चुनाव पूर्व की प्रशासनिक सर्जरी
(लिमटी खरे)
चार सालों तक मध्य प्रदेश में सुशासन और
राम राज्य आने का दावा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने अपने कार्यकाल की संभवतः
अंतिम प्रशासनिक सर्जरी को अंजाम दिया है। रविवार को शिवराज सिंह चौहान ने अपने
पत्ते फेंटे और मैदानी अफसरों में पंचानवे फीसदी अफसरों के सिर्फ जिले ही बदले
हैं। देखा जाए तो इन अफसरों की कार्यप्रणाली से भाजपा के कार्यकर्ताओं में असंतोष
भरा हुआ था। भाजपा का अंदरूनी ढांचा इन अफसरों की कार्यप्रणाली से टूट रहा है।
मध्य प्रदेश के अतिसंवेदनशील जिलों में नए अधिकारियों की पहली बार तैनाती का
ओचित्य समझ से परे ही है। देखा जाए तो अनुभवी अफसरों को ही अतिसंवेदनशील जिलों में
पदस्थ किया जाना चाहिए वरना पिछले माह 7 फरवरी को अतिसंवेदनशील सिवनी जिले में
लगे ओचित्यहीन कर्फ्यू जैसी स्थितियां निर्मित होंगी और लोगों के साथ ही साथ
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को इसका भोगमान भोगना पड़ सकता है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन
वेटिंग रहे भाजपा के वयोवृद्ध नेता एल.के.आड़वाणी ने मध्य प्रदेश में अपने हाल ही
के दौरे के दौरान कहा है कि भाजपा की सरकारें जहां जहां हैं वहां स्वराज तो आ गया
है पर सुशासन नहीं। मध्य प्रदेश में भी भाजपा की सरकार है, अर्थात आड़वाणी की नजरों में या उनको दी
गई जानकारी के अनुसार देश के हृदय प्रदेश में भी स्वराज तो आ गया है सुशासन नहीं।
स्वराज का शाब्दिक अर्थ अपना राज्य या
अच्छा राज होता है। वहीं सुशासन का अर्थ सुंदर शासन या उत्तम राज्य प्रबंध होता
है। आड़वाणी की कही बातों की गंभीरता को समझा जाए तो शिव के राज में एमपी ने अच्छा
राज्य की स्थिति तो पा ली है पर उत्तम राज्य प्रबंध के मामले में अभी यह पीछे है।
शिव का राज प्रदेश में आठ सालों से कायम है। आठ साल का समय कम नहीं होता है अपना
प्रदर्शन दिखाने के लिए।
प्रदेश में स्वराज या सुशासन को लाने के
लिए शिवराज के गण यानी जिलों में प्रभारी मंत्री और जिला कलेक्टर ही उनके हाथ पांव
हैं। सुशासन की राह देखने का साफ मतलब है कि प्रदेश में मंत्रियों और जिला प्रशासन
का परफार्मेंस उचित नहीं है। राज्य में प्रशासनिक व्यवस्था दम तोड़ रही है।
शिवराज सिंह चौहान के बारे में कहा जा
रहा है कि वे कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी को रोेल माडल बनाकर
काम कर रहे हैं। जिस तरह राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए किसी भी काम को
करवाने के लिए ‘‘राजीव जी की एसी इच्छा है‘‘ कहा जाता था उसी तरह अब एमपी में सीएम
साहब की एसी इच्छा है कहा जा रहा है। मुख्यमंत्री की इच्छाओं को मूर्तरूप देने में
प्रदेश में पांच लोगों की मुख्य भूमिकाएं बताई जा रही हैं।
एक बार एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के
वाक्ये का जिकर यहां लाजिमी होगा, उन्होंने अपना नाम गोपनीय रहने की शर्त
पर शिवराज सिंह चौहान की कार्यप्रणाली को बखूबी वर्णित किया था। बकौल उक्त अधिकारी
शिवराज सिंह चौहान के पांच सलाहकार मुख्य सचिव को बुलाकर मुख्यमंत्री जी की इच्छा
से आवगत करा देते हैं। फिर मुख्य सचिव द्वारा संभागायुक्तों को बुलाकर उसे दुहरा
दिया जाता है। अंत में संभागायुक्त अपने प्रभाव वाले जिलों में कलेक्टर्स को
बुलाकर मुख्यमंत्री जी की इच्छा से आवगत करवा देते हैं।
उन्होंने कहा कि अगर कोई कलेक्टर इस
मामले में यह पूछता है कि अगर सांसद या विधायक ने बीच में इससे उलट कोई काम करने
की अनुशंसा की तो? इस पर संभागयुक्तों द्वारा एक ही बात कही जाती है कि मुख्यमंत्री जी की
यही इच्छा है। कहने का तातपर्य यह कि सीएम की इच्छा के आगे सांसद विधायकों की भी ना
सुनी जाए। प्रदेश में अनेक प्रकरण एसे भी सामने आए हैं जब जिला प्रशासन, सांसद विधायक और भाजपा की जिला इकाई के
बीच टकराहट की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनी हैं।
रविवार को शिवराज सिंह चौहान ने बड़ी
प्रशासनिक सर्जरी को अंजाम देते हुए प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के 29 अफसरों को इधर से उधर किया है। कुछ
जिला कलेक्टर्स को सीधे ही संभागायुक्त बना दिया है, तो अनेक जिलों में नए आईएएस तैनात किए
हैं। कहा जाता है कि संवेदनशील जिलों में अनुभवी आईएएस जो कम से कम एक जिले का
कलेक्टर रह चुका हो उसकी तैनाती की जानी चाहिए। वस्तुतः शिवराज सिंह चौहान ने अपनी
प्रशासनिक सर्जरी में इन बातों का जरा भी ख्याल नहीं रखा है। शिवराज सिंह चौहान के
सीएम बनने के उपरांत प्रदेश में अफसरशाही के बेलगाम घोड़े तेजी से दौड़ने लगे हैं।
इसी तरह इस प्रशासनिक सर्जरी में भारतीय
पुलिस सेवा और राज्य पुलिस सेवा के अफसरों के थोकबंद तबादले हुए हैं। पुलिस विभाग
में 54 अफसरों की तैनाती बदली गई है। इसमें सबसे आश्चर्य की बात राज्य पुलिस
सेवा के अफसरों को जिलों की कमान देने वाली है। इन मैदानी अफसरों की तैनाती करते
समय एक बार फिर से शिवराज सिंह चौहान द्वारा वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखा गया है।
लगने लगा है कि मध्य प्रदेश में भारतीय पुलिस सेवा के अफसरों की कमी हो गई है
जिसके चलते राज्य पुलिस सेवा के अफसरों को पुलिस अधीक्षक का दायित्व सौंपा गया है।
कुछ जिलों में तो एक साथ जिलाधिकारी और
जिला पुलिस अधीक्षक को ही बदलकर शिवराज सिंह चौहान ने पता नहीं क्या साबित करना
चाहा है। संवेदनशील सिवनी जिले के पुलिस अधीक्षक और जिला कलेक्टर बदल दिए गए हैं।
इतना ही नहीं इसी के साथ इसके रेंज के आईजी जबलपुर को भी बदल दिया गया है। नए अफसर
आकर कब इन जिलों की फिजाओं को समझेंगे, कब वे अपना काम आरंभ करेंगे यह विचारणीय
प्रश्न ही है।
शिवराज सिंह चौहान ने भले ही प्रशासनिक
सर्जरी को अंजाम देकर अपनी पीठ ठोंक ली हो पर इससे कार्यकर्ताओं के बीच के रोष और
असंतोष का वे शायद ही शमन कर पाएं, क्योंकि जो अफसर एक जिले में राजनैतिक
समीकरणों के हिसाब से सामंजस्य बिठाने में असफल रहे हों वे दूसरे जिले में किस
आधार पर सामंजस्य बिठा पाएंगे। हालात देखकर लगने लगा है कि मैदानी अफसरों ने किसी
अज्ञात व्यक्ति के इशारे पर सत्ता और संगठन के बीच खाई खोदने के काम को बखूबी
अंजाम दिया जा रहा है, जिसका लाभ निश्चित तौर पर कांग्रेस को ही मिलता दिख रहा है, क्योंकि कार्यकर्ताओं के विश्वास के
बिना चुनाव जीतना संभव नहीं होगा भाजपा के लिए! (साई फीचर्स)