फेरबदल से क्या
अलीबाबा . . . . 5
अंहकार सर चढ़कर बोल
रहा जनसेवकों का
(लिमटी खरे)
भारत गणराज्य में
जनसेवा के मायने बीसवीं सदी के समाप्त होते ही बदलने लगे थे। अब तो जनता के सेवक
ही जनता के मालिक बन बैठे हैं। अपने आप को सर्वशक्मिान समझने वाले राजनेताओं के
मुंह से ना जाने किस तरह के फिकरे निकल रहे हैं। कल तक संयमित रहने वाले जनसेवक आज
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबकर उल जलूल बयानबाजी कर रहे हैं। दरअसल, यह उनका अहंकार ही
बोल रहा है। जनसेवक चाहे सत्ता में बैठे हों या विपक्ष में वे इस बात को भली भांति
समझ चुके हैं कि अपनी बिरादरी (जनसेवक) का छद्म विरोध कर उसे बचाते रहो, जनता नादान और
नासमझ है वह इस बयानबाजी में उलझी रहेगी और मूल मुद्दों को भूल जाएगी। मीडिया भी
अब इन जनसेवकों की तान पर मुजरा कर रहा है। रोज किसी ना किसी के विवादित बयान को
जमकर रगड़ा जा रहा है। मंहगाई और भ्रष्टाचार का मामला तो अब दब सा गया है। लगने लगा
है मानो यह कांग्रेस और भाजपा की सोची समझी साजिश है कि इस तरह जनता को बरगलाते
रहो और देश को पूरी तरह लूटते रहो।
मनमोहन सरकार में
जनता के सेवकों ने जमकर देश को लूटा है। सभी जानते हैं कि जनता के पैसों में से
करारोपण के माध्यम से संचित राजस्व से ही सरकार चलती है। देश में संघीय व्यवस्था
है, इसलिए
राज्यों का भी अपना हिस्सा है। केंद्र में अरबों करोड़ रूपयों की होली खेल दी गई।
ना सत्ताधारी कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने ही इसकी सुध ली और ना ही विपक्ष में
बैठी भाजपा और उसके राजग के सहयोगी दलों ने। हमाम में सब नंगे हैं की तर्ज पर एक
दूसरे के भ्रष्टाचार और अनाचार पर थोडी बहुत बयानबाजी कर मामले को एक सप्ताह में
ही अंदर के पन्नों में खबर पहुंचाकर उसका गला घोंट दिया गया।
कांग्रेस नीत
केंद्र सरकार में जब पानी सर के उपर से होकर गुजरा तब मनमोहन सरकार ने बड़ी ही
चतुराई से अपने बावन पत्तों को आपस में फंेटा और चंद पत्तों को बाहर कर वापस फिर
से उन्हीं दागियों को लाल बत्ती के साथ ही साथ और अच्छे विभाग देकर उपकृत और
पुरूस्कृत भी कर डाला। जब भी कोई भ्रष्टाचार का मामला मीडिया की सुर्खी बनता है
उसके तत्काल बाद ही किसी ना किसी नेता का विवादस्पद बयान सामने आ जाता है। जाहिर
है अपनी टीआरपी (टेलीवीजन रेटिंग प्वाईंट) बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया
द्वारा इन बयानों पर दिन भर बहस का आयोजन किया जाता है।
देखा जाए तो इन
चेनल्स की टीआरपी को सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स के आधार पर आंका जाना चाहिए।
नेताओं के विवादस्पद बयानों को ट्विटर या फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स
पर ज्यादा तवज्जो ना दिया जाना इस बात का घोतक है कि जनता इन बयानों के छलावे में
नहीं आ रही है। देश के र्शीर्ष स्तर पर बिके हुए मीडिया द्वारा जनता को गुमराह
करने का कुत्सित प्रयास किया जाना तत्काल बंद होना चाहिए।
वैसे देखा जाए तो
मंच से बोलते समय तालियों की गड़गड़हाट सुनने को बेचेन राजनेता अक्सर अपना संयम तोड़
देते हैं। कभी कभी तो सुर्खियों में बने रहने भी नेताओं द्वारा आम जनता की भावनाओं
के साथ खिलवाड़ किया जाता है। मामला चाहे उत्तर भारतीयों को लेकर मनसे प्रमुख राज
ठाकरे का हो या फिर शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे का। दोनों ही नेताओं ने जात
पात और क्षेत्रवाद की बात कहकर लोगों के मन मस्तिष्क में जहर बो दिया है।
इस मामले में
दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित भी पीछे नहीं हैं। कुछ साल पूर्व उत्तर
प्रदेश और बिहार के लोगों पर टिप्पणी करने के बाद उन्हें लाख सफाई देनी पड़ी थी।
हाल ही में राजधानी दिल्ली से सटे बदरपुर विधानसभा क्षेत्र में भी एक कार्यक्रम के
दौरान शीला दीक्षित ने एक विवादस्पद बयान दे डाला।उन्होंने कहा कि सरकार ने सब कुछ
दिया है, दिल्ली
वासियों के लिए। और अगर बिचौलियों दलालों के चलते गफलत हो रही हो तो लोग खासतौर पर
महिलाएं मोर्चा संभालें। अगर तब भी बात न बने तो पिटाई भी की जाए। और अगर
आवश्यक्ता पड़े तो दिल्ली में मुख्यमंत्री कार्यालय में आकर इस बात की इत्तला भी दी
जाए।
देश की अर्थ
व्यवस्था की रीढ़ है किसान। किसान का आशियाना गांव में ही होता है। ग्रामीण परिवेश
में महिलाओं की स्थिति दयनीय है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। हाल ही में
ग्रामीण महिलाओं पर समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव की एक टिप्पणी ने
विवाद पैदा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि समृद्ध तबके की महिलाओं की तुलना में
ग्रामीण महिलाएं ज्यादा आकर्षक नहीं होतीं इसलिए महिला आरक्षण बिल से उन्हें कोई
फायदा नहीं होगा। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार है। वह शुरू
से महिला आरक्षण बिल का विरोध करते रहे हैं।
मुलायम सिंह यादव
ने पहली मर्तबा एसा विवादस्पद बयान नहीं दिया है। नेताजी ने पूर्व में भी कई
कर्तबा ऐसे बयान दिए हैं जिनकी निंदा की जानी चाहिए थी, किन्तु निंदा करना
अब राजनैतिक बियावान में अदृश्य ही हो गया है। ज्ञातव्य है कि 2010 में भी मुलायम की
एक टिप्पणी ने हंगामा खड़ा कर दिया था। उस वक्त उन्होंने कहा था कि अगर महिला
आरक्षण बिल पास हो गया तो संसद ऐसी महिलाओं से भर जाएगी, जिन्हें देखकर लोग
सीटियां बजाएंगे और शोर-शराबा करेंगे। उस टिप्पणी को लेकर राजनीतिक दलों और महिला
संगठनों ने मुलायम की काफी आलोचना की थी।
उत्तर प्रदेश के ही
केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा भी कहां पीछे रहने वाले हैं। बेनी बाबू के
जुबान भी बराबर फिसलती रहती है। कभी वे कहते हैं, सलमान खुर्शीद जैसे
मंत्री 71 लाख का
घोटाला नहीं कर सकते, हा बड़ी रकम होती तो सोचा भी जा सकता था। तो कभी वे 2014 के आम चुनाव में
यूपीए की वापसी न होने का दावा कर हलचल मचा देते हैं। कभी अकलियत के रहनुमा होने
का दावा करने बेनी प्रसाद ने तो यहां तक कह दिया कि केवल मुसलमान ही गरीब होते हैं?
वहीं केंद्रीय
मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा संचालित जाकिर हुसैन ट्रस्ट पर विकलागों का सरकारी
पैसा खाने के आरोप से वह इतने तिलमिला गए कि सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल
को अपने संसदीय क्षेत्र फर्रूखाबाद से न लौट पाने की धमकी दे डाली। उन्होंने तो
यहा तक कह दिया कि वे खून का दरिया बहा देंगे।
बयानबाजी कर मीडिया
की सुर्खियां बटोरना नेताओं का प्रिय शगल रहा है। भाजपा के विवादस्पद निजाम नितिन
गड़करी की जुबान आए दिन फिसल जाया करती है। इसी साल यूपी विधानसभा चुनाव में विरोधी
दलों के नेताओं की तुलना गधे से करते हुए कहा, इधर गधे उधर गधे, सब तरफ गधे की गधे।
अच्छे घोड़े को नहीं घास, गधे खा रहे च्यवनप्राश। इसी तरह उन्होंने मुलायम और मायावती
पर निशाने साधते हुए उन्हें काग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाधी का तलवा चाटने वाला बता
दिया। इसके बाद उन्होंने संसद हमले का दोषी अफजल अफजल गुरु को काग्रेस का दामाद कह
दिया।
नितिन गडकरी की
कॉमनवेल्थ घोटाले पर बोलते हुए ऐसी जुबान फिसली कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह को गांधी जी का बंदर करार दे दिया। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री की
चुप्पी गाधी जी के बंदर की तरह है- बुरा मत बोलो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो।
भाजपा अध्यक्ष यहीं कहा रुकने वाले थे। दिल्ली नगर निगम चुनाव से पहले
कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में चोरों, पॉकेटमारों को पार्टी में शामिल होने का
न्यौता दे दिया। अब गडकरी ने देश के सबसे वाछित आतंकी दाऊद इब्राहिम के आईक्यू की
तुलना महान संत स्वामी विवेकानंद से कर नए विवाद को जन्म दे दिया है।
कांग्रेस के पूर्व
प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी द्वारा उद्धत यह जुमला उस वक्त मीडिया और कवि
सम्मेलनों में जमकर उछला था जिसमें राजीव गांधी ने विरोधियों को ‘‘नानी याद दिला
देंगे‘‘ का प्रयोग
किया था। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी भी इसी फेहरिस्त में ही हैं।
उन्होंने एक अखबार की संपत्ति खरीदने के लिए काग्रेस पार्टी द्वारा राहुल गाधी और
सोनिया गाधी को लोन दिए जाने का मामला उठाया। इस पर राहुल के बयान आने के बाद
स्वामी ने उन्हें बुद्धू कह दिया।
भारत गणराज्य के
कथित तौर पर महान अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन ंिसह और वित्त मंत्री
पलनिअप्पम चिदम्बरम भी रूपहले पर्दे के दामिनी चलचित्र की ही भांति मंहगाई कम करने
के मामले में ‘‘तारीख पर
तारीख ही दिए जा रहे हैं।‘‘ जब पानी सर से उपर होकर गुजरता है तो भारत गणराज्य के वज़ीरे
आज़म डॉक्टर मनमोहन सिंह गैर जिम्मेदाराना बयान देकर कभी कहते हैं कि मेरे हाथों
में जादू की छड़ी नहीं है, तो कभी कह उठते हैं कि पैसा पेड़ों पर नहीं उगता।
बयानबाजी कर मीडिया
में बने रहने के लिए नेता कुछ भी कहने पर आमदा रहते हैं। यहां तक कि व्यक्तिगत
आरोपों से भी नेताओं को गुरेज नहीं रहता है। हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी रैली के
दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ने मानव संसाधान राज्यमंत्री शशि थरूर की पत्नी
सुनंदा को 50 करोड़ की
गर्लफ्रेंड कहकर बवाल मचा दिया। दरअसल, आईपीएल की कोच्चि टीम को लेकर विवाद को लेकर
संसद में दिए गए यह बयान कि जिसके सुनंदा, अकाउंट में 50 करोड़ रुपये हैं वह
मेरी मदद क्यों लेगी। इस पर मोदी ने चुटकी ली थी। खैर इसपर उबाल तो आना ही था।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने मोदी को बंदर की उपमा दे दी।
भारतीय संस्कृति को
बलाए ताक पर रखकर पाश्चात्य सभ्यता के हिमायती नेताओं को अपनी अर्धांग्नी की ही
परवाह नहीं है। जब मोदी ने शशि थरूर की पत्नि पर आरोप लगाए तो उसका प्रतिकार करने
या मोदी को सीमाओं में रहने की नसीहत देने के बजाए शशि थरूर ने उल्टे अपनी पत्नि
सुनंदा पर एक प्राईज टेग लगाकर कह दिया कि उनकी पत्नि पचास करोड़ से ज्यादा कीमती
है। अब एसे में भारत देश जहां देश को ही भारत माता कहकर पूजा जाता है वहां महिलाओं
को कैसे सम्मान मिले जब नेता खुद ही इस तरह नारी जाति का अपमान कर रहे हों।
केंद्रीय मंत्री
श्रीप्रकाश जायसवाल ने अपने जन्मदिन पर कानपुर में आयोजित कवि सम्मेलन के दौरान बड़बोलापन
प्रदर्शित किया। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की जुबान ऐसी फिसली कि वे तमाम
महिला संगठनों के निशाने पर आ गए। उन्होंने कहा की नई-नई जीत और नई-नई शादी का
अपना अलग महत्व होता है। जैसे-जैसे समय बीतता है, जीत पुरानी होती
जाती है। जैसे जैसे समय बीतता जाता है पत्नी पुरानी होती जाती है। फिर वो मजा नहीं
रहता।
इसी तरह केंद्रीय
मंत्री सुशील कुमार शिंदे भी बड़बोले तो नहीं हैं पर सच्चाई उनकी जुबान से निकल ही
गई। पूना में उन्होंने कह दिया कि जनता की याददाश्त कम होती है। जिस तरह बोफोर्स
घोटाला भूला है वैसे ही अन्य घोटाले भी भूल जाएगी जनता। अब बताईए क्या इस तरह की
बयानबाजी करने के बाद इन नेताओं को देश के संवैधानिक पदों पर रहने का कोई नैतिक हक
बचा है? क्या
विपक्ष के नेताओं को अपनी अपनी पार्टी में सुप्रीमो बनने का हक है?
हालात देखकर तो यही
सच्चाई लगती है कि जिस तरह अस्सी के दशक में कोई भी विवादस्पद स्थिति आने पर
केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा करों में बृद्धि कर जनता का ध्यान इससे हटाया जाता
था, अब भी वही
तरीका ही कारगर साबित हो रहा है। बस कुछ मामलों में स्थितियां बदल गईं हैं। घपले
घोटालों और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे जनसेवकों ने अब इससे जनता का ध्यान हटाने के
लिए विवादस्पद बयानों का सहारा इसलिए लिया है क्योंकि अब मंहगाई तो चरम पर पहुंच
चुकी है और इसके बढ़ने से उस पर कोई खास असर पड़ता नहीं दिखता। (साई फीचर्स)
(क्रमशः जारी)