किसी बड़े हादसे के इंतजार में है सरकारी तंत्र
(लिमटी खरे)
अस्सी के दशक के उपरांत देश में आतंक ने तेजी से पैर पसारने आरंभ कर दिए थे। इसके बाद सरकारें आती रहीं जाती रहीं किन्तु आतंकवाद, अलगाववाद, उग्रवाद, नक्सलवाद जैसे तमाम केंसर देश की रग रग में फैल चुके हैं। आज यह बीमारी लाईलाज ही प्रतीत हो रही है।देश के आंतरिक सुरक्षा तंत्र की पोल तो उस वक्त ही खुल गई थी जब देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में ही आतंकवादियों ने तफरी करते हुए फायरिंग कर दी थी। उस समय इस पंचायत के पंचगणों (सांसदों) के चेहरे देखने लायक थे। निजी समाचार चेनल्स में सांसदों के चेहरों से उड़ती हवाईयां साफ जाहिर कर रही थीं कि वे भी इन दहशतगर्दों से खौफजदा हैं। बावजूद इसके एकमत से कोई फैसला न लिया जाना निश्चित ही निराशाजनक और निंदनीय माना जा सकता है।संसद पर हमला, लाल किले पर हमला, देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला, मुंबई बम ब्लास्ट, दिल्ली के सीरियल ब्लास्ट आदि न जाने कितने हादसे हैं, जो सबक सीखने के लिए पर्याप्त माने जा सकते हैं। हालात देखकर लगने लगा है कि सरकार इन सबसे सचेत होने की बजाए अभी और किसी बड़े हादसे की राह तक रही है।अभी पिछले दिनों 11 अगस्त को ही महामहिम राष्ट्रपति के आवास एवं साउथ ब्लाक (प्रधानमंत्री कार्यालय) के उपर से एक निजी कंपनी का यात्री विमान उड़ान भरकर चला गया। वस्तुत: यह क्षेत्र नो फ्लाई जोन कहलाता है। इस क्षेत्र में बिना पूर्वानुमति के किसी को भी उड़ान भरने की इजाजत नहीं है। गलतफहमी के चलते अगर महामहिम आवास के सुरक्षा कर्मी इस विमान को अपनी एंटी एयरक्राफ्ट गन के निशाने पर ले लेते तो सरकार को जवाब देना मुश्किल हो जाता।मुंबई में भी महामहिम राष्ट्रपति के काफिले में शामिल हेलीकाप्टर और एक निजी हवाई कंपनी के यात्री विमान की दुघZटना को टाला गया था। बजट सत्र के दौरान भी संसद की लचर सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर केरल के पुन्नामी के मुस्लिम लीग के संसद सदस्य ई.टी.बशीर की पित्न रूखैया बख्श मजे से वित्त मंत्री का बजट भाषण सुन रहीं थीं। यह हादसा तब हुआ जब सदन में प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह, कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी, नेता प्रतिपक्ष एल.के.आड़वाणी सहित अनेक बड़े नेता मौजूद थे।दरअसल केरल से लेकर दिल्ली तक कांग्रेस का मुस्लिम लीग से गठजोड़ है, अत: यह मामला वहीं रफा दफा करवा दिया गया, किन्तु चूक तो चूक ही कही जाएगी। 14 अगस्त 2002 को रफीक नामक एक व्यक्ति को संसद परिसर मेें जबरन घुसने की कोशिश में पकड़ा गया था, इसके बाद 22 सितम्बर 2002 को ही ब्रज लाल साहू नाम के एक व्यक्ति को दीफार फांदकर संसद में घुसने की कोशिश में पकड़ा गया।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि देश भर के चुने हुए जनसेवकों की इस पंचायत की सुरक्षा में अब तक सौ करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। इस साल लोकसभा के लिए सुरक्षा खर्च 384.65 करोड़ रूपए तो राज्य सभा के लिए यह 150.60 करोड़ के लगभग है। जनता के चुने हुए नुमाईंदों की सुरक्षा के लिए इतना व्यापक खर्च और आम जनता जिसके द्वारा दिए गए कर से यह सुरक्षा का ताना बाना बुना जा रहा है, उसकी सुरक्षा के लिए . . . ।वैसे भी कहा जाता है कि महामहिम आवास, पीएम हाउस, सोनिया गांधी के आवास, संसद आदि अतिसंवेदनशील जगहों में परिंदा भी पर नहीं मार सकता। सुरक्षा तंत्र के इस दावे में कितनी हकीकत है, यह सब भली भांति जानते हैं। कहने को लोकसभा और राज्य सभा सचिवालय द्वारा जारी रेडियो फ्रीकवेंसी कार्ड के बिना कोई भी संसद में प्रवेश नहीं कर सकता है।इतना ही नहीं मंदी की मार झेलते भारत वर्ष में बेरोजगारी एक अभिषाप बनकर रह गई है। इन हालातों में देश के चंद लोगों की सुरक्षा के लिए साल भर में खर्च किए जाते हैं 226 करोड़ रूपए। जी हां, यह सच है। सूत्रों के अनुसार वजीरे आजम डॉ.एम.एम.सिंह, कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और सोनिया की पुत्री प्रियंका वढ़ेरा की सुरक्षा में लगा है स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) जिसका सालाना बजट 226 करोड़ रूपए है।गृह मंत्रालय के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2003 - 04 में एसपीजी का बजट 75 करोड़ रू. था। 2007 - 08 में यह बढ़कर 113 करोड़ रूपए, तो 2008 - 09 में यह 170 करोड़ रूपए का आंकड़ा पार कर गया था। प्रधानमंत्री की सुरक्षा के बारे में तो कहा जा सकता है किन्तु कितने आश्चर्य की बात है कि 56 करोड़ 50 लाख रूपए सालाना की दर से नेहरू गांधी परिवार की चौथी और पांचवीं पीढ़ी के महज तीन सदस्य देश की जनता के गाढ़े खून पसीने की कमाई को उड़ा रहे हैं।बहरहाल इन सारी वारदातों, हजारों करोड़ रूपए फूंकने के बाद भी अब तक किसी भी सरकार द्वारा इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया जाना सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति की ओर ही इशारा करता है। हालात देखकर यही कहा जा सकता है कि ``कहां तो तय था चिरांगा, हरेक घर के लिए! कहां चिराग भी मयस्सर नहीं शहर के लिए!!``
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अंदर ही अंदर तलवार पजा रहे हैं भाजपा के क्षत्रप
0 आड़वाणी, राजनाथ, शेखावत और भागवत के बीच चल रही है अघोषित लड़ाई!
0 करोड़ रूपए का सवाल बन गया है ``कौन बनेगा भाजपाध्यक्षर्षोर्षो``
0 विखण्डन की स्थिति में आ पहुंची है भाजपा
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। लगभग साढ़े तीन दशक पुरानी भारतीय जनता पार्टी के चार क्षत्रपों के बीच अंदर ही अंदर तनी तलवारों से भाजपा विखण्डन की स्थिति में आ पहुंची है। राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी, भाजपाध्यक्ष आर.एन.सिंह, पूर्व उपराष्ट्रपति बी.एस.शेखावत और संघ प्रमुख एम.आर.भागवत के खेमे अंदर ही अंदर तलवारें पजा कर पैनी करने में जुटे हुए हैं।भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो आड़वाणी खेमे की नाराजगी पार्टी उपाध्यक्ष बाल आप्टे समिति को लेकर है। आप्टे, मुरलीधर राव और चंदन मित्रा से युक्त यह समिति आम चुनावों में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए खींच तान कर यह ब्लूप्रिंट तैयार कर चुकी है कि इस शर्मनाक पराजय का इकलौता कारण लाल कृष्ण आड़वाणी ही हैं। पूर्व विदेश मंत्री एंव पार्टी से निष्काशित नेता जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी ने भी पार्टी नेतृत्व पर सीधा निशाना साधकर माहोल को खदबदा दिया था।राजस्थान में वसुंधरा प्रकरण की आग अभी शांत नहीं हुई है। राख के अंदर चिंगारी जलती दिखाई दे रही है। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखवत परोक्ष तौर पर वसुंधरा को निपटाने की जुगत लगाए हुए हैं। उधर बिहार में भी उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के खिलाफ माहौल तैयार हो चुका है।पार्टी के प्रमुख अंदर अंदर खदबदाती इस खिचड़ी से इतर संघ के मोहन राव भागवत, के.एस.सुदर्शन और भाउसाहब जोशी के त्रिफला के कोप से बचने के मार्ग प्रशस्त करने में जुटे हुए हैं। राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश से हैं, आम चुनावों में यूपी में महज 10 सीटें मिलना उनके लिए सबसे बड़ा माईनस प्वाईंट गिनाया जा रहा है।मध्य प्रदेश में कमोबेश अंर्तकलह कम कही जा सकती है, किन्तु उत्तराखण्ड में कोशियारी और खण्डूरी प्रकरण, राजस्थान का महारानी प्रकरण अब भाजपा के गले की फांस बनता जा रहा है। शेखावत ने वसुंधरा राजे के कार्यकाल में 2003 से 2008 के बीच हुए 22000 करोड़ रूपयों के महाघोटाले के बारे में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर सनसनी फैलाई थी।वैसे भी आड़वाणी पोषित विजय कुमार मल्होत्रा, वसुंधरा राजे, भुवन चंद खण्डूरी, गोपी नाथ मुंडे आज भी असंतुष्ट भाजपाईयों के निशाने पर हैं। दिसंबर में होने वाले भाजपाध्यक्ष के चुनाव में प्रमुख रूप से अरूण जेतली, सुषमा स्वराज, बाल आप्टे, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार, मुरली मनोहर जोशी, अरूण शोरी और यशवंत सिन्हा के नाम सामने आ रहे हैं।कुल मिलाकर पार्टी के शीर्ष स्तर पर नेताओं की आपसी लड़ाई के चलते नीचे स्तर पर कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी हद तक टूटने लगा है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि कभी न समाप्त होने वाली इस अंर्तकलह के चलते भाजपा अब विखण्डन की स्थिति में पहुंच गई है।
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गुरुवार, 10 सितंबर 2009
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