कण कण में बसा है भ्रष्टाचार
(लिमटी खरे)
अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, जबकि भ्रष्टाचार को एक गंभीर बुराई के तौर पर देखा जाता था। सत्तक के दशक के पूर्वार्ध में हर एक सरकारी कार्यालय में ``घूस लेना और देना पाप है, घूस देने वाला और लेने वाला दोनों ही पाप के भागी हैं।`` जुमले की तिख्तयां लगी होती थीं।
अस्सी के दशक के आगाज के साथ ही हिन्दुस्तान को भ्रष्टाचार नाम के एक जानलेवा केंसर ने अपने आगोश में ले लिया है। विडम्बना यह है कि इस बीमारी का इलाज करने वाले खुद इस बीमारी की चपेट में आकर अंतिम स्टेज के केंसर की स्थिति में हैं। इनकी स्थिति हिन्दी चलचित्र के उस दृश्य में समझी जा सकती है, जब मरीज को देखकर डाक्टर यह कह उठता अब दवा नहीं दुआ की जरूरत है।
हिन्दुस्तान में तीन दशकों में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि अब देश की नींव ही खोखली होती प्रतीत हो रही है। देश के प्रधान न्यायधीश के.जी.बालकृष्णन ने एक संगोष्टी में भ्रष्टाचार पर न्यायपालिका की पीड़ा का इजहार कर ही दिया। यह सच है कि प्रजातंत्र के चारों स्तंभ इसकी जद में हैं।
सबसे अधिक आश्चर्य तो मीडिया की स्थिति पर होता है। सच को नंगा करने के ठोस इरादे के साथ प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ आखिर कहां जा रहा है, क्या कर रहा हैर्षोर्षो सच ही है, जबकि घराना पत्रकारिता का श्रीगणेश हुआ है, तब से मीडिया का स्वरूप बदला बदला सा दिखाई पड़ने लगा है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज मीडिया में संपादक पूरी तरह प्रबंधक की भूमिका में नजर आ रहे हैं। अपने निहित स्वार्थों की बलिवेदी पर वे सर्वस्व न्योछावर करने को आतुर प्रतीत हो रहे हैं। यह सच है कि देश की जनता आज भी मीडिया पर आंख बंद करके भरोसा करती है, पर इसके मायने यह तो नहीं कि किसी को बचाने के लिए हम इस स्तर तक गिर जाएं।
हमारी नैतिकता भी कोई चीज है। पर आज नैतिकता की बातें करना बेमानी ही होगा। एक मर्तबा हमने हमारे एक पत्रकार मित्र को यह मशविरा दिया था कि कलम को बेचने या गिरवी रखने से तो बेहतर होगा कि परचून की दुकान ही खोल ली जाए। पत्रकारिता के उद्देश्य और सिद्धांत आज स्वार्थों की चादर के नीचे पड़े बुरी तरह कराह रहे हैं।
हम प्रधान न्यायधीश के इस कथन का पुरजोर समर्थन करते हैं कि भ्रष्टाचार में दोषी ठहराए गए सरकारी कर्मचारी की अवैध संपत्ति को जप्त करने के लिए कानून बनना चाहिए। सरकारी कर्मचारी ही क्यों अगर किसी भी ``जनसेवक`` भले ही वह सांसद, विधायक या और किसी व्यवस्था का अंग हो, और अगर उस पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध होता है तो उसकी संपत्ति जप्त होना चाहिए।
प्रधान न्यायधीश के वक्तव्य के बाद देश के कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने भी संकेत दिया है कि जल्द ही संविधान की धारा 310 और 311 में आवश्यक संशोधन किया जाएगा। मोईली की इस पहल का चहुं ओर स्वागत किए जाने की आवश्यक्ता है। सरकारी नुमाईंदे आज इसी धारा की आड़ लेकर मौज कर रहे हैं।
दरअसल इस धारा के तहत किसी भी अधिकारी पर मुकदमा दायर करने के पहले संबंधित विभाग की अनुमति की आवश्यक्ता होती है। भ्रष्टाचार के सड़ांध मारते इस दलदल में अनुमति हेतु बनी फाईल न जाने किस कोने में धूल खाती फिरती है, यह बात सभी बेहतर तरीके से जानते हैं।
वैसे इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश आर.वी.रविंद्रन और बी.सुदर्शन रेड्डी की खण्डपीठ का एक आदेश नजीर बन सकता है, जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि ``जनसेवक अगर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का अपराध करता है, तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है। इस तरह के मामलात में कोर्ट बिना पूर्वानुमति के आरोप पत्र के आधार पर संज्ञान ले सकती है।``
भारतवर्ष में न्यायपालिका सर्वोच्च मानी गई है। पिछले दिनों सूचना के अधिकार की जद में न्यायपालिका को लाने की बात पर सर्वोच्च न्यायालय ने ही आपत्ति की थी। देश में भ्रष्टाचार छोटे मोटे रोग की तरह नहीं बल्कि लाईलाज केंसर की तरह पनप चुका है।हमारे विचार से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए पहला पत्थर राजनेताओ, अफसरान के बजाए न्यायपालिका को खुद ही मारना होगा। इसके लिए न्यायधीशों को विशेषाधिकार छोड़ने की पहल करना आवश्यक होगा। इसी से सबक लेकर बाकी व्यवस्था खुद ब खुद चुस्त दुरूस्त होने लगेगी।
आदि अनादि काल से कहा जाता रहा है कि ``कण कण में भगवान विराजते हैं`` आजाद भारत में यह उक्ति लागू होती है, किन्तु यहां ``कण कण में भ्रष्टाचार बसता है`` कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।
अस्सी के दशक के आगाज के साथ ही हिन्दुस्तान को भ्रष्टाचार नाम के एक जानलेवा केंसर ने अपने आगोश में ले लिया है। विडम्बना यह है कि इस बीमारी का इलाज करने वाले खुद इस बीमारी की चपेट में आकर अंतिम स्टेज के केंसर की स्थिति में हैं। इनकी स्थिति हिन्दी चलचित्र के उस दृश्य में समझी जा सकती है, जब मरीज को देखकर डाक्टर यह कह उठता अब दवा नहीं दुआ की जरूरत है।
हिन्दुस्तान में तीन दशकों में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि अब देश की नींव ही खोखली होती प्रतीत हो रही है। देश के प्रधान न्यायधीश के.जी.बालकृष्णन ने एक संगोष्टी में भ्रष्टाचार पर न्यायपालिका की पीड़ा का इजहार कर ही दिया। यह सच है कि प्रजातंत्र के चारों स्तंभ इसकी जद में हैं।
सबसे अधिक आश्चर्य तो मीडिया की स्थिति पर होता है। सच को नंगा करने के ठोस इरादे के साथ प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ आखिर कहां जा रहा है, क्या कर रहा हैर्षोर्षो सच ही है, जबकि घराना पत्रकारिता का श्रीगणेश हुआ है, तब से मीडिया का स्वरूप बदला बदला सा दिखाई पड़ने लगा है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज मीडिया में संपादक पूरी तरह प्रबंधक की भूमिका में नजर आ रहे हैं। अपने निहित स्वार्थों की बलिवेदी पर वे सर्वस्व न्योछावर करने को आतुर प्रतीत हो रहे हैं। यह सच है कि देश की जनता आज भी मीडिया पर आंख बंद करके भरोसा करती है, पर इसके मायने यह तो नहीं कि किसी को बचाने के लिए हम इस स्तर तक गिर जाएं।
हमारी नैतिकता भी कोई चीज है। पर आज नैतिकता की बातें करना बेमानी ही होगा। एक मर्तबा हमने हमारे एक पत्रकार मित्र को यह मशविरा दिया था कि कलम को बेचने या गिरवी रखने से तो बेहतर होगा कि परचून की दुकान ही खोल ली जाए। पत्रकारिता के उद्देश्य और सिद्धांत आज स्वार्थों की चादर के नीचे पड़े बुरी तरह कराह रहे हैं।
हम प्रधान न्यायधीश के इस कथन का पुरजोर समर्थन करते हैं कि भ्रष्टाचार में दोषी ठहराए गए सरकारी कर्मचारी की अवैध संपत्ति को जप्त करने के लिए कानून बनना चाहिए। सरकारी कर्मचारी ही क्यों अगर किसी भी ``जनसेवक`` भले ही वह सांसद, विधायक या और किसी व्यवस्था का अंग हो, और अगर उस पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध होता है तो उसकी संपत्ति जप्त होना चाहिए।
प्रधान न्यायधीश के वक्तव्य के बाद देश के कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने भी संकेत दिया है कि जल्द ही संविधान की धारा 310 और 311 में आवश्यक संशोधन किया जाएगा। मोईली की इस पहल का चहुं ओर स्वागत किए जाने की आवश्यक्ता है। सरकारी नुमाईंदे आज इसी धारा की आड़ लेकर मौज कर रहे हैं।
दरअसल इस धारा के तहत किसी भी अधिकारी पर मुकदमा दायर करने के पहले संबंधित विभाग की अनुमति की आवश्यक्ता होती है। भ्रष्टाचार के सड़ांध मारते इस दलदल में अनुमति हेतु बनी फाईल न जाने किस कोने में धूल खाती फिरती है, यह बात सभी बेहतर तरीके से जानते हैं।
वैसे इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश आर.वी.रविंद्रन और बी.सुदर्शन रेड्डी की खण्डपीठ का एक आदेश नजीर बन सकता है, जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि ``जनसेवक अगर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का अपराध करता है, तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है। इस तरह के मामलात में कोर्ट बिना पूर्वानुमति के आरोप पत्र के आधार पर संज्ञान ले सकती है।``
भारतवर्ष में न्यायपालिका सर्वोच्च मानी गई है। पिछले दिनों सूचना के अधिकार की जद में न्यायपालिका को लाने की बात पर सर्वोच्च न्यायालय ने ही आपत्ति की थी। देश में भ्रष्टाचार छोटे मोटे रोग की तरह नहीं बल्कि लाईलाज केंसर की तरह पनप चुका है।हमारे विचार से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए पहला पत्थर राजनेताओ, अफसरान के बजाए न्यायपालिका को खुद ही मारना होगा। इसके लिए न्यायधीशों को विशेषाधिकार छोड़ने की पहल करना आवश्यक होगा। इसी से सबक लेकर बाकी व्यवस्था खुद ब खुद चुस्त दुरूस्त होने लगेगी।
आदि अनादि काल से कहा जाता रहा है कि ``कण कण में भगवान विराजते हैं`` आजाद भारत में यह उक्ति लागू होती है, किन्तु यहां ``कण कण में भ्रष्टाचार बसता है`` कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।
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आड़वाणी से कन्नी काटते भाजपाई
0 फर्नाडिस को बताया सदगी की प्रतिमूर्ति
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी से अब भाजपा के वरिष्ठ नेता ही कन्नी काटते नजर आ रहे हैं। मंदी के दौर में सादगी अपनाने की कांग्रेस द्वारा चलाई गई मुहिम में हर दल इसे अपने अपने तरीके से प्रस्तुत कर रहा है। हाल ही में भाजपा ने जार्ज फर्नाडिस को सादगी की प्रतिमूर्ति बताकर पार्टी मंच पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
विलासिता के आदी हो चुके जनसेवकों के बीच सादगी व कम खर्चे में सार्वजनिक तौर पर जीवन यापन करने को लेकर चल रहे आडम्बर को राजनैतिक दल अपने अपने तौर तरीकों से प्रस्तुत कर रहे हैं। देश के सबसे बड़े दूसरे दल भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडिस को सादगी पूर्वक जीवन यापन करने हेतु आदर्श बताया है।
कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा एकानामी क्लास एवं युवराज राहुल गांधी द्वारा रेल यात्रा के सवाल के जवाब में भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि जार्ज देश के एसे नेता हैं, जिन्होंने कभी भी रेल में प्रथम श्रेणी में यात्रा नहीं की है। उन्होंने कहा कि चूंकि राहुल और सोनिया पहली बार इस श्रेणी में यात्रा कर रहे हैं, इसलिए वे चर्चाओं में आए हैं। रही बात जार्ज की तो वे तो सदा ही एसा किया है, इसलिए वे चर्चाओं में नहीं हैं।
आम चुनावों में भाजपा के कथित लौह पुरूष लाल कृष्ण आड़वाणी के ``व्यक्तित्व`` को चुनावी मुद्दा बनाने वाली भाजपा के प्रवक्ता रूडी से जब यह पूछा गया कि क्या भाजपा के वर्तमान आर्दश लाल कृष्ण आड़वाणी भी सामान्य श्रेणी में यात्रा करेंगेर्षोर्षो इस प्रश्न को रूडी पूरी तरह टाल गए।
भाजपा में चल रही चर्चाओं के अनुसार एल.के.आड़वाणी का सूर्य अब अस्ताचल की ओर गमन करता प्रतीत हो रहा है। यही कारण है कि भाजपा नेता अब आड़वाणी से न केवल किनारा करने लगे हैं, वरन उनसे जुड़े सवालों में भी सफाई देने से कतराने लगे हैं। संघ और आड़वाणी के बीच लगातार चलती तकरारों से भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेता अंदाजा लगाकर अब माईनस आड़वाणी, नई रणनीति बनाने की जुगत में दिखाई पड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि जब आड़वाणी के व्यक्तित्व को ही मुद्दा बनाया गया था तो अब भी सादगी के लिए आड़वाणी के नाम का ही जप किया जाना चाहिए था, वस्तुत: एसा हुआ नहीं उनके बजाए समाजवादी नेता फर्नाडिस को ही सादगी की प्रतिमूर्ति बताया गया है।
विलासिता के आदी हो चुके जनसेवकों के बीच सादगी व कम खर्चे में सार्वजनिक तौर पर जीवन यापन करने को लेकर चल रहे आडम्बर को राजनैतिक दल अपने अपने तौर तरीकों से प्रस्तुत कर रहे हैं। देश के सबसे बड़े दूसरे दल भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडिस को सादगी पूर्वक जीवन यापन करने हेतु आदर्श बताया है।
कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा एकानामी क्लास एवं युवराज राहुल गांधी द्वारा रेल यात्रा के सवाल के जवाब में भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि जार्ज देश के एसे नेता हैं, जिन्होंने कभी भी रेल में प्रथम श्रेणी में यात्रा नहीं की है। उन्होंने कहा कि चूंकि राहुल और सोनिया पहली बार इस श्रेणी में यात्रा कर रहे हैं, इसलिए वे चर्चाओं में आए हैं। रही बात जार्ज की तो वे तो सदा ही एसा किया है, इसलिए वे चर्चाओं में नहीं हैं।
आम चुनावों में भाजपा के कथित लौह पुरूष लाल कृष्ण आड़वाणी के ``व्यक्तित्व`` को चुनावी मुद्दा बनाने वाली भाजपा के प्रवक्ता रूडी से जब यह पूछा गया कि क्या भाजपा के वर्तमान आर्दश लाल कृष्ण आड़वाणी भी सामान्य श्रेणी में यात्रा करेंगेर्षोर्षो इस प्रश्न को रूडी पूरी तरह टाल गए।
भाजपा में चल रही चर्चाओं के अनुसार एल.के.आड़वाणी का सूर्य अब अस्ताचल की ओर गमन करता प्रतीत हो रहा है। यही कारण है कि भाजपा नेता अब आड़वाणी से न केवल किनारा करने लगे हैं, वरन उनसे जुड़े सवालों में भी सफाई देने से कतराने लगे हैं। संघ और आड़वाणी के बीच लगातार चलती तकरारों से भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेता अंदाजा लगाकर अब माईनस आड़वाणी, नई रणनीति बनाने की जुगत में दिखाई पड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि जब आड़वाणी के व्यक्तित्व को ही मुद्दा बनाया गया था तो अब भी सादगी के लिए आड़वाणी के नाम का ही जप किया जाना चाहिए था, वस्तुत: एसा हुआ नहीं उनके बजाए समाजवादी नेता फर्नाडिस को ही सादगी की प्रतिमूर्ति बताया गया है।