिल्ली (साई)। नेशनल इश्योरेंस कंपनी की सैकड़ों पदों पर भर्ती के लिए हुई परीक्षा के पेपर लीक होने के बाद भी इस परीक्षा को अब तक निरस्त न किया जाना आश्चर्य का विषय बनता जा रहा है। दिसंबर में हुई परीक्षा को निरस्त करने के लिए कंपनी ने नोटिस तो जारी कर दिया था किन्तु कहा जा रहा है कि जब इस मामले में शोरगुल नहीं हो रहा है तो इसे निरस्त करने का अब क्या ओचित्य!
प्राप्त जानकारी के अनुसार सितम्बर में आयोजित इस परीक्षा के पर्चे लीक होने के कारण इन परीक्षाओं को 15,22 और 29 दिसंबर को आयोजित किया गया था। 23 दिसंबर को लखनऊ सहित कुछ अन्य स्थानों पर 29 दिसंबर के प्रस्तावित पर्चे लीक होने की खबरें सोशल मीडिया पर आईं तब अधिकारियों द्वारा इन खबरों को महज अफवाह बताकर खारिज कर दिया था।
इस संबंध में कंपनी के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि 40,000 आवेदकों ने उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारी के पद के लिए आवेदन किया था। 29 दिसंबर को रविवार को परीक्षा शहर में 21 केन्द्रों पर आयोजित की जा रही थी। परीक्षा लखनऊ और उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में और देश भर में छह और शहरों में आयोजित की गई थी।
इस संबंध में अंग्रेजी समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया के पास लीक प्रश्न पत्र की एक प्रति पहुंची थी और यह रविवार की सुबह पारा क्षेत्र में स्थित केंद्र में पर्यवेक्षकों की मदद से जांची गई। बाद में इसका परीक्षण करने पर पर्चे में शामिल तीस से चालीस फीसदी प्रश्न परीक्षा में शामिल पर्चे के अनुसार ही पाए गए थे। इसमें सेट तक का मिलना होना बताया गया था।
इस संबंध में सूत्रों ने साई न्यूज को आगे बताया कि लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रविंद्र गौड़ ने भी कंपनी के कोलकता स्थित कार्मिक विभाग को इसकी सूचना दी थी। इसके बाद भी इस संबंध में अब तक कोई कार्यवाही न किया जाना आश्चर्य का विषय ही माना जा रहा है।

हो हल्ला नहीं तो परीक्षा निरस्त नहीं!
कंपनी के सूत्रों का कहना है कि इस संबंध में ज्यादा शोर शराबा नहीं होने पर कंपनी के आला दर्जे के अधिकारियों का मानना है कि शोर शराबा नहीं हो रहा है इसलिए इस परीक्षा को निरस्त करने का कोई ओचित्य नहीं है। वैसे सूत्रों की मानें तो कंपनी के अधिकारी अभी वेट एण्ड वाच की स्थिति में हैं। अगर हो हल्ला ज्यादा होता है तो आने वाले दिनों में इसे निरस्त भी किया जा सकता है।

सैटिंगबाजों का खेल
वहींकंपनी के सूत्रों ने आगे बताया कि चूंकि इस परीक्षा में सैटिंगबाज सक्रिय थे अतः वे चाह रहे हैं कि इस परीक्षा को निरस्त न किया जाए। सूत्रों की मानें तो लोगों से बड़ी मात्रा में रिश्वत लेकर उन्हें पास करवाकर सिलेक्ट करवाने की जवाबदेही इन मध्यस्थों ने ली थी और अब उनकी कोशिश है कि यह परीक्षा निरस्त नहीं हो और उनका काम बना रहे।

1434 पदों के लिए हुई थी परीक्षा
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस एडमिस्ट्रेटिव आफीसर के लिए हुई इस परीक्षा में कुल 1434 पदों के लिए परीक्षा हुई थी। इसमें नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के 423, न्यू इंडिया इंश्योरेंस के 494, ओरिएंटल इंश्योरेंस के 223 एवं यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेंस के 294 पदों के लिए परीक्षा आयोजित की गई थी। 15 दिसंबर को 21 तो 22 दिसंबर को 13 एवं 29 दिसंबर को 8 परीक्षा केंद्रों में परीक्षा आयोजित की गई थी।