शनिवार, 23 अप्रैल 2011

राडिया के उगलते राज से भोंचक्का है देश

नीरा राडिया मतलब लोकसेवकों और जनसेवकों की मास्टर चाबी

(लिमटी खरे)

नीरा राडिया यह नाम भारत गणतंत्र के मानचित्र पर धूमकेतू के मानिंद उभरा है। राडिया ने कम समय में ही जो कर दिखाया वह इक्कीसवीं सदी में सड़ी हुई भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है। इस व्यवस्था में जनसेवकों, लोकसेवकों, कार्पोरेट घरानों और मीडिया के घरानों की गठजोड़ को सहज ही समझा जा सकता है। जब से मीडिया की बागडोर कार्पोरेट घरानों और धनपतियों ने संभाली है तबसे प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ धनकुबेरों के घर की चौखट पर मुजरा करता नजर आ रहा है।
नीरा राडिया के टेप जब सार्वजनिक हुए तब एहसास हुआ कि सत्ता और भ्रष्ट तंत्र की सांठगांठ से ही देश का शासन चल रहा है। नीरा राडिया ने जिस तरह से कार्पोरेट घरानों और मीडिया मुगलों से बातचीत की है उससे समझा जा सकता है कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में सत्ता की धुरी आखिर किसके इर्द गिर्द घूम रही है। कमोबेश यही स्थिति ब्रिटेन में तब बनी थी जब पामेला बोर्डेस का प्रकरण सामने आया था।
लंदन निवासी नीरा राडिया महज एक लाख रूपए की पूंजी लेकर हिन्दुस्तान आई और कम समय में ही वह कारपोरेट धरानों के साथ ही साथ मीडिया मुगलों और जनसेवकांे की चहेती बन गई। वस्तुतः नीरा राडिया पहले नीरा शर्मा थीं, जो अपने विमानन क्षेत्र से जुड़े पिता के साथ लंदन चली गईं थीं। इसके बाद नीरा ने गुजराती मूल के एनआरआई जनक राडिया से विवाह किया। तीन बच्चों के होने के बाद इन दोनों की नहीं बनी और राडिया ने जनक से तलाक ले हिन्दुस्तान की ओर रूख किया।
ख्यातिलब्ध सहारा समूह के लिए लाईजनिंग (वर्तमान में दलाली को लोग इस नाम से जानने लगे हैं) का काम करने के उपरांत नीरा ने विमानन क्षेत्र से जुड़ी यूरोपीय कंपनियों के लिए काम किया। बताते हैं कि नीरा का सबसे अधिक दोहन टाटा समूह द्वारा किया गया है। नीरा को टाटा समूह से ही प्रतिवर्ष साठ करोड़ रूपए दिए जाते थे।
पौने दो लाख करोड़ रूपयों के टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया की भूमिका अहम रही है। सीबीआई की गवाही की फेहरिस्त में नीरा का नंबर 44वां है। नीरा पर आदिमत्थू राजा को मंत्री बनवाने के लिए चौसर बिछाने का आरोप है। नीरा के अलावा इस घोटाले में सालीसिटर जनरल गुलाम ई वाहनवती का मशविरा, यूनिटेक समूह के वरिष्ठ प्रबंधक कौशल नागपाल, यूनिटेक के एक अन्य आला अधिकारी मोहित गुप्ता, रिलयंस के ए.एन.सेतुरमन, आनंद सुब्रह्मण्यम, राजिंदर सिंघी, आशीष करीएकर, आशीष टंबावाला, विश्वनाथ देवराजा, अनंत राज ग्रुप के अमित सरीन, एतिस्लात के विनोद कुमार बुद्धिराजा, डीबी रियल्टी के विजेंद्र शर्मा, लूप मोबाईल के ए.एस.नारायणन आदि सीबीआई के निशाने पर हैं।
अब तक महिलाओं के जासूसी करने के कारनामों का भाण्डाफोड़ होता आया है। महिलाओं द्वारा अपनी अदाओं या त्रिया चरित्र में पुरूषों को फसाकर उनसे मनचाहा काम करवाया जाता रहा है। आदि अनादि काल से इस बात का उल्लेख मिलता आया है कि महिलाओं के माध्यम से ही राजाओं द्वारा अपने काम साधे जाते रहे हैं। रूपसी कन्याओं को विषकन्या में तब्दील कर दिया जाता था, जिनके माध्यम से विरोधियों का शमन किया जाता रहा है।
आश्चर्य तो तब होता है जब केंद्र सरकार के एक मंत्री द्वारा पौने दो लाख करोड़ रूपए (एक सामान्य आदमी इतने पैसे गिनने में आधी उमर लगा दे) का घोटाला किया गया हो और उसके साथी मंत्री (वर्तमान संचार मंत्री कपिल सिब्बल) उसके बचाव में आगे आएं। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस की बेशर्मी तो देखिए, कांग्रेस अपनी खाल के बचाव में कहती है कि इस मामले की जांच एनडीए शासनकाल से की जाएगी।
प्रश्न तो यह है कि आप जांच आजादी के उपरांत गठित संचार मंत्रालय के कार्यकाल से ही कर लें इस बात से आम जनता को क्या लेना देना? अगर भाजपा नीत राजग सरकार के कार्यकाल में घपले घोटाले हुए तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इस तरह एक राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे को घुड़की देना कहां तक न्याय और तर्क संगत माना जा सकता है। मतलब साफ है कांग्रेस भाजपा को दम दे रही है कि चुप रहो वरना हम तुम्हारे भी कपड़े उतार देंगे। जनता को सियासी दलों ने अंधी, बहरी और नासमझ ही समझा है।
नीरा राडिया टेप कांड में केंद्र सरकार के अनेक मंत्रियों के कपड़े उतरे हैं, किन्तु वे बेशर्मी के साथ आज भी सत्ता की मलाई चख रहे हैं। यह सब कुछ कांग्रेस और भाजपा के राज में ही संभव है। हो सकता है कि आने वाले दिनों के लिए मीडिया मुगलों ने कुछ और टेप या सबूत जुटा रखे हों जिन्हें माकूल वक्त पर उजागर किया जाए, तब न जाने कितनी नीरा राडियाएं, देश के भ्रष्ट जनसेवकों, लोकसेवकों, मीडिया मुगलों, कार्पोरेट घरानों को नग्न करेंगी। पर इससे देश के नीति निर्धारकों को क्या लेना देना, यह सब तो हमाम में ही चल रहा है और पुरानी कहावत है -हमाम में सब नंगे हैं।‘‘

दरकता दिख रहा है गांधी परिवार का दुर्ग

0 मिशन 2012 के लिए

कांग्रेसियों के लिए खुले किले के दरवाजे!

अमेठी रायबरेली में दी आला कांग्रेसियों ने आमद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। नेहरू गांधी परिवार के अभैद्य गढ़ अमेठी और रायबरेली में अब नेहरू गांधी परिवार से इतर आला नेताओं की आमद बढ़ने से सियासी हल्कों में गहमा गहमी बढ़ गई है। दशकों बाद इन क्षेत्र में पार्टी के प्रादेशिक नेताओं ने कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद किया है, जिससे लगने लगा है कि गांधी परिवार का गढ़ दरक रहा है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय मुख्यालय मंे चल रही बयार के मुताबिक भले ही कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी समूचे देश में कांग्रेस को मजबूत करने का जतन कर रहे हों पर उनके संसदीय क्षेत्र अमेठी और रायबरेली में सूबे की निजाम मायावती ने संेध लगा ही दी है।
गौरतलब है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपने संसदीय क्षेत्र में पार्टी के दीगर नेताओं की जरूरत कभी महसूस नहीं की है। यही कारण है कि अमेठी और रायबरेली में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वढ़ेरा के अलावा और कोई नेता घुस नहीं पाया है। सालों बाद यह मौका आया है कि पार्टी के अन्य नेता इस क्षेत्र का दौरा कर पाए हों।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यूपी मिशन 2012 को देखते हुए सोनिया और राहुल ने पार्टी के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं को अपने संसदीय क्षेत्र भेजकर सीधा संवाद करने को कहा है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने जगदीशपुर जाकर स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा अधिग्रहित मालविका स्टील के सेल कारखाने का निरीक्षण किया वरन् कार्यकर्ताआंे से सीधा संवाद भी किया है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि गौरी गंज में राजबब्बर, अमेठी में प्रमोद तिवारी, सरेसर में सड़क दुर्घटना में पीड़ितों का जिम्मा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन को गौरीगंज का जिम्मा सौंपा गया था। उल्लेखनीय होगा कि सालों से अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्र में जनसभाओं को संबोधित करने का काम खुद राहुल या सोनिया गांधी द्वारा किया जाता रहा है। चुनाव के दरम्यान इसकी कमान प्रियंका वढ़ेरा खुद संभालती हैं। हाल ही में आए इस परिवर्तन से कार्यकर्ता हतप्रभ हैं। कार्यकर्ताओं में चल रही चर्चाओं के अनुसार मायावती के भय से अब राजमाता और युवराज दोनों ही पार्टी के दीगर नेताओं पर भरोसा जता रहे हैं।

अवैध तौर पर संचालित सायबर कैफे पर कसेगी लगाम

सायबर कैफे में अब फोटो जरूरी

दो लाख सायबर कैफे में होगी यह व्यवस्था लागू

नई दिल्ली (ब्यूरो)। सायबर क्राईम पर लगाम लगाने के लिए अब सरकार कड़े कदम उठाने जा रही है। मई माह से इंटरनेट कैफे में नेट सर्फिंग के लिए फोटो युक्त पहचान पत्र के अलावा उपयोगकर्ता का एक फोटो भी वेब केमरे से खीचना अनिवार्य किया जा सकता है।
केंद्रीय सूचना और प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने इस तारतम्य में कड़े नियम बना दिए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति सायबर कैफे जाकर इंटरनेट का प्रयोग करता है तो उसे अपने साथ फोटो वाला आई डी रखना अनिवार्य होगा। कैफे के संचालक की यह जवाबदारी होगी कि वह उपयोगकर्ता का एक फोटो खीचकर रखे।
गौरतलब है कि आपराधिक मामले, विशेषकर धमकी भरे ईमेल, आतंकी हमलों के ईमेल, धोखाधड़ी, छेड़छाड़, बालाओं की फोटो में छेड़खानी कर उसे अश्लील बनाकर नेट पर परोसने के अनेकानेक मामले सामने आने पर केद्र सरकार ने सख्ती बरतने का मन बनाया है। नए नियमों के अनुसार सभी इंटरनेट पार्लर का पंजीयन आवश्यक कर दिया गया है। एक अनुमान के अनुसार देश में वर्तमान में लगभग दो लाख सायबर कैफे संचालित हो रहे हैं, जिसमें पंजीयन की अनिवार्यता नहीं है।

रूपए का हुआ दो सौ गुना अवमूल्यन!

रूपए का हुआ दो सौ गुना अवमूल्यन!

पचास हजार नहीं अब एक करोड़ के ट्रांजेक्शन पर होगी सरकार की नजर

नई दिल्ली (ब्यूरो)। रूपए का मूल्य दिनों दिन गिरता जा रहा है किन्तु अगर वह दो सौ गुना गिर जाए तो यह निश्चित तौर पर चिंताजनक बात ही है। केंद्र सरकार ने बैंक की उन 1100 शाखाओं को चिन्हित किया है जहां एक करोड़ से ज्यादा का लेनदेन रोजाना होता है।
गौरतलब है कि अब तक पचास हजार रूपए तक के लेनदेन की सूचना बैंक द्वारा वित्तीय जांच ब्यूरो को भेजी जाती है। कहा जा रहा है कि पचास हजार रूपए से ज्यादा लेन देन की सूचनाएं इतनी तादाद में मिलने लगी हैं कि अब उनकी तकनीकि समीक्षा आसान नहीं है।
कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में बैंकों को केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) नियम का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए जाएंगे। इसके लिए हर दिन के लेन देन पर वित्तीय जांच एजेंसियों की बारीक निगाहें रहेंगी। एक नियमित अंतराल के बाद इसकी समीक्षा किया जाना भी प्रस्तावित है।
वित्त मंत्रालय के आला अफसरान का मनना है कि इस तरह की व्यवस्था से काले धन के स्त्रोत का पता लगाने में आसानी होगी।

गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है शीला की टेम्स

यम की बहन को यमलोक पहुंचाती शीला

कामन वेल्थ गेम्स बीत गए पर टेम्स नहीं बन पाई यमुना

(लिमटी खरे)

कभी देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की शान हुआ करने वाली कल कल बहने वाली यमुना नदी पिछले दो तीन दशकों से गंदे और बदबूदार नाले मंे तब्दील होकर रह गई है। विडम्बना यह है कि दिल्ली में केंद्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे सारी वर्जनाएं तोड़ने वाले प्रदूषण ने यम की बहन समझी जाने वाली यमुना नदी का गला घोंटकर रख दिया है। देश में न्यायपालिका के स्पष्ट निर्देशों का माखौल उड़ाना कोई कांग्रेस से सीखे तभी तो कांग्रेस नीत केंद्र और राज्य सरकर इस मामले में मौन साधे बैठी है।
यमनोत्री से छोटी सी धारा के रूप में प्रकट हुई यमुना नदी इलाहाबाद के संगम तक 1375 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती है। दिल्ली आने के पहले स्वच्छ और निर्मल जल को अपने दामन में समेटने वाली जीवनदायनी पुण्य सलिला यमुना दिल्ली के बाद बुरी तरह प्रदूषित हो जाती है। यमुना के प्रदूषण में दिल्ली की भागीदारी अससी फीसदी से अधिक है। वजीराबाद से औखला बैराज तक का महज 22 किलोमीटर का सफर करने के दरम्यान यमुना सबसे अधिक गंदी हो जाती है।
यमुना नदी के साथ सनातन धर्मावलंबियों की अगाध श्रृद्धा जगजाहिर है। भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं और कथाएं यमुना के वर्णन के बिना अधूरी ही प्रतीत होती हैं। यमुना का नाम लेते ही भगवान श्री कृष्ण और कालिया नाग की कथा का प्रसंग जीवंत हो उठता है। कहते हैं कि कालिया मर्दन के उपरांत ही कालिया नाग के जहर के चलते मथुरा के बाद यमुना नदी ने श्याम वर्ण ओढ़ लिया था। यद्यपि भगवान कन्हैया की की लीलाओं के चलते यह जहर किसी के लिए प्राणधातक नहीं बन सका था। वहीं दूसरी ओर राजधानी दिल्ली में राजनैतिक संरक्षण प्राप्त कालिया नागों (औद्योगिक और अन्य प्रदूषण) से जीवनदायनी पुण्य सलिला दिल्ली से ही जहरीली होकर श्याम के बजाए काला रूप धारण कर आगे बढ़ रही है।
कभी यमुना नदी दिल्ली की जीवन रेखा के तौर पर देखी जाती थी। समय बदला, विकास के पैमाने बदले, लोगों के निहित स्वार्थों के आगे सारी बातें गौढ़ हो गईं और परिणामस्वरूप कालांतर में यमुना का गला घोंट दिया गया। पिछले डेढ़ दशकों में यमुना सिर्फ और सिर्फ बारिश के मौसम में बहा करती है। शेष समय यह राजधानी के जहरीले रसायनों, गंदगी और प्रदूषित सामग्री की संवाहक बनकर रह गई है।
यमुना में मुर्दों के अवशेष, कल कारखानों का जहरीला विष्ट, अपशिष्ट, जल मल निकासी का गंदा पानी और हर साल लगभग तीन हजार प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल इस नदी में तकरीबन बीस हजार लिटर रंग घुल जाता है।
देश में पानी की संवाहक बड़ी नदियों में शामिल चंबल तक में यमुना का कचरा और जहर जाकर मिलने से पर्यावरणविदों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक आई हैं। 2008 में चंबल में विलुप्त प्रजाति के आठ दर्जन से अधिक घडियालों के मरने के पीछे भी यमुना को ही परोक्ष तौर पर जिम्मेवार ठहराया गया था।
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय (एनआरसीडी) और दिल्ली स्थित सेंअर फॉर साईंस एण्ड एनवारयरमेंट का प्रतिवेदन विरोधाभासी ही है। एनआसीडी का कहना है कि 160 शहरों से होकर गुजरने वाली 34 नदियां साफ हो चुकी हैं, पर प्रतिवेदन कहता है कि नदियां पहले से ज्यादा प्रदूषित हो चुकी हैं। एनआरसीपी ने यमुना कार्य योजना 1993 मंे आरंभ की थी। 2009 में इसकी सफाई का बजट रखा था 1356 करोड़ रूपए। यमुना के वर्तमान हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि यह पैसा भी गंदे नाले में ही बह गया है।
इलाहाबाद के संगम से डेढ़ माह पहले आरंभ हुई यात्रा भी दिल्ली पहुंच गई है। साधु संतों के साथ ही साथ जागरूक लोगों ने इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है। इनकी मांग है कि यमुना नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित किया जाए, इसे प्रदूषण से मुक्त रखने और यमुना बेसिन प्राधिकरण का गठन किया जाए। डर तो इस बात का है कि इन लोगों की यह अच्छी मुहिम कहीं निरंकुश तानाशाह शासकों के दरबार में नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित न हो जाए।
उधर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 2009 में कहा था कि यमुना एक्शन प्लाए एक और दो के तहत 2800 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं किन्तु ठोस तकनीक के न होने से वांछित परिणाम सामने नहीं आ सके हैं। हम शीला दीक्षित को स्मरण दिलाना चाहते हैं कि जो कुछ हुआ है वह खर्च उन्हीं के शासनकाल में हुआ है। शीला दीक्षित को क्या हक बनता है कि वे बिना किसी परिणाम मूलक काम और ठोस तकनीक के जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को पानी में बहा दें। इस कदर पैसे के अपव्यय करने वालों के खिलाफ जनता के धन के आपराधिक दुरूपयोग का मामला चलाया जाना चाहिए।
राष्ट्र मण्डल खेलों के पहले शीला दीक्षित ने कहा था कि खेलों के आयोजन के पूर्व यमुना के स्वरूप को निखारा जाएगा। खेल हुए सात माह का समय बीत चुका है पर यमुना अपने असली बदबूदार सड़ांध मारते स्वरूप में ही है। शीला दीक्षित ने कहा था कि यमुना को टेम्स नहीं बनाया जा सकता है। निश्चित तौर पर गोरे ब्रितानियों के लिए लंदन की टेम्स नदी गर्व का विषय हो सकती है, किन्तु जून 2009 में हमने यही लिखा था कि ‘‘यमुना को टेम्स नहीं यमुना ही बने रहने दीजिए शीला जी।‘‘
पिछले दिनों पर्यावरण के कथित तौर पर हिमायती और पायोनियर बने वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि जमीनी हालातों के मद्देनजर 2015 तक यमुना को प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सकता है। जब एक केंद्र मंे मंत्री जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठे किसी जनसेवक का यह मानना हो तब तो यह माना जा सकता है कि आने वाले दशकों में भी यमुना का पुर्नुरूद्धार संभव नहीं है।
लंदन की टेम्स नदी के इतिहास पर अगर नजर डाली जाए तो उसकी हालत भी सालों पहले दिल्ली की यमुना के मानिंद ही थी। हालात इतने गंभीर थे कि इससे उठती दुर्गंध के चलते टेम्स तीरे स्थापित संसद को अन्यत्र स्थानांतरित करना पड़ा था। कालांतर में जनभागीदारी से आज टेम्स नदी लंदन के लोगों के लिए गर्व का विषय बन चुकी है।
सवाल यह है कि दिल्लीवासियों को आखिर कब तक इस तरह के संकटों से दो चार होना पड़ेगा। जब भी यमुना को पार किया जाता है तब बरबस ही दिल्ली वासी नाक पर रूमाल रखने पर मजबूर हो जाते हैं। ये हालात दो तीन दशकों में ही बने हैं, इसके पहले तो यमुना नदी का स्वरूप कुछ अलग ही था। इठलाती बलखाती यमुना सभी की प्यास बुझाया करती थी। दिल्ली वासियों की ओर से हम दिल्ली की निजाम शीला दीक्षित से यही गुजारिश करना चाहते हैं कि यमुना को टेम्स बनाने की कोशिश बेकार है, इसे अपने पुराना साफ सुथरे स्वरूप में ही ले आया जाए तो वह दिल्ली सहित देश पर शीला दीक्षित का एक बड़ा उपकार होगा।

अनेक ‘की पोस्ट‘ के लिए लाबिंग जारी

चटर्जी हैं सिरोही की राह में रोढ़ा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कैबनेट सचिव जैसे अहम पद के लिए रस्साकशी तेज हो गई है। इसके लिए मध्य प्रदेश काडर की अलका सिरोही का नाम सबसे उपर चल रहा है, वे इस पद पर काबिज होने वाली पहली महिला दावेदार हैं। उधर मलयाली लाबी इस पद के लिए अपनी जोड़ तोड़ में लग गई है। अलका सिरोही की राह में सोनिया गांधी के सचिव रहे यूपी काडर के पुलक चटर्जी रोढ़ा बनते नजर आ रहे हैं।
पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि वैसे तो प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की तमन्ना है कि कैबनेट सचिव की कुसी्र पर भारतीय प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी को ही पदस्थ किया जाए किन्तु संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के सचिव रहे वर्तमान में प्रधानमंत्री कार्यालय के सचिव पुलक चटर्जी के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का दबाव बढ़ता जा रहा है। गौरतलब है कि चटर्जी बाद में सोनिया की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में अतिरिक्त सचिव भी रहे हैं।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार कैबनेट सचिव पद पर पुलक चटर्जी की ताजपोशी तय है। उधर महासचिव राजा दिग्जिवय सिंह अलका सिरोही के लिए पूरा जतन कर रहे हैं।
कार्मिक मंत्रालय (डीओपीटी) के सूत्रों का कहना है कि पुलक चटर्जी की इस पद पर नियुक्ति के लिए नियमों को शिथिल करना अनिवार्य होगा। चटर्जी से वरिष्ठ अधिकारियों बिहार काडर के प्रकाश केशव, अनूप मुखर्जी, यूपी के अजीत सेठ, राजस्थन काडर के अभिमन्यु सिंह, एमपी काडर की अलका सिरोही, के.एम.आचार्य और हरियाणा काडर के विवेक मलहोत्रा को नजर अंदाज करना आसान नहीं होगा।
इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण पदों के लिए भी चौसर बिछना आरंभ हो गया है। गृह सचिव के पद पर विराजमान 1972 बैच के आईएएस गोपाल कृष्ण पिल्ले 30 जून को सेवानिवृत हो रहे हैं। रक्षा सचिव प्रदीप कुमार जुलाई में रिटायर हो रहे हैं तो महिला विदेश सचिव श्रीमति निरूपमा राव भी जुलाई में ही सेवानिवृत हो रही हैं। इन पदों पर अपने कारिंदों को बिठाने राजनेता भी सक्रिय होते नजर आ रहे हैं।

विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को लेकर सीबीएसई संजीदा

विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को लेकर सीबीएसई संजीदा
नई दिल्ली (ब्यूरो)। विद्यार्थियों की हेल्थ पर जल्द ही केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ध्यान देने जा रहा है। सीबीएसई ने विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए कार्ययोजना को अंतिम रूप देना आरंभ कर दिया है। बच्चों की शारीरिक क्षमता के विकास के लिए सीबीएसई ने अनेक योजनाएं लाने का मन बना लिया है।
सीबीएसई के सूत्रों का कहना है कि बोर्ड ने अनेक व्यवसायिक पाठ्यक्रमों को लाने की योजना बनाई है। इसके लिए बोर्ड ने शालाओं को हिदायत दी है कि उन्हे सत्र मंे दो मर्तबा फिजीकल ओरिएंटेशन प्रोग्राम आयोजित कराने ही होंगे। इसके लिए शाला किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्था के साथ समझौता कर सकती है।
सीबीएसई द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि इन कोर्स की स्वीकृति सकूल अपने विवेक से दे सकता है। लेकिन कुछ कोर्स में शाला प्रबंधन को अपनी शाला में जमीन मुहैया कराना अनिवार्य होगा। साथ ही जो शाला अपने यहां स्वास्थ्य या गेम्स में वोकेशनल कोर्स चलाना चाहते हैं उन्हें अपनी शाला प्रांगण में जिम की स्थायी या वैकल्पिक व्यवस्था करना अनिवार्य होगा।

बर्निंग ट्रेन के यात्रियों को मौके पर मिले पांच पांच हजार

मदाम की खातिर मौके पर पहंुच मुआवजा बांटा अधिकारियों ने

नई दिल्ली (ब्यूरो)। मुंबई से दिल्ली आ रही राजधानी एक्सप्रेस में मध्य प्रदेश के पास रतलाम में लगी आग के बाद जिस मुस्तैदी से रेल अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर मुआवजा बांटा वह किसी के गले नहीं उतर पा रहा है। लोग इसे पश्चिम बंगाल के चुनावों में ममता बनर्जी की दरियादिल छवि बनाने से जोड़कर देख रहे हैं।
रेल्वे के इतिहास में शायद यह पहला ही मौका होगा जब रेल हादसे के बाद तत्काल आला अधिकारी मौके पर पहुंचे हों और यात्रियों को आर्थिक इमदाद मुहैया करवाई हो। लोगों का आश्चर्य तब हुआ जब प्लेटफार्म पर ही अधिकारी लाखों रूपए लेकर पहुंचे और यात्रियों को नकद पैसे बांट दिए गए। गौरतलब है कि पिछले माह बरेली में रेल की छत पर बैठे 19 परीक्षार्थियों की मौत के बाद न तो रेल प्रशासन और न ही ममता बनर्जी ने ही इसकी कोई सुध ली थी।
रेल विभाग के एक आला अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि रेल मंत्री ममता बनर्जी को जैसे ही इस बात की सूचना मिली उन्हांेने तत्काल अधिकारियों को पाबंद किया कि वे जाकर मुआवजा बांटें। ममता नही चाहती थीं कि एन चुनाव के वक्त वामपंथियों के हाथ कोई मुद्दा लगे।

इतिहास, संस्कृति और गौरव को सहेजे गिरजाघर

0 गुड फ्राईडे पर विशेष

इतिहास, संस्कृति और गौरव को सहेजे गिरजाघर

(लिमटी खरे)

गंगा जमुनी तहबीज वाले भारत वर्ष में हर वर्ग हर मजहब, हर संप्रदाय को मानने वालों की कमी नहीं है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक देश में मसीही समाज के इबादत गाह अपने अंदर इतिहास, संस्कृति, प्राचीन नायाब वास्तुशिल्प और निर्माण शैली आदि को सहेजे हुए हैं। मसीही समाज के अलावा अन्य संप्रदाय के लोग भी इन गिरजाघरों में जाकर पूजन अर्चन कर पुण्य लाभ कमाने से नहीं चूकते हैं।
पुर्तगालियों ने देश में गोथिक और बारोक शैली में चर्च निर्मित करवाए। वहीं दूसरी ओर ब्रितानियों ने यूरोपियन और अमरीकी शैली में इनका निर्माण किया। कैथोलिक चर्च के अंदर भव्यता और उन्हें अलंकृत करने का शुमार रहा तो प्रोटेस्टेंट चर्च की बनावट काफी हद तक सादी है। शैली चाहे जो रही हो पर एक बात तो तय है कि आज ये सभी इबादतगाह देश के लिए गौरवशाली धरोहर से कम नहीं हैं।
धर्म निरपेक्ष भारत गणराज्य में आदि अनादि काल से सभी धर्मों का आदर करने की परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है। यही कारण है कि भारत में हर धर्म के तीज त्यौहारों को पूरे उल्लास के साथ मनाने की परंपरा का निर्वहन हो रहा है। देश के अनेक गिरजाघरों की आंतरिक साज सज्जा, नायाब वास्तुकला, इतिहास और एतिहासिकता भारत ही नहीं वरन समूचे विश्व में विख्यात है। आईए देश के कुछ चर्च के बारे में आपको जानकारी से लवरेज करें:-

केरल

माना जाता है कि मसीही समाज या ईसाई धर्म का आगमन भारत में केरल से हुआ था। ईसा के शिष्ष्य थॉमस के आने के बाद यहां गिरजाघरों की स्थापना का काम आरंभ हुआ। केरल के चर्च की छटा अपने आप में अनूठी ही है। केरल में त्रिचूर का अवर लेडी ऑफ लोरडस चर्च की चर्चाएं न केवल हिन्दुस्तान वरन् समूचे विश्व में होती हैं। इस विशालतम चर्च की आंतरिक साज सज्जा और वास्तुशिल्प अकल्पनीय ही कहा जा सकता है। इसी तरह यहां कोच्ची के 52 किलोमीटर दूर मयलातूर हिल्स पर स्थापित कैथोलिक चर्च अपने आप में अद्वितीय माना जाता है। धारणा है कि इस चर्च की स्थापना स्वयं सेंट थॉमस द्वारा करवाई गई थी।

दिल्ली

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में मसीही समाज के इबादतघरों की कमी नहीं है। यहां अनेक एतिहासिक चर्च मौजूद हैं जो आज भी दमक रहे हैं। कहा जाता है कि दिल्ली में चांदनी चौक स्थित सेंट्रल बेपटिस्ट चर्च प्राचीनतम चर्च है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें यूरोपियन और मुगल कालीन शैली का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। दिल्ली का दूसरे नंबर का प्राचीनतम चर्च कश्मीरी गेट पर अंतर्राट्रीय बस अड्डे के पास बना सेंट जेम्स चर्च है। इसके अलावा दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति के आवास के निकट स्थापित कैथेड्रल चर्च जिसे वाईसराय चर्च भी कहते हैं की खूबसूरती देखते ही बनती है। गोल डाकघर के पास कैथेड्रल ऑफ द सेकेंड हार्ट चर्च भी दर्शनीय है। इन सभी चर्चों की शोभा तब निखर जाती है जब ईसामसीह के जन्म दिन क्रिसमस पर इन्हें दिल से सजाया जाता है।

हिमाचल प्रदेश

भारत की देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में मसीही समाज के पूजाघरों की छटा अपने आप में अनोखी ही मानी जाती है। पर्वतों पर बसे शिमला के माल रोड़ पर स्थित क्राईस्ट चर्च की चर्चा के बिना देवभूमि के चर्च अधूरे ही हैं। गोरे ब्रितानियों के राज में ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी शिमला। बताते हैं कि इस चर्च का निर्माण 1858 मंे कराया गया था। इसके स्टेंड ग्लास विंडोज की भव्यता और सुंदरता आज भी उसी तरह है जैसी कि निर्माण के वक्त हुआ करती थी। शिमला का सेंट माईकल्स चर्च भी लुभावना ही है। लार्ड डलहौजी द्वारा बसाए गए डलहौजी सुभाष चौक में सेंट फ्रांसिस कैथोलिक चर्च, गांधी चौक पर सेंट जॉन चर्च सहित यहां चार चर्च हैं। कहा जाता है कि सैंट जॉन चर्च की बनावट इंग्लैण्ड के कैथोलिक चर्च ऑफ इंग्लैण्ड की भांति ही है।
0 गोवा
पर्याटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण गोवा में अनेक एतिहासिक चर्च मौजूद हैं। इनमें से अनेक चर्च तो आज यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में पंजीबद्ध हैं। गोवा में ‘से-कैथेड्रल‘ आकार में सबसे बड़ा चर्च है। पुर्तगाली गोथिक शैली में बने इस चर्च की भव्य इमारत गोवा की सबसे बड़ी गिरजाघर घंटी जिसे गोल्डन बेल कहा जाता है स्थापित है। यहां का चर्च ऑफ सैंट फ्रांसिस एसिसी, सैंट फ्रांसिस को पूरी तरह समर्पित है। यहां लकड़ी पर उकेरी गई काष्ठकला और भित्ती चित्र वाकई में दर्शनीय हैं। गोवा का बासिलिका ऑफ बॉम जीसस चर्च तो रोमन कैथोलिक जगत में अपना अहम स्थान रखता है। इसमें सेंट फ्रांसिस स्मारक में उनकी ममी आज भी संरक्षित है। 1605 में निर्मित इस चर्च में उनके जीवन के प्रसंगों को भित्ति चित्रों के माध्यम से जीवंत करने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा गोवा में चर्च ऑफ सेंट मोनिका, चैपल ऑफ सैंट एंथोनी भी नायाब हैं।

तमिलनाडू

तमिलनाडू में ईसाई समाज के इबादतघरों की कमी नहीं है। तमिलनाडू के तंजावुर जिले की वेलांकन्नी चर्च को इसाईयों का प्रसिद्ध तीर्थ माना जाता है। यहां वर्जिन मेरीको आरोग्य माताके रूप में माना जाता है। माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों श्रृद्धालुओं के रोग दूर करने की चमत्कारी शक्तियां मौजूद हैं। यहां प्रार्थना करने पर कष्टों का निवारण अपने आप ही हो जाता है। इसका 92 फीट उंचा शिखर दूर से ही लोगों को लुभाता है। चेन्नई में सैंट थॉमस माउंट चर्च का अपना अलग ही महत्व है। इस चर्च का उल्लेख 13वीं शताब्दी में मार्कोपोलो के संस्मरणों में भी मिलता है। इस स्थान पर ईसा मसीह के शिष्य फिलिस्तीनी सेंट थामस ने देह त्यागी थी। इसके बाद 1893 में इस चर्च का पुर्ननिर्माण निओगोथिक शैली में हुआ था।

उत्तर प्रदेश

देश को सबसे अधिक वजीरेआजम देने वाले उत्तर प्रदेश सूबा अपने दामन में अनेक चर्च समेटे हुए है। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को अपने आप में सहेजने वाले मेरठ शहर में बेगम समरू द्वारा बनवाए गए चर्च को देखे बिना उत्तर प्रदेश की यात्रा अधूरी ही समझी जा सकती है। सरघना स्थित कैथोलिक चर्च को बेगम समरू का चर्च भी कहा जाता है। 1822 में निर्मित इस चर्च की विशेषता यह है कि एक मुस्लिम महिला बेगम समरू ने इसका निर्माण करवाया था। उनका विवाह वाल्टर रहेंहार्ट से हुआ तब उन्होंने ईसाई धर्म को अंगीकार कर लिया था। इसके अलावा कानपुर और लखनउ का क्राईस्ट चर्च, इलाहाबाद का कैथेड्रल चर्च अपने आप में भव्यता लिए हुए है।

पुड्डुचेरी

पुड्डुचेरी में अनेकानेक चर्च हैं। फ्रेंच इंडो संस्कृति के मिले जुले स्वरूप को देखकर सैलानी आकर्षित हुए बिना नहीं रहते हैं। चर्च ऑफ सेक्रेड हार्ट ऑफ जीसस, चर्च ऑफ अवर लेडी ऑफ इमेक्युलेट कंसेप्शन, चर्च ऑफ द लेडी ऑफ एंजल्स आदि पुमुख चर्च हैं जो यूरोपीय शैली में निर्मित हैं।

गिलानी को दिए भोज का न्योता ही नहीं मिला नेता प्रतिपक्ष को!

सुषमा को कांग्रेस का करारा जवाब!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा सदस्य एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रवैए से कांग्रेसनीत संप्रग सरकार खासी खफा नजर आ रही है। सीवीसी मामले में बखिया उधेड़ने वाली प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज को कांग्रेस के प्रबंधकों की सलाह पर सरकार ने नजर अंदाज करना आरंभ कर दिया है। इसी कड़ी में पाकिस्तान के वजीरेआजम को प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए रात्रि भोज के मेन्यू में से स्वराज का नाम ही गायब कर दिया गया था।
पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि पाक प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी के सम्मान में भारत के प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह द्वारा रात्रि भोज का आयोजन किया गया था। इस भोज में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी, बीसीसीआई के शशांक मनोहर और राजीव शुक्ला यहां तक कि सोनिया के दमाद राबर्ट वढ़ेरा तक आमंत्रित थे। इस भोज का न्योता नहीं भेजा गया तो बस लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज को।
वैसे देखा जाए तो प्रोटोकाल के तहत जब भी कोई विदेशी प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आता है और उसके सम्मान में दोपहर या रात्रि का भोज आयोजित होता है तो उसमें लोस के नेता प्रतिपक्ष को बिना भूले बुलावा भेजा जाता है। लोगों को आश्चर्य इस बात पर हो रहा है कि इसमें सुषमा को आमंत्रण क्यों नहीं भेजा गया?
माना जा रहा है कि सरकार की बखिया उधेड़ने पर आमदा सुषमा स्वराज को कांग्रेस का यह करारा जवाब था। भाजपा के हाथ यह एक अचूक अस्त्र लगा है जिसका उपयोग वह बखूबी कर कांग्रेस से यह पूछ सकती है कि आखिर क्या वजह थी कि इस भोज में कांग्रेस, सरकार और बीसीसीआई ने सुषमा स्वराज को आमंत्रित करना मुनासिब नहीं समझा।

रेडिएशन से मानव शरीर पर पड़ रहे हैं दुष्प्रभाव

बताना होगा - क्या है मोबाईल का रेडिएशन स्तर

सरकार जल्द जारी कर सकती है दिशा निर्देश

नई दिल्ली (ब्यूरो)। सरकार जल्द ही एसे दिशा निर्देश जारी कर सकती है जिसके तहत मोबाईल हेण्ड सेट पर रेडिएशन कितना हो रहा है इस बात का उल्लेख करना आवश्यक हो जाए। गौरतलब है कि मोबाईल हेण्ड सेट से निकलने वाली रेडियो तरंगों से मनुष्य को होने वाले नुकसान पर पिछले कई दिनों से बहस जारी है, सरकार इस बारे में संजीदा होती दिख रही है।
केंद्रीय संचार मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मोबाईल हेण्डसेट रेडिएशन रेट यानी सार का स्तर क्या है इस बारे में मोबाईल उपकरण उत्पादक को बताना अनिवार्य किया जा रहा है। सूत्रों का यह भी कहना है कि 2 वाट प्रति किलोग्राम की निर्धारित दर से अधिक के रेडिएशन वाले उपकरणों को प्रतिबंधित की श्रेणी में लाकर खड़ा किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार मोबाईल उपकरण निर्माता कंपनी और सरकार के बीच इस मामले में अनेक दौर की बातचीत हो चुकी है।े