शनिवार, 30 अप्रैल 2011

महज कानून बनाने से नहीं रूकने वाला उत्पीड़न चक्र

आदि अनादि काल से प्रताडि़त होती आईं हैं महिलाएं

कानून तो बहुतेरे पर इनका पालन नहीं है सुनिश्चित

(लिमटी खरे)

पुरानी कहावत है -‘‘. . ., गंवार, पशु और नारी, ये सब हैं ताड़न के अधिकारी।‘‘ इसमें नारी को शामिल किया गया है। एक तरफ तो नारी को माता का दर्जा देकर सबसे उपर रखा गया है, वहीं दूसरी ओर नारी को ही प्रताड़ना का अधिकारी बताया जाना कहां तक न्यायसंगत है। नारी के जिस स्वरूप को मनुष्य द्वारा मां के रूप में पूजा जाता है, वही नारी आखिर पत्नि या बहू के तौर पर प्रताडि़त करने की वस्तु क्यों बन जाती है।

सालों पहले एक पत्रकार द्वारा लिखा गया था -‘हमारे घरों की मां बहने जब सड़क पर निकला करती हैं तो वे दूसरों के लिए माल बन जाया करती हैं।‘ उस बात मे वाकई दम है। हमारा समाज अपने घरों की महिलाओं को छोड़कर जब दूसरे घरों की महिलाओं को देखता है तो मन में लड्डू फूटने लगते हैं मुंह से सीटी और सिसकारियां निकल जाती हैं, मन में कलुषित भावनाएं कुलाचें मारने लगती हैं।

भारत गणराज्य में नारियों की अस्मत को बचाने के लिए कानूनों की कमी नहीं है। हाल ही में राजस्थान सरकार द्वारा महिलाओं पर होने वाले अत्याचार रोकने के लिए कड़े कानून बनाने के लिए कुछ प्रावधान किए हैं, जिनका स्वागत होना चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में चहुं ओर महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की कमी नहीं है। कहीं दहेज के लिए बहू को जलाया जा रहा है, तो कहीं युवतियों तो छोडि़ए अबोध बालाओं का शील भंग किया जा रहा है, कहीं सरेआम रेल गाड़ी से महिला को फेंक दिया जाता है।

एसा नहीं है कि भारत गणराज्य में महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए कानूनों की कमी है। महिलाओं के हितों के लिए काननू अवश्य हैं किन्तु उनमें इतनी पोल हैं कि अपराधी सीखचों के पीछे जाने से सदा ही बच जाते हैं। देश के कमोबेश हर प्रदेश में महिलाएंे सुरक्षित नहीं कही जा सकती हैं। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली जहां पर कि खुद एक महिला तीसरी बार निजाम बनी हैं, उसी शीला दीक्षित के राज में महिलाओं की रोज होने वाली दुर्गत किसी से छिपी नहीं है।

देश भर में कार्य स्थलों में महिलाओं का यौन उत्पीड़न किसी से छिपा नहीं है। खुद मीडिया में ही महिलाओं की स्थिति क्या है यह बात सभी बेहतर जानते हैं। कहीं महिलाओं से बेगार करवाया जाता है, तो कहीं पुलिस थाने में ही महिला की अस्मत लूट ली जाती है, चैक चैराहों, मदिरालयों के इर्द गिर्द से गुजरने वाली महिलाओं को अश्लील फब्तियां कसी जाती हैं। कार्यालय में बाॅस अपनी महिला कर्मी को लांग ड्राईव पर ले जाने ख्वाईशमंद हुआ करते हैं। आजकल कार्पोरेट जगत में महिलाओं के योन उत्पीड़न के शब्दकोश में एक नया शब्द जुड गया है वह है ‘कापरेट करना‘ जिसका अर्थ अपने सीनियर्स की मनमानी को खामोश रहकर सहते हुए कापरेट करने से जोड़कर देखा जाता है।

राजस्थान सरकार ने वाकई एक नायाब पहल की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि महिलाओं के हितों के संवर्धन के लिए राजस्थान सरकार के प्रयास निश्चित तौर पर नजीर बनकर उभरेंगें। कहने को तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने अपने आप को सूबे के हर बच्चे का मामा घोषित किया है। अर्थात सबे की हर मां उनकी बहन है, किन्तु क्या शिवराज सिंह चैहान राजनैतिक चश्मा उतारकर सीने पर हाथ रखकर यह कहने का साहस कर पाएंगे कि उनके राज में महिलाएं सुरक्षित हैं, जवाब निश्चित तौर पर नकारात्मक ही होगा।

भारत अघोषित तौर पर पुरूष प्रधान देश माना जाता रहा है जहां पुरूषों का काम आजीविका कमाकर लाना और महिलाआंे का काम दो वक्त की रोटी बनाकर घर के काम काज करने के साथ ही साथ बच्चे पैदा करने की मशीन के तौर पर काम करने तक ही सीमित था। आधुनिकता के दौर में महिलाओं ने घरों की चैखट लांघ दी है। महिलाएं आज पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। एक तरफ तो सभ्य समाज होने का हम दंभ भरते हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं को प्रताडि़त कर इसी सभ्य समाज के पुरूष गौरवांवित हुए बिना नहीं रहते हैं।

इस देश की इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि जिस देश की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज हों उस देश में महिलाओं को अपने आप को सुरक्षित रखने के तरीके तलाशने पड़ रहे हों। जहां महिलाएं ही सर्वोच्च पदों पर आसीन हों वहां भी महिलाएं असुरक्षित हों तो निश्चित तौर पर व्यवस्था में कहीं न कहीं दीमक अवश्य ही लगा हुआ है।

राजस्थान सरकार ने कानून बनाने के प्रावधानों की पहल करके एक नई सुबह का आगाज किया है। ध्यान इस बात का रखा जाना चाहिए कि कानून बनकर एसे कानून की किताबों के सफांे पर ही कैद होकर न रह जाएं। इन्हें व्यवहारिक तौर पर लागू करना सुनिश्चित करना होगा। इसमें आवश्यक है कि कानून का पालन न करने वाले जिम्मेदार नौकरशाहों और कर्मचारियों को भी सजा के दायरे में लाना जरूरी है।

केंद्र सरकार को चाहिए कि इस संवेदनशील और गंभीर मसले पर राज्यों के साथ वह सर जोड़कर बैठे और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कार्ययोजना तैयार करे। इसके लिए इस बात को ध्यान में रखा जाना नितांत जरूरी है कि कानून एसे हों जिनका उल्लंघन करने पर व्यक्ति को समझ में आ जाए कि आखिर उसने कितना बड़ा जुर्म किया है। इससे और लोगों को नसीहत भी मिल सकेगी। इसके लिए मीडिया की भी यह जवाबदेही बनती है कि वह भी इस तरह सजा वाली खबरों को प्रमुखता से जनता के सामने लाए और महिलाओं का उत्पीड़न करने का मानस बनाने वालों के हौसले पस्त करे।

दहेज प्रताड़ना, हरिजन आदिवासी कानून की आड़ में निर्दोष लोगों को प्रताडि़त करने की खबरें मिला करती हैं। इसके लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि महिलाओं को प्रताडि़त करने से बचाने के लिए बनने वाले कानूनों में यह प्रावधान भी किया जाए कि कोई महिला या उसके परिजन द्वारा इस कानून का बेजा इस्तेमाल न किया जा सके। हमारी राय में यही इकलौता रास्ता होगा जिसके जरिए महिलाओं को उत्पीड़न से बचाया जा सकता है।

लाईव टीवी का मजा नहीं ले सकेंगे भोपाल शताब्दी वाले

लास्ट प्रार्यरटी में है भोपाल शताब्दी

एम पी के जनप्रतिनिधियों को नहीं है रेलों की परवाह

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से विभिन्न राज्यों को जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस रेल गाडियों के एक्जीक्यूटिव क्लास के यात्रियों के मनोरंजन के लिए लाईव टीवी योजना का आगाज किया जा रहा है। पहले चरण में लगभग आधा दर्जन शताब्दी रेल में इसे डिश टीवी के माध्यम से सजीव प्रसारण किया जाएगा। भारतीय रेल की फेहरिस्त में भोपाल शताब्दी एक्सप्रेस को अंतिम वरीयता पर रखा गया है।


रेल्वे के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि दिल्ली से कालका के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में पहले से रिकार्डेड प्रोग्राम दिखाए जाने के उत्साहजनक परिणाम आने के बाद रेल्वे ने डिश टीवी के माध्यम से सीधा प्रसारण दिखाने की योजना को हरी झंडी दे दी है। रेल्वे बोर्ड ने इस काम को अंजाम देने के लिए जोनल बोर्ड को ही सारे अधिकार दे दिए हैं।


सूत्रों ने आगे बताया कि उत्तर रेल्वे द्वारा दिल्ली से कालका, अमृतसर, लखनऊ, देहरादून, अजमेर जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस के एक्जीक्यूटिव क्लास दर्जे में इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। उधर अहमदाबाद, रांची, बंग्लुरू, चेन्नई, मैसूर आदि के बीच भी शताब्दी एक्सपे्रस की सेवाएं हैं किन्तु वहां काम कुछ समय बाद आंरभ होगा।


सूत्रों ने यह भी कहा कि दिल्ली से देश के हृदय प्रदेश भोपाल जाने वाले 12001 / 12002 नंबर की शतब्दी भारतीय रेल की वरीयता सूची में बेहद पीछे है। यही कारण है कि इस शताब्दी के एक्सप्रेस में सफर करने वाले यात्रियों को ज्यादा सुविधाएं मुहैया नहीं हो पाती हैं। मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र मंे मंत्री कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव और कांतिलाल भूरिया सहित लोकसभा के 29 और राज्य सभा के 10 सांसदों द्वारा भी रेल सुविधाओं के मामले में पुरजोर आवाज न उठा पाने से मध्य प्रदेश में घटिया रेल सेवाओं की मार सीधे सीधे यात्रियों पर ही पड़ रही है।



ठक टिक की बिदाई

तीन सौ साल पुराने साथी को अलविदा कहेगी दुनिया

टाईपराईटर के साथ कार्बन और टाईप रिबिन भी होंगे विलुप्त प्रजाति में शामिल

(लिमटी खरे)

एक समय में ठक टिक की आवाज के साथ गर्व से सीना ताने चलने वाला टाईपराईटर अब इतिहास की वस्तु हो गया है। कम ही जगहों पर टाईपराईटर देखने को मिला करते हैं। भारतीय सिनेमा की जासूसी फिल्मों में टिक टिक की आवाज के साथ शबदों को कागज पर उतारने वाले टाईपराईटर के अक्षरों के माध्यम से अनेक अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाया जाता रहा है। कोर्ट कचहरी, अर्जीनवीस, समाचार पत्र, सरकारी कार्यालयों आदि में टाईपराईटर की आवाज बहुत ही मधुर हुआ करती थी। कालांतर में इसका स्थान कम्पयूटर के बेआवाज की बोर्ड ने ले लिया। अब तो हर जगह डेक्स टाप या लेपटाप की ही धूम है। अस्सी के दशक के बीतने तक टाईपिंग सिखाने वालों की दुकानें रोशन हुआ करती थीं।

टाईपराईटर का उत्पादन कर रही दुनिया की आखिरी कंपनी गोदरेज एण्ड बोएस ने अब इसका उत्पादन नहीं करने का फैसला लिया है। निश्चित तौर पर यह समय की मांग है किन्तु सालों साल उत्पादन करने वाली कंपनी ने भारी मन से यह फैसला लिया होगा, कंपनी के कर्मचारियों और मालिकों की पीड़ा को समझा जा सकता है। कंपनी के पास लगभग दो सौ टाईपराईटर हैं जिन्हें वह एंटीक के बतौर उसी तरह बेच सकती है जिस तरह आज ग्रामो फोन लोगों के घरों की बैठक की शान बन गए हैं।

अस्सी के दशक तक मीडिया में प्रिंट का दबदबा चरम पर था, (है तो आज भी किन्तु इलेक्ट्रानिक और वेब मीडिया के आगे इसकी छवि उतनी उजली नहीं बची है) इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। उस समय संपादकों द्वारा वही रचनाएं प्रकाशन के लिए स्वीकार की जाती थीं, जो सुपाठ्य अक्षरों में या टाईप की हुई हुआ करती थीं। न जाने कितने चलचित्र की पटकथा भी इन्ही टाईपराईटर से कागजों पर उतरी होंगी। कहते हैं कि हालीवुड के मशहूर किरदार जेम्स बांड की सुपर डुपर हिट फिल्मों के लेखक इयान फ्लेमिंग के पास एक सोने का बना टाईपराईटर था।

दुनिया के चैधरी अमेरिका में 1714 में हेनरी मिल द्वारा इस मशीन का अविष्कार किया था। इसके लगभग डेढ़ सौ साल के लंबे सफर के उपरांत क्रिस्टोफर लाॅमथ शोलेज द्वारा इसे 1864 में अंतिम बार नया रूप दिया और तब से इसका स्वरूप यही बना रहा। टाईपराईटर का व्यवसायिक उत्पादन 1867 में आरंभ हुआ था। 1950 के आते आते टाईपराईटर की लोकप्रियता लोगों के सार चढ़कर बोलने लगी। सरकारी कामकाज में टाईपराईटर का उपयोग जरूरी महसूस किया जाने लगा। इसी दौरान अमेरिका की कंपनी स्मिथ कोरोन ने दस लाख टाईपराईटर बेचकर रिकार्ड कायम किया। 1953 में तो दुनिया भर में एक करोड़ बीस लाख टाईपराईटर बिके।

नब्बे के दशक के आगाज के साथ टाईपराईटर में एक बार फिर तब्दीली महसूस हुई उस दौरान सामान्य टाईपराईटर से डेढ़ गुना बड़े आकार का इलेक्ट्रानिक टाईपराईटर बाजार में आया। इसमें मेमोरी थी, जिसमें कुछ प्रोफार्मा बनाकर सेव किए जा सकते थे। यह काफी हद तक लोकप्रिय हुआ, क्योंकि इसमें टाईपिस्ट को एक ही पत्र को बार बार टाईप नहीं करना होता था। इलेक्ट्रानिक टाईपराईटर की सांसे जल्द ही उखड़ गईं और इसका स्थान ले लिया कंप्यूटर ने।

कोर्ट कचहरी और भवन भूखण्डों की रजिस्ट्री के लिए अर्जीनवीस कार्यालय में टाईपिंग की स्पीड देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे, जब वे टाईपिंग मशीन पर बैठे व्यक्ति को एक ही उंगली से फर्राटे के साथ टाईप करते देखते थे। टाईपिंग करने वाले का की बोर्ड पर एक ही उंगली से निशाना गजब का होता था, जिसमें गल्ति की गुंजाईश ही नहीं होती थी। एक समय था जब टाईपिंग की परीक्षा आहूत होती थी, इसमें हर परीक्षार्थी को टाईपिंग मशीन साथ लाना अनिवार्य होता था। टाईपिंग की परीक्षा प्राप्त आवेदकों को स्टेनोग्राफर, टाईपिस्ट या क्लर्क की नौकरी में वरीयता भी मिला करती थी।

नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही कंप्यूटर ने अपनी आमद दी। धीरे धीरे यह समाज पर छा गया। मुख्य तौर पर देखा जाए तो टाईपराईटर के लिए कंप्यूटर ही दुश्मन या सौतन साबित हुआ। टाईपिंग के प्रशिक्षण के लिए खुले संेटर वीरान होने लगे, शार्ट हेण्ड और टाईपिंग की विधा में से टाईपिंग भर जिंदा मानी जा सकती है, शार्ट हेण्ड तो अब गुजरे जमाने की बात हो चली है। रही बात टाईपिंग सीखने की तो कंप्यूटर के की बोर्ड पर उंगलियां चलाते चलाते बच्चे आसानी से टाईपिंग सीखने लगे हैं। हिन्दी की टाईपिंग जरा मुश्किल है, किन्तु अंगे्रजी की टाईपिंग बेहद आसान मानी जाती है। अब तो हिन्दी के शब्दों के स्टीकर की बोर्ड पर लगाकर बच्चे आसानी से हिन्दी मंे टाईप करने लगे हैं। हालात देखकर लगने लगा है मानो बच्चे मां के पेट से ही टाईपिंग सीखकर आ रहे हैं।

तीस साल की हो रही पीढ़ी इस परिवर्तन की साक्षात गवाह मानी जा सकती है जिसने टिक ठक से लेकर बेआवाज की बोर्ड तक का सफर अपनी नंगी आंखों से देखा होगा। इस पूरे बदलाव का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि टाईपराईटर की जवान पीढ़ी कंप्यूटर का की बोर्ड आज भी लोकप्रिय रही टाईपराईटर कंपनी रेमिंगटन के नाम पर आज भी धडल्ले से चल रहा है।

हर चीज जो पैदा होती है उसका अंत अवश्य ही होता है। कहा जाता है कि मनुष्य और उसके द्वारा निर्मित हर प्रोडक्ट कभी न कभी मृत्यु को प्राप्त होता है, उसका अवसान सुनिश्चित है। टिक टक की ध्वनि के साथ शब्दों को कागज पर उकेरने वाले टाईपराईटर ने लगभग तीन सौ सालों तक एक छत्र राज्य किया, अंत में वह मानव निर्मित संगणक (कंप्यूटर) के आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो गया है।

टाईपराईटर में शब्दों का आकार सीमित हुआ करता था, किन्तु उसके परिष्कृत स्वरूप कंप्यूटर में हिन्दी अंगे्रजी उर्दू सहित अनेक भाषाओं के अनगिनत फाॅन्टस के साथ ही साथ उनका आकार (साईज) भी मनमाफिक करने की सुविधा है। एक ओर जहां टाईपराईटर से टाईप करने पर गल्ति होने पर उसमें व्हाईट फ्लूड लगाना या फिर उस शब्द पर दूसरा शब्द बार बार टाईप करना होता था उसके स्थान पर कंप्यूटर पर स्क्रीन पर ही पढ़कर उसमें करेक्शन किया जा सकता है।

टाईपराईटर के अवसान के साथ ही साथ इसके सहयोगी अव्यव टाईप रिबिन और कार्बन भी आने वाले समय में विलुप्त हो जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अनेक चीजें एसी हैं जो समय के साथ ही बाजार से गायब तो हो चुकी हैं, पर गाहे बेगाहे, उनकी चर्चा होने पर पुनः उन प्रोडक्ट्स से जुड़ी मीठी यादें ताजा हो जाया करती हैं। उसी प्रकार जिन लोगों ने टाईपराईटर को देखा या उसका उपयोग किया है, उनके मानस पटल से लंबे समय तक टाईपराईटर विस्मृत होने वाला नहीं।

गोविंदा के बाद अब सलमान पर डाल रही कांग्रेस डोरे

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

गोविंदा के बाद अब सलमान पर डाल रही कांग्रेस डोरे

कांग्रेस का जनाधार धीरे धीरे घटता ही जा रहा है। देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अब कुछ सूबों में ही सिमटकर रह गई है। युवाओं को लुभाने के लिए कांग्रेस ने वालीवुड के सितारों का राजनीति में आने का प्रयोग किया। कुछ हद तक यह प्रयोग सफल रहा। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, सुनील दत्ता, गोविंदा और सुनील दत्त की पुत्री प्रिया आदि इसके नायाब उदहारण माने जा सकते हैं। अब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और सलमान खान के बीच छनने वाली खबरों से लगने लगा है कि सल्लू मियां जल्द ही कांग्रेस खेमे में आने वाले हैं। भारत श्रीलंका के वल्र्ड कप फायनल में युवराज राहुल अपने आठ दोस्तों के साथ मुंबई गए। सूत्रों की मानें तो भारत की जीत की खुशी में कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने मुंबई के वर्ली इलाके में पार्टी आरंभ की। आधी रात के बाद जब पार्टी का सुरूर चढ़ा तब राहुल का एक मित्र उन्हें सलमान खान के घर ले गया। बताते हैं कि वहां पार्टी अलहसुब्बह भोर की पहली किरण उगने तक अर्थात छः बजे तक चली। इस बात की चर्चा दिल्ली के सियासी गलियारों में जमकर हो रही है।



बेरोजगार होने वाले हैं जोशी!

डाॅ.मुरली मनोेहर जोशी जल्द ही बेरोजगार हो सकते हैं। दरअसल उनके नेतृत्व वाली पीएसी का कार्यकाल इसी माह की तीस तारीख को पूरा होने वाला है। पीएसी का भाव इन दिनों इसलिए भी बढ़ा हुआ है, क्योंकि टू जी स्पेक्ट्रम मामला इसके पास विचाराधीन है। भाजपा के अंदरखाते से जो खबरें आ रही हैं, वे बताती हैं कि जोशी पर दबाव है कि वे इस विवादित मामले पर पीएसी का प्रतिवेदन इसी सप्ताह के अंत तक अर्थात 28 या 29 तारीख तक पेश कर दें। वैसे एक मई को नई पीएसी का गठन किया जाना प्रस्तावित है। नई पीएसी के लिए सियासी बिसात बिछ चुकी है, कांग्रेस और भाजपा द्वारा इसके लिए गलाकाट खींचतान आरंभ कर दी है। देखना यह है कि इस महत्वपूर्ण मामले में जोशी अपने कार्यकाल में टूजी मामले की रिपोर्ट प्रकाश में ला पाते हैं या फिर नए अध्यक्ष के जिम्मे यह काम सौंपा जाता है।



अशांति है शांति के घर पर!

जनता पार्टी के समय में कानून मंत्री रहे और 1980 में भाजपा की स्थापना वर्ष में पार्टी के उपाध्यक्ष रहे शांति भूषण की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकती साफ दिखाई दे रही हैं। भूषण एण्ड संस अच्छा खासा काम धंधा शांति के साथ कर रहे थे। बाद में अन्ना हजारे का साथ देने के कारण वे कांग्रेस के निशाने पर आ गए। एक के बाद एक विवादों में भूषण बंधुओं को उलझाया जा रहा है। कभी इलाहाबाद में बीस करोड़ का मकान महज एक लाख में खरीदने तो कभी नोएडा में भूखण्ड का मामला, तो कभी हिमाचल के पालमपुर के मकान की जांच। भूषण एण्ड संस पर कम समय में ज्यादा संपत्ति एकत्र करने के आरोप भी मढ़े जा रहे हैं। भूषण एण्ड संस तो विचलित हैं ही उनके साथ ही साथ अन्ना भी परेशां हैं कि उनके आंदोलन में इन पिता पुत्रों के कारण कालिख लगती जा रही है। कांगे्रस के दिग्गज इन्हें आसानी से छोड़ने वाले नहीं, अभी तो यह आगाज है, अंजाम देखिए क्या होता है।



सिंहों की यात्रा पर हुआ खर्च करो सार्वजनिक

केंद्रीय सूचना आयोग ने प्रधानमंत्री कार्यालय को निर्देश दिया है कि पीएम डाॅ.मनमोहन सिंह के साथ विदेश यात्रा पर गए उनके रिश्तेदारों पर सरकार ने कितना खर्च किया है, इस बात को सार्वजनिक किया जाए। सीआईसी ने पीएमओ की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया है कि उसके पास एसा कोई रिकार्ड है ही नहीं। यूपी के शाहजहांपुर के अयूब अली द्वारा मांगी गई जानकारी पर पीएमओ एवं विदेश मंत्रालय ने यह जवाब दिया था कि उसके पास इस तरह की कोई जानकारी नहीं है। केंद्रीय सूचना आयोग ने इस पर सख्त रवैया अपनाते हुए पीएमओ को निर्देश दिया है कि वह प्रधानमंत्री के रिश्तेदारों (सिंह फेमली) बीस कार्य दिवसों के अंदर वह समस्त विभागों से जानकारी मुहैया करे और आवेदक को यह उपलब्ध कराए।



अब रामदास पर गिरेगी गाज

पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अम्बूमणि रामदास फर्जी आर्युविज्ञान संस्थानों को अनुमति देने के मामले में नप सकते हैं। इस मामले की जांच करने वाली सीबीआई ने 16 अप्रेल को मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से इंडेक्स मेडीकल कालेज के मालिक सुरेश भदोरया को अरेस्ट किया था। भदोरया के बयानों और उनके पास से मिले दस्तावेजों के आधार पर अब केंद्रीय जांच ब्यूरो जल्द ही रामदास पर शिंकजा कसने की तैयारी कर रही है। मेडिकल कांउसिल आॅफ इंडिया (एमसीआई) के पदाधिकारियों की नियुक्ति में भी भारी अनियमितताएं होने की बातें प्रकाश में आई हैं। एमसीआई में सचिव पद काफी महत्वपूर्ण होता है और इस पद पर संगीता शर्मा की नियुक्ति पर भी विवाद आरंभ हो गया है।



सीबीएसई अपनाए पंजाब फार्मूला

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को पंजाब पेटर्न को तत्काल अपना लेना चाहिए। पंजाब में निजी शालाओं में किताबों और स्कूल की वर्दी की दुकानें अब नहीं चल पाएंगी। पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग ने निजी शाला के प्रबंधन की इस मनमानी को तत्काल रोकने की कवायद आरंभ कर दी है। बताते हैं कि सरकारी शाला के प्राचार्यों के दायित्वों में इस बात का भी शुमार किया गया है कि वे अपने इर्द गिर्द संचालित होने वाले निजी स्कूलों का समूचा ब्योरा एकत्र करने को जोड़ा गया है। निजी स्कूल भले ही वे सीबीएसई एफीलेटेड हों या न को इसमें शामिल किया गया है। निर्देशों में कहा गया है कि प्राचार्य इस बात की जानकरी विशेष तौर से जुटाएं जिसमें फीस से लेकर वर्दी तक की जानकारी शामिल हो। आठ कालम के प्रोफार्मा को भरने की जवाबदारी निजी शाला के प्राचार्य की होगी किन्तु भरवाएंगे सरकारी शाला के प्राचार्य।



ममता का चुनावी तोहफा!

रेल मंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में चुनावी बिसात बिछाने में व्यस्त हैं। उधर रेल महकमे की मौजां ही मौजां है। भारतीय रेल ने ममता बनर्जी की ओर से यात्रियों को एक नायाब चुनावी तोहफा दिया है। आने वाले समय में रेल में सफर करने वाले यात्रियों को आॅन बोर्ड खाने के लिए ज्यादा जेब ढीली करनी होगी। आने वाले दिनों में 27 रूपए वाली थाली जो रेल में 35 से 40 रूपए में बेची जाती है का दाम बढ़ाकर 65 रूपए कर दिया गया है। मतलब साफ है कि यह थाली अब 70 से 80 रूपए में बिकेगी। इसी तरह 14 वाला जो नाश्ता 20 से 25 में बिकता था के दाम बढ़ाकर 30 कर दिए गए हैं जो अब 40 से 50 रूपए के बीच बिकेगा। अब ममता बनर्जी रेल के बजाए बंगाल पर ध्यान देंगी तो रेल यात्रियों की कमर टूटना लाजिमी ही है। इन परिस्थितियों में दस रूपए वाला जनता मील कहां और कैसे मिलेगा यह यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है।



चर्चा में है अमूल के विज्ञापन

गुजरात कोआॅपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के एक उत्पाद अमूल बटर के चुटीले विज्ञापन यूं तो सदा ही चर्चा में हुआ करते हैं, किन्तु कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को अमूल बेबी का तमगा देने पर बने विज्ञापन की धूम मची हुई है। केरल के मुख्यमंत्री वी.एस.अच्युतानंदन द्वारा राहुल गांधी अमूल बेबी करार दिया गया है। बडबोले शशि थरूर ने एक बार फिर ट्विटर पर अपनी जुबान खोलकर इस बहस को आगे बढ़ा दिया है। राहुल पर लगे अमूल बेबी के ठप्पे को पुख्ता करते हुए थुरूर ने कह दिया है कि इसमें गलत क्या है। अमूल बेबी चुस्त दुरूस्त, मजबूत और भविष्य के प्रति गंभीर होते हैं। अब देखना यह है कि थरूर के इस कथन को अमूल किस तरह कैच कर विज्ञापन की अगली कड़ी में क्या प्रदर्शित करता है।





ब्लू लाईन का खौफ

किलर ब्लू लाईन को दिल्ली की सड़कों से हटाने की मुहिम के बाद ब्लू लाईन संचालकों और चालक परिचालकों का आक्रोश देखते ही बन रहा है। बेरोजगार हो रहे इन चालक परिचालकों द्वारा अब सवारियों के साथ बदतमीजी करना आरंभ कर दिया है। गौरतलब है कि ब्लू लाईन के परमिटधारी संचालकों द्वारा बसों को चालक परिचालकों को ही ठेके पर दे दिया जाता रहा है। प्रतिस्पर्धा के चलते चालकों द्वारा बसों को हवा में उड़ाया जाता रहा है और राहगीर असमय ही काल के गाल में समाते रहे हैं। हाल ही में पश्चिमी दिल्ली में एक हादसे ने इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि दिल्ली में ब्लू लाईन संचालकों को किसी का खौफ नहीं रहा। प्राप्त जानकारी के अनुसार इंद्रपुरी क्षेत्र में एक बच्चे को सरेराह ही चलती बस से धक्का दे दिया जिससे सड़क पर गिरने से उसकी मौत हो गई। दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है।



बच्चों की बाजीगरी पर रोक!

बाल श्रम कानून का सरेआम माखौल इस देश में उड़ाया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब शराब के अड्डों पर छोटू, मुन्ना, बबलू और पप्पू की आवाजें सुनाई देती हैं। श्रम विभाग की इस अंधेरगर्दी पर कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है। जस्टिस दलबीर भंडारी और जस्टिस ए.के.पटनायक की संयुक्त बैंच ने बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर यह व्यवस्था दी। पीठ ने सर्कस में बच्चों के काम करने पर पूरी तरह रोक लगा दी है। कोर्ट ने तल्ख रवैया अपनाते हुए कहा है कि सर्कस सहित खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे बच्चों को मुक्त करवाकर उनका पुनर्वास करवाया जाए। न्यायालय ने मानव संसाधन विभाग के महिला एवं बाल विकास विभाग को ताकीद किया है कि वह दस सप्ताह के अंदर अपनी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष रखे।



मंत्री पुत्र अरेस्ट!

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावांे के चलते केंद्रीय मंत्री मुकुल राय के पुत्र और विधानसभा में त्रणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार सुभ्रांशु राय को बंगाल पुलिस ने अरेस्ट किया है। केंद्रीय मंत्री राय के पुत्र की गिरफ्तारी के बाद राजधानी की सियासत गर्माने लगी है। दरअसल मुकुल राय के पुत्र पर आरोप है कि उन्होने अपने साथियों के साथ सरकारी और निजी इमारतों की दीवारों पर लिखे नारे मिटाने गए चुनाव आयोग के दल पर हमला किया है। चुनाव आयोग ने सुभ्रांश राय को अरेस्ट न कर पाने वाले निरीक्षक पाथ्र प्रीतम राय को निलंबित भी किया है। वाम दल इस घटना को जमकर तूल दे रहा है। वाम दलों के अनुसार त्रणमूल कांग्रेस को लोकतंत्र, शांति और पुलिस पर यकीन नहीं है यही कारण है कि त्रणमूल के नेता अब गुण्डागर्दी पर उतारू हो गए हैं।



चालक बिना दौड़ती भारतीय रेल

भारत का रेल नेटवर्क विश्व का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क माना जाता है। इसकी कमान केंद्रीय रेल मंत्री के हाथों में होती है। भारतीय लोकतंत्र का सबसे शर्मनाक पहलू यह माना जाएगा कि भारत गणराज्य की रेल मंत्री ममता बनर्जी पिछले लगभग एक साल से मुख्याल दिल्ली छोड़कर पश्चिम बंगाल की चुनावी तैयारियों में व्यस्त हैं, और बिना निजाम के भारतीय रेल महकमा दिशा से भटक चुका है। देश भर में रेल गाडियों में कर्मचारी मजे कर रहे हैं और यात्री बुरी तरह पिस रहे हैं। कभी रेल में डकैती पड़ती है तो कभी किसी को चलती रेल से फेंक दिया जाता है। व्हीव्हीआईपी समझी जाने वाली राजधानी एक्सपे्रस बर्निंग ट्रेन बन जाती है, तो चालक ही रेल लेकर भाग जाता है। हाल ही में कश्मीर की वादियों में 35 किलोमीटर तक रेल गाड़ी बिना चालक के ही दौड़ती रही। वादियों में रेल सेवा का उदघाटन वजीरे आजम डाॅ.एम.एम.सिंह ने 2008 में किया था। समुद्र तल से 5420 फिट उपर कश्मीर की खतरनाक वादियों में यह करिश्मा रेल मंत्री को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त है।



इस पर भी कुछ फरमाएं कृष्णा जी

भारत के विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा द्वारा विदेश में भारतीयों पर होने वाली ज्यादतियों पर लगभग मौन ही साधे रहते हैं। विश्व कप में भारत की जीत का जश्न मनाना कुवैत में काम करने वाले लगभग छः दर्जन मजदूरों को भारी पड़ा है। 30 मार्च को खेले गए सेमी फायनल मैच में भारत की जीत की खुशी मनाने वाले 68 भारतीय मजदूरों को कुवैत से देश निकाला दे दिया गया है। जीत का जश्न मनाना कुवैत सरकार को इस कदर नागवार गुजरा कि वहां की सरकार ने इन मजदूरों का न केवल वेतन हड़प लिया वरन् उनका वीजा भी रद्द कर दिया है। इन मजदूरों के कुवैत में एक साल तक प्रवेश पर रोक भी लगा दी गई है। भारत सरकार द्वारा इस मामले में अब तक कोई कार्यवाही न करना निश्चित तौर पर अनेक संदेहों के साथ आश्चर्य को ही जन्म दे रहा है।



फिर न कहना माईकल दारू पीके . . .

‘अच्छा हुआ अंगूर को बेटा न हुआ, जिसकी बेटी ने सर पे उठा रख्खी दुनिया‘ शायर की ये मंशा सच ही है। इसका उदहारण दिया बवाना क्षेत्र में मुख्य चिकित्त्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने। दिल्ली में राजा हरिश्चंद्र अस्पताल के सीएमएचओ डाॅ.मनोज ने बीती रात शराब पीकर डीएसआईडीसी औद्योगिक क्षेत्र को सर पर उठा लिया। जो भी उन्हें समझाने जाता तो डाॅक्टर मनोज अपने पद का रौब गांठकर उसे हड़का देते। सूचना पाकर पुलिस मौके पर पहुंची और डाक्टर का मुलाहजा संजय गांधी अस्पताल में करवाया। बाद में पुलिस ने एक्साईज एक्ट के तहत कार्यवाही कर एक बांड भरवाकर सीएमएचओ को छोड दिया। वैसे दिल्ली में कड़े नियम और भयानक फाईन के बाद भी लोग सार्वजनिक स्थलों पर छककर शराब पीते नजर आ ही जाते हैं।



पुच्छल तारा

सड़कों पर गाडियों की बाढ़ देखते ही बनती है। दिल्ली में तो जितने परिवार के सदस्य नहीं उतनी गाडियां हैं अनेक परिवारों के पास। गाडियों पर तरह तरह के जुमले लिखा होना आम बात है। पश्चिमी दिल्ली से सपना सरीन ने एक ईमेल भेजा है। सपना लिखती हैं कि वाहनों पर ऊं, अल्लाह, गुरू नानक देव, साईं बाबा, राम, जय माता दी आदि लिखे हुए तो बहुत देखे हैं। दिल्ली में ब्लू लाईन की बिदाई के साथ ही सरकारी गाडियों में इस तरह के नाम अब देखने को नहीं मिलते। दिल्ली की सड़कों पर छोटी गाडियां दौड रही हैं। इन गाडियों में इस तरह के नामो की बौछार है। एक गाडी में लिखी बात पढ़़कर हर कोई हंसे बिना तो नहीं रह सकता। इस पर लिखा था -‘‘जलो मत किश्तों पर आई हूं।‘‘

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

केंद्र में सालों से मलाई चखने वाले अधिकारी होंगे मूल काडर में वापस

एमपी काडर के चार दर्जन अफसरों पर गिर सकती है गाज
 
प्रतिनियुक्ति पर हैं सूबे के 70 अफसरान
 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। अपने मूल काडर को छोड़कर देश की राजधानी दिल्ली में मलाई चखने वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की अब खैर नहीं है। केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग (डीओपीटी) ने इन अधिकारियों की मुश्कें कसना आरंभ कर दिया है। पांच साल का समय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त माना गया है। पांच साल से ज्यादा समय तक पदस्थ रहने वाले अफसरों को अपने मूल काडर में लौटना अनिवार्य कर दिया गया है।
कार्मिक विभाग के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि अपने आवंटित सूबे के बजाए अधिकारियों को दिल्ली में रहना ज्यादा भा रहा है, इसका कारण राजनैतिक चैसर पर बिछी बिसात को माना जा रहा है। राज्यों अफसरों की कमी होने के बाद भी ये दिल्ली में या तो रूके रहना चाहते हैं या फिर मंत्रालय इन्हें रोकने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। यह मामला प्रधानमंत्री तक गया और पीएम के साफ निर्देशों के बाद कार्मिक विभाग ने सख्त आदेश जारी कर ही दिए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अब पांच साल से अधिक प्रतिनियुक्ति पर रहने वाले अफसरांे के खिलाफ न केवल अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी, वरन् पांच साल से अधिक वाला सेवाकाल उनके कार्यकाल के सेवाकाल में नहीं जोड़ा जाएगा, इतना ही नहीं उनकी वेतनवृद्धि भी रोकी जाकर पेंशन भी कम करने का प्रावधान किया गया है। अगर कोई अफसर पांच साल की अवधि से ज्यादा समय प्रतिनियुक्ति पर काटता है तो इसकी जवाबदेही उसके उच्चाधिकरियों पर आहूत की गई है।
केंद्र के इस सख्त आदेश के बाद अब राज्यों से आए भारतीय प्रशासनिक, पुलिस और वन सेवा के अधिकारियों का बोरिया बिस्तर बंधना तय माना जा रहा है। वहीं दूसरी और देश की नीति निर्धारक सबसे ताकतवर आईएएस लाबी ने इस मामले में प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने का मन बना लिया है। माना जा रहा है कि जल्द ही लाबी के आला पदाधिकारियों द्वारा पीएम से मिलकर इन नियमों को शिथिल करने के मसले पर चर्चा की जाएगी।
 
छोटा मोटा वल्लभ भवन बन गया था दिल्ली में
 
2003 में जब उमा भारती के नेतष्त्व में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तब कांग्रेस की मानसिकता वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों ने खतरे को भांपते हुए सूबे से निकलने में ही भलाई समझी। अपने संपर्कों का लाभ उठाकर अफसरान ने केंद्र में प्रतिनियुक्ति ले ली, ताकि उमा भारती के कोप से बचा जा सके। इस बात को आठ साल बीतने को हैं, पर न तो शिवराज सिंह ने इसकी सुध ली और ना ही केंद्र सरकार ने इन्हें वापस भेजने में कोई दिलचस्पी दिखाई। यही कारण है कि सूबे में अधिकारियों की कमी के चलते ही राज्य स्तर की सेवाओं के अधिकारियों को जिलों में महत्वपूर्ण कमान सौंपी गई है।
यह है लेखा जोखा
 
केंद्र सरकार के पास अखिल भातीय सेवा के पांच हजार छः सौ नवासी अफसर हैं जिनमें से चार हजार पांच सौ चैंतीस काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार के पास इनमें से कुल सात सौ चैदह आईएएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर हैं। मध्य प्रदेश के बावन अफसर दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं। इस तरह सवा सात फीसदी भागीदारी है मध्य प्रदेश की केंद्र में आईएएस प्रतिनियुक्ति में और लगभग दस फीसदी सभी अखिल भारतीय सेवाओं में।
आईएएस का हुआ प्रदेश से मोह भंग

भारतीय जनता पार्टी सरकार के मध्य प्रदेश में सत्तारूढ होते ही भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरान का अपने मूल काडर से मोह भंग हो गया है। 2003 के बाद केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले अफसरों की संख्या में विस्फोटक वृद्धि दर्ज की गई है। अधिकतर अफसर कार्यकाल पूरा करने के बाद भी वापस न लौटें इसके लिए जतन कर रहे हैं तो एमपी में रहने वाले अफसर केंद्र में जाने की लाबिंग में जुटे हुए हैं। 87 बैच के प्रवीर कृष्ण और 91 बैच के मनु श्रीवास्तव ने एमपी के सीएस से प्रतिनियुक्ति बढ़ाने का आग्रह किया है। उधर मध्य प्रदेश में बीस जिलों में पुलिस अधीक्षक की कमान राज्य पुलिस सेवा के स्तर के अधिकारियों के कांधों पर है, जिस बारे में शिवराज सरकार कतई संजीदा नहंी दिख रही है।
इन पर गिर सकती है गाज
 
एमपी काडर के भारतीय प्रषासनिक सेवा में राघवेंद्र सिंह सिरोही, अल्का सिरोही, सुषमा नाथ, के.एम.आचार्य, जेमनि कुमार षर्मा, अजय आचार्य, सुमित बोस, डी.आर.एस.चैधरी, विमल जुल्का, आर,गोपालकृष्णन, स्नेहलता कुूमार, स्वदीप सिंह, लवलीन कक्कड़, राजन कटोच, एंथोनी जे.सी.डिसा, डाॅ.अमर सिंह, अमिता शर्मा, अरूणा शर्मा, डी.के.सामन्तरे, सुरंजना रे, अजय नाथ, जे.एस.माथुर, राघव चन्द्रा, रश्मि शुक्ला शर्मा, एम.गोपालरेड्डी, प्रवीर कृष्ण, गौरी सिंह, आई.सी.पी.केशरी, मनु श्रीवास्तव, प्रमोद अग्रवाल, नीलम शमी राव, ब्ही.एल.कान्ता राव, दीप्ति गौड़ मुखर्जी, पल्लवी जैन, फैज अहमद किदवई, केरेलिन खोंगवार देशमुख।

भारतीय पुलिस सेवा के अफसरान में यशोवर्धन आजाद, रीना मित्रा, विवेक जोहरी, आलोक पटेरिया, सुधीर कुमार सक्सेना, संजीव कुमार सिह, राजीव टंडन, एस.के.पाण्डेय, एस.एल.थौसेन, प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव, अनन्त कुमार सिंह, मनीश शंकर षर्मा, जयदीप प्रसाद, योगेष देशमुख, सालोमन के.मिंज।
 
भारतीय वन सेवा के डाॅ.राजेश गोपाल, असित गोपाल और प्रकाश उन्हाले।

कुवांरे कर्मचारियों के घर बसाने में जुटा केंद्रीय विद्यालय


शादीलाल घरजोड़े बना केवीएस

एमपी के अध्यापक ने दिया था सबसे पहले अपना विवरण
 
नई दिल्ली (ब्यूरो)। देश के नौनिहालों को शिक्षा के लिए पाबंद किया गया केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) इन दिनों संगठन के अविवाहित कर्मचारियों के घर बसाने का पावन काम कर रहा है। केवीएस के कर्मचारियों में संगठन को अब शादी लाल घरजोड़े या केंद्रीय विद्यालय मेरिज ब्यूरो भी कहा जाने लगा है।
देश विदेश में एक हजार से ज्यादा शैक्षणिक संस्थान का प्रबंधन संभालने वाले केवीएस इन दिनों नई सामाजिक जिम्मेवारी संभाले हुए है। अपने मूल काम से हटकर केवीएस द्वारा अपने संस्थान के अविवाहित कर्मचारियों के लिए रिश्ते तय करने का काम किया जा रहा है।
केवीएस के सूत्रों का कहना है कि इस काम की शुरूआत केवीएस ने अपनी वेब साईट पर दस कुंवारे कर्मचारियों के विवरण डालकर की थी। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि अब यह पूरी तरह से वेब पेज की शक्ल अख्तियार कर चुका है जिसमें सौ से ज्यादा कुंवारों के बारे में संपूर्ण विवरण है।
गौरतलब है कि केवीएस की शालाएं सुदूर अंचलों में हैं जहां काम करने वाले कर्मचारियों को उपयुक्त जीवन साथी मिलने की संभावनाएं कम ही होती हैं। इसी के मद्देनजर केवीएस ने यह अभिनव अभियान आरंभ किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के एक अध्यापक ने सबसे पहले इसके लिए अपना विवरण भेजा था। बताते हैं कि उसे केरल में पदस्थ एक अध्यापिका से रिश्ता जुड़ने की उम्मीद बन गई है। इसमें एमपी के ग्वालियर और गुना के अन ब्याहे कर्मचारियों का विवरण मौजूद है।

दिल्ली में होगा कार्टून वाॅच का कार्टून महोत्सव

इस बार दिल्ली में होगा कार्टून वाॅच का कार्टून महोत्सव

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम होंगे मुख्य अतिथि

नई दिल्ली (ब्यूरो)। देष की एकमात्र कार्टून पत्रिका कार्टून वाॅच द्वारा प्रतिवर्श आयोजित कार्टून महोत्सव इस बार दिल्ली में किया जा रहा है. 29 अप्रैल 2011 को हिन्दी भवन दिल्ली में इसका उद्घाटन पूर्व राश्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम करेंगे. कार्टून वाॅच के सम्पादक त्रयम्बक षर्मा ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि इस बार कार्टून वाॅच की तरफ से लाईफ टाईम एचीवमेंट एवार्ड पांच वरिश्ठ कार्टूनिस्टों को दिया जायेगा. टाईम्स आफ इंडिया समूह के श्री अजीत नैनन, नवभारत टाईम्स के पूर्व कार्टूनिस्ट श्री काक, मधुमुस्कान पत्रिका के नन्हा जासूस बबलू के रचयिता श्री हुसैन जामिन, छत्तीसगढ के श्री बी.वी.पांडुरंग राव जो अब बैंगलोर में हैं, और दिल्ली दैनिक जागरण के कार्टूनिस्ट श्री जगजीत राणा को इस वर्श कार्टून महोत्सव में लाईफ टाईम एचीवमेंट एवार्ड प्रदान किया जायेगा. इसके अलावा कार्टून विधा को बढावा देने के लिये उल्लेखनीय कार्य करने के लिये विषेश रूप से केरला कार्टून एकेडमी के पूर्व सचिव एवं कार्टूनिस्ट श्री सुधीरनाथ को भी सम्मानित किया जायेगा.
इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ प्रदेष के संस्कृति मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल विषेश अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे. उल्लेखनीय है कि पूर्व के वर्शों में कार्टून महोत्सव में श्री आर.के.लक्ष्मण, श्री आबिद सुरती, चाचा चैधरी के जनक श्री प्राण, श्री सुधीर दर, श्री राजेन्द्र धोडपकर, श्री एच.एम.सूदन, श्री सुरेष सावंत और श्री ष्याम जगोता सहित अनेक कार्टून हस्तियां सम्मानित हो चुकी हैं. इस महोत्सव में देष के विभिन्न हिस्सों से कार्टूनिस्ट षामिल हो रहे हैं. कार्टून वाॅच पत्रिका अपने प्रकाषन के पंद्रहवें वर्श पर हो रहे इस आयोजन के अवसर पर विषेश अंक का प्रकाषन भी करने जा रही है जिसका विमोचन डाॅ. कलाम के हाथों होगा. इस अंक में इस बार सम्मानित किये जा रहे कार्टूनिस्टों के कार्टून प्रकाषित किये जायेंगे. श्री षर्मा ने बताया कि डाॅ. अब्दुल कलाम कार्टून विधा को बहुत पसंद करते हैं और राश्ट्रपति पद में रहने के दौरान उन्होंने सभी समाचार पत्र के सम्पादकों से अनुरोध किया था कि वे कार्टून को प्रथम पृश्ठ में स्थान दें. ज्ञातव्य है कि श्री षर्मा दृवारा रचित कार्टून पात्र प्रिंस का विमोचन भी डाॅ. कलाम ने चेन्नई में किया था. कार्टून वाॅच के विषेश अंक में भी डाॅ. कलाम के कार्टून प्रकाषित किये जायेंगे.
कार्टून वाॅच पत्रिका ने विगत पंद्रह वर्शोंमें छत्तीसगढ का नाम देष के अलावा विदेषों में भी रोषन किया है. लंदन में दो सप्ताह इस पत्रिका द्वारा प्रदर्षनी लगाई गई, सम्पादक त्रयम्बक षर्मा का साक्षात्कार बीबीसी लंदन के हिन्दी रेडियो सेवा से किया गया, श्री षर्मा को नेपाल में आयोजित पांच देषों के कार्टूनिस्टों के सम्मेलन में आमंत्रित किया गया. हाल ही में कार्टून वाॅच ने दिल्ली में पहली बार आयोजित काॅमिक कन्वेन्षन - काॅमिकान में भी देष की एकमात्र कार्टून पत्रिका के रूप में भाग लिया था.

बंसल, अश्विनी से नाराज हैं महामहिम

बंसल, अश्विनी से नाराज हैं महामहिम
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के महामहिम उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी इन दिनों संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल और राज्य मंत्री अश्विनी कुमार से खासे नाराज हैं। नए नवेले मंत्री अश्विनी कुमार द्वारा संसद के सत्र के दौरान अपने आप को प्रधानमंत्री के खासुलखास बताने के लिए बंसल के पहले ही पीएम को ब्रीफ कर दिया जाता है।
संसद चलने के दौरान अमूमन महामहिम के कार्यालय में सुबह दस बजकर चालीस मिनिट पर एक ब्रीफिंग होती है जिसमें संसदीय कार्यवाही को लेकर चर्चाएं होती हैं। इस तरह की ब्रीफिंग में संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल या राज्य मंत्री अश्विनी कुमार शायद ही कभी पहुंचे हों।
पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि दोनों ही मंत्रियों का सारा का सारा ध्यान दस पचास पर प्रधानमंत्री के यहां होने वाली बैठकों पर ही होता है। नियमानुसार पीएम को ब्रीफ करने का जिम्मा पवन बंसल का है, पर अश्विनी कुमार उनसे पहले वहां पहंुच जाते हैं। लिहाजा पवन बंसल आश्चर्य चकित हैं तो महामहिम उपराष्ट्रपति गुस्से में।

पचैरी और गिरिजा व्यास बन सकते हैं महासचिव

द्विवेदी को मिल सकती है लाल बत्ती

(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। मई में विधानसभा चुनावों के उपरांत होने वाले केंद्रीय मंत्रीमण्डल फेरबदल में कांग्रेस के महासचिव और मीडिया प्रभाग के प्रमुख जनार्दन द्विवेदी को लाल बत्ती से नवाजा जा सकता है। उधर दो ब्राम्हण नताओं राष्ट्रीय महिला आयोग की निर्वतमान अध्यक्ष गिरिजा व्यास और एमपीसीसी के प्रजीडेंट सुरेश पचैरी को संगठन में महासचिव बनाया जा सकता है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि व्यास का नाम वैसे तो सी.पी.जोशी के स्थान पर राजस्थान इकाई के अध्यक्ष के लिए चल रहा है, किन्तु अगर सुरेश पचैरी को महासचिव बनाया जाता है तो निश्चित तौर पर दूसरे ब्राम्हण जनार्दन द्विवेदी को संगठन से सत्ता मंे लाकर मंत्री बनाया जाएगा। इसके साथ ही साथ गिरिजा की दावेदारी राजस्थान के साथ ही साथ संगठन में महासचिव की भी बन रही है।
सोनिया गांधी इन दिनों पार्टी के अल्पसंख्यक प्रभाग के लिए उत्तर प्रदेश के किसी मुस्लिम चेहरे को तलाश रहीं है। गौरतलब है कि वर्तमान अध्यक्ष इमरान किदवई इस पद पर छः सालों से काबिज हैं, जिन्हें बदला जाना है। इनके स्थान पर जो नाम सामने आ रहे है उनमें सलीम शेरवानी और राशिद अल्वी प्रमुख हैं।

रविवार, 24 अप्रैल 2011

डीटीसी से प्रेरणा ले एमपी गर्वर्मेंट



. . . एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो

एक दिन की डीटीसी की आय 3.66 करोड़ रूपए

(लिमटी खरे)

दिल्ली की स्थानीय परिवहन व्यवस्था को घुन की तरह खोखला करने वाली किलर ब्लू लाईन बस को सड़कों से विदा करना आसान नहीं था। न्यायालय के आदेश के बाद सड़कों पर ग्रीन और रेड लो फ्लोर बस दौड़ने लगीं हैं। चुनिंदा मार्गों पर ब्लू लाईन अभी भी दौड़ रही हैं। कोर्ट की सख्ती के बाद इस असंभव काम को संभव कर दिखाया है शीला दीक्षित सरकार ने। यह निश्चित तौर पर शीला सरकार का एक एतिहासिक कदम माना जा सकता है।

वैसे तो दिल्ली का स्थानीय परिवहन एक समय तक दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के जिम्मे हुआ करता था। शनैः शनैः राजनेताओं ने अपने लोगों को उपकृत करने के लिए डीटीसी की वाट लगाना आरंभ कर दिया। डीटीसी की बसें खटारा कहलाने लगीं और वे ऑफ रोड़ होने लगीं। इनका स्थान ब्लू लाईन बस ने ले लिया। ब्लू लाईन बस के कब्जे में आ चुकी दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को बड़ा झटका मेट्रो ने दिया। दिल्ली में मेट्रो रेल ने गजब की क्रांति लाई।

मेट्रो में लोगों को घूमने का एक अलग चार्म देखने को मिला। कालांतर में दिल्ली की जीवन रेखा मेट्रो बन गई। वैसे मेट्रो प्रबंधन ने एक बात दिल्ली के साथ ही साथ समूचे देश को सिखा दी कि किस तरह भीड़ को नियंत्रित और व्यवस्थित किया जा सकता है। पीक अवर्स में राजीव चौक में भीड़ चरम पर होती है और उस समय बिना किसी हादसे या भगदड़ के मेट्रो की सेवाएं आज भी निरंतर जारी हैं।

मेट्रो के बाद कामन वेल्थ गेम्स के लिए चमचमाती लो फ्लोर बस सड़कों पर दिखाई दीं। नान एसी बस हरी तो एयर कंडीशन्ड बस लाल रंग की अलग ही आभा लिए होती हैं। इन यात्री बसों में पहले तो दिल्लीवासी चढ़ने से घबराए क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं डीटीसी की बस अपनी आदतानुसार रस्ते में ही न पसर जाएं। धीरे धीरे डीटीसी ने लोगों का भरोसा अंततः जीत ही लिया।

आज दिल्ली में यूरोप के मानिंद ही लुभावनी बसों को देखकर राजधानी वालों का दिल प्रफुल्लित हो जाता है। दिल्ली घूमने आने वालों के लिए भी ये बस और मेट्रो रेल कोतुहल का विषय ही होती हैं। यद्यपि अभी इन बसों की टाईमिंग बहुत ही अनाप शनाप है क्योंकि एक ही मार्ग पर या तो एक एक घंटे तक बस नहीं आती है या फिर आती है तो एक साथ आधा दर्जन बस, फिर भी इसकी आय में होने वाली रिकर्ड बढ़ोत्तरी के लिए शीला सरकार की पीठ हर कोई थपथपाना चाहेगा।

दिल्ली में 5393 बस प्रथम पाली अर्थात सुबह तो चार हजार पांच सौ बस दूसरी पाली में शाम को छोडी जाती हैं। दिल्ली के यात्री बस बेड़े में 6197 यात्री बस हैं जो प्रतिदिन लगभग 11 लाख किलोमीटर का सफर तय करती हैं। 18 अप्रेल का दिन डीटीसी के लिए एक कामयाब दिन था। इस दिन 44 लाख यात्रियों को ढोकर डीटीसी ने तीन करोड़ 66 लाख रूपए की आय अर्जित की।

ज्ञातव्य है कि पिछले साल 01 से 18 अप्रेल के बीच डीटीसी की कमाई 26 करोड़ रूपए थी, जो इसी अवधि में इस साल बढ़कर 55 करोड़ रूपए तक पहुंच गई है। पिछले साल मार्च माह का कुल राजस्व 45 करोड़ रूपए था जो इस साल दुगने से ज्यादा बढ़कर 91 करोड़ रूपए हो गया है। डीटीसी का लक्ष्य सौ करोड़ रूपए करने का है।

कल तक दम तोड़ रही डीटीसी की यात्री परिवहन व्यवस्था आखिर पटरी पर आ ही गई है। निजी तौर पर संचालित होने वाली किलर ब्लू लाईन बस को सरकार ने अनिच्छा से ही सही सड़कों से खदेड़ ही दिया है। इससे साफ हो जाता है कि अगर पीछे से कोई बांस करता रहे और इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है।

मध्य प्रदेश में कमोबेश यही आलम पसरा हुआ है। निजी तौर पर अवैध तरीके से संचालित होने वाली यात्री बसों की लाबी इतनी हावी हो चुकी है कि मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को बंद ही करना पड़ा। अस्सी के दशक के आरंभ के साथ ही देश के हृदय प्रदेश में टूरिस्ट परमिट के नाम पर यात्रीयों को स्टेट कैरिज में ढोने का काम आरंभ किया गया था। जिला पुलिस, यातायात पुलिस और परिवहन विभाग की मिली भगत से इन यात्री बसों का धंधा खास फल फूल गया।

इस बिजनिस में एमपीआरटीसी जिसे पहले लोग सेेंट्रल प्रोवेन्हसिस ट्रांसपोर्ट सर्विस (सीपीटीएस) कहते थे के कारिंदों की मिली भगत ने सड़क परिवहन निगम में आखिरकार ताला लगवा ही दिया। आज मध्य प्रदेश में चुनिंदा अनुबंधित यात्री बसों के नाम पर अस्सी फीसदी अवैध बस संचालित हो रही हैं। इससे सरकार को तो राजस्व की हानी हो रही है, किन्तु बस मालिक, पुलिस और परिवहन विभाग के कर्मचारियों के साथ ही साथ जनसेवकों की जेबें खासी फूली दिखाई दे रही हैं।

मध्य प्रदेश के नीति निर्धारकों को डीटीसी की पूर्व और वर्तमान हालत से सबक लेना चाहिए। किस तरह आर्थिक और पहचान के संकट से जूझने वाली डीटीसी आज आर्थिक संपन्न और सर उठाकर चल रही है। नीयत साफ होनी चाहिए बस तभी तो कहा गया है -

‘कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता!

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो‘!!

जहर बुझे तीर एकत्र हो रहे हैं जेतली के खिलाफ

जेतली पर संघ का वरद हस्त

राजनाथ, सुषमा, जोशी के विरोध को दरकिनार किया राममाधव ने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। राज्य सभा में उपनेता अरूण जेतली का नाम विकिलीक्स खुलासे में आने के बाद लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह और मुरलीमनोहर जोशी ने जेतली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, किन्तु जेतली को जहां से एनर्जी मिली है उसकी उन्हंे कतई उम्मीद नहीं थी। जेतली के विरोध का शमन इतनी होशियारी से हुआ कि सांप भी मरा और लाठी भी नहीं टूट पाई।

विकिलीक्स में अरूण जेतली के नाम आने के बाद जेतली विरोधियों ने सरेआम बगावत आरंभ कर दी थी। इसी बीच दिल्ली झंडेवालान स्थित संघ कार्यालय उनके बचाव में आ गया। संघ प्रवक्ता राम माधव ने पत्रकारवार्ता में यह कहकर सभी को चौंका दिया कि संघ जेतली के स्पष्टीकरण से पूरी तरह संतुष्ट है।

उधर संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मोहन भागवत ने जेतली विरोधी नेताओं को बुलाकर नसीहत दी है कि इसे मुद्दा न बनाया जाए, क्योंकि एसा करने से मनमोहन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की मुहिम पर असर पड़ सकता है। सूत्रों ने यह भी बताया कि भागवत ने विद्रोह करने वालों को मशविरा दिया है कि इस अस्त्र को अभी न चलाकर तब चलाया जाए जब नितिन गड़करी का कार्यकाल समाप्त होगा और जेतली प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करेंगे।

फोन कर सरेआम धमका रहे हैं दिल्ली पुलिस के कारिंदे

दिल्ली पुलिस को खरीदा रिलायंस ने!

नई दिल्ली (ब्यूरो)। अंबानी बंधुओं के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्री ने दिल्ली पुलिस को खरीद लिया है। जी हां, यह सच्चाई है, जिससे रिलायंस मोबाईल उपयोग करने वाले उपभोक्ता वाकिफ हो जाएं कि उनकी सेवा प्रदाता कंपनी ने दिल्ली पुलिस को खरीद लिया है।

दिल्ली में निवास करने वाले मध्य प्रदेश के एक बीएसएनएल मोबाईल उपभोक्ता ने बताया कि उनके मोबाईल पर दिल्ली से 011 32090955 नंबर से इक्कीस अप्रेल को अपरान्ह फोन आया जिसमें कहा गया कि वह दिल्ली पुलिस का एक निरीक्षक बोल रहा है, और उस उपभोक्ता के खिलाफ एक प्रकरण दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल किया गया है, जिसकी पेशी 22 अप्रेल यानी गुड फ्रायडे को है। गौरतलब होगा कि 22 अप्रेल को अवकाश है।

उक्त बीएसएनएल उपभोक्ता ने बताया कि उस निरीक्षक द्वारा एक वकील का नाम और उसका नंबर भी बताया गया कि उस वकील से मिलकर मामला सेटल करावा लो नहीं तो उक्त उपभोक्ता के खिलाफ उसके पास वारंट है, और वह उसे गिरफ्तार कर लेगा। घबराए उक्त उपभोक्ता ने अपने वकील से संपर्क कर इसकी शिकायत की। वकील द्वारा इस नंबर पर बार बार फोन लगाने पर फोन बंद ही मिला। बताया जाता है कि उक्त नंबर ज्ञान दत्त, 152, शांति विहार, मण्डी विलेज, दिल्ली 110047 के नाम पर लिया गया है।

उधर रिलायंस कंपनी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने एक एजंेसी बनाकर इस तरह का काम आरंभ किया है, जिससे वे दिल्ली पुलिस के निरीक्षक बनकर उपभोक्ताओं को फोन करते हैं और फिर उनके खिलाफ अनाप शनाब बिल बताकर रकम एंठने का काम करते हैं। सूत्रों का कहना है कि जो उपभोक्ता इनके झांसे में आ जाते हैं वे इन्हें नकद पैसा चुकाकर अपनी जान बचाते फिरते हैं।


सब कुछ सामान्य नहीं है भाजपा में

बगावती तेवरों से आलाकमान चिंतित

दिल्ली, जम्मू, झारखण्ड की गुटबाजी सड़कों पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भाजपा के निजाम नितिन गड़करी इन दिनों काफी हैरान परेशान दिखाई पड़ रहे हैं, इसका कारण अनेक राज्यों में सूबाई नेतृत्व के प्रति उपजी गुटबाजी है। राजधानी दिल्ली, जम्मू काश्मीर, झारखण्ड, पंजाब, राजस्थान आदि में विद्रोह का बिगुल फुंक चुका है। इन राज्यों में राज्य इकाई के प्रति रोष और असंतोष पार्टी के अंदर तेजी से पनप चुका है। उधर मध्य प्रदेश में एक वरिष्ठतम मंत्री को जल्द ही पदच्युत किए जाने की खबरों ने एमपी भाजपा में भूचाल ला दिया है।

गड़करी के करीबी सूत्रों का कहना है कि आधा दर्जन राज्यों में भाजपा की राज्य इकाईयों की कार्यप्रणाली के कारण उनका सरदर्द बढ़ता जा रहा है। पार्टी में अंदर ही अंदर पनपने वाले असंतोष को थामने के असफल प्रयासों के परिणामस्वरूप अब विद्रोह सतह पर आ चुका है। गड़करी ने अपने दूतों को असंतोष के शमन के लिए राज्यों में तैनात किया था किन्तु उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकी हैं।

मध्य प्रदेश में मंत्रीमण्डल फेरबदल की आहटों के साथ ही एक वरिष्ठतम मंत्री को सत्ता के गलियारे से बाहर का रास्ता दिखाने की खबरों से पार्टी के अंदर खलबली मची हुई है। वैसे पार्टी अध्यक्ष प्रभात झा द्वारा कांग्रेस के नव नियुक्त प्रदेशाध्यक्ष के.एल.भूरिया को नसीहत भरी पांच पेज की पाती को भी पार्टी मंे अच्छी नजरों से नहीं देखा जा रहा है। लोगों का कहना है कि केंद्र पोषित योजनाओं के फ्लेक्स में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के फोटो हैं और झा द्वारा भूरिया को नसीहत दी गई थी कि वे अपने बेनर पोंस्टर न लगवाएं।

दिल्ली में हालात लगभग बेकाबू ही लग रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मेयर के चुनाव के लिए प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता को दी गई खुली छूट से गड़करी की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक रही हैं। भाजपा के नेताओं का आरोप है कि पिछले चार चुनावों से पंजाबी उम्मीदवार को ही मेयर बनाया जा रहा है जिससे अन्य समुदाय के लोगों में असंतोष है।

इसी तरह अमरनाथ आंदोलन में भाजपा की भूमिका के उपरांत राज्य की जनता ने भाजपा पर भरोसा जताते हुए लगभग एक दर्जन उम्मीदवारों को जबर्दस्त जीत दिलवाई थी। इसके बाद सात विधायकों के द्वारा क्रास वोटिंग किए जाने जाने से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सकते में था। इसके पीछे पार्टी के राज्य अध्यक्ष शमशेर सिंह का तुगलकी रवैया ही सामने आ रहा है।

पंजाब में भी पार्टी के गठबंधन के मतभेदों को असंतुष्ट हवा दे रहे हैं। इसी बीच स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मीकांता चावला के इस्तीफे की खबर से असंतोष दबने की खबरें थीं, किन्तु वह भी संभव नहीं हो सका। झारखण्ड में तो हद ही हो गई। वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा अपनी ही पार्टी के खिलाफ धरने पर बैठ गए। अतिक्रमण हटाने के मसले पर सिन्हा ने अर्जुन मुण्डा को अल्टीमेटम देकर पीडितों के पक्ष में बैठने को भी पार्टी नेतृत्व पचा नहीं पा रही है।

राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पहले पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को नाकों चने चबवाए अब वसुंधरा ने पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख अरूण चतुर्वेदी द्वारा गठित कार्यकारणी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। इसके अलावा उत्तराखण्ड और कर्नाटक में आए दिन पार्टी में टकराव की खबरें आम हो रही हैं।

इन परिस्थितियों में विद्रोह के शमन के लिए नितिन गड़करी को एड़ी चोटी एक करना पड़ रहा है। गड़करी के हरकारे चारों तरफ दौड़ दौड़ कर रोष और असंतोष को थामने का असफल प्रयास कर रहे हैं, किन्तु पार्टी में सब कुछ सामान्य होता नजर नहीं आ रहा है।

टीम भूरिया पर टिकी हैं सबकी निगाहें

दरकती दिख रही है कांग्रेस की एकता!

सिंधिया, नाथ ने गवारा नहीं समझा पीसीसी जाना

मिशन 2013 है भूरिया की पहली प्राथमिकता

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। एक दशक से अधिक समय के उपरांत मध्य प्रदेश के कांग्रेसी क्षत्रपों को एक मंच पर देखकर कांग्रेस के कार्यकर्ता खासे उत्साहित थे, किन्तु जैसे ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूरिया की रैली का समापन हुआ लोगों की जुबाने खुलना आरंभ हो गईं। इस रैली में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय जाए बिना ही वापस दिल्ली उड़ गए। सारे नेता आए तो एक विमान में सवार होकर थे, किन्तु उनकी वापसी अलग अलग विमानों और रास्तों से होना भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

कार्यभार ग्रहण कर दिल्ली पहुंचे प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया दिल्ली लौटने के बाद अब आराम के मूड में दिखाई पड़ रहे हैं। भूरिया को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के पट्ठे के तौर पर प्रचारित किए जाने की पीड़ा भी उनके चेहरे पर दिखाई पड़ ही जाती है। भूरिया कहते हैं कि वे दिग्विजय नहीं कांग्रेस के सिपाही हैं।

वैसे टीम भूरिया को लेकर उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं है। भूरिया के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहते। भूरिया चाहते हैं कि वे अपनी टीम में कमल नाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुभाष और अरूण यादव, सुरेश पचैरी, अजय सिंह, हरवंश सिंह आदि क्षत्रपों के समर्थकों को शामिल करें ताकि एसी कार्यकारिणी बने कि किसी को भी शिकायत का मौका न मिले।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी ढाई बरस का समय है। इस समय में भूरिया अगर कांग्रेस को जिन्दा कर लेते हैं तो उन्हें अगला मुख्यमंत्री बनाने से कोई रोक नहीं सकता है। इसके लिए भूरिया को सभी गुटों को साधना अत्यावश्यक होगा। यही कारण है कि वे अपनी टीम के गठन में बहुत ज्यादा हड़बड़ी नहीं दिखा रहे हैं।

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

राडिया के उगलते राज से भोंचक्का है देश

नीरा राडिया मतलब लोकसेवकों और जनसेवकों की मास्टर चाबी

(लिमटी खरे)

नीरा राडिया यह नाम भारत गणतंत्र के मानचित्र पर धूमकेतू के मानिंद उभरा है। राडिया ने कम समय में ही जो कर दिखाया वह इक्कीसवीं सदी में सड़ी हुई भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है। इस व्यवस्था में जनसेवकों, लोकसेवकों, कार्पोरेट घरानों और मीडिया के घरानों की गठजोड़ को सहज ही समझा जा सकता है। जब से मीडिया की बागडोर कार्पोरेट घरानों और धनपतियों ने संभाली है तबसे प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ धनकुबेरों के घर की चौखट पर मुजरा करता नजर आ रहा है।
नीरा राडिया के टेप जब सार्वजनिक हुए तब एहसास हुआ कि सत्ता और भ्रष्ट तंत्र की सांठगांठ से ही देश का शासन चल रहा है। नीरा राडिया ने जिस तरह से कार्पोरेट घरानों और मीडिया मुगलों से बातचीत की है उससे समझा जा सकता है कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में सत्ता की धुरी आखिर किसके इर्द गिर्द घूम रही है। कमोबेश यही स्थिति ब्रिटेन में तब बनी थी जब पामेला बोर्डेस का प्रकरण सामने आया था।
लंदन निवासी नीरा राडिया महज एक लाख रूपए की पूंजी लेकर हिन्दुस्तान आई और कम समय में ही वह कारपोरेट धरानों के साथ ही साथ मीडिया मुगलों और जनसेवकांे की चहेती बन गई। वस्तुतः नीरा राडिया पहले नीरा शर्मा थीं, जो अपने विमानन क्षेत्र से जुड़े पिता के साथ लंदन चली गईं थीं। इसके बाद नीरा ने गुजराती मूल के एनआरआई जनक राडिया से विवाह किया। तीन बच्चों के होने के बाद इन दोनों की नहीं बनी और राडिया ने जनक से तलाक ले हिन्दुस्तान की ओर रूख किया।
ख्यातिलब्ध सहारा समूह के लिए लाईजनिंग (वर्तमान में दलाली को लोग इस नाम से जानने लगे हैं) का काम करने के उपरांत नीरा ने विमानन क्षेत्र से जुड़ी यूरोपीय कंपनियों के लिए काम किया। बताते हैं कि नीरा का सबसे अधिक दोहन टाटा समूह द्वारा किया गया है। नीरा को टाटा समूह से ही प्रतिवर्ष साठ करोड़ रूपए दिए जाते थे।
पौने दो लाख करोड़ रूपयों के टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया की भूमिका अहम रही है। सीबीआई की गवाही की फेहरिस्त में नीरा का नंबर 44वां है। नीरा पर आदिमत्थू राजा को मंत्री बनवाने के लिए चौसर बिछाने का आरोप है। नीरा के अलावा इस घोटाले में सालीसिटर जनरल गुलाम ई वाहनवती का मशविरा, यूनिटेक समूह के वरिष्ठ प्रबंधक कौशल नागपाल, यूनिटेक के एक अन्य आला अधिकारी मोहित गुप्ता, रिलयंस के ए.एन.सेतुरमन, आनंद सुब्रह्मण्यम, राजिंदर सिंघी, आशीष करीएकर, आशीष टंबावाला, विश्वनाथ देवराजा, अनंत राज ग्रुप के अमित सरीन, एतिस्लात के विनोद कुमार बुद्धिराजा, डीबी रियल्टी के विजेंद्र शर्मा, लूप मोबाईल के ए.एस.नारायणन आदि सीबीआई के निशाने पर हैं।
अब तक महिलाओं के जासूसी करने के कारनामों का भाण्डाफोड़ होता आया है। महिलाओं द्वारा अपनी अदाओं या त्रिया चरित्र में पुरूषों को फसाकर उनसे मनचाहा काम करवाया जाता रहा है। आदि अनादि काल से इस बात का उल्लेख मिलता आया है कि महिलाओं के माध्यम से ही राजाओं द्वारा अपने काम साधे जाते रहे हैं। रूपसी कन्याओं को विषकन्या में तब्दील कर दिया जाता था, जिनके माध्यम से विरोधियों का शमन किया जाता रहा है।
आश्चर्य तो तब होता है जब केंद्र सरकार के एक मंत्री द्वारा पौने दो लाख करोड़ रूपए (एक सामान्य आदमी इतने पैसे गिनने में आधी उमर लगा दे) का घोटाला किया गया हो और उसके साथी मंत्री (वर्तमान संचार मंत्री कपिल सिब्बल) उसके बचाव में आगे आएं। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस की बेशर्मी तो देखिए, कांग्रेस अपनी खाल के बचाव में कहती है कि इस मामले की जांच एनडीए शासनकाल से की जाएगी।
प्रश्न तो यह है कि आप जांच आजादी के उपरांत गठित संचार मंत्रालय के कार्यकाल से ही कर लें इस बात से आम जनता को क्या लेना देना? अगर भाजपा नीत राजग सरकार के कार्यकाल में घपले घोटाले हुए तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इस तरह एक राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे को घुड़की देना कहां तक न्याय और तर्क संगत माना जा सकता है। मतलब साफ है कांग्रेस भाजपा को दम दे रही है कि चुप रहो वरना हम तुम्हारे भी कपड़े उतार देंगे। जनता को सियासी दलों ने अंधी, बहरी और नासमझ ही समझा है।
नीरा राडिया टेप कांड में केंद्र सरकार के अनेक मंत्रियों के कपड़े उतरे हैं, किन्तु वे बेशर्मी के साथ आज भी सत्ता की मलाई चख रहे हैं। यह सब कुछ कांग्रेस और भाजपा के राज में ही संभव है। हो सकता है कि आने वाले दिनों के लिए मीडिया मुगलों ने कुछ और टेप या सबूत जुटा रखे हों जिन्हें माकूल वक्त पर उजागर किया जाए, तब न जाने कितनी नीरा राडियाएं, देश के भ्रष्ट जनसेवकों, लोकसेवकों, मीडिया मुगलों, कार्पोरेट घरानों को नग्न करेंगी। पर इससे देश के नीति निर्धारकों को क्या लेना देना, यह सब तो हमाम में ही चल रहा है और पुरानी कहावत है -हमाम में सब नंगे हैं।‘‘

दरकता दिख रहा है गांधी परिवार का दुर्ग

0 मिशन 2012 के लिए

कांग्रेसियों के लिए खुले किले के दरवाजे!

अमेठी रायबरेली में दी आला कांग्रेसियों ने आमद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। नेहरू गांधी परिवार के अभैद्य गढ़ अमेठी और रायबरेली में अब नेहरू गांधी परिवार से इतर आला नेताओं की आमद बढ़ने से सियासी हल्कों में गहमा गहमी बढ़ गई है। दशकों बाद इन क्षेत्र में पार्टी के प्रादेशिक नेताओं ने कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद किया है, जिससे लगने लगा है कि गांधी परिवार का गढ़ दरक रहा है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय मुख्यालय मंे चल रही बयार के मुताबिक भले ही कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी समूचे देश में कांग्रेस को मजबूत करने का जतन कर रहे हों पर उनके संसदीय क्षेत्र अमेठी और रायबरेली में सूबे की निजाम मायावती ने संेध लगा ही दी है।
गौरतलब है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपने संसदीय क्षेत्र में पार्टी के दीगर नेताओं की जरूरत कभी महसूस नहीं की है। यही कारण है कि अमेठी और रायबरेली में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वढ़ेरा के अलावा और कोई नेता घुस नहीं पाया है। सालों बाद यह मौका आया है कि पार्टी के अन्य नेता इस क्षेत्र का दौरा कर पाए हों।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यूपी मिशन 2012 को देखते हुए सोनिया और राहुल ने पार्टी के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं को अपने संसदीय क्षेत्र भेजकर सीधा संवाद करने को कहा है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने जगदीशपुर जाकर स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा अधिग्रहित मालविका स्टील के सेल कारखाने का निरीक्षण किया वरन् कार्यकर्ताआंे से सीधा संवाद भी किया है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि गौरी गंज में राजबब्बर, अमेठी में प्रमोद तिवारी, सरेसर में सड़क दुर्घटना में पीड़ितों का जिम्मा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन को गौरीगंज का जिम्मा सौंपा गया था। उल्लेखनीय होगा कि सालों से अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्र में जनसभाओं को संबोधित करने का काम खुद राहुल या सोनिया गांधी द्वारा किया जाता रहा है। चुनाव के दरम्यान इसकी कमान प्रियंका वढ़ेरा खुद संभालती हैं। हाल ही में आए इस परिवर्तन से कार्यकर्ता हतप्रभ हैं। कार्यकर्ताओं में चल रही चर्चाओं के अनुसार मायावती के भय से अब राजमाता और युवराज दोनों ही पार्टी के दीगर नेताओं पर भरोसा जता रहे हैं।

अवैध तौर पर संचालित सायबर कैफे पर कसेगी लगाम

सायबर कैफे में अब फोटो जरूरी

दो लाख सायबर कैफे में होगी यह व्यवस्था लागू

नई दिल्ली (ब्यूरो)। सायबर क्राईम पर लगाम लगाने के लिए अब सरकार कड़े कदम उठाने जा रही है। मई माह से इंटरनेट कैफे में नेट सर्फिंग के लिए फोटो युक्त पहचान पत्र के अलावा उपयोगकर्ता का एक फोटो भी वेब केमरे से खीचना अनिवार्य किया जा सकता है।
केंद्रीय सूचना और प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने इस तारतम्य में कड़े नियम बना दिए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति सायबर कैफे जाकर इंटरनेट का प्रयोग करता है तो उसे अपने साथ फोटो वाला आई डी रखना अनिवार्य होगा। कैफे के संचालक की यह जवाबदारी होगी कि वह उपयोगकर्ता का एक फोटो खीचकर रखे।
गौरतलब है कि आपराधिक मामले, विशेषकर धमकी भरे ईमेल, आतंकी हमलों के ईमेल, धोखाधड़ी, छेड़छाड़, बालाओं की फोटो में छेड़खानी कर उसे अश्लील बनाकर नेट पर परोसने के अनेकानेक मामले सामने आने पर केद्र सरकार ने सख्ती बरतने का मन बनाया है। नए नियमों के अनुसार सभी इंटरनेट पार्लर का पंजीयन आवश्यक कर दिया गया है। एक अनुमान के अनुसार देश में वर्तमान में लगभग दो लाख सायबर कैफे संचालित हो रहे हैं, जिसमें पंजीयन की अनिवार्यता नहीं है।