लाजपत ने लूट लिया
जनसंपर्क ------------------ 10
मध्यप्रदेश बना
फर्जी प्रकाशनों का गढ़
भोपाल (साई)।
मध्यप्रदेश फर्जी प्रकाशनों का बड़ा केंद्र बन गया है। प्रदेश में करीब 27 हजार
पत्र-पत्रिकाएं पंजीकृत हैं। जिनमें से 18 हजार से ज्यादा को भारत के सामाचार पत्रों
के पंजीयक की ‘डी ब्लाक’ सूची में डालना पड़ा
है। अखबार और पत्रिकाएं निकालने के क्षेत्र में बड़ी संख्या में असामाजिक तत्वों ने
भी घुसपैठ कर ली है।
ऐसो लोग अपने काम
कराने या विज्ञापन या पैसा एंठने के लिए अधिकारियों दृकर्मचारियों को डराते धमकाते
हैं। उनके खिलाफ कबर छापने की धमकी देकर या इधर-उधर झूठी शिकायातें कर दबाव बनाने
की कोशिश करते हैं। हाल में गिरफ्तार अंतरराज्यीय गिरोह का मुखिया भी पत्रिका
निकालता था और उसमें अपे साथ नेताओं की फोटो छापता था।
मध्यप्रदेश
जनसंपर्क अधिकारी संघ ने मप्र के देश में बोगस पत्र-पत्रिकाओं के बड़े प्रकाशन
केंद्र के रूप में उभरने पर गंभीर चिंता जताई है। संघ के अध्यक्ष देवेंद्र जोशी ने
कहा कि इससे सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं का सहित और सही पत्रिकारिता की बड़ी क्षति हो
रही है। पत्र-पत्रिका निकालने के लिए पिछले दो साल में 1100 से ज्यादा शीर्षक
लिए गए।
जिनमें से 75 फीसद से अधिक
सिर्फ भोपाल स हैं। कई ऐसे लोग भी अखबार और पत्रिकाएं निकाल रहे हैं जिनके खिलाफ
अपराधिक मामले दर्ज हैं। ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो केवल अपने
निजी हित साधने के लिए पत्र-पत्रिका निकाल रहे हैं और जिनका पत्रकारिता से कोई
समानता नहीं है। ये गैर जिम्मेदार लोग किसी के भी खिलाफ कुछ भी छापते हैं। सो
पत्रकारिता के स्थापित मानदंड, आदर्श, मर्यादा और शालीनता का कोई मायने नहीं रखते।
इसलिए इनके बढ़ते प्रभाव से पत्रकार और लेखक भी प्रभावित हो रहे हैं।
गलत किस्म के लोग
राज्य सरकार की विज्ञापन नीति का भी दुरुपयोग कर जन धन हड़प रहे हैं। नई विज्ञापन
नीति में 50 फीसदी
प्रदर्शन विज्ञापन मझौले व छोटे पत्र-पत्रिकाओं को देने का प्रावधान किया गया है।
इसका बेजा फायदा उठाने के मकसद से आल्ट्रेशन पद्धति से छपते असली पत्र पत्रिकाओं
की बाढ़ आ गई है। इसकी रोकथाम करने वाले अधिकारियों को विज्ञापन देने को मजबूर करने
के लिए उनके खिलाफ गुमनाम पत्र जारी कर चरित्र हनन करने जैसे ओछे हथकंडे अपनाए जा
रहे हैं। विज्ञापन हासिल करने के लिए सरकारी अधिकारियों पर दबाव बनाने में ऐसे लोग
भी पीछे नहीं हैं। जिनका अखबार या पत्रिका कहीं नहीं बिकती और जो सिर्फ फाइल कापी
छापते हैं। ये लोग जनसंपर्क विभाग के विज्ञापन बजट का बड़ा हिस्सा हड़प जाते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें