शनिवार, 10 नवंबर 2012

कराह रहा है अहमद पटेल का क्षेत्र!


कराह रहा है अहमद पटेल का क्षेत्र!

(जलपन पटेल)

अहमदाबाद। (साई)। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को सियासी दशा और दिशा देने वाले अहमद पटेल का गुजरात सूबा में ही कांग्रेस संगठन बुरी तरह करार रहा है। अहमद पटेल के क्षेत्र में ही विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। मध्य गुजरात में नर्मदा नदी से थोड़ी दूरी पर बसा एक बिहार। गुजरात में लोग इसे नटरंग के नाम के नाम से जानते हैं। भरूच से 40 किलोमीटर दूर, किसी आम कस्बे जैसा ही है नटरंग। जिसके दो तरफ से राजकीय राजमार्ग है। यह उन नौ क्षेत्रों में शामिल है, जिसे नरेंद्र मोदी ने तालुका बनाने का वादा किया है। भरूच रेलवे स्टेशन से दक्षिण की तरफ चलते हुए नटरंग पहुंचने पर आप जो पहली चीज महसूस करेंगे, वह यह कि यह शेष गुजरात से अलग है।
इस क्षेत्र में मुसलमानों और आदिवासियों की आबादी के ज्यादा घनत्व को आसानी से महसूस किया जा सकता है। यहां यह जानकारी महत्वपूर्ण है कि यह वही इलाका है, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का इलाका माना जाता है। बहरहाल, नटरंग के खास तरह के जनसंख्या घनत्व ने यहां एक खास तरह की राजनीति को जन्म दिया है। जो बिहार की राजनीति से काफी मिलती-जुलती है।
जनता दल यूनाइटेड यहां काफी मजबूत स्थिति में है, लेकिन इसका कारण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं हैं। यहां छोटू वासवा जदयू के आदिवासी चेहरे के रूप में उभरे हैं। स्थानीय तौर पर छोटू वासवा की पहचान जितनी जदयू के नेता के तौर पर है, उनती ही चर्चा उनके बाहुबल की भी है। छोटू वासवा और उनका बेटा फिरौती वसूलने के कई मामलों में अभियुक्त हैं और उनके कारनामों के किस्से शहर में आम हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि उनका कोई कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि भाजपा नेताओं का भी उन्हें पूरा समर्थन प्राप्त है। वासवा ने अपनी सल्तनत को झागाडिया विधानसभा क्षेत्र तक फैला लिया है। इसमें रहने वाले निवासी बहुसंख्यक मुसलमान गुजरात में विकास की सारी कहानी को बाजार की एक सुनियोजित नीति बताते हैं। अयूब पठान अपने पिता का पेट्रोल पंप चलाते हैं और बताते हैं कि कैसे नटरंग के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना डॉक्टर और दवाइयों के चल रहे हैं। यहां तक कि राजमार्ग के किनारे होने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में घायल होनेवालों के लिए तो यहां चिकित्सा सुविधा का अभाव तो है ही, साथ ही लाशें भी पोस्टमार्टम सुविधाओं के अभाव में घंटों पड़ी रहती हैं और स्थानीय लोगों के लिए परेशानियों का सबब बनती है।
अयूब पठान और उनके पिता अहमद पटेल के सहयोगी माने जाते हैं। लेकिन यहां उनकी बात को रखने का मकसद सिर्फ यह दिखाना है कि गुजरात की राजनीति में विकास को स्वाभाविक रूप से स्वीकारा नहीं गया है। हालांकि अयूब यह भी मानते हैं कि फिलहाल राज्य में कांग्रेस के लिए कोई चारा नहीं है। वह मानते हैं कि कांग्रेस के पास मोदी के कद और हुनर का कोई दूसरा नेता नहीं है।
बातों-बातों में अयूब एक अफवाह को दुहरा कर उसे थोड़ी हवा ही देते हैं कि मोदी और पटेल के बीच एक आपसी समझ भी है जिसके तहत, पटेल गुजरात में मोदी को किसी तरह से कमजोर नहीं करना चाहेंगे क्योंकि वह (पटेल) दिल्ली में बने रहना चाहते हैं। हालांकि यह अफवाह है और इसमें शायद ही कोई सच्चाई हो, लेकिन क्या यह राज्य में भविष्य की राजनीति की ओर कुछ इशारा भी करता है?

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