सत्ता के ढाई केंद्र का माडल!
(लिमटी खरे)
देश की सियासी फिजां में इन दिनों बस एक
ही बात पर चर्चा हो रही है कि कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह सही कह रहे हैं
अथवा जनार्दन द्विवेदी। दोनों ही ने अपने अपने तरीके से सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह
के प्रयोग को सफल और असफल करार दिया है। दिग्विजय सिंह की बात में वंशवाद की
हिमायत की बू आती है तो द्विवेदी का कहना वंशवाद की समाप्ति की ओर इशारा कर रहा
है। भारत में ही इस बात का उदहारण मौजूद है कि यहां वंशवाद की परंपरा भी रही है तो
वंशवाद से इतर ब्रितानी गोरों ने लंबे समय तक यहां राज भी किया है। कांग्रेस के
युवराज राहुल गांधी का तिलिस्म दरक चुका है। कांग्रेस के अंदर अब नेहरू गांधी
परिवार का चमत्कार ढहने पर है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ही भ्रष्टाचार
पर अपना मुंह बंद रखकर देश की जनता की नजरों से उतर चुके हैं। राहुल के अंदर देश
को संभालने का माद्दा नजर नहीं आता है, वहीं दूसरी ओर टाईम मेग्जीन एक बार फिर
पलनिअप्पम चिदम्बरम को ही मनमोहन सिंह का सक्सेसर बता रही है। देखा जाए तो सत्ता
के दो नहीं ढाई केंद्र हैं देश में वर्तमान समय में!
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली
सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसे आजादी के उपरांत महात्मा गांधी ने भंग करने की
सिफारिश की थी में स्वाधीनता के बाद से ही सामंतशाही हावी रही है। कांग्रेस के
अंदर वंशवाद का बटवृक्ष किसी से छिपा नहीं है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के उपरांत
इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, वरूण गांधी, सियासी बियावान में विचरण कर रहे हैं। इनमें से मेनका और वरूण कांग्रेस
से बाहर हैं।
नब्बे के दशक में नरसिंहराव और सीताराम
केसरी ने कांग्रेस को कुछ समय तक नेहरू गांधी परिवार की छाया से दूर रखा किन्तु
उसके बाद एक बार फिर इस बटवृक्ष पर निठल्ले बैठे कांग्रेसी अमर बेल जैसे परजीवी
बनकर लदे रहे और कांग्रेस की बागडोर तथा सत्ता की धुरी एक बार फिर सोनिया गांधी के
पास लाकर रख दी। जैसे ही राहुल गांधी सोचने समझने के लायक हुए उन्हें भी महिमा
मण्डित करना आरंभ कर दिया गया।
राहुल गांधी भी इन कांग्रेस के
मठाधाीशों के रंग में ही रंग गए। बाद में जब राहुल को अहसास हुआ कि उनके पैरों के
नीचे जमीन ही नहीं है तो वे हतप्रभ रह गए। राहुल ने धीरे धीरे अपने कदम वापस खींचे
और प्रधानमंत्री ना बनने की अपनी मंशा जाहिर कर दी। फिर क्या था राहुल को आगे कर
सत्ता की मलाई चखने वाले निठल्लों को यह बात रास नहीं आई और उन्होंने फिरसे राहुल
के पीएम बनने की संभावनाओं को हवा देना आरंभ कर राहुल के मन में पीएम बनने की
अभिलाषाएं जगाना आरंभ कर दिया।
कांग्रेस के इस तरह के शातिर नेताओं को
यह नहीं भूलना चाहिए कि यह इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक है। जनता जाग चुकी है, मीडिया को प्रलोभन देकर आप अपने कब्जे
में ले सकते हैं पर सोशल मीडिया ने अपनी जो दमदार मौजूदगी दर्ज कराई है वह निश्चित
तौर पर सियासी लोगों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकाने के लिए पर्याप्त मानी जा
सकती है।
इतिहास साक्षी है कि देश पर आक्रमण कर
बाबर से लेकर औरंजेब और बहादुर शाह जफर तक खानदानी राज रहा है। बादशाह अकबर ने इस
देश पर पचास साल लगातार राज किया है। अकबर की न्यायप्रियता के कारण जो नींव रखी गई
थी वह उनकी नाकारा आल औलादें सौ साल तक भुनाती रहीं। इसके बाद जब बहादुर शाह जफर
ने देश पर राज किया तब कंपनी बहादुर यानी ईस्ट इंडिया कंपनी के पैर पसारने के
उपरांत लाल किले तक ही सिमट गया। उस वक्त राज जरूर जफर का था पर आदेश ईस्ट इंडिया
कंपनी का ही चला करता था।
आज के दौर में यह उदहारण इसलिए भी
प्रासंगिक माना जा सकता है क्योंकि आज राज नेहरू गांधी परिवार का ही चल रहा है।
देश में उनकी मंशा कि बिना पत्ता भी नहीं खड़क रहा है। मनमोहन सिंह देश के वजीरे
आजम जरूर हैं पर उनकी भी इतनी ताकत नहीं कि वे अपनी मर्जी से देश को चला सकें। देश
की सत्ता और शक्ति का शीर्ष केंद्र सालों से 10 जनपथ यानी सोनिया गांधी का आवास ही बना
हुआ है।
इक्कीसवीं सदी का सपना देशवासियों ने
बड़े ही चाव के साथ देखा था। आज इक्कीसवीं सदी का तेरहवां साल आधा बीतने को है, पर इसके बाद भी आज देश की रियाया अपने
आप को गोरे ब्रितानियों के बजाए स्वदेशी कालों की गुलाम समझ रही है। जनता को जो
मिलना चाहिए वह उसे मिल ही नहीं पा रहा है। अनुसूचित जाति और जनजाति को देश की
मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान संविधान में दस सालों के लिए किया
गया था। आज संविधान बने छः दशक से ज्यादा समय हो गया है पर देश के हुक्मरान इन्हें
मुख्य धारा में ला नहीं पाए हैं, परिणामस्वरूप आज भी आरक्षण का जिन्न
सामान्य वर्ग पर हावी है।
आज कांग्रेस की हालत इतनी गई गुजरी हो
गई है कि वह जमीनी स्तर पर लड़ाई लड़ने के बजाए एक परिवार के भरोसे ही देश को हांकना
चाह रही है। कांग्रेस के नेता एक परिवार विशेष के भाटचारण और महिमामण्डन को ही
अपना मूल मंत्र मान रहे हैं। इन्हीं नेताओं के चलते इस परिवार के कथित युवा किन्तु
वस्तुतः प्रोढ़ होते सदस्य को लोगों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा है।
शिवसेना भी राहुल पर वार कर रही है तो
भाजपा उन्हें आड़े हाथों ले रही है। राहुल कहते हैं उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनना
पर उन्हें पीएम बनाने के लिए कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह सारे घोड़े छोड़ने
पर आमदा नजर आ रहे हैं। राजा दिग्विजय सिंह द्वारा सोनिया और मनमोहन सिंह के दो पावर
सेंटर को गलत और असफल बताया जाकर नई बहस छेड़ दी जाती है।
इसकी काट के रूप में जनार्दन द्विवेदी
सोनिया मनमोहन के दो पावर सेंटर वाले फार्मूले को सफल निरूपित करते हैं। समझ में
नहीं आता कि दो राजनेता इस तरह परस्पर विरोधी बयान देकर जनता को भ्रमित क्यों करना
चाह रहे हैं। इसके पीछे उनका क्या हिडन एजेंडा है। उधर टाईम पत्रिका एक बार फिर
पूरी ईमानदारी के साथ मनमोहन के सक्सेसर के बतौर पलनिअप्पम चिदम्बरम का नाम आगे कर
रही है।
दिग्विजय सिंह या जनार्दन द्विवेदी जो
चाहे कहें पर वस्तुस्थिति यह है कि देश में सत्ता के दो नहीं ढाई केंद्र हैं। एक
हैं 7, रेसकोर्स रोड़ पर रहने वाले प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, दूसरी 10, जनपथ में निवासरत यूपीए चेयर पर्सन
श्रीमति सोनिया गांधी और तीसरे 12, तुगलक लेन को आशियाना बनाने वाले राहुल
गांधी। इस तरह देश में सत्ता के ढाई केंद्र अस्तित्व में हैं।
42 साल के अम्योच्योर पालीटिशिन राहुल
गांधी आज भी अपनी मां श्रीमति सोनिया गांधी के मानिंद लिखा लिखाया भाषण पढ़ रहे
हैं। उद्योगपतियों से रूबरू राहुल के भाषण के दौरान उनका एक पन्ना कहीं खो गया तो
वे बोल उठे आई लास्ट। क्या यही अपरिपक्व राजनेता देश को इक्कीसवीं सदी का सपना
दिखाने में सफल हो पाएंगे? कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की देश के हालातों और भ्रष्टाचार को छोड़कर
अन्य बेमतलब के विषयों पर बयानबाजी को देखकर कहा जा सकता है कि -‘‘कौन है सच्चा कौन है झूठा हर चेहरे पे
नकाब है . . .! (साई फीचर्स)